गायत्री मन्त्र की सत्य चमत्कारी घटनाये – 15 (गायत्री द्वारा सुसंति की प्राप्ति)
पं. श्रीकृष्ण शुक्ल, देहली का कहा है कि गायत्री का आश्रय से मनुष्य सब कुछ प्राप्त कर सकता है। कोई वस्तु नहीं जिसे गायत्री साधक प्राप्त न कर सके। अनुभवी लोगों ने ऐसा ही कहा है। उसकी पुष्टि में अनेक प्रमाण उपलब्ध हैं। जिन्होंने श्रद्घा और विश्वासपूर्वक माता का अंचल पकड़ा है उन्हें कभी निराश नहीं होना पड़ा। वेद माता की कृपा से जब मनुष्य के अन्त: करण में सतोगुण का प्रकाश होता है तो शारीरिक बीमारियां तथा स्वभाव और विचारों की बुराइयां आप ही दूर हो जाती हैं।
उन्नति और सुख-शान्ति के मार्ग में यह बुराइयां ही रोड़ा अटकती हैं, जब माता की कृपा से उनका निवारण हो जाता है तो कोई भी अभाव या कष्ट या दु:ख शेष नहीं रह जाता। अपना मेरा निज का अनुभव बड़ा उत्साहवर्धक है। कुछ वर्ष पूर्व मेरा स्वभाव बड़ा क्रोधी था। जरा-जरा सी बात पर लड़ बैठता था तथा मस्तिष्क में बुरे-बुरे विचार उठते रहते थे, पर जब से गायत्री माता का पल्ला मैंने पकड़ा है, तब से दोष दुर्गुणों का सफाया हो गया। अब मुझमें पुराना एक भी अवगुण नहीं है। हर तरह से शान्ति अनुभव करता हूं।
कई वर्ष से मैंने नौकरी छोड़ दी है, फिर से नौकरी की अपेक्षा कहीं अधिक घर बैठे अपने स्वतंत्र व्यवसाय से कमा लेता हूं। मेरे एक मित्र को गायत्री महिमा का बड़ा ही आनन्ददायक चमत्कार मिला है, दिल्ली में ही नई सड़क पर पं. बुद्घू राम भट्ट की दुकान है। आपको 45 वर्ष तक कोई सन्तान नहीं हुई। इससे पति-पत्नी दोनों ही दु:खी रहते थे, पर ईश्वर की इच्छा और भाग्य की प्रबलता समझ कर संतोष कर लेते थे। कुछ समय पूर्व उन्होंने गायत्री महिमा का परिचय प्राप्त किया और भक्तिपूर्वक माता की आराधना करने लगे।
इस आराधना का लाभ यह हुआ कि अब उनके एक पुत्र हुआ है। निराशा के अन्धकार में आशा की यह एक नवीन किरण प्रकाशित हुई है। बच्चा बड़ा स्वस्थ, सुन्दर और होनहार है, उसमें दैवी गुण दिखाई पड़ते हैं। ऐसी ही एक माता की कृपा इसी वर्ष वृन्दावन में हुई है। संयुक्त प्रान्तीय आर्य प्रतिनिधि सभा के गुरुकुल में रसायन विभाग के कार्यकर्ता पं. सुदामा जी एक सुयोग्य सज्जन हैं। चौदह वर्ष से आपके यहां कोई बालक नहीं जन्मा था। पंडित जी ने गायत्री का पुरश्चरण किया और अब इसी साल 14 वर्ष पश्चात् एक पुत्र का जन्म हुआ है।
वंश चलने और घर के किवाड़ खुले रहने की चिन्ता थी, वह सहज ही दूर हो गई। पं. सुदामा जी का तब से गायत्री पर और भी विश्वास बढ़ गया है। ऐसी घटनाएं एक दो नहीं अनेकों हैं। जिनको कन्याएं ही कन्याएं होती हैं या कोई सन्तान नहीं है, उन्हें मनोवांछित सन्तान मिलने की अनेक घटनाएं अखण्ड ज्योति सम्पादक को मालूम है। पूर्व काल में पुत्रेष्ठि यज्ञ गायत्री मंत्र से ही होते थे। राजा दशरथ ने सन्तान के लिये जो पुत्रेष्ठि यज्ञ करवाया था वह गायत्री मंत्र से ही हुआ था। राजा दलीप ने गुरु वशिष्ठ के आश्रम में रहकर नंदनी गौ की सेवा और गायत्री की उपासना करके ही सन्तान पाई थी।
कुन्ती ने कुमारी अवस्था में गायत्री मंत्र द्वारा सुर्य की तेज को धारण करके कर्ण को जन्म दिया था। गायत्री अपने भक्तों की अनेक आवश्यकताओं को पूरा करती है। सन्तान सम्बंधी बाधाओं को भी वह दूर करती है। कुपात्र, अवज्ञाकारी, दुर्गुणी, सन्तान के विचार और स्वभावों में परिवर्तन होकर उनके सौम्य बनने के चमत्कार भी माता की कृपा से अनेक बार होते हैं।
कितने ही कुसंग में पड़े हुये, जिददी, चोर, दुराग्रही, अवज्ञाकारी, आलसी एवं मंद बुद्घि बालकों में आशाजनक परिवर्तन गायत्री की कृपा से होता गया है। जिन्हें सन्तान सम्बंधी असन्तोष है, संतान नहीं होती होकर मर जाती है, कन्याएं ही होती हैं, बालक रोगी कमजोर औ कुरूप होते हैं, वे गायत्री उपासना करके देखें, उन्हें मनोवांछित लाभ होगा। माता-पिता गायत्री का आश्रय लेकर इच्छानुकूल सन्तान उत्पन्न कर सकते हैं। ऐसे अनेक उदारहण अनेक बार देखे गये हैं।
सौजन्य – शांतिकुंज गायत्री परिवार, हरिद्वार
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