गायत्री मन्त्र की सत्य चमत्कारी घटनाये – 17 (निराशा में आशा की किरण)
श्री अयोध्या प्रसाद दीक्षित, कानपुर से लिखते हैं कि मेरी धर्मपत्नी ने अपने विवाह से पूर्व हिन्दी मिडिल किया था। इस बात को एक लम्बी मुद्दत बीत गई। विवाह के उपरान्त वह घर गृहस्थी के कामों में लग गई। बच्चों का पालन-पोषण तथा गृहस्थ के अनेक कामों में शक्ति और समय खर्च होता है। उसके बाद प्राय: स्त्रियों को आगे की परीक्षा देने का न अवकाश रहता है और न उत्साह।
पिछले वर्ष धर्मपत्नी सौ. शान्ति देवी ने घर पर पढ़ कर मैट्रिक परीक्षा देने का विचार प्रगट किया। उसका मनोरथ अच्छा था, पर उसके पूरे होने के कोई लक्षण न दिखाई पड़ते थे। कारण कई थे- एक तो वह आए दिन बीमार बनी रहती हैं। हाल ही में उसके बच्चे का स्वर्गवास हुआ था। जिसके कारण चित्त में हर घड़ी दु:ख रहता था। फिर घर पर रह कर पढ़ाई की भी कोई समुचित व्यवस्था न थी, इतने वर्षों की छूटी हुई शिक्षा, फिर एक वर्ष में इतने बड़े कोर्स की तैयारी, इन सब बातों पर विचार करने से सहज ही यह दृष्टिगोचर हो जाता है कि मंजिल आसानी से पार होने वाली नहीं है।
पत्नी ने अपना अभिप्रगट किया तो मैंने खुशी-खुशी सहमति प्रगट कर दी। इसलिये नहीं कि उसके सफल होने की आशा थी वरन् इसलिये कि पुत्र शोक से उसका चित्त एक दूसरे काम में बंट जायेगा और इसी बहाने कुछ न कुछ शिक्षा की वृद्घि भी होगी। पर परीक्षा के लिये जैसी तैयारी होती है उसकी तुलना में तो यह सब मजाक ही हो रहा था। गायत्री उपासना को इस शिक्षा के साथ-साथ उसने अपना आधार बनाया। वह पढ़ाई की भांति ही नहीं वरन् उससे भी अधिक गायत्री उपासना पर ध्यान रखती। इसी प्रकार धीरे-धीरे कई महीने बीते।
परीक्षा का फॉर्म भर दिया गया। देखते-देखते तिथि भी आ गई। तैयारी बहुत कम थी, इसलिये फेल होने की बात मन में बैठी हुई थी। परीक्षा समाप्त हुई तो मैंने पूंछा कि कैसी आशा है? उत्तर मिला कि- कम्पार्टमैन्टल में नाम आ गया तो बहुत है। दूबारा परीक्षा में शायद एक और अवसर मिले। परीक्षाफल निकला। उसका नाम द्वितीय श्रेणी के उत्तीर्ण छात्रों में आया। उत्साह का ठिकाना न रहा। परीक्षार्थिनी कहती है कि जब मैं उत्तर लिखने बैठती थी तो कोई शक्ति कलम पकड़ कर ऐसे उत्तर लिखती जाती थी जो साधारण स्थिति में लिखना मेरे लिये कठिन था।
परीक्षा भवन में प्रवेश करते समय वह गायत्री माता का जप और ध्यान करती जाती थी। वह कहती है कि उत्तर लिखते समय मेरी बुद्घि औ स्मरण शक्ति बहुत तीव्र रहती थी। अपनी साधारण समय की अयोग्यता और परीक्षा समय में असाधारण प्रतिभा इन दोनों बातों का सामंजस्य वह सोच नहीं सकती थी। इसी से उसे अनुत्तीर्ण होने का सदा भय रहा। अब वह कहती है कि गायत्री माता की कृपा से मनुष्य की बुद्घि इतनी स्वच्छ होती है कि उनसे जीवन की अनेकों परीक्षाओं में उत्तीर्ण हो सकता है। उसने अभी से अगले वर्ष की पढ़ाई की तैयारी प्रारम्भ कर दी है। देखें माता उसे कहां तक ले पहुंचती हैं।
सौजन्य – शांतिकुंज गायत्री परिवार, हरिद्वार
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