लोकप्रचलित स्वास्थवर्धक आयुर्वेदिक उपचार
एनीमिया (रक्ताल्पता, anemia treatment in hindi) –
– शरीर एकदम कमजोर पड़ गया हो और आँखों के आगे अंधेरा छाने लगा हो तो समझ लीजिए कि शरीर में खून की कमी बढ़ रही है, ऐसे में आँवले के चूर्ण का तिल के चूर्ण में मिलाकर रख लें। अब एक चम्मच चूर्ण हर रोज चासनी मिला कर चाटें। महीने भर में हालत सुधरने लगेगी ।
– अनार के रस को एनीमिया के रोगी को पिलाना फायदेमंद है।
– जिनके शरीर में रक्त की कमी हो टमाटर के रस में नींबू का रस मिलाकर लें। लाल टमाटरों का रस पीते रहने से कमजोरी व थकावट दूर होती है एवं भूख खुलती है !
– रक्तक्षीणता में आधा कप आँवले का रस, दो चम्मच चासनी, थोड़ा सा पानी मिलाकर पीने से लाभ होता है।
– रक्ताल्पता में फालसा खाने से लाल रक्त बढ़ता है। एक मुट्ठी फालसा रोज चूसने से रक्त की कमी नहीं रहती !
– सहजन की पत्तियों की सब्जी खानी चाहिए, लोहे की कमी से होने वाली अरक्तता दूर होती है। चाय के सेवन से रक्तक्षीणता बढ़ती है।
– रक्ताल्पता (एनीमिया) में चुकन्दर से बढ़कर कोई दवा नहीं है। कमजोरी अनुभव होने पर नींबू पानी का सेवन करने से स्फूर्ति प्राप्त होती है।
– पपीता पाचन शक्ति बढ़ाता है तथा खून में वृद्धि करता है अत: जिन्हें खून की कमी हो उन्हें पपीता अवश्य खाना चाहिए।
– दालचीनी और काला तिल समान मात्रा में लेकर पीस लें। इस चूर्ण को आधा कप दूध या पानी के साथ लेने से कमजोरी दूर होती है।
– पके हुए मीठे आठ दस आडू, दस—बारह दिन बराबर लें।
– 5 – 7 काजू खूब चबाकर ऊपर से गर्म दूध पी लें। ।
– आम को दूध में घोंट कर रोज पीने से रक्ताल्पता दूर होती है।
– थोड़ी मात्रा में रोज आलूबुखारा खाने से रक्त की कमी दूर होती है।
– 5 — 7 चीकू एक साथ सेवन करें। बेजान शरीर में जान आयेगी और कमजोरी दूर हो जायेगी।
– पालक (बिना कीटनाशक से पैदा हुआ) भी एक बेहतर औषधि है।
– तिल का प्रयोग भोजन में होना चाहिए क्योंकि इसमें लौह तत्व पाया जाता है।
आम तौर पर लोगो को मिर्गी के बारे में ज्यादे जानकारी न होने की वजह से इसका उचित इलाज नहीं हो पाता है। ये एक मानसिक रोग है और इसका एलोपैथी में सामन्यतया कोई कारगर इलाज नहीं दीखता। आईये जानते है मिर्गी से जुड़े कई पहलुओं को-
मिर्गी एक ऐसी बीमारी है जिसे लेकर लोग अक्सर बहुत ज्यादा चिंतित रहते हैं। मिर्गी रोग होने के और भी कई कारण हो सकते हैं जैसे-
बिजली का झटका लगना, नशीली दवाओं का अधिक सेवन करना, किसी प्रकार से सिर में तेज चोट लगना, तेज बुखार तथा एस्फीक्सिया जैसे रोग का होना आदि। इस रोग के होने का एक अन्य कारण स्नायु सम्बंधी रोग, ब्रेन ट्यूमर, संक्रामक ज्वर भी है। मिर्गी के रोगी अक्सर इस बात से परेशान रहते हैं कि वे आम लोगों की तरह जीवन जी नहीं सकते। उन्हें कई चीजों से परहेज करना चाहिए। खासतौर पर अपनी जीवन शैली में आमूलचूल परिवर्तन करना पड़ता है जिसमें बाहर अकेले जाना प्रमुख है।
यह रोग कई प्रकार के ग़लत तरह के खान-पान के कारण होता है। जिसके कारण रोगी के शरीर में विषैले पदार्थ जमा होने लगते हैं, मस्तिष्क के कोषों पर दबाब बनना शुरू हो जाता है और रोगी को मिर्गी का रोग हो जाता है। दिमाग के अन्दर उपलब्ध स्नायु कोशिकाओं के बीच आपसी तालमेल न होना ही मिर्गी का कारण होता है। हलांकि रासायनिक असंतुलन भी एक कारण होता है।
गर्भवती महिला को पड़ने वाला मिर्गी का दौरा जच्चा और बच्चा दोनों के लिए तकलीफदायक हो सकता है। उचित देखभाल और योग्य उपचार से वह भी एक स्वस्थ शिशु को जन्म दे सकती है। मिर्गी की स्थिति में गर्भ धारण करने में कोई परेशानी नहीं है। इस दौरान गर्भवती महिलाएं डॉक्टर की सलाह के अनुसार दवाइयां लें। मां के रोग से होने वाले बच्चे पर कोई असर नहीं पड़ता। गर्भवती महिला समय-समय पर डॉक्टर से जांच कराती रहें, पूरी नींद लें, तनाव में न रहें और नियमानुसार दवाइयां लेती रहें। गर्भवती महिला के साथ रहने वाले सदस्यों को भी इस रोगकी थोड़ी जानकारी होना आवश्यक है।
– प्राणायाम करने से सभी मानसिक रोगो की तरह मिर्गी में भी बहुत ही ज्यादा फायदा निश्चित मिलता है।
– ज्ञान मुद्रा लगाने से भी मिर्गी में बहुत फायदा मिलता है (ज्ञान मुद्रा की पूर्ण विधि और पूर्ण फायदों के बारे में जानने के लिए कृपया इस वेबसाइट के योग सेक्शन में देखें) !
– अंगूर का रस (बिना रासायनिक खाद और कीटनाशक से पैदा हुआ) मिर्गी रोगी के लिये अत्यंत उपादेय उपचार माना गया है। आधा किलो अंगूर का रस निकालकर प्रात:काल खाली पेट लेना चाहिये। यह उपचार करीब ६ माह करने से आश्चर्यकारी सुखद परिणाम मिलते हैं।
– मिट्टी (बिना रासायनिक खाद और कीटनाशक की) को पानी में गीली करके रोगी के पूरे शरीर पर प्रयुक्त करना अत्यंत लाभकारी उपचार है। एक घंटे बाद नहालें। इससे दौरों में कमी होकर रोगी स्वस्थ अनुभव करेगा। मानसिक तनाव और शारिरिक अति श्रम रोगी के लिये नुकसानदेह है। इनसे बचना जरूरी है।
– रोजाना तुलसी के 10 पत्ते चबाकर खाने से रोग की गंभीरता में गिरावट देखी जाती है।
– भारतीय देशी गाय माता के दूध से बनाया हुआ मक्खन मिर्गी में फ़ायदा पहुंचाने वाला उपाय है। दस ग्राम नित्य खाएं।
– पपीते के रस में थोड़ा सा कपूर मिलाकर रोगी को सुंघाने से रोगी की मूर्छा हटती है।
गठिया रोग (herbal treatment of rheumatoid arthritis)-
– 100 ग्राम तारपीन का तेल, 30 ग्राम कपूर, 10 ग्राम पिपरमिण्ट, इन सबको मिलाकर धूप में एक दिन रखें। जब यह सब तारपीन में मिल जाये, तो दवा तैयार हो गई। जिन गाठों में दर्द हो, वहां पर यह दवा लगाकर धीरे-धीरे 15 मिनट तक मालिश करें और इसके बाद कपड़ा गरम करके उस स्थान की सिकाई कर दें। एक सप्ताह में ही दर्द में आराम मिलने लगेगा।
– आँवला चूर्ण 20 ग्राम, हल्दी चूर्ण 20 ग्राम, असंगध चूर्ण 10 ग्राम, गुड़ 20 ग्राम इन चारों औषधियों को 500 ग्राम पानी में डालकर धीमी आँच में पकाये, जब पानी 100 ग्राम रह जाये तो उसे आग से उतार कर कपड़े या छन्नी से छान लें एवं इस काढ़े की तीन खुराक बनायें। सुबह, दोपहर एवं रात्रि में खाने के बाद पियें। इस प्रकार प्रतिदिन सुबह यह दवा बनायें, लगातार 30 दिन पीने पर गठिया में आराम होता है।
पित्त रोग (Ayurvedic jadibuti of bile, pitta) –
– पीपल (गीली) चरपरी होने पर भी कोमल और शीतवीर्य होने से पित्त को शान्त करती है।
– खट्टा आंवला, लवण रस और सेंधा नमक भी शीतवीर्य होने से पित्त को शान्त करती है।
– गिलोय का रस कटु और उष्ण होने पर भी पित्त को शान्त करता है।
– हरीतकी (पीली हरड़) 25 ग्राम, मुनक्का 50 ग्राम, दोनों को सिल पर बारीक पीसकर उसमें 75 ग्राम बहेड़े का चूर्ण मिला लें। चने के बराबर गोलियां बनाकर प्रतिदिन प्रातःकाल ताजा जल से दो या तीन गोली सेवन करें। इसके सेवन से समस्त पित्त रोगों का शमन होता है। हृदय रोग, रक्त के रोग, विषम ज्वर, पाण्डु-कामला, अरुचि, उबकाई, कष्ट, प्रमेह, अपरा, गुल्म आदि अनेक ब्याधियाँ नष्ट होती हैं।
– 10 ग्राम आंवला रात्रि में पानी में भिगो दें। प्रातःकाल आंवले को मसलकर छान लें। इस पानी में थोड़ी मिश्री और जीरे का चूर्ण मिलाकर सेवन करें। तमाम पित्त रोगों की रामबाण औषधि है। इसका प्रयोग 15-20 दिन करना चाहिए।
खांसी और कफ (herbal treatment of cold & cough, linguistic communication)-
– धीमी आंच में लोहे के तवे पर बेल की पत्तियों को डालकर भूनते-भूनते जला डालें। फिर उन्हें पीसकर ढक्कन बन्द डिब्बे में रख लें और दिन में तीन या चार बार सुबह, दोपहर, शाम और रात सोते समय एक माशा मात्रा में 10 ग्राम शहद के साथ चटायें, कुछ ही दिनों के सेवन से कुकुर खांसी ठीक हो जाती हैै। यह दवा हर प्रकार की खांसी में लाभ करती है।
– पान का पत्ता 1 नग, हरड़ छोटी 1 नग, हल्दी आधा ग्राम, अजवायन 1 ग्राम, काला नमक आवश्यकतानुसार, एक गिलास पानी में डालकर पकायें आधा गिलास रहने पर गरम-गरम दिन में दो बार पियें । इससे कफ पतला होकर निकल जायेगा। रात्रि में सरसों के तेल की मालिश गले तथा छाती व पसलियों में करें।
– सूखी खांसी होने पर अमृर्ताण्व रस सुबह-शाम पानी से लेनी चाहिए।
– सितोपलादि चूर्ण शहद में मिलाकर चाटने से खांसी में काफी आराम मिलता है।
– तालिसादि चूर्ण दिन भर में दो-तीन बार लेने से खांसी में कमी आती है।
– गुनगुने पानी से गरारे करने से गले को भी आराम मिलता है और खांसी भी कम होती है।
– चन्द्रामृत रस भी खांसी में अच्छा रहता है।
– हींग, त्रिफला, मुलहठी और मिश्री को नीबू के रस में मिलाकर लेने से खांसी कम करने में मदद मिलती है।
– त्रिफला और शहद बराबर मात्रा में मिलाकर लेने से भी फायदा होता है।
– गले में खराश होने पर कंठकारी अवलेह आधा-आधा चम्मच दो बार पानी से या ऐसे ही लें।
– खांसी आने पर, फ्रिज में रखी ठंडी चीजों को न खाएं। धुएं और धूल से बचें।
– खांसी के आयुर्वेदिक इलाज के लिए जरूरी है कि किसी अनुभवी चिकित्सक से संपर्क किया जाएं। अपने आप आयुर्वेदिक चीजों का सेवन विपरीत प्रभाव भी डाल सकता है।
शरीर के अंदर पैदा होने वाले हर किस्म के कीड़ो और उनसे पैदा होने वाली अनेक किस्म के बीमारियो के लक्षण के लिए (stomach worms)-
– नीम की 7 पत्ती 1 से 2 महीने खाए और अगर नीम की पत्ती चबाने में दिक्कत हो तो पतंजली योगपीठ की नीम घनवटी खाए (नोट – हर आदमी को साल में एक बार कीड़ो की दवा जरूर खाना चाहिए और नीम खाने के 1 घंटे आगे पीछे दूध से बने सामान नहीं खाना चाहिए )
– वायविडंग, नारंगी का सूखा छिलका, शक्कर को समभाग पीसकर रख लें। 6 ग्राम चूर्ण को सुबह खाली पेट सादे पानी के साथ 10 दिन तक प्रतिदिन लें। दस दिन बाद कैस्टर आयल (अरंडी का तेल) 25 ग्राम की मात्रा में शाम को रोगी को पिला दें। सुबह मरे हुए कीड़े निकल जायेंगे।
– पिसी हुई अजवायन 5 ग्राम को चीनी के साथ लगातार 10 दिन तक सादे पानी से खिलाते रहने से भी कीड़े पखाने के साथ मरकर निकल जाते है।
– पका हुआ टमाटर दो नग, कालानमक डालकर सुबह-सुबह 15 दिन लगातार खाने से बालकों के चुननू आदि कीड़े मरकर पखाने के साथ निकल जाते है। सुबह खाली पेट ही टमाटर खिलायें, खाने के एक घंटे बाद ही कुछ खाने को दें।
– श्री बाबा रामदेव की पतंजलि फार्मा की कुछ ऐसी बेहद फायदेमंद दवायें हैं जिनसे पीलिया में बहुत ही ज्यादा लाभ मिलता है जैसे- लिव डी 38 टेबलेट, लिव अमृत सिरप (Baba Ramdev’s Patanjali Liv D 38 tablets, Patanjali Ayurved Liv-amrit Syrup) आदि ! बेहतर है कि पीलिया होने पर, किसी पतंजलि चिकित्सक से मिलकर दवाओं की सलाह ले लेना चाहिए ! पीलिया में दवा से ज्यादा परहेज जरूरी होता है इसलिए सिर्फ बिना घी तेल मसाले का खाना पीना चाहिए और अधिक से अधिक बेड रेस्ट करना चाहिए !
– बिना कीड़ो और कीटनाशक वाले मूली के पत्तों के 100 ग्राम रस में 20 ग्राम चीनी मिलाकर पिलायें।
– मूली, सन्तरा, पपीता, तरबूज, अंगूर, टमाटर खाने को दें।
– साथ ही गन्ने का रस पिलायेें और पेट साफ रखें, पीलिया में आराम मिलेगा।
हाई ब्लडप्रेशर (High blood pressure)-
– श्री बाबा रामदेव की पतंजलि कम्पनी की दवा दिव्य मुक्तावटी (Divya Pharmacy of Patanjali Yog Peeth Divya Mukta Vati Benefits) हाई ब्लड प्रेशर में जबरदस्त फायदेमंद है !
– गौमूत्र का प्रतिदिन सुबह खाली पेट एवं रात्रि में सोते समय 10-10 ग्राम की मात्रा में लिया जाये, तो ब्लडप्रेशर में आराम मिलता है।
– अर्जुन की छाल का चूर्ण 5 ग्राम सुबह एवं शाम को लगातार लेने से ब्लडप्रेशर नार्मल होता है एवं हृदय से सम्बन्धित अन्य बीमारियों में फायदा मिलता है।
चर्मरोग / सफेद दाग (skin diseases, leprosy)-
– नीम और तुलसी की 7-7 पत्ती गोमूत्र के साथ रोज पीये और अगर नीम की पत्ती चबाने में दिक्कत हो तो पतंजली योगपीठ की आरोग्य वटी खाए और गोमूत्र को खुजली या सफ़ेद दाग पर लगाये (नोट – नीम खाने के 1 घंटे आगे पीछे दूध से बने सामान नहीं खाना चाहिए)
– कच्चे पपीते को छीलकर कुचल लें। फिर ताजा रस दाद, खाज, खुजली वाले स्थान पर लगायें। लगभग 15 दिन तक इस रस को लगाने से दाद—खाज आदि जड़ से नष्ट होतें है।
कैंसर (cancer)-
– गेंहूँ के जवारे का रस, तुलसी की पत्ती, गोमूत्र, त्रिफला और गिलोय का नियमित सेवन तथा नियमित सुबह शाम 1 – 1 घंटा प्राणायाम (कपालभाति व अनुलोमविलोम) करने से कैंसर में निश्चित लाभ मिलता है।
– तुलसी की पत्ती व त्रिफला सेवन करने से तथा सुबह शाम आधा – आधा घंटा अनुलोमविलोम प्राणायाम करने से अस्थमा / दमा में लाभ जरूर होता है।
अजीर्ण / अपच / कब्ज / कमजोर पाचन शक्ति (Digestive problems, indigestion, weak digestion, constipation)-
– 50 ग्राम-सौफ, 50 ग्राम-हर्र, 50 ग्राम-बहेडा, 50 ग्राम-आवला, 50 ग्राम-सनाय पत्ती, 25 ग्राम-काला नमक इन सभी का चूर्ण बना ले | इस चूर्ण के साथ, 250 ग्राम मुनक्का ले कर उसके बीज निकालकर, मिला कर पीस ले, फिर छोटी -छोटी गोली बना ले।
पहले पन्द्रह दिन एक-एक गोली सुबह, दोपहर, शाम लेनी है | सुबह की गोली खाली पेट लेनी है, बाकी दोपहर व शाम की खाने के पन्द्रह मिनट बाद लेनी है ! यह गोली कम से कम तीन से चार माह लेनी है | लाभ होगा | स्वस्थ लोग भी इसका सेवन कर सकते है।
– रात को सोते समय दूध में बहुत थोड़ी सी शुद्ध केसर डाल कर पीने से नजला जुखाम में आराम मिलता है।
– एक तोला काली साबूत उडद रात को गरम पानी मे भिगो दे। सबेरे पानी से उडद के दाने निकाल ले तथा उडद को छिलको समेत सिलबट्टे पर पीस ले। फिर उडद में एक तोला शुद्ध गुग्गुल के चूर्ण मे मिला ले। इस योग को खलबट्टे मे डालकर, फिर उसमें एक तोला अरंडी का तेल व एक तोला गाय का मक्खन डालकर उसे ढंग से मिला ले ।
काफ़ी देर तक इसे खलबट्टे मे मिलाते रहे । नहाने के बाद शरीर को अच्छे से पोछ कर, इस लेप को छाती से पेट तक मल ले। चार घंटे के लिये लेट जाये। उठ बैठ भी सकते है। जब लेप सूख जाये तो फिर से नहा ले ।
यह प्रयोग प्रतिदिन सुबह पाँच दिन तक करना चाहिये । एक महीने के बाद फ़िर पाँच दिन करे । ह्रदय रोग में काफी आराम मिलेगा ।
– 3 दिनों तक एक मूली प्रतिदिन दोपहर में अच्छी तरह धोकर चबा कर बिना काटे, बिना किसी नमक मसाले के, सीधे दातो से चबा चबा कर खाए, आराम मिलना चाहिए ।
संधिसोथ, स्पॉन्डिलाइटिस, कटिशूल, स्लिप्ड डिस्क, कंधा का अकड़ना, तनाव एवं मोच, तंत्रों का दर्द, साइटिका (Spondylitis Pain, Lower Back Pain, waist pain, sprain, strain, sciatica) –
– आयुर्वेद में इस प्रकार की समस्याओं के उपचार के लिये अनेक फल-सिद्ध प्रक्रियाएँ अर्थात पिझिचिल, नजवराकीझ, अभ्यंगम, शिरोधारा, शिरोबस्ती, इलाकिझी, उबटन आदि प्रयोग किये जाते हैं। आयुर्वेद में इन प्रक्रियाओं का वर्णन इस दिया है –
पिझिचिल (Massage involves working and acting on the body with pressure – structured, unstructured, stationary, or moving – tension, motion, or vibration, done manually, Professional Massage Therapy & Facials for comfort and beauty, Massage Therapy Benefits, Types of Therapeutic Massage) (pizhichil massage benefits)-
– एक आरामदेह एवं पुन: यौवन प्रदान करने वाला उपचार है जिसमें औषधियुक्त तेल संपूर्ण शरीर (सिर एवं गर्दन को छोड़कर) पर एक निश्चित समय के लिये निरंतर धार के रूप में उड़ेला जाता है । इसका प्रयोग संधिसोथ, उम्र वृद्धि, सामान्य कमजोरी, पक्षाघात का प्रभावपूर्ण ढ़ंग से उपचार करने के लिये किया जाता है ।
‘पिझिचिल’ एवं ’सर्वांगधारा’ तकनीकी रूप से समान हैं !’पिझिचिल’ का अक्षरश: अर्थ ‘निचोड़ना’ है। यहाँ मरीज के शरीर के ऊपर, तेल के पात्र में समय-समय पर डुबाये हुये कपड़े के द्वारा निचोड़ा जाता है । पिझिचिल के प्रयोग की सलाह वात शरीरी द्रव-पक्षाघात (आंशिक पक्षाघात) के निरस्तीकरण, लकवा एवं मांशपेशियों में तनाव के द्वारा उत्पन्न बीमारियों तथा मांशपेशियों को प्रभावित करने वाली अन्य अपकर्षक बीमरियों के लिये दी जाती है ।
नजवराकीझ –
सभी प्रकार के वात रोगों, जोड़ों में दर्द, मांशपेशियों के अपक्षय, त्वचा विकार, चोट एवं अभिघात के स्वास्थ लाभ की अवधि, गठिया, आम कमजोरी, लकवा आदि के लिये चिकित्सा है । औषधियुक्त तेल के प्रयोग के बाद, औषधियुक्त दूध-दलिया के पुलिंदे के प्रयोग के द्वारा आपके संपूर्ण शरीर की मालिश कर पसीना निकाला जाता है । यह एक प्रतिरक्षी क्षमता बढ़ाने वाला पुनर्यौवन चिकित्सा है । विभिन्न बीमारियों के लिये उपचार होने के अतिरिक्त, नजवराकीझी आपकी त्वचा में नये प्राण भरता है एवं इसमे चमक आती है ।
शिरोधारा (shirodhara day spa) –
एक अनोखा उपचार है जहाँ एक निश्चित अवधि के लिये सिर को विशिष्ट औषधियुक्त तेलों के नियमित धार से स्नान कराया जाता है । यह मानसिक आराम के लिये एक बेहद प्रभावकारी चिकित्सा है | यह अनिद्रा, तनाव, विषाद, घटती हुई मानसिक चुस्ती आदि को ठीक करता है । जब औषधियुक्त छाछ, तेल का स्थान लेता है, तो इस चिकित्सा को तक्रधारा कहा जाता है ।
शिरोवस्ती (Ayurveda Shirovasti Indications Benefits Procedure Limitations)-
निष्कासन (शोधन) उपचार की अपेक्षा, उपशामक (शमन) उपचार अधिक माना जाता है । सामान्य रूप से इस उपचार के पूर्व तेल डालने (स्नेहन) एवं पसीना निकालने (स्वेदन) की क्रिया होती है । छ: से आठ फीट लंबा चमड़े का आस्तीन मरीज के सिर पर रखा जाता है एवं इसे सही स्थान पर रखने के लिये माथे के चारों तरफ एक पट्टी बाँधी जाती है। आस्तीन के भीतरी भाग पर अस्तर चढ़ाने के लिये तथा यह सुनिश्चित करने के लिये कि रिसाव न हो, सना हुआ आटा का प्रयोग किया जाता है ।
तब तेल आस्तीन में उड़ेला जाता है एवं सिर पर कुछ पल रहने दिया जाता है । वहाँ तेल को कितने देर तक रखा जाये इसका निर्धारण बीमारी की कठोरता से होता है। सामान्य रूप से वात विकार से उत्पन्न बीमारियों के लिये यह पचास मिनट तक होता है । इस प्रकार का वस्ती संवेदक कार्यों में सुधार लाता है । यह अर्द्ध नासीय शिरानाल क्षेत्र में कफ जनित स्रावों को बढ़ावा देता है जो मस्तिष्क में वाहिकीय संकुलन को कम करता है । यह उपचार आंशिक पक्षाघात, मोतियाबिंद, बहरापन, कान दर्द, अनिद्रा एवं कपालीय शिरा को कष्ट देने वाले अन्य बीमारियों के लिये निर्धारित है । शिरोवस्ती वाहिकीय सिरदर्दों, सनकी-बाध्यकर विकारों, स्मरण शक्ति में क्षीणता, अनाभिविन्यास, ग्लूकोमा एवं शिरानाल सिरदर्दों में अत्यधिक उपयोगी होता है ।
अभयांगम (abhyangam full body massage)-
पुनर्यौवन के लिये सामान्य चिकित्सा है । जड़ी-बूटीयुक्त तेल के साथ इस संपूर्ण शरीर मालिश का प्रयोग शरीर के 107 आवश्यक बिन्दुओं (मर्मों) के विशेष संबंध में मालिश के लिये किया जाता है । यह बेहतर संचार, मांशपेशीय स्वास्थ्य, मानसिक शांति एवं बेहतर स्वास्थ्य अनुरक्षण में मदद करता है । यह आपकी त्वचा को मजबूत बनाता है एवं आदर्श स्वास्थ्य व दीर्घायुपन को प्राप्त करने के लिये सभी ऊतकों को पुनर्यौवन प्रदान करता है | यह ओजस (प्राथमिक जीवनशक्ति) को बढ़ाता है एवं इस प्रकार आपके शरीर की प्रतिरोधी क्षमता को बढ़ाता है । आपकी आँख के लिये लाभकारी होने के अतिरिक्त, अभयांगम आपको गहरी निद्रा प्रदान करता है । यह भी वात रोग का एक उपचार है ।
इलाकिझी-
त्वचा में नये प्राण भरने की चिकित्सा है । जड़ी-बूटी संबंधी संबंधी पुलटिस, विभिन्न जड़ी-बूटियों एवं औषधियुक्त चूर्ण से बनती है । औषधियुक्त तेलों में गर्म होने के बाद आपके सम्पूर्ण शरीर की मालिश इन पुलटिसों से की जाती है । यह परिसंचरण को बढ़ावा देता है एवं पसीने को बढ़ाता है जो बदले में वर्ज्य पदार्थ को बाहर निकालने में त्वचा की मदद करता है, उसके द्वारा त्वचा के स्वास्थ्य में सुधार लाता है । इसका प्रयोग जोड़ों के दर्द, मांशपेशी के ऐठनों, तनाव एवं गठिया को रोकने के लिये भी होता है।
उपर्युक्त सभी उपचारों को एक पूर्ण स्वस्थ व्यक्ति के साथ भी किया जा सकता है ताकि उसकी प्रतिरक्षा, जीवनशक्ति को बढ़ाया जा सके । निश्चित अवधियों तक सहने एवं निश्चित अंतरालों पर दुहराने के बाद के बाद इनमें से प्रत्येक सम्मिश्रण एक उपचारात्मक एवं पुनर्यौवन प्रदान करने वाला प्रभाव प्रदान करता है ।
उबटन (Homemade Ubtan Recipe)-
उबटन एक सौन्दर्य मालिश है । इसका प्रयोग वृद्ध लोगों की मदद करने के लिये होता है एवं युवा माताओं के साथ-साथ शिशुओं के लिये विशेष फायदेमंद है । भारतीय पारंपरिक मालिश तकनीक, आयुर्वेदिक दोषों एवं मर्मों (प्रतिवर्ती उपचार के समान दवाब बिन्दुओं) पर आधारित है । विशेष चिकित्सात्मक उपचारों जैसे कि पंचकर्म शुद्धिकरण में विशिष्ट आयुर्वेदिक मालिश चिकित्सा का प्रयोग किया जाता है ।
गुर्दे की पथरी से निजात पाने के कुछ कारगर घरेलू उपाय (kidney stone herbal treatment) –
– प्याज, तुलसी की पत्ती या पत्थर चट्टे के पत्ते का सेवन करने से पथरी धीरे धीर घटती है।
पेट सम्बंधित समस्त रोग ) (ayurvedic medicines for stomach problems)-
– (सप्तक चूर्ण)(saptak churna) इस आयुर्वेदिक औषधी से पेट से सम्बन्धित सारे रोगो, बवासीर, पान्डु, कृमि, कास-खान्सी, अग्निमान्द्य, मन्दाग्नि, भूख का खुलकर न लगना, ज्वर / साधारण बुखार, गुल्म रोग आदि में बहुत फायदा पहुचता है।
इस आयुर्वेदिक औषधी को तिल सप्तक चूर्ण कहते है। इसे बनाने के लिए- तिल, चीता यानी चित्रक, सोन्ठ, मिर्च काली, पीपल छोटी, वाय विडन्ग, बडी हरड़, इन सभी जड़ीबूटियों का चूर्ण बना लें। चूर्ण बनाने के लिये पहले सभी द्रव्यों के छोटे छोटे टुकडे कर लें फिर मिक्सी या खरल में डालकर महीन चूर्ण बना लें।
इस प्रकार से महीन चूर्ण किया गया पदार्थ औषधि के उपयोग के लिये तैयार है। इस चूर्ण को 3 ग्राम से लेकर 6 ग्राम की मात्रा मे बराबर गुड़ मिलाकर सुबह और शाम सेवन करना चाहिये।
– पेट के कीड़े (विडन्गादि चूर्ण, vidangadi churna) – इस आयुर्वेदिक औषधी से पेट के सारे कीड़े एकदम जड़मूल से नष्ट हो जाते है जिससे शरीर में हर खाई पीयी चीज़ का पूरा पोषण और ताकत मिलती है। इस आयुर्वेदिक औषधी को विडन्गादि चूर्ण कहते है। इस बनाने के लिए- वाय विडन्ग, सेन्धा नमक, हीन्ग, कालानमक, कबीला, बड़ी हरड, छोटी पीपल, निशोथ की जड़ की छाल ; इतने द्रव्य बराबर बराबर लेना है। इन सभी द्रव्यों का महीन चूर्ण बना लें और इस चूर्ण की मात्रा आधा चम्मच गरम / गुनगुने जल या दही की पतली लस्सी या मठ्ठा के साथ दिन मे दो या तीन बार लेना चाहिये।
– (त्रिकटु चूर्ण, trikatu churna himalaya) इस आयुर्वेदिक औषधी को त्रिकटु चूर्ण इसलिए कहते है क्योकि इसमें सिर्फ 3 सामान्य चीज़ो, जो हर घर में आसानी से मिलती है, मिलाकर पेट के लिए फायदेमंद दवा बनती है। इसे बनाने के लिये तीन द्रव्यों की आवश्यकता होती है- सोन्ठ या सूखी हुयी अदरख, काली मिर्च, छोटी पीपल। इस तीनों को बराबर बराबर मात्रा में लेकर कूट पीसकर अथवा मिक्सी में डालकर महीन चूर्ण बना लें, ऐसा बना हुआ चूर्ण को “त्रिकटु चूर्ण” के नाम से जानते है। यह चूर्ण अपच, गैस बनना, पेट की आंव, कोलायटिस, बबासीर, खान्सी, कफ का बनना, साय्नुसाइटिस, दमा, प्रमेह तथा अनुपान भेद से बहुत सी बीमारियों में लाभ पहुन्चाता है। इसे सेन्धा नमक के साथ मिलाकर खाने से वमन, जी मिचलाना , भूख का न लगना आदि मे लाभकारी है।
– त्रिफला हर्र, बहेड़ा, आंवला (triphala harad baheda amla) तीनों को समान मात्रा में कूट पीसकर रख लें। 3 ग्राम से 5 ग्राम तक की मात्रा रात्रि में सोते समय गुनगुने पानी के साथ लें। लगातार कुछ दिनों तक लेने से लाभ अवश्य देगा। साथ ही रात्रि में तांबे के पात्र में पानी रख लें एवं सुबह उसे पी लें। इसके दस मिनट बाद शौच जायें, आराम से पेट साफ होगा।
– प्रतिदिन कम से कम 1 हरड़ अवश्य चूसें, चूस कर ही यह पेट में जाय। लगातार कुछ दिन इसका प्रयोग करने पर हर तरह की कब्ज दूर हो जाती है।
– त्रिफला 25 ग्राम, सौंफ 25 ग्राम, सोंठ 5 ग्राम, बादाम 50 ग्राम, मिश्री 20 ग्राम लें और गुलाब के फूल 50 ग्राम भी लें। सभी को कूट-पीसकर एक शीशी में रख लें। रात्रि में सोते समय 5 से 7 ग्राम तक दवा दूध या शहद के साथ लें।
अनिद्रा (sleeplessness, insomina)-
– खुद को अच्छी नींद के लिए पंजो का मसाज भी करें। दिनभर की थकान के बाद जब आपके पैरों में मसाज किया जाता है तो इससे आपको आराम मिलता है और नींद अच्छी आती है।
– सुबह प्रातः काल कम से कम 2 किलोमीटर मोर्निंग वाक जरूर करें, इससे रात में निश्चित बहुत ही गहरी नीद आती है !
अल्सर (Peptic Ulcer Disease, Stomach Ulcers herbal Treatments)-
– आधा कप ठंडे दूध में आधा नीबू निचोड़कर पिया जाए तो वह पेट को आराम देता है। जलन का असर कम हो जाता है और अल्सर ठीक होता है।
– पोहा अल्सर के लिए बहुत फायदेमंद घरेलू नुस्खा है, इसे बिटन राइस भी कहते हैं। पोहा और सौंफ को बराबर मात्रा में मिलाकर चूर्ण बना लीजिए, 20 ग्राम चूर्ण को 2 लीटर पानी में सुबह घोलकर रखिए, इसे रात तक पूरा पी जाएं। यह घोल नियमित रूप से सुबह तैयार करके दोपहर बाद या शाम से पीना शुरू कर दें। इस घोल को 24 घंटे में समाप्त कर देना है, अल्सर में आराम मिलेगा।
– पत्ता गोभी और गाजर को बराबर मात्रा में लेकर जूस बना लीजिए, इस जूस को सुबह-शाम एक-एक कप पीने से पेप्टिक अल्सर के मरीजों को आराम मिलता है।
– अल्सर के मरीजों के लिए गाय के दूध से बने घी का इस्तेमाल करना फायदेमंद होता है।
– अल्सर के मरीजों को बादाम का सेवन करना चाहिए, बादाम पीसकर इसका दूध बना लीजिए, इसे सुबह-शाम पीने से अल्सर ठीक होता है।
– अल्सर होने पर एक पाव ठंडे दूध में उतनी ही मात्रा में पानी मिलाकर देना चाहिए, इससे कुछ दिनों में आराम मिलेगा।
– छाछ की पतली कढ़ी बनाकर रोगी को रोजाना देना चाहिये, अल्सर में मक्की की रोटी और कढ़ी खानी चाहिए, यह बहुत आसानी से पच जाती है।
– तेज़ पत्ती की काली चाय में निम्बू का रस निचोड़ कर पीने से सिर दर्द में लाभ होता है।
– नारियल पानी में सौंठ पावडर का लेप बनाकर उसे सिर पर लेप करने भी सिर दर्द में आराम पहुंचेगा।
– लहसुन पानी में पीसकर उसका लेप लगाने से भी सिर दर्द में आरामदायक होता है।
– तुलसी के पत्तों को कुचल कर उसका रस दिन में माथे पर 2, 3 बार लगाने से भी दर्द में राहत देगा।
– हरा धनिया कुचलकर उसका लेप लगाने से भी आराम मिलेगा।
– सफ़ेद सूती कपडे को सिरके में भिगोकर माथे पर रखने से भी दर्द में राहत मिलेगी।
– पपीते के बीजों को पीसकर माथे पर लेप करें। दर्द रूक जाने पर लेप को पानी से धो डालें ।
– आंवले का चूर्ण फाँककर पपीते का रस पीयें।
-अनार जूस तथा गेहूं घास रस, नया खून बनाने तथा रोगी की रोग से लड़ने की शक्ति प्रदान करने के लिए है।
– गिलोय की बेल का सत्व मरीज़ को दिन में 2-3 बार दें, इससे खून में प्लेटलेट की संख्या बढती है, रोग से लड़ने की शक्ति बढती है तथा कई रोगों का नाश होता है।
बालो में रुसी (dandruff treatment in Ayurveda)-
– दही से स्नान करने से रुसी की समस्या से मुक्ति मिलती है।
लू लगना (sunstroke brain damage, Brain Hemorrhage Symptoms, heat stroke) –
– धनिये के कुछ दाने लेकर पीस लें। फिर उन्हें पानी में घोलकर और जरा सा नमक मिलाकर रोगी को बार—बार पिलायें।
जलोदर (Ascites herbal Treatment)-
– बथुए के साग का रस आधा कप, जरा सा नमक मिलाकर सेवन करें।
बथुआ जलोदर के रोगियों को बहुत ही फायदेमंद है या खरबूजे में सेंधा नमक लगाकर खायें ।
स्नायु रोग (Nervous system diseases) –
– दो चम्मच सुखा धनियाँ, दो चम्मच बूरा तथा एक चुटकी नमक । तीनों को पीसकर चूर्ण बना लें । इसे फांक कर ऊपर से पानी पी लें। चक्कर बंद हो जायेंगे।
– काली मिर्च का चूर्ण आधा चम्मच, घी एक चम्मच, सेंधा नमक आधा चम्मच, तीनों को मिलाकर खाने से चक्कर जाते रहते हैं।
शरीर का सुन्न होना (Numbness of Limbs)-
– दूध में बहुत थोड़ी सी सोंठ डालकर उबाल लें। फिर इस दूध को सूर्यास्त से पूर्व पियें।
शरीर में खुश्की (dry skin care by ayurveda) –
खुश्की की व्याधि, शरीर में वायु के बढ़ने तथा चिकनाई का अंश कम होने के कारण पैदा होती है। इसके लिए शरीर में तेल की मालिश करें। यदि इतने पर भी खुश्की दूर न हो तो पपीते की चिकित्सा अपनायें।
– पपीते के रस में एक चम्मच करेले का रस मिलाकर सेवन करें।
– 100 ग्राम पपीते का रस तथा 2 चम्मच हरे आंवले का रस दोनों को मिलाकर सुबह शाम दो खुराक के रूप में सेवन करें।
फोड़े फुन्सी, मुँहासे की चिकित्सा (Natural Remedies to Get Rid of Pimples) –
– तुलसी के पौधे की जड़, पपीते के तने की लकड़ी तथा पपीता तीनों को पीस कर महीन करके फोड़े—फुसी पर लगायें।
– पपीता का गूदा 100 ग्राम, ग्वार पाठे का गूदा 50 ग्राम दोनों को मिला लें। जरा सी पिसी हल्दी मिला करके फोड़े—फुसी पर लगायें। इससे फोड़े—फुन्सियाँ शीघ्र ही फूट कर ठीक हो जाती है।
– कच्चे पपीते के रस में 2 चम्मच गुलाब जल डालकर दिन में तीन चार बार मुँह धोयें।
– कच्चे पपीते के दूध में जामुन की गुठली को घिसकर मुँहासों पर लगायें।
नाभि विकार (सूजन) (Navel Infection, Belly Button Infections swelling) –
– घी गरम करके एक चुटकी हल्दी डालकर रूई के फोहे पर रखें और गुनगुना नाभि पर बांध दें तो नाभि का विकार दूर हो जायेगा।
– पपीते के 100 ग्राम बीज लेकर सुखाकर पीस लें। इन बीजों के चूर्ण को मक्खन में मिला दें। यह मलहम झुर्री वाले स्थान पर लगायें।
– त्रिफला का चूर्ण फांककर ऊपर से पपीते का (पका हुआ) रस पी लें। यह सूजन को दूर करने की बड़ी प्रसिद्ध दवा है।
गले के ऊपरी भाग के रोग डिप्थीरिया (diphtheria)-
– रात को सोते समय पपीते का गूदा गर्दन के चारों ओर चुपडकर हल्की पट्टी लपेट दें।
– कच्चे पपीते का रस दिन में तीन—चार बार पिलायें।
– पपीते की पतली—पतली खीर रोगी को खिलायें।
आवाज बैठ जाना (Disorders of the Voice)-
– पपीते के बीजों को पानी में औटाकर छान लें। इस पानी से दिन में दो — तीन बार गरारे करें।
मूत्र रोग (Urinary System diseases)-
– चिकित्सक के परामर्श अनुसार चन्द्रप्रभा वटी का सेवन करें । मूत्र त्याग की बाधा में आराम मिलेगा ।
और स्वप्न दोष भी मिटता है।
अण्ड कोषों की सूजन (hydrocele)-
– पपीते के पत्तों के साथ अरण्डी के पत्ते पीसकर पुल्टिस बना लें । इसे पोतों के चारों ओर लेप कर पट्टी बांध लें। दो तीन दिन में अण्डकोषों की सूजन मिट सकती है।
लो ब्लड प्रेशर (Low Blood Pressure)-
– लहसुन लो ब्लड प्रेशर की रामबाण दवा है। अगर ब्लड प्रेशर ज्यादा लो हो तो 4 लहसुन या सामान्य लो हो तो 2 लहसुन को, पीसकर या बारीक़ काटकर नमक के साथ देने पर शर्तिया फायदा होगा।
– 50 ग्राम देशी चने व 10 ग्राम किशमिश को रात में, 100 ग्राम पानी में किसी भी कांच के बर्तन में रख दें। सुबह चनों को किशमिश के साथ अच्छी तरह से चबा-चबाकर खाएं और पानी को पी लें। यदि देशी चने न मिल पाएं तो सिर्फ किशमिश ही लें। इस विधि से कुछ ही सप्ताह में ब्लेड प्रेशर सामान्य हो सकता है।
– रात को बादाम की 3-4 गिरी पानी में भिगों दें और सुबह उनका छिलका उतारकर कर 15 ग्राम मक्खन और मिश्री के साथ मिलाकर खाने से लो ब्लड प्रेशर में आराम मिलता है।
– प्रतिदिन आंवले या सेब के मुरब्बे का सेवन लो ब्लेड प्रेशर में उपयोगी होता है। आंवले के 2 ग्राम रस में 10 ग्राम शहद मिलाकर कुछ दिन प्रातःकाल सेवन करने से लो ब्लड प्रेशर दूर करने में मदद मिलती है।
– लो ब्लड प्रेशर को सामान्य बनाये रखने में चुकंदर रस काफी कारगर होता है। रोजाना यह जूस सुबह- शाम पीना चाहिए। इससे हफ्ते भर में आप अपने ब्लड प्रेशर में सुधार पाएंगे।
– जिस को लोबीपी की शिकायत हो और अक्सर चक्कर आते हों तो आवलें के रस में शहद मिलाकर चाटने से आराम मिलता है। रात्रि में 2-3 छुहारे दूध में उबालकर पीने या खजूर खाकर दूध पीते रहने से निम्न रक्तचाप में सुधार होता है।
– 200 ग्राम टमाटर के रस में थोडी सी काली मिर्च व नमक मिलाकर पीना लाभदायक होता है। उच्च रक्तचाप में जहां नमक के सेवन से रोगी को हानि होती है, वहीं निम्न रक्तचाप के रोगियों को नमक के सेवन से लाभ होता है।
– गाजर के 200 ग्राम रस में पालक का 50 ग्राम रस मिलाकर पीना भी निम्न रक्तचाप के रोगियों के लिये लाभदायक रहता है।
– निंबू को पानी के साथ या सलाद आदि के साथ, रोज खाने से इस समस्या से राहत मिलती है।
पायरिया (Pyria)-
– आंवला को जलाने के बाद पीसकर बने पॉउडर को सरसों के तेल में मिलाकर प्रतिदिन मंजन करने से पायरिया रोग ठीक होता है और मुंह से दुर्गन्ध दूर होती है।
– खस और इलायची को लौंग के तेल में मिलाकर प्रतिदिन सुबह—शाम दांतों पर मलने से पायरिया रोग नष्ट होता है। इससे दांतों का दर्द और ठंडी चीजों के प्रयोग से उत्पन्न दर्द ठीक हो जाता है।
– सेंधा नमक बारीक पीसकर 1 ग्राम में 4 ग्राम सरसों का तेल मिलाकर प्रतिदिन मंजन करने से पायरिया रोग नष्ट होता है। इससे दांतों का दर्द और ठंडी चीजों के प्रयोग से उत्पन्न दर्द ठीक हो जाता है।
– जामुन के पेड़ की छाल जलाकर इसके राख में थोड़ा सा सेंधानमक व फिटकरी मिलाकर पीसकर रख लें। इसे प्रतिदिन मंजन करने से पायरिया रोग ठीक होता है।
– पायरीया के रोगी को हल्दी का बारीक चूर्ण को सरसों के तेल में मिलाकर, प्रतिदिन रात को सोते समय दांतों पर मलकर बिना कुल्ला किए सो जाना चाहिए और सुबह उठकर कुल्ला करना चाहिए, इससे दांतों का पायरिया नष्ट हो जाता है।
– आम की गुठली को बारीक पीसकर मंजन बना लें और इसे प्रतिदिन मंजन के रूप में प्रयोग करें । यह पायरिया को नष्ट करता है ओर दांतों के अन्य रोग भी खत्म करते है।
– पायरिया होने पर कपूर का टुकड़ा पान में रखकर खूब चबाने और लार एवं रस को बाहर निकालने से पायरिया रोग खत्म होता है। देशी घी में कपूर मिलाकर प्रतिदिन ३ से ४ बार दांत व मसूढ़ों पर धीरे—धीरे मलने और लार को बाहर निकालने से पायरिया रोग ठीक होता है।
– पीपल के काढ़े में घी मिलाकर प्रतिदिन दो बार कुल्ला करने से पायरिया व मसूढ़ों की सूजन दूर होती है।
– हरीतकी का चूर्ण बनाकर इससे प्रतिदिन मंजन करने से दांत व मसूढे स्वस्थ होते है और पायरिया ठीक होता है।
– नीम के कोमल पत्ते, कालीमिर्च और काला नमक मिलाकर सुबह सेवन करने से दांतों के कीड़े मर जाते है और खून साफ होकर पायरिया रोग ठीक होता है। नीम के पत्तो को पानी में उबालकर कुल्ला करने से पायरिया रोग ठीक होता है। नीम की दातुन से दांतों के रोग नष्ट होते है।
– बबूल की छाल का काढ़ा बनाकर गरारे व कुल्ला करने से पायरिया रोग में लाभ मिलता है।
– 5 से 6 बूंद लौंग का तेल 1 गिलास गर्म पानी में मिलाकर प्रतिदिन गरारे करने से पायरिया रोग नष्ट होता है।
– तिल को चबाकर खाने से दांत मजबूत होते है और पायरिया रोग नष्ट होता है।
– 1 चम्मच से लेकर 5 चम्मच तक (दस्त की गंभीरता के हिसाब से) मेथी के दानों को पानी के साथ घोट लेने पर जबरदस्त लाभ मिलता है |
– शुद्ध केसर बूँद भर घी में मिलकर चटायें।
– कच्चे या उबले गाय के दूध के झाग को बच्चे को सेवन करायें। झाग (फैन) आयुर्वेद में परम औषधि माना है।
– गाय के दूध में दो गुना पानी मिलाकर उबालें | सिर्फ दूध रह जाने पर फीका ही घूँट—घूँट पीयें तो रोग में आराम मिलेगा ।
– दूध में (एक गिलास) एक नींबू निचोड़ कर फटने से पहले पियें। रोग दूर हो जायेगा।
– यदि पेचिश में खून आ रहा है तो एक चुटकी जावित्री का चूर्ण छाछ में मिलाकर सेवन करने से रोग में आराम मिलता है।
– मेथी के बीजों का चूर्ण ताजा दही के साथ सेवन करें।
श्वांस सम्बन्धी रोग (Breathing Problems) –
– एक गिलास दूध में आधा गिलास पानी, एक चम्मच पिसी हल्दी और २ चम्मच गुड़ मिलाकर इतना उबालें कि मात्र गिलास भर दूध शेष रह जाये। गुनगुना होने पर सेवन करेंगे तो रोग दूर हो जायेगा।
– वयस्कों की पुरानी खाँसी के लिए 2 ग्राम दालचीनी चूर्ण और 5 पिप्पली को 250 ग्राम दूध तथा 250 ग्राम पानी में डालकर इतना उबालें कि दूध ही रह जाये, फिर उस दूध को घूँट—घूँट करके सेवन करें । डाली गई पिप्पली को चबा—चबा कर खायें। दो—तीन सप्ताह में ही खांसी का रोग ठीक हो जायेगा।
– दूध में घी डालकर पियें सूखी खाँसी ठीक हो जायेगी।
सीने में जकड़न (tightness in the chest) –
– रोज सुबह तुलसी व त्रिफला का सेवन करें तथा सुबह शाम खाली पेट कम से कम 10 मिनट प्राणायाम जरूर करें !
(नोट – हर मरीज की शारीरिक सरंचना व परिस्थितियां अलग अलग हो सकतीं हैं इसलिए इस वेबसाइट में दिए हुए किसी भी यौगिक, आयुर्वेदिक व प्राकृतिक उपायों को आजमाने से पहले किसी योग्य योगाचार्य, वैद्य व चिकित्सक से परामर्श अवश्य ले लें)
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