गायत्री मन्त्र की सत्य चमत्कारी घटनाये – 20 (बन्ध्या को सन्तान मिली)
श्री राधावल्लभ तिवारी, बहावलपुर लिखते हैं कि मेरा विवाह चौदह वर्ष की आयु में हुआ था। स्त्री सात महीने छोटी थी। इस विवाह को हुए 16 साल बीत गये हम लोगों की आयु तीस के करीब हो चली, पर कोई सन्तान न हुई। जनाने अस्पताल में दिखाया।
डॉक्टारनियों ने गर्भाश्य में गांठ बताकर आपरेशन किया, जिससे प्रदर की नई शिकायत तो आरम्भ हो गयी पर लाभ कुछ न हुआ। इससे पहले दाइयों से भी पेट की मालिश आदि कराई थी। मथुरा और इलाहाबाद से स्त्री रोगों के इलाज का बहुत विज्ञापन होता है, इन दोनों जगहों की स्त्री चिकित्साकों से भी कई-कई बार दवायें मंगाकर सेवन कराई पर लाभ कुछ न हुआ।
तीस वर्ष पूरे हो जाने पर आशायें निराशा में बदलने लगीं। स्त्री अपने को बांझ कहलाने में अपने ऊपर कोई बड़ा पाप, कलंक या अपमान अनुभव करती थी। माता और पिता, नाती का मुंह देखने को तरसते थे। वंश डूबने की बात कहकर लोग मुझे भी चिन्तित करते थे। कई ओर से दूसरे विवाह के लिए प्रस्ताव आने लगे। माता जी इसके लिए बहुत जोर देती थीं।
पिता जी भी सहमत थे। माताजी मेरी स्त्री पर मेरे पीछे-पीछे बहुत जोर डालकर उसके द्वारा मुझसे यह कहलवाती थीं कि मुझे भी कोई आपत्ति नहीं है। दूसरा विवाह कर लो। परन्तु मैं अखण्ड-ज्योति का पुराना ग्राहक हूं। विचारशील मेरी प्रधान प्रवृत्ति रही है।
वंश डूबने की बेहूदी बेवकूफी की व्यर्थता को मैं भली-भांति जानता हूं। देश की इतनी बढ़ी हुई जनसंख्या में सन्तान होना रोकने की आवश्यकता है न कि और बढ़ाने की, इस प्रत्यक्ष तथ्य को भी मैं भली प्रकार समाझता हूं। इसलिए जिस किसी ने भी मुझे दूसरी शादी की सलाह दी उसे ही मैंने बुरी तरह लताड़ा। मैंने उन्हें बताया कि दूसरी स्त्री से सन्तान हो भी जाये तो भी दो स्त्रियों के दुष्परिणाम की तुलना में वह सन्तान सुख अत्यन्त ही तुच्छ है। इतने पर भी हममें से किसी को सन्तोष न था।
बालक रहित घर सूना-सूना लगता है, जो उल्लास और विनोद बाल बच्चों वाले घरों में होता था, वह हमारे यहां न था, यह कमी मुझे भी खटकती थी। पर किया क्या जाय कोई उपाय न था। सब कोई मन-मारकर चुप बैठे रहते।
आज से तीन वर्ष पूर्व पत्नी के गुरु हमारे यहां आये। बालकपन में ही उन्हें गुरु बनाया था। विवाह के आद फिर कभी उनसे भेंट न हुई थी। इतने दिन बाद अचानक गुरु के आने से पत्नी को साथ ही हमें भी प्रसन्नता हुई। वे पुराने विचार के अच्छे विद्वान पंडित हैं। तीन-चार दिन उन्हें बड़े आग्रह और सत्कारपूर्वक ठहराया। उन्होंने हम लोगों की आवश्यकता को समझा और अपनी शिष्या को गायत्री मंत्र सिखाया तथा उसकी विधि बताई। गुरुवार को उपवास तथा और भी कई आचार-विचार उन्होंने बताये। वह उसी दिन से उन सब बातों को करने लगी।
गुरु के आदेशों के अनुसार साधन करते हुए पूरा एक वर्ष भी न हुआ था कि पत्नी को गर्भ स्थापित हुआ और समयानुसार एक अत्यन्त सुन्दर और स्वस्थ कन्या उत्पन्न हुई। इसका नाम गायत्री रखा गया, क्योंकि हम सब लोगों का विश्वास है कि वह गायत्री माता की कृपा से ही प्राप्त हुई है।
बालिका इतनी सुन्दर और चंचल है कि पड़ोसी और रिश्तेदार तक हैरत में हैं कि इस कुल में कभी भी कोई ऐसा बालक उत्पन्न नहीं हुआ। अब लगभग 2 वर्ष की है। मुहल्ला भर उसे गोदी में उठाये फिरता है। एक की गोद में से दूसरे की गोद में दिन भर फिरती रहती है, रात को कहीं उसे घर पहुंचाया जाता है। सबके लिये वह एक खिलौना बनी हुई है।
सौजन्य – शांतिकुंज गायत्री परिवार, हरिद्वार
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