सिर्फ हमारी ये आधे घंटे की रोज की मेहनत पूरे देश का निश्चित कायाकल्प कर देगी
आखिर क्या करूं, अब नहीं ही सोने दे रही है मातृ भूमि की चिन्ता !
अन्दर की बौखलाहट अब चरम पर पहुँच रही है !
कुछ समझ में नहीं आ रहा कि किधर से प्रयास शुरू करूं और क्या प्रयास शुरू करूं कि मेरी माँ, फिर से अपने समृद्ध खुशहाल रूप में वापस आ जाए !
कमबख्त कमीने भी इतने ताकतवर हो चुके हैं कि उन्होंने मोदी जैसे शेर को भी इतना मजबूती से जकड़ रखा है कि यह शेर फुल रफ्तार से अपना पंजा मार ही नहीं पा रहा है !
ऐसी विषम परिस्थिति में हम साधारण सिविलियन क्या अपनी दाल – रोटी की फ़िक्र से ऊपर उठकर देश के लिए कभी कुछ कर पायेंगे ?
देश के लिए, समाज के लिए कुछ भी नहीं किया तो अपनी मृत्यु के समय किस बात को याद कर संतोष से अपनी आँखे बंद कर पायेंगे !
सुना है कि मृत्यु का समय बहुत भयानक होता है जिसमे पूरा जीवन एक मूवी की तरह आँखों के सामने बार बार घूमता रहता है कि, क्या दिया और क्या लिया !
उस समय पता चलता है कि सिर्फ पूरा जीवन लिया ही इस धरती माँ से और दिया सिर्फ उन्ही परिचित सगे सम्बन्धियों दोस्तों को जिनसे भविष्य में कुछ लेने की आशा थी !
निःस्वार्थ कुछ भी नहीं किया !
और अगर निःस्वार्थ कभी कुछ किया भी तो इतने बड़े जीवन की तुलना में बहुत मामूली सा था !
जितना सट कर घर में पत्नी, बच्चे आदि नहीं रहते, उससे ज्यादा तो अपनी मौत रहती है !
पत्नी बच्चे तो कभी दूर जाते भी हैं लेकिन मौत तो गजब चिपक कर 24 घंटा साथ साथ चलती है कि मानों उसे तो बस उसी समय का बेसब्री से इन्तजार रहता जिसमें हमारी विदाई होनी है ! यह समय भी ऐसा कि इस पर कोई निश्चित सिद्धांत भी नहीं लागू होता !
मृत्यु कभी भी किसी माध्यम से अचानक सामने अट्टहास करते हुए प्रकट हो जाती है ! कभी लाखों सैनिकों का अध्यक्ष बाथरूम में पैर फिसलने की मामूली घटना से मर जाता है तो कभी लाखों मरीजों को अपनी दवा से ठीक करने वाले चिकित्सक खुद की मामूली बीमारी से !
इसका कोई निश्चित पैमाना भी नहीं है कि जैसे, बूढ़े माँ बाप अभी जिन्दा है इसलिए लड़का नहीं मरेगा या खरबों रूपए रखने वाला धनपशु कम से कम सौ साल ही जीएगा !
तो ऐसे में आखिर करें क्या, खासकर जब किसी के लिए निजी चिंताए गौण हो जाएँ और मातृभूमि की चिंता उसकी नीद हराम कर दें !
भूखा शरीर कमजोर होता जाता है और एक कमजोर शरीर दूसरों पर बोझ बन जाता है इसलिए दाल – रोटी की चिंता को लम्बे समय तक नजर अंदाज भी नहीं किया जा सकता है !
अगर युद्ध के हालात होते तो निश्चित रूप से भूख प्यास सभी की तिलांजलि देकर तुरंत मातृभूमि की सुरक्षा में हम सभी उठ खड़े होते हैं लेकिन अभी युद्ध शुरू नहीं हुआ है किन्तु अराजक तत्वों के बढ़े हुए मनोबल को देखकर लगता है कि युद्ध शुरू हो भी सकता है !
इसलिए इस कभी भी, कुछ भी अनहोनी हो सकने वाली परिस्थितियों में अपने देश को जमीनी स्तर से, सर्वोच्च स्तर तक मजबूत करना, बहुत ही जरूरी हो चुका है और इस मजबूती में सबसे बड़े व्यवधान हैं वे भ्रष्ट लोग जो सिर्फ अपने फायदे के लिए किसी भी स्तर तक बिकने को तैयार हैं !
कोई भी व्यक्ति, परिवार, समाज या देश हारता है तो सिर्फ अपनों में छिपे गद्दारों की वजह से इसलिए अब ये सरकार की नहीं बल्कि हम सभी देशभक्त नागरिकों की जिम्मेदारी है कि हम हर भ्रष्ट और देशद्रोही आदमी का पूर्ण बहिष्कार करें जब तक कि वे समर्थन के अभाव में एकदम शक्तिहीन ना हो जाए या आखिरी मजबूर होकर सुधर ना जाए !
ये भ्रष्ट आदमी, चाहे वो कोई भी हो और चाहे कितनी भी बड़ी पोजीशन पर क्यों ना बैठा हो या चाहे वो कितना भी सगा रिश्तेदार क्यों ना हो, उसका पूर्ण बहिष्कार तुरन्त ही करना होगा !
सौभाग्य से यह महापरिवर्तन का दौर चल रहा है और ऐसे में किसी एक भी जयचन्द से हमदर्दी रखना, मतलब अपनी मातृ भूमि से गद्दारी करना ही है !
भारत में मौजूद कई नए पुराने देशद्रोही दलों के छोटे बड़े नेताओं द्वारा मिलने वाले प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष सरंक्षण की वजह से ही आज आतंकवाद का भारत में इतने व्यापक स्तर पर प्रसार हो सका इसलिए हमें ऐसे दलों से जुड़े हर नेता/कार्यकर्ता का तुरंत पूर्ण बहिष्कार करना होगा जिससे ये कभी दुबारा सत्ता में आने का स्वप्न भी ना देख सकें !
कुछ तो ऐसे आस्तीन के सांप हैं जो अपने आप को भी जनता की नजर में देशभक्त दिखाने के लिए मुंह पर जय हिन्द, भारत माता की जय आदि बोलते हैं पर पीठ पीछे अपने आका जो कि देश द्रोहियों का सरताज है उसका खूब प्रचार प्रसार कर उसे जनता की नजर में हीरो बनाने का प्रयास करते हैं, ताकि उन्हें उनके आका से बख्शीश के रूप में कुछ भी लाभ मिल जाए !
पृथ्वीराज के समय के जयचन्द में तब भी कुछ स्वाभिमान था लेकिन आजकल के जयचन्द तो इतने बज्र किस्म के ढीठ हैं कि देशभक्त जनता से चाहे कितनी भी गाली सुने, लेकिन उनकी पूछ सीधी नहीं होती !
इस तरह के देशद्रोही गतिविधियों में लिप्त सफ़ेदपोश गद्दारों और उनके समर्थकों से होने वाले दूरगामी नुकसानों जैसे राष्ट्रव्यापी गरीबी, अपराध, भुखमरी के बारें में जब हम सभी देशभक्त, प्रतिदिन अधिक से अधिक अनभिज्ञ या बहकी हुई जनता को बतायेंगे, तो निश्चित रूप से इन हानिकारक तत्वों की सर्वत्र इतनी ज्यादा थू थू होने लगेगी कि उनके समर्थकों व साथियों की संख्या दिन ब दिन कम होने लगेगी जिससे जन समर्थन के अभाव में वे धीरे धीरे शक्तिहीन होने लगेंगे ! अंततः ऐसे भ्रष्ट लोगों के पास दो ही विकल्प बचेगा कि या तो वो तिल तिल कर समाप्त हो जाएँ या आइन्दा से सभी देशद्रोही हरकतों को करने से तौबा कर लें !
इसलिए अपनी दाल रोटी की चिंता के साथ साथ अब कुछ ऐसा करना है कि हमारा देश रोज पहले से ज्यादा विकसित होता ही जाए और यह विकास की गाड़ी एक दिन के लिए भी ना रुके और ना ही रिवर्स डायरेक्शन में लौटने पाए !
अतः अब हम सभी देशभक्तों को यह प्रतिज्ञा जरूर जरूर जरूर करनी है कि अब तक जो हुआ वो हुआ, लेकिन अब से हमारे देश की तरक्की में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर रोड़ा बनने वाले हर उस घटिया आदमी का पूर्ण बहिष्कार करेंगे, जो या तो खुद गलत रास्ते पर हो या किसी गलत आदमी का समर्थक हो !
कुछ लोगों को लग सकता है कि, अनभिज्ञ जनता को सिर्फ गलत आदमी और सही आदमी की पहचान बताने से देश में कौन सा बड़ा सुधार हो जाएगा ?
पर सच्चाई यही है कि इसी से ही सारा सुधार होगा और वो सुधार इतना विशाल हो सकता है जिसकी कल्पना करने भर से हर देशभक्त का दिल उत्साह से भर जाता है !
इसलिए अनभिज्ञ या बहकी हुई जनता को गलत सही की पहचान बताने की जिम्मेदारी कल्पना से भी परे महत्वपूर्ण हैं क्योंकि जिस दिन भारत की 50 से 70 परसेंट जनता भी असली, नकली, सत्यता और अफवाह का भेद करना जान गयी उस दिन से दुबारा भारत या इसके किसी प्रदेश पर कोई भेड़ की खाल में छुपा भेड़िया शासन नहीं कर पायेगा और उसी दिन से मोदीजी जैसे चन्द देशभक्तों को आज की तरह हर देशहित के लिए जरूरी निर्णयों में समर्थन पाने के लिए पर्दे के पीछे भीतरघात सफेदपोश राजनायिकों से बार बार प्रार्थना, मानमुनव्वल आदि नहीं करना पड़ेगा !
जिस दिन एक ईमानदार राजा को ईमानदार सेनापति, ईमानदार मंत्रीगण और ईमानदार सूबेदारों जैसे ढेर सारे ईमानदारों का समर्थन एक साथ मिल जाता है उस दिन से वर्षों में किये जाने वाले विकास के काम, दिनों में निपटाएं जाते हैं !
लोकतान्त्रिक तरीके से चुना गया ईमानदार राजा भी कुछ ख़ास कमाल नहीं दिखा पाता अगर उसे यथोचित समर्थन ना मिले इसलिए अब से हमें अपने इस राष्ट्र धर्म को जरूर जरूर जरूर निभाना है कि रोज अधिक से अधिक लोगों को गलत आदमी व सही आदमी की पहचान बतानी हैं और हाँ मातृ भूमि की खातिर हर परिचित अपरिचित जयचन्दों का तुरन्त पूर्ण बहिष्कार करना नहीं भूलना है !
अनभिज्ञ या बहकी हुई जनता को समझाते वक्त हमें यह नही भूलना है कि, जैसे खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग पकड़ता है, उसी तरह बहुत से हल्के दिमाग के लोग ऐसे भी होते हैं जो किसी भ्रष्ट नेता की दबंगई, अमीरी, शक्ति, प्रसिद्धि या जाति को देखकर इम्प्रेस हो जाते हैं और इसलिए उसका समर्थन करते हैं कि भविष्य में हो सकता है वो नेता शायद उनके कोई काम आ जाय ! इसके अलावा कुछ लोग की आंतरिक विश्लेषण क्षमता इतनी कमजोर होती है कि वे किसी झूठ को सौ बार सुन लें तो उन्हें वो झूठ भी सच लगने लगता यह सोचकर कि भाई धुआं वहीँ निकलता हैं जहाँ चिंगारी होती है ! ऐसे लोग भूल जाते हैं कि उनके जीवन में भी कई ऐसी घटनाएं हुई होंगी जब वे एकदम सही होने के बावजूद भी अन्य लोगो द्वारा दोषी करार दिए गए होंगे ! तब उनके बारे में भी अन्य लोगो ने भी कहा होगा कि भाई जहाँ आग होगी, वहीँ धुआं होगा लेकिन इसकी असली सच्चाई तो वही लोग जानते हैं जिन्होंने इस घोर कलियुग में बिना आग के भी धुआं पैदा होते देखा है !
तो ऐसी जनता को यह घोटकर अच्छे से समझाना है कि इन्ही भ्रष्ट नेताओं के धूर्त पैतरों से भरी लम्बी राजनीति की वजह से आज लगभग आधा देश गरीबी रेखा से नीचे आ चुका है इसलिए अब तो दिवास्वप्न देखना बंद करें और सिर्फ विकास का ही समर्थन करें !
इसलिए घर, बाहर, रास्ता, बस, ट्रेन, स्कूल, ऑफिस, मॉर्निंग वाक, चाय की दूकान या रेस्टोरेंट मतलब जब जब, जहाँ जहाँ, जो जो भी परिचित अपरिचित मिले उन सबसे, अपने खुद से पहल करके यह पूछना कि वे दिल से किसे सही मानते है और किसे गलत और अगर उनकी गलत आदमी/सही आदमी की पहचान सही नहीं है तो उन्हें सही पहचान जरूर बताना है !
इस जन जागरण महा अभियान में हो सकता है कि कुछ लोग आप से बद्तमीज से प्रतिक्रिया दें, लेकिन उस बद्तमीजी से घबराकर अपने मिशन को छोड़ नहीं देना चाहिए क्योंकि जहाँ बहुत से क्रांतिकारियों ने अपनी मातृ भूमि के लिए हँसते हँसते अपनी गर्दन कटवा दी, तो क्या हम लोग कुछ बहकी हुई जनता की बद्तमीजी सहने के बावजूद भी उन्हें सुधारने के लिए थोड़ा सा अपना कलेजा मजबूत नहीं कर सकते !
अपने प्रयास से बहके हुए लोगों को सही रास्ते पर लाकर देश के उत्थान में अपना प्रत्यक्ष योगदान देना एक बहुत बड़ा सेवा धर्म है और इस कलियुग में हर तरह की पूजा पाठ से कहीं ज्यादा बड़ा होता है सेवा धर्म, लेकिन इस सेवा धर्म को बहुत कठिन भी कहा गया है क्योंकि जब कोई आदमी, किसी दूसरे आदमी का भला करने का प्रयास करता है तो उसके मन में एक स्वाभाविक अपेक्षा आ जाती है कि जिसका भला उसके द्वारा हो रहा है वो उसकी तारीफ़ करेगा लेकिन कई बार इसका उल्टा भी हो जाता है मतलब तारीफ़ की जगह निन्दा भी हो सकती है !
किन्तु असली वीर वहीँ हैं जो गीता के इस नीति कि, प्रशंसा या निन्दा से बिना प्रभावित हुए सत्य के रास्ते पर लगातार चलते रहने का सिद्धांत कभी भी नहीं त्यागते हैं !
मौखिक जन जागरण अभियान की ही तरह सोशल मीडिया पर भी अपने अभियान को खूब जोर शोर से प्रतिदिन चलायें क्योंकि इनकी पहुंच भी इतनी शक्तिशाली हो चुकी है कि कई जगह सत्ता परिवर्तन में एक मुख्य कारण इनके माध्यम से जनता में फैली चेतना की प्रचंड लहर को भी माना जा रहा हैं !
अतः यह सौगंध हम सभी देश भक्तों को है कि अपने मरने से पहले हम अपनी मातृ भूमि का ऋण जरूर चुका कर ही जायेंगे इसलिए अब हम इस वैचारिक युद्ध को एक प्रचण्ड तूफ़ान की रफ्तार से भारत के हर गली, मोहल्ले, गाँव गाँव, शहर शहर तक पहुचाएंगे और हर रंगे सियार की पोल तब तक खोलेंगे जब तक कि उसका असली चेहरा, जनता में मौजूद आखिरी आदमी भी ना जान जाए !
वन्दे मातरम !
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