विश्व के जागृत हिन्दू मंदिर और तीर्थ स्थल -3
श्री काशी धाम के कण-कण में अतुलनीय चमत्कार भरे पड़ें हैं बस जरूरत है उन्हें महसूस कर पाने की पात्रता की !
प्रलयकाल में भी इसका लोप नहीं होता। उस समय भगवान शंकर इसे अपने त्रिशूल पर धारण कर लेते हैं और सृष्टि काल आने पर इसे नीचे उतार देते हैं।
यहाँ भगवान् शिव के जीवंत और बेहद दुर्लभ रूप के दर्शन का सौभाग्य मिलता है साथ ही साथ माँ गंगा में स्नान कर सभी पाप धुलते हैं !
बारह ज्योतिर्लिंगों में काशी विश्वनाथ का नौवां स्थान है ! बाबा विश्वनाथ के इस धाम में आकर भक्तों की सभी मुरादें पूरी होती हैं औऱ जीवन धन्य हो जाता है !
जो भक्त, निश्छल मन से बाबा विश्वनाथ के दरबार में हाजिरी लगातें है उन्हें जन्म-जन्मांतर के चक्र से मुक्ति मिलती है ! श्री विश्वनाथ का आशीर्वाद अपने भक्तों के लिए मोक्ष का द्वार खोलता है !
मान्यतानुसार, मां भगवती ने खुद महादेव को यहां स्थापित किया था ! बाबा विश्वनाथ के मंदिर में तड़के सुबह की मंगला आरती के साथ पूरे दिन में चार बार आरती होती है !
मंदिर रोजाना 2.30 बजे खुल जाता है। भक्तों के लिए मंदिर को सुबह 4 से 11 बजे तक के लिए खोल दिया जाता है फिर आरती होने के पश्चात दोपहर 12 से सायं 7 बजे तक दोबारा भक्तजन मंदिर में पूजा कर सकते हैं। सायं सात बजे सप्त ऋषि आरती का वक्त होता है। उसके बाद 9 बजे तक श्रद्धालु मंदिर में आ जा सकते हैं।
9 बजे भोग आरती शुरू की जाती है इसके बाद श्रद्धालुओं के लिए मंदिर में प्रवेश वर्जित है। रात 10.30 बजे शयन आरती का आयोजन किया जाता है। मंदिर रात 11 बजे बंद कर दिया जाता है।
श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के भीतर और बाहर और भी अनेक देव- मूर्तियाँ हैं, जिनका परिचय इस प्रकार है,- विश्वनाथ मंदिर के पश्चिम जो मण्डप है, उसके बीचो- बीच वेंकटेश्वर की लिंग मूर्ति है। दक्षिण ओर के मंदिर में अविमुक्तेश्वर लिंग है। सिंह द्वार के पश्चिम सत्यनारायणादि देव विग्रह हैं। सत्यनारायण मंदिर के उत्तर शनेश्वर लिंग है।
इनके समीप दण्डपाणीश्वर पश्चिम के मण्डप में ही हैं। इसके उत्तर एक कोठी में जगत्माता पार्वती देवी की दिव्य मूर्ति है। इसी दालान के अंतिम कोने में श्री विश्वनाथ जी के ठीक सामने माँ अन्नपूर्णा विराजमान हैं।
जहाँ साक्षात् सर्वत्र देवगण विराजते हैं और माँ गंगा की निर्मल धारा सतत बहती है, वो परमतीर्थ ही वाराणसी कहलाता है ! यहां आने भर से ही भक्तों की पीड़ा दूर हो जाती है, तन-मन को असीम शांति मिलती है. क्योंकि यहां सदैव स्वयं साक्षात् भगवान शिव निश्चित विराजते हैं !
काशी में आज भी कालभैरव को काशी के कोतवाल के रूप में पूजा जाता है. ऐसी भी पौराणिक धारणा है कि कालभैरव के दर्शन किए बिना काशी विश्वनाथ का दर्शन अधूरा माना जाता है !
सर्वतीर्थमयी एवं सर्वसंतापहारिणी मोक्षदायिनी काशी की महिमा ऐसी है कि यहां प्राणत्याग करने से ही मुक्ति मिल जाती है। भगवान शिव यहाँ मरते हुए प्राणी के कान में तारक-मंत्र का उपदेश करते हैं, जिससे जन्म मरण से हमेशा के लिए मुक्ति मिल जाती है।
अजंता-एलोरा की गुफाएं महाराष्ट्र के औरंगाबाद शहर के समीप स्थित हैं। ये गुफाएं बड़ी-बड़ी चट्टानों को काटकर बनाई गई हैं।
29 गुफाएं अजंता में तथा 34 गुफाएं एलोरा में हैं। इन गुफाओं के रहस्य पर आज भी शोध किया जा रहा है। माना जाता है कि यहां ऋषि मुनि गहन तपस्या और ध्यान करते थे।
सह्याद्रि की पहाड़ियों पर स्थित इन 30 गुफाओं में लगभग 5 प्रार्थना भवन और 25 बौद्ध मठ हैं। घोड़े की नाल के आकार में निर्मित ये गुफाएं अत्यंत ही प्राचीन व ऐतिहासिक महत्व की हैं। इनमें 200 ईसा पूर्व से 650 ईसा पश्चात तक के बौद्ध धर्म का चित्रण किया गया है।
इन गुफाओं में हिन्दू, जैन और बौद्ध 3 धर्मों के प्रति दर्शाई गई आस्था के त्रिवेणी संगम का प्रभाव देखने को मिलता है। दक्षिण की ओर 12 गुफाएं बौद्ध धर्म (महायान संप्रदाय पर आधारित), मध्य की 17 गुफाएं हिन्दू धर्म और उत्तर की 5 गुफाएं जैन धर्म पर आधारित हैं।
हस्तिनापुर के पांडव वन ब्लाक स्थित प्राचीन पांडेश्वर मंदिर लोगों की आस्था का केंद्र है।
महाभारतकाल में पांडू पुत्र युधिष्ठर ने धर्म युद्ध से पहले यहां पर शिवलिंग की स्थापना कर बाबा भोलेनाथ से युद्ध में विजयी होने का आशीर्वाद लिया था।
मान्यता है कि जो शिवभक्त सावन मास के महीने में प्रतिदिन पांडेश्वर मंदिर में स्थित शिवलिंग पर पंचामृत दुग्ध, घी, दही, शहद, गंगाजल से स्नान कराने के बाद पूजा-अर्चना करता है उसे मनवांछित फल प्राप्त होता है।
त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग मन्दिर –
यह मंदिर महाराष्ट्र-प्रांत के नासिक जिले में हैं यहां के निकटवर्ती ब्रह्म गिरि नामक पर्वत से गोदावरी नदी का उद्गम है।
गौतम ऋषि तथा गोदावरी के प्रार्थनानुसार भगवान शिव ने इस स्थान में वास करने की कृपा की और त्र्यम्बकेश्वर नाम से विख्यात हुए।
मंदिर के अंदर एक छोटे से गङ्ढे में तीन छोटे-छोटे लिंग है, ब्रह्मा, विष्णु और शिव- इन तीनों देवों के प्रतिक माने जाते हैं।
यह देवघर में है और द्वादश ज्योतिर्लिंग में एक ज्योतिर्लिंग का मन्दिर है जो भारत के राज्य झारखंड में देवघर नामक स्थान पर स्थित है।
जहाँ पर यह मन्दिर स्थित है उस स्थान को “देवघर” अर्थात देवताओं का घर कहते हैं।
यह ज्योतिर्लिंग महा चमत्कारी है और एक जागृत सिद्धपीठ है।
कहा जाता है कि यहाँ पर आने वालों की सारी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं।
वासुकिनाथ- अपने शिव मन्दिर के लिये जाना जाता है। वैद्यनाथ मन्दिर की यात्रा तब तक अधूरी मानी जाती है जब तक वासुकिनाथ में दर्शन नहीं किये जाते।
यह मन्दिर देवघर से 42 किलोमीटर दूर जरमुण्डी गाँव के पास स्थित है। यहाँ पर स्थानीय कला के विभिन्न रूपों को देखा जा सकता है। इसके इतिहास का सम्बन्ध नोनीहाट के घाटवाल से जोड़ा जाता है।
वासुकिनाथ मन्दिर परिसर में कई अन्य छोटे-छोटे मन्दिर भी हैं। बाबा बैद्यनाथ मन्दिर परिसर के पश्चिम में देवघर के मुख्य बाजार में तीन और मन्दिर भी हैं। इन्हें बैजू मन्दिर के नाम से जाना जाता है।
इन मन्दिरों का निर्माण बाबा बैद्यनाथ मन्दिर के मुख्य पुजारी के वंशजों ने किसी जमाने में करवाया था। प्रत्येक मन्दिर में भगवान शिव का लिंग स्थापित है।
भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में झारखण्ड के देवघर जिले में स्थित वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग शामिल है।
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