(भाग – 5) जब विनम्र स्वभाव ने जीवन रक्षा की (श्री कृष्ण चन्द्र पाण्डेय जी आत्मकथा)
आईये जानते हैं, रूद्र के अंश गृहस्थ अवतार के रूप में जन्म लेने वाले परम आदरणीय श्री कृष्ण चन्द्र पाण्डेय जी के जीवन में घटी एक ऐसी घटना के बारे में जो विनम्र स्वभाव के अद्भुत महत्व के बारे में बताती है (श्री कृष्ण चन्द्र पाण्डेय जी का विस्तृत जीवन परिचय जानने के लिए कृपया इस आर्टिकल के नीचे दिए गए अन्य आर्टिकल्स के लिंक्स पर क्लिक करें) !
प्राप्त जानकारी अनुसार, यह घटना संभवतः भारतवर्ष की आजादी से पहले की है जब पांडेय जी किशोरावस्था उम्र के एक लड़के थे और एक दिन ट्रेन में अकेले सफर करते हुए नजदीक स्थित दूसरे शहर जा रहे थे ! पांडेय जी जिस ट्रेन में बैठे हुए थे, उस कम्पार्टमेंट में और भी कई यात्री लोग बैठे हुए थे जो आपस में बातचीत करने में मशगूल थे, लेकिन पांडेय जी को बचपन से ही निरर्थक बातचीत करना पसंद नहीं था इसलिए वो चुपचाप बैठे हुए थे !
थोड़ी देर बाद पांडेय जी के ही डिब्बे में एक साधू महाराज भी आकर बैठ गए ! साधू महाराज भी चुपचाप बैठकर अपना सफर तय कर रहे थे लेकिन अचानक उनके अगल – बगल बैठे कुछ अन्य यात्रियों को शरारत सूझी और उन्होंने साधू महाराज से व्यंगात्मक लहजे से पूछा कि, क्या महाराज आप कुछ दिव्य ज्ञान जानते हैं या बस ऐसे ही साधू बने घूम रहें हैं ?
साधू महाराज ने उन लोगों की मजाक उड़ाने वाले तरीके से पूछी गयी बातों पर सर्वप्रथम ध्यान नहीं दिया लेकिन जब पांडेय जी को छोड़कर, बाकी सभी लोग बार – बार यही बात पूछने लगे तब साधू महाराज ने प्रेम से पूछा की क्या जानना चाहता हो बेटा ? तब लोगों ने कहा कि अरे कुछ भी ऐसा बताईये हमारे भूत – भविष्य – वर्तमान के बारे में जिससे हमारा लाभ हो सके !
तब साधू महाराज ने कहा ठीक है, बारी – बारी सभी लोग अपनी – अपनी हथेली दिखाओं ! तब पांडेय जी को छोड़कर, अन्य सभी यात्रियों ने बारी – बारी, अपनी – अपनी हथेली साधू महाराज को दिखाई और अजीब बात यह थी कि साधू महाराज सभी लोगों की हथेली देखने के बाद खुद सोच में पड़ जाते थे और सिर्फ एक ही बात कहते कि तुम्हे बताने लायक अब कुछ बचा नहीं है !
साधू महाराज के इस अजीब व्यवहार से वहां बैठे यात्री अब नाराज होने लगे थे और कहने लगे थे कि ये साधू पता नहीं क्या उटपटांग बातें कर रहा है ! इससे पहले की यात्री और ज्यादा नाराज़गी जाहिर करते, साधू महाराज तुरंत वहां से उठे और कम्पार्टमेंट से उतरने वाले वाले गेट (द्वार) के पास जाकर बैठ गए !
पांडेय जी भी इस पूरे घटनाक्रम को ध्यान से देख रहे थे और पांडेय जी ने उन साधू महारज के चेहरे से निकलते हुए तेज को देखकर पहचान लिया था कि ये वास्तव में सच्चे साधू हैं इसलिए पांडेय जी को ये बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा था कि यात्री लोग, सनातन धर्म के रक्षकों यानी सच्चे साधू – सन्यासी का मजाक उड़ा रहे थे !
इसलिए पांडेय जी भी तुरंत वहां से उठकर, उन साधू महाराज के पास पहुँच गए और उनसे विनम्रतापूर्वक हाथ जोड़कर, प्रश्न पूछा कि महाराज जी आप वहां से चले क्यों आये, क्योकि मुझे ये विश्वास है कि आपमें बिल्कुल क्षमता है लोगों को जीवन संबंधित महत्वपूर्ण जानकारियां बता पाने की, तो फिर आप उन लोगों को बिना कोई जवाब दिए हुए क्यों लौट आये जिसकी वजह से उन यात्रियों के मन में अब साधू – सन्यासियों के प्रति छवि और ज्यादा खराब हो गयी !
एक किशोर उम्र के लड़के के मुँह से इतना बुद्धिमत्तापूर्ण प्रश्न सुनकर वो साधू महाराज मुस्कुराये और फिर उन साधू महाराज ने कहा, बेटा सबसे पहले तुम अपनी हथेली दिखाओ ! तब पांडेय जी ने उन्हें हथेली दिखाई, जिसे देखकर साधू महाराज ने कहा कि, ठीक है बेटा अब मेरी बात ध्यान से सुनो कि अभी जो थोड़ी ही देर में नया स्टेशन आने वाला हैं, वहां पर ट्रेन से उतर जाना, मैं भी वहां पर उतरने वाला हूँ !
तब पांडेय जी ने आश्चर्य से पूछा कि महाराज जी मुझे तो अभी कई स्टेशन बाद उतरना है इसलिए अगर मैं अगले ही स्टेशन पर उतर जाऊँगा तो मुझे अपने गंतव्य तक पहुँचने के लिए फिर से कोई नई ट्रेन पकड़नी होगी या कोई अन्य साधन खोजना होगा सफर करने के लिए, अतः क्या फायदा इस ट्रेन से असमय इतना जल्दी उतर जाने का ?
तब साधू महाराज ने गंभीरतापूर्वक बोला कि बेटा तुम तो अभी कह रहे थे कि तुम्हे मुझ पर विश्वास है तो फिर अब वो विश्वास कहाँ चला गया ! इतना कहकर साधू महाराज फिर से एकदम मौन हो गए और दूसरी तरफ मुंह करके खड़े हो गए ! साधू महाराज का मौन व्यवहार देखकर, पांडेय जी समझ गए कि अब साधू महाराज इस विषय में और कुछ बात करना नहीं चाहते हैं इसलिए पांडेय जी ने उनसे फिर कुछ नहीं पूछा !
लेकिन पांडेय जी के अंदर बड़ी उहापोह चल रही थी कि आखिर वो क्या करें ! क्योकि जहाँ एक तरफ उनका प्रैक्टिकल मन कह रहा था कि इन अजनबी साधू की बात मानकर अगर वो अगले स्टेशन पर ही उतर गए तो फिर अपने गंतव्य तक पहुँचने में उनके कई घंटे समय ज्यादा बर्बाद हो जाएंगे, जबकि वही दूसरी तरफ पांडेय जी का दिल बार – बार कह रहा था कि उन्हें साधू महाराज की बात मानकर उतर जाना चाहिए क्योकि कहीं कुछ तो गड़बड़ होने वाली है !
इससे पहले कि पांडेय जी कुछ फाइनल कर पाते तब तक, अगला स्टेशन आ गया और वो साधू महाराज तुरंत उतरकर चले गए ! उस स्टेशन पर ट्रेन बहुत थोड़ी देर के लिए ही रुकती थी इसलिए अब पांडेय जी को भी तुरंत फैसला करना था कि उन्हें अभी उतरना है या नहीं ! अंततः पांडेय जी ने अपने दिल की आवाज सुनी और वो भी उस ट्रेन से उतर गए क्योकि उन्होंने सोचा कि अगर दिल किसी काम को करने के लिए बार – बार प्रेरित करे तो उसे ईश्वरीय प्रेरणा समझा जा सकता है !
ट्रेन से उतरने के बाद पांडेय जी को बड़ी मेहनत व तकलीफ झेलनी पड़ी और कई घंटा समय भी बर्बाद हुआ अपने गंतव्य तक पहुँचने के लिए क्योकि उस जमाने में प्राइवेट टैक्सी की सुविधा सिर्फ बड़े शहरों में कुछ चुनिंदा जगह ही उपलब्ध थी इसलिए छोटे शहरों की आम जनता को एक शहर से दूसरे शहर जाने के लिए केवल ट्रेन, घोड़ा गाड़ी, बैल गाड़ी आदि का ही सहारा था (1947 से पहले तक तो कई प्रदेशों में बस सर्विसेज की भी शुरुआत नहीं हुई थी) !
खैर जब अगले दिन पांडेय जी ने अखबार पढ़ा तो उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ यह जानकर कि जिस ट्रेन से वो कल असमय उतर गए थे उस ट्रेन का थोड़ी ही देर बाद एक्सीडेंट हो गया था जिसकी वजह से कई लोग मारे गए थे !
अब पांडेय जी को कल का पूरा घटनाक्रम ठीक से समझ में आने लगा था कि आखिर क्यों साधू महाराज ने ट्रेन में बैठे हुए सभी यात्रियों का हाथ देखने के बाद केवल इतना बोला था कि अब उन्हें बताने लायक कुछ नहीं बचा है क्योकि साधू महाराज ने उन यात्रियों के हाथ में देख लिया था कि अब उनकी मृत्यु का समय आ चुका है ! लेकिन पांडेय जी की मृत्यु का समय अभी नहीं आया था इसलिए भगवान ने पांडेय जी को प्रेरणा दी थी साधू महाराज के पास जाने की ताकि पांडेय जी भी वक्त रहते उस ट्रेन से उतर सकें और अपने जीवन की रक्षा कर सके !
पांडेय जी इस घटना के बारे में अक्सर जिक्र अपने परिचित लोगों से किया करते थे और इस घटना के माध्यम से समझाने की कोशिश करते थे कि यह कोई नहीं जानता है कब, किससे, कितना, कैसे भी किया गया विनम्र व्यवहार, जीवन रक्षा जैसा परम महत्वपूर्ण उद्देश्य को भी पूरा कर सकता है, इसलिए यथासम्भव सिर्फ प्रेमपूर्ण व्यवहार ही दूसरों के साथ करना चाहिए !
परम आदरणीय श्री कृष्ण चन्द्र पांडेय जी ने यह भी बताया था कि अनावश्यक गुस्सा ना सिर्फ इस लोक में बल्कि परलोक में भी दुर्गति करवाता है इसलिए ऐसे गुस्सैल लोग जिन्हे हर छोटी – छोटी बात पर बेवजह गुस्सा आता हो, उन्हें प्रतिदिन माँ सरस्वती की आराधना जरूर करना चाहिए खासकर सुबह बिस्तर से उठते ही (अधिक जानकारी के लिए कृपया इन 2 आर्टिकल्स को पढ़ें- जब तक हम “सही कारण” को नहीं हटायेंगे तब तक उससे मिलने वाली “तकलीफ” से परमानेंट मुक्ति कैसे पा सकेंगे ; क्या किसी मन्त्र के जप से प्रारब्ध को भी बदला जा सकता है) !
पांडेय जी खुद बचपन से देवी के सरस्वती रूप की भी आराधना करते थे जिसकी वजह से उनकी बुद्धि, याद्दाश्त, तर्कशक्ति, प्रभावशाली बोल पाने की क्षमता आदि इतनी ज्यादा अच्छी थी कि उन्होंने लॉ (वकालत) की पढ़ाई पूरी करने के तुरंत बाद, पहले ही प्रयास में, कई उच्चस्तरीय सरकारी अधिकारी बनने के एग्जाम्स को क्वालीफाई (परिक्षाओं को उत्तीर्ण) कर लिया था, लेकिन उन्होंने उन नौकरियों को ज्वाइन नहीं किया, निम्नलिखित 2 कारणों की वजह से-
पहला कारण यह था कि उनकी नियुक्ति घर से दूर, संभवतः किसी बड़े शहर में हो रही थी जहाँ उनके माता – पिता आदि जाने के लिए इच्छुक नहीं थे क्योकि उनके वृद्ध माता – पिता की इच्छा थी कि उनके जीवन का अंतिम समय उनके घर – परिवार के आस – पास ही बीते और पांडेय जी का भी हमेशा से मानना था कि हर व्यक्ति का प्रथम कर्तव्य व धर्म, माता – पिता की सेवा करना ही है इसलिए जिससे माता – पिता को उचित ख़ुशी मिल सके, हमेशा वही काम करना चाहिए !
नौकरी ज्वाइन ना करने का दूसरा कारण था पांडेय जी की महत्वाकांक्षा ! मतलब पांडेय जी धार्मिक होने के साथ – साथ काफी मॉडर्न भी थे इसलिए उनका मानना था कि एक शक्तिशाली आदमी ही अधिक से अधिक दूसरे कमजोर लोगो की मदद कर सकता है और इस कलियुग में ईमानदारी से कमाया गया धन ही असली शक्ति होता है, लेकिन उस जमाने में सरकारी नौकरियों में तनख्वाह काफी कम मिलती थी और ज्यादा कमाई के लिए रिश्वत लेना पड़ सकता था, जिसके सख्त खिलाफ थे पांडेय जी क्योकि पांडेय जी का मानना था कि बेईमानी का पैसा देर – सवेर सूद समेत किसी ना किसी माध्यम से वापस लौट जाता है और साथ ही साथ इस जन्म में या आगामी जन्मो में हजारों किस्म की तकलीफे भी देता है !
इसलिए पांडेय जी ने लॉ की पढ़ाई के बाद आजमगढ़ शहर में ही अपने माता – पिता के साथ रहते हुए, वहां के न्यायालय में प्रैक्टिस शुरू की और करोड़ो रूपए की संपत्ति खड़ा की, जबकि पांडेय जी सिर्फ उन्ही क्लाइंट्स के ही पक्ष में मुकदमा लड़ते थे जिनके बारे में उन्हें पूर्ण आभास होता था कि वे क्लाइंट्स सहीं हैं (मतलब पांडेय जी ने कभी भी, किसी गलत आदमी का साथ देकर उसे विजयी नहीं बनवाया) ! इसके अलावा उन्होंने अपने जीवनकाल में ना जाने कितने ही गरीबों की निःशुल्क व कम से कम फीस में सहायता की !
पांडेय जी ने एक सच्चे गृहस्थ धर्म का पालन करते हुए, ईमानदारी से पैसा कमाने के लिए मेहनत तो बहुत की, लेकिन पैसा कमाने की होड़ में, कभी भी उन्होंने अपनी आध्यात्मिक उन्नति को धीमा नहीं पड़ने दिया और अक्सर परिचर्चा के दौरान ऐसे नए अद्भुत ज्ञान के बारे में बताते रहते थे जिन्हे पहले कभी सुना ना गया हो जैसे “स्वयं बनें गोपाल” समूह ने पहली बार पांडेय जी के ही मुंह से यह रहस्योद्घाटन सुना था कि भगवान कृष्ण को 16 कलाओं से युक्त पूर्ण ब्रह्म इसलिए कहा जाता है क्योकि श्री कृष्ण कोई और नहीं बल्कि महामाया दुर्गा के ही अवतार हैं !
मतलब पांडेय जी ने बताया था कि अगर तात्विक दृष्टि से देखा जाए तो परमात्मा के सभी अवतार और हम सभी जीवात्मा एक ही हैं (यानी “एकोहं बहुस्याम”) लेकिन अगर भौतिक दृष्टि से देखा जाए तो भगवान कृष्ण, माता दुर्गा के अवतार इसलिए हैं क्योकि गीता में श्री कृष्ण ने अर्जुन से बार – बार कहा है कि इस दुनिया में जो कुछ भी हो रहा है वो सब सिर्फ मै ही कर रहा हूँ ! और जैसा की पुराणों में समझाया गया है कि “कुछ भी कर पाने की क्षमता” सिर्फ “शक्ति” में हैं, ना कि “शिव” में है (इसलिए ही कहा जाता है कि बिना शक्ति के शिव, शव यानी मुर्दा के समान ही हैं) !
भगवान कृष्ण ने खुद को “सर्वकर्ता” इसलिए ही बताया है क्योकि वे ही “शक्ति स्वरूप” हैं (वास्तव में भगवान को किसी भी एक शरीर के आकार, प्रकार, रंग, रूप आदि से परिभाषित नहीं किया जा सकता है क्योकि भगवान सर्वस्वरूप है, यानी जो भगवान दुनिया के सभी पुरुषों के रूप में विराजमान हैं वही भगवान् दुनिया के सभी स्त्रियों के रूप में भी विराजमान हैं, जिससे यह भी साबित होता है कि शक्ति और शिव में कोई अंतर् नहीं है) !
पांडेय जी अक्सर सारांश रूप में कहते थे हम सभी लोग जीवन में जो भी दुःख झेल रहें हैं वास्तव में उन सभी दुखों का कोई अस्तित्व है ही नहीं क्योकि “ब्रह्म सत्यं जगत मिथ्या” लेकिन तब भी हमें वो दुःख इसलिए महसूस होता है क्योकि हमारे अनंत कर्मों से जनित प्रारब्ध रुपी माया ने बलपूर्वक हम सभी जीवों का ब्रेनवाश (गुमराह) कर रखा है जिसकी वजह से हमे ये नकली संसार, असली लगता है और जैसे ही माया की नाशक यानी महामाया दुर्गा या उन्ही के स्वरुप श्री कृष्ण की महाकृपा होती है, वैसे ही कण – कण में सिर्फ ईश्वर के ही दर्शन का महासुख प्राप्त होने लगता है ! इसलिए पांडेय जी भगवान कृष्ण के चरित्र के बहुत बड़े भक्त एवं प्रशंसक थे !
अंततः “स्वयं बनें गोपाल” समूह शत् शत् नमन व धन्यवाद करता है सनातन धर्म की ऐसी महान परोपकारी संत परम्परा को, जिनके जीवन से जुड़ी हर एक प्रेरणादायी बातें, हम सभी तुच्छ मानवों को दुष्कर भवसागर पार कराने में अत्यंत सहायक सिद्ध हो सकती है !
(भाग – 1) रूद्र के अंश गृहस्थ अवतार श्री कृष्ण चन्द्र पाण्डेय जी
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