“स्वयं बनें गोपाल” समूह के रिसर्चर, पूरे विश्व में पहली बार खुलासा कर रहें हैं “एंटी यूनिवर्स” (प्रति ब्रह्मांड) से सम्बन्धित कुछ दुर्लभ पहलुओं का
लम्बे समय से ब्रह्मांड से सम्बंधित सभी पहलुओं पर रिसर्च करने वाले, “स्वयं बनें गोपाल” समूह से जुड़े हुए विद्वान रिसर्चर श्री डॉक्टर सौरभ उपाध्याय (Doctor Saurabh Upadhyay) के निजी विचार ही निम्नलिखित आर्टिकल में दी गयी जानकारियों के रूप में प्रस्तुत हैं-
वैसे तो “स्वयं बनें गोपाल” समूह के सभी ब्रह्मांड व एलियंस से सम्बन्धित आर्टिकल्स में व्यक्त दुर्लभ जानकारियों के मुख्य खोजकर्ता श्री डॉक्टर सौरभ उपाध्याय जी रहें हैं, लेकिन निम्नलिखित आर्टिकल में दी जाने वाली जानकारियों को खोजने के लिए प्रेरणा डॉक्टर सौरभ उपाध्याय जी, को एक सज्जन के जीवन में हुई अद्भुत घटना से प्राप्त हुई !
उन सज्जन ने डॉक्टर सौरभ को अपने जीवन में घटी उस आश्चर्यजनक घटना के बारे इस प्रकार बताया कि एक बार उन्होंने अपने जीवन की अंतहीन तकलीफों, समस्याओं से आखिरी परेशान व असंतुष्ट होकर अपनी किस्मत व भगवान को खूब कोसा !
और अंततः जब कोसते – कोसते वो सज्जन थक गये तो सोने चले गये ! अचानक उनकी नीद खुली तो उन्होंने देखा कि वो कड़ी धूप में अपने शहर के सबसे व्यस्त चौराहे पर पैदल टहल रहें है !
उन्हें बिल्कुल नहीं समझ में आ रहा था कि वो अचानक अपने बेडरूम से उस चौराहे पर कैसे पहुँच गये ! और उस समय वो इस बात से भी परेशान थे कि आज यह चौराहा उन्हें इतना अजनबी क्यों लग रहा है !
अजनबी से मतलब कि वह चौराहा दिखने में तो ठीक पहले ही जैसा था लेकिन उस चौराहे पर उपस्थित भीड़ में कोई भी आदमी औरत परिचित नहीं थे ! अर्थात वह चौराहा और वहां उपस्थित सभी दुकाने बिल्कुल वैसे ही थी जैसे वो पिछले कई सालों से देखते आ रहे थे, लेकिन उन दुकानों व उसके आस पास घूमने वाले सभी आदमी औरत एकदम अपरचित थे !
और साथ ही साथ ना जाने कैसे उन सज्जन को यह भी पता था कि अब इस शहर में उनका कोई भी परिचित नहीं बचा है लेकिन वो इस बात का बैठकर 1 मिनट शोक तक नहीं मना सकते क्योकि उन्हें बहुत ढेर सारे ऑफिशियल काम दिए गए है निपटाने के लिए !
अर्थात उस समय एक तरफ तो उन सज्जन का दिल जल से बाहर निकली मछली की तरह तड़प रहा था ये बात सोच – सोच कर कि अब वो आजीवन अपने परिवार से कभी नही मिल पायेंगे, वही दूसरी तरफ उन्हें एक मिनट की भी फुर्सत नही थी इस दुःख पर दुखी होने के लिए क्योकि उन्हें कई आवश्यक ऑफिशियल काम निपटाने थे !
वो सज्जन उस चौराहे से तेजी से पैदल जाते हुए हर दुकान, शोरूम व भीड़ की तरफ आशाभरी निगाह से देख रहें हैं कि कही कोई एक व्यक्ति भी परिचित मिल जाए पर अफ़सोस वहा कोई भी परिचित नहीं था ! उस चौराहे पर बहुत से लोग खुश प्रसन्न होकर अपने रोजमर्रा के कामों में व्यस्त थे लेकिन किसी को भी उन सज्जन के मन में चल रहे भीषण अंतरद्वन्द की परवाह नहीं थी !
इस घुटनपूर्ण स्थिति में उनका दिल बैठा जा रहा था लेकिन पता नही क्यों उनका अंतर्मन उन्हें आज्ञापूर्वक बार बार कह रहा था कि तुम्हे रुकने की अनुमति नहीं है क्योकि तुम्हे कई जरुरी काम निपटाने हैं !
इस विचित्र स्थिति को झेलते झेलते कब अचानक उनकी आँख खुली, तो उन्हें पता चला कि ये केवल सपना था ! लेकिन जागने के बाद अब स्थिति और ज्यादा विचित्र हो गयी क्योकि उन सज्जन का मन मस्तिष्क यह मानने के लिए तैयार ही नहीं था कि ये अजीब अनुभव केवल एक सपना था क्योकि उन्होंने उस सपने वाली अजनबी दुनिया को उसी गंभीरता से जीया था जिस गंभीरता से वो आँख खुलने के बाद वर्तमान दुनिया को जी रहें हैं !
उन्हें सपने में दिखे अनुभव, तथा भीड़ में उपस्थित स्त्री पुरुषों के चेहरे आज 4-5 साल बीत जाने के बाद भी एकदम जीवंत याद हैं ! उन सज्जन ने अपने इसी अनुभव के बारे में डॉक्टर सौरभ उपाध्याय जी से भी पूछा !
तो डॉक्टर सौरभ उपाध्याय ने इस अनुभव के बारे में गहन रिसर्च किया जिसके बाद प्राप्त उनकी फाइंडिंग्स चौकाने वाली थी ! डॉक्टर उपाध्याय के अनुसार वो सज्जन उस समय कुछ देर के लिए एंटी यूनिवर्स (प्रति ब्रह्मांड; जिसे कुछ शोधकर्ता पैरलल यूनिवर्स या समानांतर ब्रह्मांड भी कहते हैं; Anti or Parallel Universe) में पहुँच गये थे !
डॉक्टर उपाध्याय के अनुसार हमारे इस ब्रह्मांड का एक ठीक विपरीत ब्रह्मांड भी मौजूद है, जिसे एंटी यूनिवर्स कहते हैं और इस एंटी यूनिवर्स में होने वाली बहुत सी चीजे, हमारे इस ब्रह्मांड के ठीक उल्टी हैं आईये जानते हैं कैसे-
जैसे- हमारे ब्रह्मांड के हमारे इस ग्रह अर्थात पृथ्वी पर जब कोई बच्चा पैदा होता है तो पैदा होते समय उसकी बुद्धि और चेतना का विकास सबसे कम होता है जबकि मरते समय बुद्धि और चेतना का विकास सबसे ज्यादा होता है (मतलब कोई जीव जितनी कम उम्र का होता है उसकी बुद्धि व चेतना उतनी ही कम होती है जबकि जैसे जैसे उम्र ज्यादा होती जाती है वैसे बुद्धि व चेतना का विकास बढ़ता जाता है) जबकि ठीक इसके विपरीत एंटी यूनिवर्स में किसी जीव के पैदा होते समय उसकी बुद्धि व चेतना का विकास सबसे ज्यादा होता है जबकि मरते समय सबसे कम होता है ! अर्थात सारांश रूप में कहें तो एंटी यूनिवर्स में समय का प्रवाह, हमारे यूनिवर्स से उल्टी दिशा में हैं !
डॉक्टर सौरभ के अनुसार एंटी यूनिवर्स के इस अजीब कांसेप्ट को हॉलीवुड की प्रसिद्ध मूवी “द क्यूरियस केस ऑफ बेंजामिन बटन” (The Curious Case of Benjamin Button) में भी आंशिक रूप से दिखाया गया है ! इस मूवी में एंटी यूनिवर्स के बारे में तो नहीं, लेकिन अपने इसी यूनिवर्स के ग्रह पृथ्वी पर दिखाया गया है कि कैसे एक बच्चा जो पैदा होते समय एकदम बूढा रहता है लेकिन मरते समय एकदम बच्चा हो जाता है !
डॉक्टर सौरभ उपाध्याय ने यह भी बताया है अंतहीन ईश्वर ने अंतहीन ब्रह्मांड बनाए है और यह जरूरी है कि सभी ब्रह्मांडों का एंटी ब्रह्मांड भी मौजूद हों क्योकि तभी वे स्थिर रह पायेंगे !
ब्रह्मा जी के द्वारा बनाये हुए हमारे इस ब्रह्मांड में नियम है कि जो भी जीव इस ब्रह्मांड में पैदा होगा, ठीक वही जीव उसी समय ब्रह्मा जी के द्वारा बनाये हुए एंटी ब्रह्मांड में भी पैदा होगा !
हांलाकि ब्रह्मांडीय सरंचना में केवल ब्रह्मा जी का हस्तक्षेप हो ऐसा जरूरी नही क्योकि जैसा कि सभी को पता है महाऋषि विश्वामित्र जी ने अपने तपोबल से राजा त्रिशंकु के लिए एक नए आर्टिफिशियल स्वर्ग का निर्माण कर दिया था ! आखिर विश्वामित्र जी के अंदर इतनी ताकत आई कैसे कि वे स्वयं विधाता ब्रह्मा जी के बनाये हुए नियमो में भी परिवर्तन कर सकें ! इसका पूर्ण रहस्य सिर्फ परम आदरणीय हिन्दू धर्म में ही वर्णित है जिसमें कहा गया है कि कोई भी साधारण पुरुष, लगातार अच्छे कर्म करके पुरुष से महापुरुष और अंततः परम पुरुष अर्थात स्वयं ईश्वर के ही समान सामर्थ्यवान बन सकता है (अर्थात स्वयं को गोपाल बना सकता है) !
और केवल विश्वामित्र जी ने ही नही बल्कि इतिहास में ऐसे कई उदाहरण भी देखने को मिलते हैं जब शक्तिशाली लोगों ने सही या गलत तरीके से ब्रह्मांड के स्ट्रक्चर के साथ छेड़छाड़ की है जैसे असुर राज हिरण्यकश्यप का भाई हिरण्याक्ष जिसने रसातल में एक नए आर्टिफीशियल सोलर सिस्टम की स्थापना कर पृथ्वी को स्थापित कर दिया लेकिन हिरण्याक्ष द्वारा बनाये गये आर्टिफीशियल सूर्य की किरणे उतनी पावरफुल नहीं थी इस वजह से पृथ्वी स्थित मानव कमजोर व निस्तेज होने लगे थे ! हिरण्याक्ष को देवताओं ने बहुत समझाया कि पृथ्वी को वापस असली सोलर सिस्टम स्थापित कर दो लेकिन जब वह नही माना तब भगवान् ने वाराह अवतार लेकर हिरण्याक्ष को मार डाला और वापस पृथ्वी को सही जगह स्थापित किया !
तो जहा तक बात ब्रह्मा जी के द्वारा बनाये गए एंटी यूनिवर्स के नियम की है तो इसी वजह से हम सभी मानवो के बिना जानकारी के हमारा एक प्रतिरूप, एंटी यूनिवर्स में भी जिन्दा है जिसे हम ठीक उसी तरह कभी भी अपनी आँखों से देख नही पाते जिस तरह हम एक साथ कभी भी किसी सिक्के के दोनों पहलुओ (हेड व टेल) को नहीं देख पाते !
लेकिन अगर हम किसी टेक्नोलॉजी (जैसे विडियो कैमरा) का सहारा लें तो हम सिक्के के दोनों पहलुओं को एक साथ देख सकतें है ठीक उसी तरह हम विशेष टेक्नोलॉजी का सहारा लें तो हम एंटी यूनिवर्स स्थित अपने प्रतिरूप को भी देख सकतें हैं ! एंटी यूनिवर्स देखने के लिए जिस टेक्नोलॉजी की जरूरत होती ही वह कुछ और नही बल्कि दिव्य दृष्टि ही होती है !
लेकिन इतिहास में ऐसी कई घटनाएं भी देखने को मिली हैं जब कभी किन्ही विशेष परिस्थतियो में (जैसे- जब कोई व्यक्ति बहुत भावोन्मादी अवस्था में हो या व्यक्ति जाने अनजाने किसी इंटरडाईमेंश्नल पोर्टल के पास पहुच गया हो या कोई पूर्व जन्म का प्रारब्ध हो या ईश्वर कोई विशेष सीख देना चाहते हों आदि) कोई व्यक्ति अपने एंटी यूनिवर्स स्थित रूप की झलक देख पाता है या स्वयं ही अपने एंटी यूनिवर्स में पहुच जाता है (और ऐसा ही कुछ हुआ ऊपर वर्णित सज्जन के साथ) !
लेकिन ऐसी घटनाए दुर्लभ होती हैं क्योकि आम तौर पर बिना दिव्य दृष्टि के एंटी यूनिवर्स की झलक देख पाना संभव नहीं है ! लेकिन इस पर कुछ लोग यह भी पूछ सकते है कि इसका क्या प्रमाण है कि दिव्य दृष्टि प्राप्त लोगों को एंटी यूनिवर्स दीखता ही है !
तो इसके प्रत्युत्तर में डॉक्टर सौरभ ने फिर एक दुर्लभ खोज की है, जो “स्वयं बनें गोपाल” समूह के द्वारा बार – बार दोहराई गयी इस बात का भी सत्यापन करती ही कि भारत के सच्चे संत समाज ऐसे अनगिनत दुर्लभ रहस्यों को सदियो से जानते आ रहें हैं जिनके बारे में आज के वैज्ञानिक हजारो करोड़ रूपए खर्च करके भी नही जान पाए हैं !
जैसे बहुत से लोग अब इस सच्चाई के बारे में सुन चुके होंगे कि आज से 600 वर्ष पूर्व गोस्वामी तुलसीदास जी ने हनुमान चालीसा में पृथ्वी से सूर्य की दूरी (युग सहस्त्र योजन पर भानु, लील्यो ताहि मधुर फल जानू; अर्थात 15 करोड़ किलोमीटर) बता दी थी, लेकिन शायद ही कोई जानता हो कि 15 वी सदी के प्रसिद्ध संत श्री कबीर दास जी (जिन्हें घोर रहस्यवादी कवि भी माना जाता है) ने अपने एक दोहा में एंटी यूनिवर्स के कांसेप्ट का इशारों में वर्णन किया है; और वो दोहा है-
“अम्बर बरसे धरती भीजे, ये जाने सब कोय !
धरती बरसे अम्बर भीजे, बूझे बिरला कोय !”
आमतौर पर इस दोहा का अन्य रहस्यवादी कवि अपनी – अपनी समझ के अनुसार व्याख्या करते है जिनमे से ज्यादातर व्याख्या को इन्टरनेट व सोशल मीडिया पर पढ़ा जा सकता है; जिनमे से दो मुख्य व्याख्या निम्नलिखित है-
पहली सर्वप्रचलित व्याख्या है कि- आम तौर पर बादल बरसता है और पृथ्वी भीगती है, लेकिन पृथ्वी बरसती है और अम्बर भी भीगने का मतलब है- धरती का जल ही सूर्य के ताप से वाष्प होकर बादल बनकर आकाश में छा जाता है !
दूसरी सर्वप्रचलित व्याख्या है कि- कबीरदास जी कहते हैं, भगवान बादल है उनकी कृपा बरसते सब देखते हैं लेकिन भक्त को तप के वाष्प से भगवान को भीगते कोई – कोई देख पाता है !
पर विश्व में पहली बार डॉक्टर सौरभ ये खुलासा करते हुए बता रहें हैं कि कबीरदास जी अपने इस दोहे में एक ऐसे जगत (ब्रह्माण्ड) की ओर इशारा कर रहे हैं जो है तो हमारे जगत के जैसा ही किन्तु वहाँ होने वाली घटनायें उलटी हैं ! कबीरदास जी ने बड़ी ही सुन्दरता से इस रहस्य की ओर इशारा किया है कि अम्बर यानी आकाश के बरसने पर धरती का भीगना हमारे जगत में एक बेहद सामान्य घटना है लेकिन कोई ऐसा भी जगत (ब्रह्माण्ड) है जहाँ धरती बरसती है और आकाश भीगता है ! डॉ सौरभ बताते हैं कि कबीर दास जी ने अपने इस दोहे में धरती और अम्बर को प्रतीकात्मक रूप में प्रयोग किया है यह बताने के लिए वहाँ सब कुछ उल्टा होता है ! यहाँ पर ध्यान देने वाली बात यह भी है कि एंटी यूनिवर्स में भीगने का कांसेप्ट तो हमारे यूनिवर्स जैसा ही है लेकिन बस भीगने व भीगाने वाले ऑब्जेक्ट आपस में बदल गए जो मुख्यतः यही प्रदर्शित करता है कि एंटी यूनिवर्स में सब समान होते हुए भी सब उल्टा है !
तो ऐसे में सबसे रोचक प्रश्न यह बनता है की जब दुनिया एक से बढ़कर अनोखे व अनदेखे रहस्यों से भरी पड़ी है तो क्यों हम मानव अपना छोटा सा जीवन सिर्फ रोटी, कपड़ा, मकान के पीछे भागते – भागते ख़त्म कर दें !
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