मांसपेशी के खिचाव, गठिया, नस चढ़ना, साल पड़ना, तनाव आदि के दर्द का प्राकृतिक निदान
गर्दन में आया खिचाव, तनाव (जिसे साल पड़ना, नस चढ़ना या नस खीचना आदि भी कहतें हैं) या कमर पीठ घुटने पिंडली में आया खिचाव या शरीर के किसी भी अन्य अंग की मांसपेशी में हुआ आकस्मिक खिचाव व गठिया आदि कहने को बड़ी समस्या नहीं है लेकिन जिसे होती है, वही इसका असली दर्द समझ पाता है क्योंकि इनमें से किसी भी समस्या के होने की वजह से आदमी को अपने मामूली निजी कार्य (जैसे बाथरूम जाना) भी, पहाड़ चढ़ने जैसा कठिन लगने लग सकता है !
आज की अस्त व्यस्त व उटपटांग दिनचर्या की वजह से, लगभग दुनिया का हर व्यक्ति अपने जीवन में अक्सर इस तरह के मांसपेशियों के खिचाव से रूबरू होता रहता है (खासकर शीतकाल अर्थात ठण्ड के मौसम में) इसलिए इन बिमारियों के इलाज के बारे में सभी को जानकारी जरूर होनी चाहिए !
आईये जानतें हैं “स्वयं बनें गोपाल” समूह से जुड़े विभिन्न मूर्धन्य स्वयं सेवी विशेषज्ञों के अनुसार, हर तरह के खिचाव (व गठिया के दर्द) के प्राकृतिक निदानो के बारे में-
अगर दर्द ज्यादा हो तो, जल्दी आराम पाने के लिए एक साथ तीनो तरह के इलाज अर्थात यौगिक, आयुर्वेदिक व होम्योपैथिक इलाजों को करना चाहिए !
यौगिक इलाज में रामबाण औषधि है,- अनुलोम विलोम प्राणायाम क्योंकि अनंत वर्ष पुराने परम आदरणीय हिन्दू धर्म का योग विज्ञान कहता है कि शरीर के अंदर स्थित हड्डियों के ढांचे के ठीक ऊपर से प्राण वायु की, एक इतनी ज्यादा पतली पर्त हमेशा बहती रहती है जिसे कभी भी नंगी आखों से या आज के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित किये गए सेन्सर्स से देख पाना संभव नहीं है और जब कभी यह प्राण वायु के बहने का प्रवाह किन्ही कारणों से बाधित होता है तो उसी संधि पर दर्द होना शुरू हो जाता है !
यह प्रवाह रोकने वाले कई कारण हो सकतें हैं जैसे गलत खान पान (जैसे ज्यादा मसालेदार, ज्यादा तलाभुना, ज्यादा खट्टा, ज्यादा तीखा, अक्सर भूखे रहना या अक्सर बहुत ज्यादा खाना, रोज बासी खाना गर्म करके खाना, लम्बे समय तक चिकनाई युक्त खाद्य पदार्थ मतलब घी तेल दूध दही मक्खन आदि से बने खाद्य पदार्थों को एकदम ना खाना या बहुत कम मात्रा में खाना, कोई भी नशा जैसे शराब बियर तम्बाखू सिगरेट बीड़ी भांग आदि करना, निर्दोष जीवों के मांस अंडा आदि खाकर उनके भीषण श्राप का भागीदार बनना आदि) या गलत दिनचर्या (जैसे देर रात में सोना, सुबह देर तक सोना, कब्ज होना, पेट में बार बार गैस बनना, प्राकृतिक माहौल की बजाय कृत्रिम माहौल मतलब एयर कंडीशनर की हवा में रहना, अक्सर एलोपैथिक दवा खाना, बहुत ज्यादा मेकअप करना, ज्यादा देर तक बैठ कर काम करना, ज्यादा देर तक सोना, गलत समय सोना जैसे शाम के समय सोना, रोज एक्सरसाइज ना करना या अचानक से ज्यादा एक्सरसाइज कर देना आदि) या कोई भारी सामान उठा लेना या अचानक से बेढंगे मुड़ना व झुकना या ठण्ड लग जाना आदि आदि !
शरीर में चाहे किसी भी कारण से इस प्राण वायु का प्रवाह बाधित हो, तो उसे पुनः शुरू करने के लिए दुनिया की सबसे बड़ी दवा निश्चित रूप से कोई और नहीं, बल्कि सिर्फ और सिर्फ अनुलोम विलोम प्राणायाम ही है !
इसलिए मांसपेशियों के हर तरह के खिचाव की ही नहीं बल्कि हर तरह के गठिया (चाहे गठिया किसी भी अंग का क्यों ना हो व गठिया की स्थिति कितनी ही ज्यादा बिगड़ी हुई क्यों ना हो) की सर्वोत्तम दवा भी अनुलोम विलोम प्राणायाम ही है !
दुनिया के सबसे बड़े वैज्ञानिक अर्थात परम आदरणीय ऋषियों द्वारा अन्वेषित योग विज्ञान के इस गुप्त पहलू के बारे में आजकल के मॉडर्न साइंस में पढ़े लिखे, डॉक्टर्स व शरीर वैज्ञानिक, भी बिल्कुल नहीं जानते कि गठिया में भी दर्द, प्राणवायु के प्रवाह बाधित होने की वजह से ही होता है इसलिए अनुलोम विलोम प्राणायाम को नियमित करने से गठिया में निश्चित चमत्कारी लाभ मिलता है !
ऐसी बिमारियों में कई बार अनुलोम विलोम प्राणायाम को किसी भी पेन किलर इंजेक्शन या टेबलेट से भी तेज फायदा अर्थात मात्र 5 से 10 मिनट में आराम पहुचाते हुए देखा गया है और कई बार कुछ दिनों में फायदा मिलते हुए देखा गया है !
यह तो 100 परसेंट तय है कि इस प्राणायाम को करने से लाभ निश्चित मिलेगा ही मिलेगा, लेकिन लाभ किसको, कितने समय में मिलेगा, यह कुछ मुख्य बातों पर निर्भर करता है जैसे,- ऊपर लिखी हुई समस्यायें किसके शरीर में कितनी गम्भीर अवस्था में हैं, और कौन कितने देर तक नियम से इस प्राणायाम को कर रहा है, और कौन इन समस्याओं के उपजने की वजह अर्थात ऊपर लिखे कारणों से कितना अधिक बचाव (अर्थात परहेज) कर रहा है !
अगर दर्द ज्यादा हो तो चार बार अर्थात सुबह, दोपहर, शाम, रात में कम से कम 100 बार अनुलोम विलोम प्राणायाम करें ! पालथी मार कर बैठने में दिक्कत हो तो कुर्सी पर बैठकर भी अनुलोम विलोम कर सकतें हैं | अगर कुर्सी पर भी बैठने में सक्षम ना हों तो सीधे पीठ के बल लेटकर भी कर सकतें हैं |
पर हर हाल में प्राणायाम करने के दौरान, गर्दन व रीढ़ की हड्डी सीधी रखना अनिवार्य है (ध्यान रहे कि अक्सर लोग गर्दन सीधा करने के चक्कर में, या तो गर्दन थोड़ा ऊपर आसमान की ओर उठा देतें हैं या थोड़ा जमीन की ओर नीचे झुका देतें हैं, जो कि गलत है) !
अनुलोम विलोम प्राणायाम, कपालभाति व भस्त्रिका की तुलना में काफी सौम्य प्राणायाम है और इसको करने में पेट पर ज्यादा दबाव भी नहीं पड़ता है इसलिए इसको करने से, मात्र आधा से पौन घंटे पहले तक कोई तरल खाद्य पदार्थ (जैसे चाय, पानी आदि) और 2 से 3 घंटे पहले तक कोई सॉलिड खाद्य पदार्थ (जैसे लंच, डिनर आदि) नहीं खाना पीना चाहिए ! इस प्राणायाम को करने के 15 – 20 मिनट बाद ही कुछ भी खाना पीना चाहिए !
अब हम बात करतें हैं आयुर्वैदिक इलाज की ! वैसे तो आयुर्वेद के ग्रंथों में एक से बढ़कर एक औषधियों का वर्णन है पर उन औषधियों को बना पाना, अब सबके बस की बात नहीं रही, क्योंकि अब उनमे से अधिकाँश औषधियों को प्राप्त कर पाना बहुत ही मुश्किल है |
हम यहाँ वर्णन कर रहें है एक ऐसे बेहद आसान आयुर्वेदिक फार्मुले की जिसका हमारे भारतवर्षीय पूर्वज वर्षों से सफलता पूर्वक इस्तेमाल करते आ रहें हैं (Home Remedies For Mascular Pain In Hindi मसल्स पेन, मासपेशियों में खिचाव, मांसपेशियों में दर्द, माँस-पेशियों की ऐंठन, संधि शोथ अर्थराइटिस, के उपचार) |
इस आयुर्वेदिक फार्मूले को बनाने के लिए चाहिए सिर्फ दो चीज,- पहला लहसुन दूसरा शुद्ध देशी गाय माता का घी या शुद्ध सरसों का तेल ! शुद्ध घी या सरसों का तेल अगर आपको आसपास ना मिले तो आप बाबा रामदेव की पतंजली कंपनी का घी या सरसों तेल इस्तेमाल कर सकतें हैं क्योंकि यह भी अति शुद्ध होता है |
आधा लीटर घी या सरसों के तेल में, 125 ग्राम लहसुन की कलियों को पीसकर डालें, फिर धीमी आंच पर काफी देर तक गर्म करें | ठंडा होने पर छानकर, साफ शीशी में भर लें !
यह दवा आपके पूरे परिवार के हमेशा काम आएगी क्योंकि जब कभी किसी को, किसी भी तरह का खिचाव, नस चढ़ना, साल पड़ना, कमर दर्द, पीठ दर्द, गठिया दर्द आदि हो, तो इस दवा को हर 3 – 3 घंटे पर दर्द वाले स्थान पर हल्के से मलें, तो लाभ होगा !
जानिये हर प्राणायाम को करने की विधि
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