क्या “भविष्यमालिका” ग्रंथ में वर्णित आश्चर्यजनक भविष्यवाणियां सच हो सकती हैं ?
आजकल सोशल मीडिया में “भविष्य मालिका” ग्रंथ में लिखी हुई कई आश्चर्यजनक भविष्यवाणियों से संबंधित वीडियो, पोस्ट्स, आर्टिकल्स काफी वायरल हो रहें हैं जिनमे सारांशतः यही बताया जा रहा है कि 2024 से ही ऐसे अत्यंत अशुभ ज्योतिषीय योग बन रहें हैं जिनकी वजह से पूरे विश्व में भीषण समस्याओं का दौर शुरू हो सकता है ! माना जाता है कि “भविष्य मालिका” नाम की किताब को आज से लगभग 500 साल पहले उड़ीसा प्रदेश में जन्मे महान संत श्री अच्युतानंद जी ने लिखा था और जिनकी भविष्यवाणियों से संबंधित सोशल मीडिया के कुछ वीडियोज़/आर्टिकल को हिंदी में देखने के लिए कृपया निम्नलिखित लिंक्स पर क्लिक करें-
According to Bhavishya Malika, is this the end of Kalyug?
भविष्य मालिका की खतरनाक भविष्यवाणियां
भविष्य मालिका में भविष्य का दर्पण
जब सारे एशियन और यूरोपियन देश जल प्रलय में डूब जायेंगे तब भारत में आंशिक जल प्रलय होगा
संत अच्युतानंद दास की 23 भविष्यवाणियां
अब यहाँ सबसे मुख्य प्रश्न यह पैदा होता है कि भविष्य मालिका को आधार बनाकर की गयी उपर्युक्त भविष्यवाणियां कितनी सच हैं ? तो इस विषय पर हमने सुझाव माँगा “स्वयं बनें गोपाल” समूह के मुख्य मार्गदर्शक (Chief Mentor) डॉक्टर सौरभ उपाध्याय जी (Doctor Saurabh Upadhyay) से, क्योकि वैसे तो डॉक्टर सौरभ भारतवर्ष के विभिन्न यूनिवर्सिटीज में कंप्यूटर इंजीनियरिंग के 10 वर्षों तक प्रोफेसर रहे हैं (और इनके कई विश्व विख्यात रिसर्च पेपर्स भी पब्लिश्ड हैं) लेकिन इनका हमेशा से शोध का मुख्य विषय रहा है “स्पेस साइंस”, जिसकी तह तक जाने के लिए इन्होने क्वाण्टम फिजिक्स, बिग डाटा जैसे कई आधुनिक विषयों के साथ – साथ, प्लैनेट्स (ग्रहों) का प्रभाव समझने के लिए ज्योतिष जैसे एंशिएंट सब्जेक्ट्स का भी विधिवत अध्ययन किया है ! अतः आईये जानते हैं डॉक्टर सौरभ का फीडबैक उपर्युक्त भविष्यवाणियों के बारे में-
डॉक्टर सौरभ उपाध्याय के अनुसार श्री अच्युतानंद जी निश्चित रूप से भारतवर्ष के एक महान दुर्लभ संत थे जिनके ऊपर भगवान जगन्नाथ की असीम कृपा थी इस वजह से उनके द्वारा कही गयी कोई बात गलत साबित नहीं हो सकती है, लेकिन यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है कि क्या श्री अच्युतानंद जी द्वारा 500 साल पहले जो बहुत बड़ा ग्रंथ “भविष्य मालिका” तत्कालीन “उड़िया भाषा” में लिखा गया था, उसका सही – सही अर्थ आज के ज्योतिषी भी समझ पा रहें हैं या नहीं !
मतलब डॉक्टर सौरभ के अनुसार ज्योतिष का सबसे मुख्य आधार तो “काल गणना” (यानी समय निर्धारण) ही होता है, लेकिन “काल दर्शन” (यानी पूर्वाभास) की कंडीशन में काल गणना का आंकलन करते समय अक्सर आधुनिक ज्योतिष के जानकारों द्वारा गलतियां हो सकती हैं क्योकि वर्तमान काल के ग्रह जनित वैश्विक व निजी प्रभावों के विस्तृत रूप को अनदेखा नहीं किया जा सकता है !
यानी आसान भाषा में कहें तो भविष्य मालिका जैसे सभी गूढ़ व जटिल भाषा में लिखे हुए वृहद ग्रंथों के हर शब्दों का सही – सही अर्थ समझ पाना किसी काम्प्लेक्स पजल (कठिन पहेली) को हल करने जैसा ही है ! ऐसा नहीं है कि ज्योतिष के आधुनिक जानकारों में ऐसी क्षमता नहीं है कि वे भविष्य मालिका को ठीक से समझ ना सकें लेकिन आम तौर पर सबसे कॉमन गलती काल गणना में ही देखने को मिलती है जिसकी वजह से यदि किसी आधुनिक ज्योतिषी द्वारा की गयी कोई वैश्विक भविष्यवाणी सही साबित होती भी है तो अक्सर उनके द्वारा बताये गए समय में परिवर्तन भी देखने को मिलता है (यानी भविष्यवाणी सही साबित तो होती है लेकिन देर से या जल्दी से, क्योकि ज्योतिष की अच्छी जानकारी होने के बावजूद भी सही समय का एकदम सटीक कैलकुलेशन यानी काल गणना करना बहुत ही मुश्किल काम होता है) !
इसी तरह भविष्य मालिका में की गयी भविष्यवाणियों की शुरआत की जो काल गणना, उड़िया भाषा के जानकार आधुनिक ज्योतिषियों ने 2024 से की है, वो क्या वाकई में 2024 से ही शुरू होगी या आगे आने वाले किसी दूसरे वर्ष से, इसका सही अंदाज़ा तो आने वाला समय ही बता पायेगा लेकिन यहाँ एक बात और दिमाग में रखने वाली है कि क्या भविष्यमालिका पुस्तक अभी जिस वर्तमान रूप में उपलब्ध है वही उसका ओरिजिनल रूप है या नहीं ! मतलब भारत की गुलामी के सैकड़ों वर्षों के दौरान जब लाखों भारतीय ग्रंथों को नष्ट कर दिया गया था तो क्या उस समय भविष्य मालिका का भी कोई हिस्सा विलुप्त या परिवर्तित ना कर दिया गया हो !
इसलिए डॉक्टर सौरभ के अनुसार भविष्य मालिका की उपर्युक्त भविष्यवाणियां सही साबित होंगी या नहीं, इसका सही अंदाजा तो आने वाला समय ही बता पायेगा लेकिन डॉक्टर सौरभ ने इसी अवसर पर एक नयी थ्योरी के बारे में भी जिक्र करना उचित समझा जो कि इस प्रकार है-
डॉक्टर सौरभ के अनुसार पिछले कुछ सालों में भी कुछ बेहद खराब ज्योतिषीय योग आये थे, लेकिन उन सभी बुरे योगों के बावजूद भी पृथ्वी पर ज्योतिष के अनुसार जितने ज्यादा नुकसान होने की उम्मीद थी, उससे काफी कम नुकसान हुआ है ! ये नुकसान क्यों कम हुआ है इसके पीछे के कारण को बताने के लिए एक बेहद अजीब थ्योरी को हम सभी लोगों को सामने ला रहें है डॉक्टर सौरभ !
डॉक्टर सौरभ के अनुसार ये तो हम सभी लोग जानते हैं कि पृथ्वी पर अब भी जो थोड़े – बहुत अच्छे काम हो रहें हैं उनके पुण्य की वजह से भी कई छोटी बुरी घटनाओं का होना अक्सर टल जाता हैं लेकिन कुछ बड़ी बुरी घटनाओं का होना टल जाना सामान्य बात नहीं है, क्योकि बड़ी बुरी घटनाओं का पूरी तरह से टल जाना (या अपेक्षाकृत कम नुकसानदायक स्तर पर होना) अपने आप ही नहीं हो जाता है बल्कि इसके पीछे छिपी हुई होती है कई अदृश्य दिव्य सत्ताओं द्वारा इतिहास में जाकर गलतियों को सुधारने का आश्चर्यजनक प्रयास !
मतलब ये सुनने में बेहद अटपटा लग रहा होगा लेकिन सौरभ जी के अनुसार इस बात की प्रबल संभावना है कि कई वर्तमान परोपकारी संत अपने ध्यान के दौरान टाइम ट्रेवल (यानी समय में यात्रा) करके मानव इतिहास (यानी भूतकाल) में जाकर उन बड़ी गलतियों को सुधारने का लगातार प्रयास कर रहें हैं जिनका भीषण दंड हम मानवों को अपने वर्तमान जीवन में या भविष्य में झेलना बाकी है !
वैसे तो आज के कई मॉडर्न पढ़े लिखे लोग टाइम ट्रैवेल (समय में यात्रा) को कोरी बकवास मानते हैं, लेकिन कुछ ऐसे उदाहरण हैं जिन्हे देखकर हर कोई दंग रह जाता है कि क्या वाकई में टाइम ट्रैवेल करके कुछ लोग फ्यूचर में पहुँच गए थे (उदाहरण के तौर पर ये वीडियोज देखिये- टाइम ट्रैवल की सबसे अजीब घटना और Does This Photo PROVE Time Travel Is Real और Time Travel Tourists Spotted In A Picture From 1937 और The simpsons predictions #shivammalik और ये कार्टून भविष्य दिखाता है) !
अतः डॉक्टर सौरभ का यह मानना है कि इस थ्योरी को भी नकारा नहीं जा सकता की आज के बहुत से दिव्य संत अपनी समाधि अवस्था में हमारे इतिहास (यानी भूतकाल) में जाकर मानवों द्वारा की गयी कई बड़ी गलतियों का सुधार करने की लगातार कोशिश कर रहें हैं ताकि हम मानवों को आने वाला भविष्य में उन गलतियों का दंड ना झेलना पड़े !
डॉक्टर सौरभ के अनुसार, वास्तव में हमारा यह ब्रह्माण्ड हमारी कल्पना से भी परे रहस्यों से भरा पड़ा हुआ है और चूंकि यह ब्रह्माण्ड, काल पुरुष यानी ईश्वर का ही शरीर है जिसके इनफाइनाइट डाइमेंशन्स (अनंत आयाम) होतें है इसलिए इस ब्रह्माण्ड में होने वाली सभी घटनाओं को समझने के भी अनंत तरीके हो सकतें है, जिसमें से एक तरीका श्री अच्युतानंद जी का था ज्योतिष के आधार पर, लेकिन ज्योतिष ही एकमात्र तरीका नहीं है ब्रह्माण्ड की घटनाओं को समझने का, बल्कि अनंत अन्य तरीके भी हैं जिनमें से सिर्फ चंद तरीकों के बारे में ही हम अल्प बुद्धि वाले मानव समझ सकतें हैं !
स्वामी अच्युतानंद जी का ज्योतिषीय तरीका कितना अचूक व सटीक है इसका अंदाजा आप इस वीडियो को देखकर लगा सकते हैं जिसमें श्री अच्युतानंद जी के द्वारा लगभग 500 साल पहले लिखे गए ताम्र पत्रों के आधार पर, वर्तमान उड़ीसा में पुरी जिले के काकटपुर गाँव में पिछले कई वर्षों से श्री पंडित अमरेश्वर मिश्र जी आम जनता के भविष्य से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्नो के सही उत्तर निःशुल्क बताकर सहायता कर रहें हैं- देवदूत का ‘ दिव्य ‘ ग्रंथ
हालांकि इस दुनिया में ज्योतिष जैसे किसी भी दिव्य ज्ञान से भी अनंत गुना ज्यादा श्रेष्ठ व परे (ऊपर) होती है “ईश्वरीय इच्छा”, जिसके बारे में पूर्ण जानकारी सिर्फ ईश्वर को ही पता होता है, ना कि किसी वेद पुराण जैसे धार्मिक गंथों को या किसी भी बड़े से बड़े संत को (इसलिए ईश्वर का एक नाम “अज्ञात” भी है जिसका मतलब ईश्वर कब, क्या, कैसे करने वाले हैं इसकी पूरी जानकारी सिवाय ईश्वर के कोई और नहीं जान सकता है) अतः कई बार ईश्वरीय इच्छा के आगे ज्योतिष भी फेल हो जाता है, जिसे ईश्वर ने खुद कई उदाहरणों द्वारा हम इंसानो को समझाने की कोशिश की है,जैसे- खुद ज्योतिष ज्ञान को पैदा करने वाली माँ पार्वती जी ने, दुनिया के सभी तरह के शुभों के देवता गणेश जी का निर्माण, दुनिया के सबसे ज्यादा शुभ मुहूर्त (यानी गणेश चतुर्थी) में किया था, लेकिन सब कुछ इतना ज्यादा शुभ होने के बावजूद भी परिणाम क्या हुआ ? पैदा होने के थोड़ी ही देर बाद ही गणेश जी की हत्या हो गयी वो भी अपने ही पिता जी के द्वारा (हालांकि बाद में उनकी अकाल मृत्यु को दूर किया उनके पिता जी ने ही, हाथी का सिर लगाकर) !
इसलिए “स्वयं बनें गोपाल” समूह ने अपने पूर्व के आर्टिकल्स में भी बताया है कि “इस ब्रह्माण्ड का एक ही नियम है कि, यहाँ कोई नियम नहीं है” मतलब जब हमारी सृष्टि ही शाश्वत नहीं है तो इसमें लागू होने वाले नियम कैसे शाश्वत हो सकते हैं इसलिए यहाँ कोई भी नियम कभी भी फेल हो सकता है क्योकि सिर्फ और सिर्फ “होई वही जो राम रचि राखा” (यानी अन्ततः सिर्फ वही होता है जैसा सभी नियमों से परे ईश्वर ने सोच रखा होता है) अतः हम मानवो के हाथ में सिर्फ अपना कर्म करना ही है बाकी उस कर्म का क्या, कब, कैसे, कहाँ फल मिलेगा ये वास्तव में सिर्फ और सिर्फ ईश्वर ही जानते हैं !
वैसे चूंकि यहाँ हम लोग मानवों के अजीब भविष्य और विचित्र ब्रह्मांडीय नियमों के बारे में बात कर रहें है तो ऐसे मौके पर अगर हम आपसे ये कहें की इस आर्टिकल को पढ़ने के बाद, अगले दिन आपसे कोई पूछे की क्या आपने “स्वयं बनें गोपाल” समूह की वेबसाइट का भविष्य मालिका वाला आर्टिकल पढ़ा था ? और यदि आप इसके जवाब में कहें की ये “स्वयं बनें गोपाल” समूह कौन है और उसका भविष्य मालिका वाला आर्टिकल क्या चीज है ? तो क्या यह सिर्फ भूल जाने की केवल एक मामूली घटना हो सकती है ?
जी हाँ, प्रथम दृष्टया यह सिर्फ भूल जाने की ही घटना लगती है, और इसमें कोई आश्चर्य की बात भी नहीं है क्योकि काम व जिम्मेदारियों के बोझ तले दबे इंसान द्वारा एक आर्टिकल को भूल जाना कौन सी बड़ी बात है ! लेकिन जैसा की हमने अभी ऊपर बताया कि “इस ब्रह्माण्ड का एक ही नियम है कि, यहाँ कोई नियम नहीं है” तो इस सिद्धांत के तहत कभी – कभी हम सभी मानवों का किसी चीज के प्रति एकदम अनजान होना, सिर्फ भूल जाना जैसी सामान्य घटना नहीं होती है, बल्कि एक बेहद रहस्यमय घटना “मंडेला इफ़ेक्ट” का असर भी हो सकता है ! अब ये “मंडेला इफ़ेक्ट” क्या होता है जानने के लिए कृपया इन विडियोज़ को देखें- ये इस दुनिया का सबसे बड़ा रहस्य है और Amitabh bacchan ke sath mandela effect और New Mandela Effects
डॉक्टर सौरभ के अनुसार अगर हम लोग “निराकार – साकार” ईश्वर की थ्योरी को फॉलो करें तो “एकोहं बहुस्याम” यानी एक ही निराकार ईश्वर होता है, जो हम सभी अनंत तरह के साकार जीवों का रूप धारण करके, अनंत तरह के विचित्र खेल (जैसे- खुद असंख्य तरह की सृष्टियों का निर्माण करना और फिर खुद ही उन सृष्टियों में प्रलय करके नष्ट कर देना) खेल रहा है और वो ऐसा खेल क्यों खेल रहा है, और कब तक खेलता रहेगा, और अब तक कितनी बार खेल चुका है और ऐसा करने में उसे क्या आनंद मिलता है, इन सभी अनंत तरह के प्रश्नों का ठीक – ठीक जवाब भी सिर्फ तभी हमें मिल सकता है जब ईश्वरीय इच्छा भी ऐसा चाहे तो !
डॉक्टर सौरभ ने यह भी कहा की अगर हम “निराकार – साकार” ईश्वर की थ्योरी को फॉलो करते हैं तो इस थ्योरी के पॉइंट ऑफ़ व्यू (दृष्टिकोण) से इतिहास (यानी भूतकाल) में जाकर गलतियों को ठीक करने वाले संत लोग नहीं, बल्कि अकेला कालपुरुष यानी ईश्वर खुद ही है ! मतलब ईश्वर अपनी योगनिद्रा का आश्रय लेकर खुद ही भूतकाल की घटनाओं का डैमेज कण्ट्रोल (क्षति पूर्ती) कर रहें हैं !
डॉक्टर सौरभ ने अन्ततः एक एकदम नयी यूनिक थ्योरी के बारे में भी इस प्रकार बताया कि वास्तव में भूत और भविष्य जैसा कुछ नहीं होता है क्योकि सिर्फ एक ही चीज होता है जिसे कहते हैं “महावर्तमान” ! वैसे तो “महावर्तमान” के विषय में “स्वयं बनें गोपाल” समूह जल्द ही अलग से एक विस्तृत आर्टिकल पब्लिश करेगा, लेकिन अभी संक्षेप में “महावर्तमान” का परिचय देते हुए डॉक्टर सौरभ ने बताया कि वास्तव में इस ब्रह्माण्ड में कभी भी, किसी भी घटना का नाश नहीं होता है, बल्कि “हर घटना अपने समय के साथ बंधकर” एक पैकेट की तरह हमेशा इस ब्रह्माण्ड में विद्यमान रहती है और जीवात्मा ही हर अलग – अलग घटनाओं के पैकेट में से होकर लगातार गुजरती रहती है जिसकी वजह से जीवात्मा को जीवन के अलग – अलग अनुभव लगातार प्राप्त होते रहते है !
इसी वजह से योग शक्ति सम्पन्न संत किसी भी घटना के पैकेट (यानी भूत – भविष्य – वर्तमान) में अपनी इच्छानुसार तुरंत पहुँच सकते हैं और उस जिंदगी का अनुभव प्राप्त कर सकते हैं ! आम तौर पर लोग समझते हैं कि जीवन की हर एक घटना जो समय के साथ बीतती जा रही है उसे कभी दुबारा जीया नहीं जा सकता है, जबकि डॉक्टर सौरभ के अनुसार ऐसा सच नहीं है क्योकि ऐसे बहुत से आदरणीय संतों का उदाहरण है जिन्होंने समाधिवस्था में भूत – भविष्य – वर्तमान में यात्रा करके वहां का हालचाल धार्मिक ग्रंथों में लिख दिया है, जैसे- आज से हजारो वर्ष पहले ही ऋषि वेदव्यास जी खुद टाइम ट्रैवेल करके हमारे वर्तमान कलियुग में आये थे और यहाँ हर तरफ फैली हुई अराजकता का आँखों देखा हाल को उन्होंने उस समय पुराणों में इस तरह लिख दिया था कि हजारो साल बाद आने वाले कलियुग में माहौल बहुत ज्यादा भ्रष्ट हो जायेगा ! डॉक्टर सौरभ के अनुसार निष्कर्ष यही है कि योगशक्ति से करोड़ो वर्ष पुराने भूतकाल से लेकर करोड़ो वर्ष बाद आने वाले भविष्यकाल तक में निश्चित बार – बार जाया जा सकता है क्योकि इस ब्रह्माण्ड में कभी भी किसी भी घटना का नाश नहीं होता है !
लोग सोचते हैं कि भविष्य की घटनाएं जिनका अभी कोई अस्तित्व ही नहीं है (क्योकि कोई घटना भविष्य में कब, कैसे, कहाँ होंगी ये अभी निश्चित ही नहीं है) तो फिर उन भविष्य की घटनाओं मे कैसे कोई जा सकता है ! इस विषय में डॉक्टर सौरभ का कहना है कि अगर हम लोग माया (यानी ईश्वरीय शक्ति) के आवरण से आबद्ध होकर भविष्य की घटनाओं के बारे नहीं जानते तो इसका मतलब यह नहीं है कि भविष्य की घटनाएं अभी तय ही नहीं हैं (वास्तव में सभी मनीषी यह बोलते हैं कि ईश्वर ने भूत, भविष्य, वर्तमान सब कुछ पहले से तय कर रखा है) !
सौरभ जी के रिसर्च के अनुसार हमारी पृथ्वी समेत सभी ग्रह, सूर्य का चक्कर दीर्घ वृत्ताकार पथ पर इसलिए लगाते हैं (साथ ही हमारा सूर्य भी, महासूर्य यानी विष्णु नाभि का चक्कर इसलिए ही दीर्घ वृत्ताकार पथ पर लगाता है) क्योकि दीर्घ वृत्ताकार पथ पर आगे आने वाला जो समय बिंदु होता है वही समय बीत जाने के बाद हमारा अतीत हो जाता है और जल्द ही वही अतीत का समय फिर से दीर्घ वृत्ताकार पथ पर हमारा भविष्य बनकर आ जाता है (इसी को बोल सकते हैं माया का 84 लाख योनियों का चक्रव्यूह जिसमें हम सभी जीवात्मा अनंत काल से फंसकर घूमते रहते हैं जब तक कि हम अपने शाश्वत रूप को पहचानकर फिर से निराकार ना हो जाए) !
अतः उपर्युक्त टाइम ट्रेवल के सिद्धांत से हम लोग यह तो समझ सकते हैं कि आज से 500 साल पहले ही स्वामी श्री अच्युतानंद जी ने भी अपनी समाधिवस्था में भविष्य में होने वाली जिन घटनाओं को देखा था, उन्ही को अपने दिव्य ग्रंथ भविष्य मालिका में लिख दिया था, लेकिन हम लोगो के सामने अब भी इसमें सबसे मुख्य प्रश्न यही है कि क्या उस ग्रंथ में तत्कालीन उड़िया भाषा में लिखी हुई उन भविष्यवाणियां का सही अर्थ और घटने का समय वही है, जो आजकल उपर्युक्त वीडियोज द्वारा वायरल हो रहा है ! वास्तव में इसका सही अंदाजा तो आने वाला समय ही बता पाएगा !
और क्या डॉक्टर सौरभ उपाध्याय जी की थ्योरी के अनुसार, अजर अमर अच्युतानंद जी जैसे कई महान आदरणीय संतो द्वारा विश्व कल्याण के लिए लगातार किये जाने वाले वे प्रयास सफल हो पाएंगे जिनमें ये अत्यंत परोपकारी संत अपने स्थूल शरीर की मृत्यु हो जाने के बावजूद भी, अपने सूक्ष्म शरीर से इतिहास (यानी भूतकाल) में जाकर मानवों की अनगिनत जघन्य गलतियों को सुधारने की कोशिश कर रहें हैं (जैसा की श्री रामचरितमानस में श्री गोस्वामी तुलसीदास जी ने कहा है कि “संत हृदय नवनीत समाना” जिसका मतलब है कि सच्चे संत का हृदय मक्खन की तरह मुलायम होता है जो किसी के भी दुःख को देखकर पिघलने लगता है ! इसलिए बिना किसी भेदभाव व पक्षपात के हर दुखी जीव के दुःख को दूर करने के लिए हर सम्भव प्रयास करते हैं सच्चे संत, और भले ही उनके प्रयास से खुद उनके द्वारा कही गयी भविष्यवाणियां गलत साबित हो जाएँ लेकिन उनका सबसे मुख्य उद्देश्य हमेशा यही रहता है कि दुखियो का दुःख कैसे कम हो सके अर्थात “सर्वे भवन्तु सुखिनः”) !
सौरभ जी का कहना है कि यहाँ एक कॉमन सेंस बेस्ड क्वेश्चन पैदा होता होता है कि जब ईश्वर ने पहले से ही भविष्य तय कर रखा है और जिसे श्री अच्युतानंद जी जैसे संतों ने अपनी योग दृष्टि से देख भी रखा है तब फिर क्यों अच्युतानंद जी जैसे संत बेवजह मेहनत कर रहें हैं मानवों को गलतियों के दंड से बचाने के लिए, क्योकि अगर भविष्य में दंड मिलना पहले से तय हो रखा है तो फिर इसे अच्युतानंद जी या कोई भी अन्य संत लाख मेहनत करके भी कैसे बदल सकते हैं !
तो इस प्रश्न का उत्तर यही है कि सभी संतों को अच्छे से पता है कि संसार के किसी भी नियम, कानून, भविष्यवाणी आदि से भी अनंत गुना ज्यादा शक्तिशाली होती है “ईश्वरीय इच्छा” जो एक क्षण से भी कम समय में असम्भव को भी सम्भव कर सकती है ! जैसे किसी दुष्ट औलाद की हरकतों से तंग आकर उसकी दयालु माँ भी उसे बार – बार डांटकर चेतावनी देती रहती है कि उसकी गन्दी आदतें उसे एक ना एक दिन निश्चित बर्बाद करके ही छोड़ेंगी, लेकिन इसके बावजूद भी वो ममतामयी माँ अपने स्तर पर औलाद की हर गलतियों को सुधारने के लिए हर सम्भव प्रयास खुद करना कभी नहीं छोड़ती है यह सोचकर कि शायद एक दिन भगवान सब कुछ सही कर देंगे ; ठीक इसी तरह सभी मानवों की गलत आदतों के दुखद परिणामों की बार – बार चेतावनी रुपी भविष्यवाणी करने वाले संत लोग भी, माँ के समान मानवो की गलतियों को सुधारने के लिए हर सम्भव प्रयास खुद करना कभी नहीं छोड़ते हैं यह सोचकर कि शायद कभी भोले – भाले भगवान की कृपा हो जाए और इंसान दारुण कष्टों को झेलने से बच सकें !
यहाँ फिर से एक नया प्रश्न पैदा होता है कि क्या कभी किसी दिव्य संत द्वारा की गयी कोई भविष्यवाणी या वेद पुराण में लिखी हुई कोई भविष्यवाणी को भी बदला जा सकता हैं या नहीं ? क्योकि आम तौर पर लोग यही जानते हैं कि चाहे कुछ भी हो जाए लेकिन भविष्यवाणियां कभी नहीं बदलती है ? तो जैसा की हमने अभी ऊपर बताया की “इस ब्रह्माण्ड का एक ही नियम है कि, यहाँ कोई नियम नहीं है” मतलब इस संसार में ऐसी भविष्यवाणियां भी बदल दी गयी हैं जिन्हे किसी संत या वेद पुराण ने नहीं की थी, बल्कि खुद भगवान ने की थी ! जैसे- महाभारत युद्ध से पहले भगवान कृष्ण ने सबके सामने भविष्यवाणी की थी वो पूरे महाभारत युद्ध के दौरान कभी भी अस्त्र नहीं उठाएंगे, लेकिन श्री कृष्ण के परम भक्त भीष्म पितामह जी ने केवल यह जानने के लिए कि श्री कृष्ण उनसे कितना प्रेम करते हैं, खुद यह भविष्यवाणी कर दी थी की चाहे कुछ भी हो जाए लेकिन वो श्री कृष्ण से युद्ध में हथियार उठवाकर ही रहेंगे ! और हुआ भी यही कि भगवान श्री कृष्ण ने अपने भक्त भीष्म पितामह जी की भविष्यवाणी को सही साबित करने के लिए, अपनी खुद की भविष्यवाणी झूठी साबित कर दी और अपने टूटे हुए रथ के पहिया को अपने हाथ में उठाकर दौड़े भीष्म पितामह से युद्ध करने के लिए !
तो इससे निष्कर्ष यही निकलता है कि इस पूरे संसार में सिर्फ “शुद्ध प्रेम” में ही वो प्रचंड ताकत है जो “ईश्वरीय इच्छा” को भी बदलकर असम्भव को सम्भव करवा सकती है ! ऐसा नहीं है कि प्रेम की महिमा सिर्फ भारतीय सनातन धर्म वाले ही जानते हैं, बल्कि विदेशियों का भी इस दिव्य अहसास के प्रति संजीदगी को इस बात से भी आँका जा सकता है जब विदेशियों ने डॉक्टर ब्रायन वीज़ द्वारा जन्म जन्मांतर के दो प्रेमियों के पुनर्मिलन (सत्य घटनाओं पर आधारित) पर लिखी किताब “ओनली लव इज रियल” की अप्रत्याशित खरीदारी की ! और यही नहीं इसी शुद्ध प्रेम की खोज में पूरे विश्व से विदेशी लोग रोज खींचे चले आ रहें प्रेम की नगरी “वृन्दावन” में जहाँ प्रेम के साक्षात् अवतार “लड्डू गोपाल” हर भक्त को किसी न किसी रूप में अपनी उपस्थिति का अहसास जरूर – जरूर – जरूर करवा देतें हैं !
श्री कृष्ण के लड्डू गोपाल वाले रूप की इतनी ज्यादा पूजा हर जगह इसलिए होती है, क्योकि जैसे कोई छोटा बच्चा इतना मासूम होता हैं कि उसे कोई खूंखार अपराधी भी प्यार से एक लड्डू, मिठाई, चॉकलेट दे दे तो वो मासूम बच्चा उस खतरनाक अपराधी को भी तुरंत अपना फ्रेंड (मित्र) बना लेता है, ठीक इसी तरह लड्डू गोपाल (जिनके अंदर ताकत तो इतनी है कि वो एक सेकंड में ही पूरी दुनिया में प्रलय ला दें) भी बहुत जल्दी खुश हो जाते हैं भक्तों के अत्यंत मामूली प्रेम से !
और अगर लड्डू गोपाल को सबसे जल्दी खुश करना हो तो सबसे जल्दी वाला शार्टकट है “गाय माँ को खुश करना” क्योकि श्री कृष्ण ने सबसे पहले गोलोक में गाय माँ का रूप धारण करके आयी पृथ्वी को वरदान दिया था कि मैं जल्दी ही तुम्हारे गर्भ से जन्म लूँगा (यानी गाय माँ ही श्री कृष्ण की पहली माँ हैं) और नारद पुराण में श्री कृष्ण का एक नाम “कम्पी” भी है जिसका मतलब है कि जिन श्री कृष्ण को गुस्सा आने पर पूरा ब्रह्माण्ड थर – थर काँपने लगता है वही बालक कृष्ण खुद थर – थर काँपने लगते हैं जब उनकी माँ को गुस्सा आ जाता है ! इसलिए जिस मानव के मन में गाय माँ के लिए सच्चा प्रेम है उसे कैसे नहीं लड्डू गोपाल का सच्चा प्रेम प्राप्त होगा और अगर श्री कृष्ण का प्रेम प्राप्त हो गया तो फिर उस मानव को किसी खतरनाक भविष्यवाणी के सच हो जाने के बावजूद भी डरने की क्या जरूरत है, जैसे जिस ब्रह्मास्त्र से पूरा ब्रह्माण्ड तुरंत नष्ट हो सकता है वही ब्रह्मास्त्र अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के पेट में पल रहे एक असहाय बच्चे परीक्षित का बाल भी बांका ना कर सका क्योकि “जाको राखे साइयाँ मार सके न कोय” !
अतः क्या उपर्युक्त भविष्यवाणियाँ सच साबित होंगी या उनको रोक पाने के लिए दिव्य ऋषि सत्ताओं द्वारा किये जाने वाले विभिन्न महान परोपकारी प्रयास सफल हो पाएंगे, इसका सही उत्तर तो आने वाला समय ही बता पाएगा क्योकि “शिव के मन में क्या है यह शिव ही जाने” !
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