सर्वोच्च सौभाग्य की कीमत है बड़ी भयंकर
कुछ ऐसी असमंजस पूर्ण घटनाएं भी इस संसार में यदा कदा देखने को मिल जाती है जब सदैव दूसरों का भला करने वाले कुछ महान योगी (गृहस्थ योगी, हठ योगी या राज योगी आदि) स्त्री पुरुष को ऐसे भयंकर कष्टों को बार बार झेलना पड़ता हैं जिसको देखकर हर सज्जन स्त्री पुरुष को उन पर दया आने लगती है कि आखिर ऐसे महान स्त्री पुरुष के साथ एक के बाद एक अत्यंत अनर्थकारी हादसे क्यों होते जा रहे हैं ?
तो ऐसा क्यों होता है ? क्या भगवान् के राज्य में भी अन्याय होता है ?
इस प्रश्न का उत्तर हमें एक ईश्वर दर्शन प्राप्त ऋषि सत्ता के दुर्लभ सानिध्य से प्राप्त हुआ, जिसका वर्णन निम्नवत है –
इसका उत्तर यही है कि, इन भयंकर कष्टों को एक छोटी सी कीमत भी कहा जा सकता है, उस महा सुख (बल्कि उसे परम आनंद कहना उचित होगा) को पाने की जो उन्हें निकट भविष्य में मिलने वाला होता है !
जैसे कोई विद्यार्थी युवास्था के अपने सारे शौक अरमानों का गला घोटकर दिनरात अपने को कमरे में बंद करके कष्ट से पढाई करता है कि उसे भविष्य में कलेक्टर बनना है ! कुछ साल के कष्टों के बाद वो कलेक्टर बनने में कामयाब हो जाता है तो इसे कहते हैं अपने पूर्व के स्वैच्छिक कर्म से उपजे तात्कालिक कष्ट को उस अनिवार्य कीमत की तरह चुकाना जो कि कलेक्टर पद के सुख से जुड़ा है !
इस एडवांस और अनिवार्य कीमत के हजारों उदाहरण पड़े है हमारी आम दिनचर्या के जीवन में !
जैसे कोई दुकानदार बिना किसी खास मेहनत के आराम से अपनी दूकान चलाता है और जो थोड़ी बहुत कमाई होती है उसी से किसी तरह अपने परिवार का खर्चा चला लेता है लेकिन वहीँ दूसरा दुकानदार ऐसा भी है जिसकी महत्वाकांक्षा प्रबल है और उसे जल्द से जल्द अपनी छोटी दूकान को एक बड़े डिपार्टमेंटल स्टोर में बदलना है जिसके लिए जरूरी पैसा इक्कठा करने के लिए वह अपने आराम में से कटौती करके, रोज कष्ट सहते हुए अपनी दूकान की बिक्री बढ़ाने का प्रयास करता है !
यहाँ दूसरा दुकानदार भी भविष्य के अभीष्ट सुख के लिए अपनी आज की कष्ट साध्य मेहनत को एडवांस और अनिवार्य कीमत के रूप में चुका रहा है !
ठीक यही अनिवार्य नियम लागू होता है जब कोई महान योगी स्त्री पुरुष, अनन्त ब्रह्मांडो के निर्माता ईश्वर से उनका शाश्वत सानिध्य मांग लेता है !
साक्षात् ईश्वर का सानिध्य पाना किसी भी मानव के जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है या यूं कहें कि सर्वोच्च सौभाग्य है जिसके लिए व्यक्ति कोई भी कीमत अदा करे सब बहुत छोटी है !
ईश्वर का शाश्वत सानिध्य प्राप्त करना कोई एक जन्म की प्रक्रिया नहीं होती है !
ईश्वर का सानिध्य पाने के लिए जिस भीषण तप की जरूरत होती है उसे कर पाने का साहस केवल दिव्य आत्माओं में ही हो सकता है इसलिए ऐसा भी देखा गया है कि ईश्वर के गण, जो स्वयं ईश्वर के ही स्वरुप होते हैं, साधारण मानवों के रूप में अपनी प्रकृति (शक्ति) के साथ इस पृथ्वी पर जन्म लेकर आम आदमियों के ही समान अपने जीवन में हर तरह के कष्टों (जैसे – गरीबी, बीमारी, अपमान आदि) को झेलते हुए भी कई परिचित अपरिचित दुखी, बीमारों, गरीबों का निःस्वार्थ और नियमित भला करके ईश्वरीय अनुभूति के योग्य बनने का प्रयास करते हैं !
हर युग के साथ कर्मों की वरीयता में परिवर्तन आता है और इस हिसाब से कलियुग में सेवा धर्म को ही सबसे बड़ा धर्म कहा जाता है ! अगर कोई ये सोचे की पूजा पाठ, सेवा धर्म से ज्यादा बड़ा काम होता है तो वो निश्चित मूर्ख है !
दीन-दुखियों और निःसहायों कि सेवा के बिना किया गया पूजा पाठ उसी प्रकार व्यर्थ है जैसे शक्कर के बिना मिठाई ! बिना सेवा धर्म को धारण किये हुए सिर्फ लोकाचार हेतु या आत्मसंतुष्टि के लिये की गयी पूजा पाठ से कुछ नही मिलने वाला !
वास्तव में सनातन धर्म में हर प्रकार की पूजा-पाठ और कर्मकांड का उद्देश्य ही है अपने अन्दर देवत्व की स्थापना करना और निरंतर प्रगति करते हुए देवत्व से ईश्वरत्व को प्राप्त करना !
देवत्व की स्थापना होते ही मन में दीन-दुखियों की सेवा-सहायता के लिए अकुलाहट पैदा होने लगती है और ईश्वरत्व के नज़दीक पहुंचते पहुंचते तो मन में करुणा का महासागर ही फूट पड़ता है !
निरन्तर सेवाधर्म का कठिन अभ्यास करते करते एक दिन मनः स्थिति ऐसे दुर्लभ स्तर पर पहुँच जाती है जब उन सेवा योगी को सभी के दुःख में अपना ही दुःख नज़र आने लगता है और वे अपने आप को उन सभी में अनुभव करने लगते हैं जो इस बात का भी द्योतक है कि उन्होंने साक्षात् ईश्वर को ही पा लिया !
ये वो दुर्लभ स्थिति होती है जब वे अपने आप को ईश्वर की ही तरह हर जगह, हर काल (समय) में महसूस करते है !
इस स्थिति को समझाया नहीं जा सकता सिर्फ अनुभव किया जा सकता है, उदाहरण के तौर पर आप श्री सिद्धार्थ (इतिहास में जो श्री गौतम बुद्ध के नाम से प्रसिद्ध हैं) की मनः स्थिति के बारे में ग्रंथों में पढ़ सकते हैं !
तो ये है सेवा धर्म का महत्व !
दूसरों का आंसू वही पोछ सकता है जिसके पास कोई शक्ति (चाहे अध्यात्मिक शक्ति या भौतिक शक्ति) हो !
अध्यात्मिक शक्ति तो बिना किसी योग्य गुरु के मिलनी मुश्किल होती है (किन्तु असंभव नहीं) लेकिन भौतिक शक्ति (जैसे धन, ऊँचा पद आदि) को अर्जित करने के लिए तो हर कोई ईमानदारी से प्रयास कर सकता है ! जितनी ज्यादा शक्ति होगी उतने ज्यादा लोगों का भला करना संभव होगा लेकिन अनैतिक माध्यमों से शक्ति को कदापि नहीं अर्जित करना चाहिए !
जब कोई स्त्री या पुरुष अपने प्रचंड तप से ईश्वर को प्रकट होने पर मजबूर करके उनसे उनका शाश्वत सानिध्य मांग लेता है तो उसे ईश्वर के शाश्वत सानिध्य का चरम सुख मिलने से कुछ समय (जो कि कुछ वर्ष भी हो सकता है) पहले से ही सबसे भयंकर कष्टों से गुजरना पड़ता है !
हालांकि इन कष्टों को भोगते समय उनके पास कभी प्रत्यक्ष या कभी अप्रत्यक्ष रूप से स्वयं ईश्वर भी मौजूद रहते हैं जिसकी वजह से उन भीषण कष्टों का उन्हें बहुत ज्यादा अहसास नहीं होने पाता है !
ये बिल्कुल वैसे ही है जैसे आप बचपन में बहुत बीमार पड़े हों और आपके माता पिता पूरी रात आपकी फ़िक्र में आपके बगल में बैठकर बिता देते हैं तथा अगर बीच में माता पिता कभी उठकर किसी काम के लिए जाते भी हैं तो भी आपको पूरा विश्वास रहता है कि जैसे ही आप उन्हें पुकारेंगे, वे फौरन सारा काम छोड़कर आपके पास आ जायेंगे ! अतः उस कठिन समय में सिर्फ माता पिता के साथ होने का अहसास ही आपके लिए कितना मायने रखता है, इसकी व्याख्या करना मुश्किल है !
ऐसा भी होता है कि उन योगी और उनकी शक्ति ने अपने प्रचंड तप से ईश्वर का दर्शन अपने किसी पूर्व जन्म में पाया हो लेकिन जो उनका अंतिम जन्म इस पृथ्वी पर चल रहा होता है उस जन्म में भी ईश्वर अचानक अनायास अपना दर्शन देकर उन्हें स्मरण कराते हैं कि अब वे अपनी परीक्षा के सबसे अंतिम दौर में हैं और बहुत जल्द ही वे उनका परम दुर्लभ शाश्वत सानिध्य प्राप्त करेंगे !
एक आदमी को जिस वजह से सबसे ज्यादा तकलीफ होती हो, यह जरूरी नहीं कि दूसरे आदमियों को भी उसी वजह से सबसे ज्यादा तकलीफ होती हो जैसे किसी के लिए पैसे का नुकसान सबसे बड़ा दुःख का कारण होता है तो किसी के लिए अपनों से बिछड़ने का गम !
किसी महामानव को जो जो कष्ट सबसे ज्यादा डरावने लगते हैं, चुन चुन कर उन्ही सभी कष्टों को ना चाहते हुए भी झेलना पड़ता है, जीवन में ईश्वर के अवतरण होने के कुछ वर्ष पहले से !
लेकिन गजब का उनका जीवटपन होता है कि उनके मुस्कुराते या उदासीन चेहरे को देखकर उनका घनिष्ठ से घनिष्ठ व्यक्ति भी भांप नहीं पाता कि असल में उनके अन्दर दुःख के सागर हिलोरे मार रहे हैं !
जैसे सूर्योदय से ठीक पहले की रात सबसे ज्यादा काली होती है, वैसे ही उन महान स्त्री पुरुषों के जीवन में साक्षात् ईश्वरत्व के उदय होने से पहले की परीक्षा बहुत ही दारुण होती है जिसे सिर्फ उन्ही के समकक्ष ऐसे सिद्ध योगी ही समझ सकते हैं जो खुद इस प्रक्रिया से गुजर चुके हों !
इन लम्बे और अंतहीन से दिखने वाले भयंकर कष्टों की अग्नि को झेलने के बाद जब ईश्वर का परम दुर्लभ सानिध्य मिलने का महा सौभाग्य मिलता है तो तुरंत ही सारे दर्द, तकलीफ समाप्त होकर कल्पना से भी परे महासुख मिलता है इसलिए सारे वेद, पुराणों, ग्रंथो, शास्त्रों में सार रूप में यही कहा गया है कि, रोज मृत्यु की ओर तेजी से बढ़ते हुए इस मानव शरीर में साक्षात् ईश्वरत्व का उदय होना ही सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है क्योंकि एक बार ईश्वरत्व का उदय हुआ तो आगे का मार्गदर्शन अपने आप होता जाता है और फिर स्वयं का जीवन भी धीरे धीरे ईश्वर के ही समान अनन्त विराट स्वरुप होने लगता है !
कृपया हमारे फेसबुक पेज से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करें
कृपया हमारे यूट्यूब चैनल से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करें
कृपया हमारे एक्स (ट्विटर) पेज से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करें
कृपया हमारे ऐप (App) को इंस्टाल करने के लिए यहाँ क्लिक करें
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण से संबन्धित आवश्यक सूचना)- विभिन्न स्रोतों व अनुभवों से प्राप्त यथासम्भव सही व उपयोगी जानकारियों के आधार पर लिखे गए विभिन्न लेखकों/एक्सपर्ट्स के निजी विचार ही “स्वयं बनें गोपाल” संस्थान की इस वेबसाइट/फेसबुक पेज/ट्विटर पेज/यूट्यूब चैनल आदि पर विभिन्न लेखों/कहानियों/कविताओं/पोस्ट्स/विडियोज़ आदि के तौर पर प्रकाशित हैं, लेकिन “स्वयं बनें गोपाल” संस्थान और इससे जुड़े हुए कोई भी लेखक/एक्सपर्ट, इस वेबसाइट/फेसबुक पेज/ट्विटर पेज/यूट्यूब चैनल आदि के द्वारा, और किसी भी अन्य माध्यम के द्वारा, दी गयी किसी भी तरह की जानकारी की सत्यता, प्रमाणिकता व उपयोगिता का किसी भी प्रकार से दावा, पुष्टि व समर्थन नहीं करतें हैं, इसलिए कृपया इन जानकारियों को किसी भी तरह से प्रयोग में लाने से पहले, प्रत्यक्ष रूप से मिलकर, उन सम्बन्धित जानकारियों के दूसरे एक्सपर्ट्स से भी परामर्श अवश्य ले लें, क्योंकि हर मानव की शारीरिक सरंचना व परिस्थितियां अलग - अलग हो सकतीं हैं ! अतः किसी को भी, “स्वयं बनें गोपाल” संस्थान की इस वेबसाइट/फेसबुक पेज/ट्विटर पेज/यूट्यूब चैनल आदि के द्वारा, और इससे जुड़े हुए किसी भी लेखक/एक्सपर्ट के द्वारा, और किसी भी अन्य माध्यम के द्वारा, प्राप्त हुई किसी भी प्रकार की जानकारी को प्रयोग में लाने से हुई, किसी भी तरह की हानि व समस्या के लिए “स्वयं बनें गोपाल” संस्थान और इससे जुड़े हुए कोई भी लेखक/एक्सपर्ट जिम्मेदार नहीं होंगे ! धन्यवाद !