Category: महान लेखकों की सामाजिक प्रेरणास्पद कहानियां, कवितायें और साहित्य का अध्ययन, प्रचार व प्रसार कर वापस दिलाइये मातृ भूमि भारतवर्ष की आदरणीय राष्ट्र भाषा हिन्दी के खोये हुए सम्मान को

कहानी – इस्तीफा – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

दफ्तर का बाबू एक बेजबान जीव है। मजदूरों को आँखें दिखाओ, तो वह त्योरियॉँ बदल कर खड़ा हो जायकाह। कुली को एक डाँट बताओं, तो सिर से बोझ फेंक कर अपनी राह लेगा। किसी...

कहानी – रूप की छाया (लेखक – जयशंकर प्रसाद)

काशी के घाटों की सौध-श्रेणी जाह्नवी के पश्चिम तट पर धवल शैलमाला-सी खड़ी है। उनके पीछे दिवाकर छिप चुके। सीढिय़ों पर विभिन्न वेष-भूषावाले भारत के प्रत्येक प्रान्त के लोग टहल रहे हैं। कीर्तन, कथा...

कहानी – एक्ट्रेस – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

रंगमंच का परदा गिर गया। तारा देवी ने शकुंतला का पार्ट खेलकर दर्शकों को मुग्ध कर दिया था। जिस वक्त वह शकुंतला के रुप में राजा दुष्यंत के सम्मुख खड़ी ग्लानि, वेदना, और तिरस्कार...

कहानी – ब्रह्मर्षि (लेखक – जयशंकर प्रसाद)

नवीन कोमल किसलयों से लदे वृक्षों से हरा-भरा तपोवन वास्तव में शान्ति-निकेतन का मनोहर आकार धारण किये हुए है, चञ्चल पवन कुसुमसौरभ से दिगन्त को परिपूर्ण कर रहा है; किन्तु, आनन्दमय वशिष्ठ भगवान् अपने...

कहानी – अग्नि-समाधि – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

साधु-संतों के सत्संग से बुरे भी अच्छे हो जाते हैं, किन्तु पयाग का दुर्भाग्य था, कि उस पर सत्संग का उल्टा ही असर हुआ। उसे गाँजे, चरस और भंग का चस्का पड़ गया, जिसका...

कहानी – पाप की पराजय (लेखक – जयशंकर प्रसाद)

घने हरे कानन के हृदय में पहाड़ी नदी झिर-झिर करती बह रही है। गाँव से दूर, बन्दूक लिये हुए शिकारी के वेश में, घनश्याम दूर बैठा है। एक निरीह शशक मारकर प्रसन्नता से पतली-पतली...

कहानी – पिसनहारी का कुआँ – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

गोमती ने मृत्यु-शय्या पर पड़े हुए चौधरी विनायकसिंह से कहा -चौधरी, मेरे जीवन की यही लालसा थी। चौधरी ने गम्भीर हो कर कहा -इसकी कुछ चिंता न करो काकी; तुम्हारी लालसा भगवान् पूरी करेंगे।...

कहानी – प्रतिमा (लेखक – जयशंकर प्रसाद)

जब अनेक प्रार्थना करने पर यहाँ तक कि अपनी समस्त उपासना और भक्ति का प्रतिदान माँगने पर भी ‘कुञ्जबिहारी’ की प्रतिमा न पिघली, कोमल प्राणों पर दया न आयी, आँसुओं के अघ्र्य देने पर...

कहानी – लांछन – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

मुंशी श्यामकिशोर के द्वार पर मुन्नू मेहतर ने झाड़ू लगायी, गुसलखाना धो-धो कर साफ किया और तब द्वार पर आ कर गृहिणी से बोला – माँ जी, देख लीजिए, सब साफ कर दिया। आज...

कहानी – बेड़ी (लेखक – जयशंकर प्रसाद)

”बाबूजी, एक पैसा!” मैं सुनकर चौंक पड़ा, कितनी कारुणिक आवाज थी। देखा तो एक 9-10 बरस का लडक़ा अन्धे की लाठी पकड़े खड़ा था। मैंने कहा-सूरदास, यह तुमको कहाँ से मिल गया?   अन्धे...

कहानी – आसुँओं की होली – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

नामों को बिगाड़ने की प्रथा न-जाने कब चली और कहाँ शुरू हुई। इस संसारव्यापी रोग का पता लगाये तो ऐतिहासिक संसार में अवश्य ही अपना नाम छोड़ जाए। पंडित जी का नाम तो श्रीविलास...

कहानी – प्रलय (लेखक – जयशंकर प्रसाद)

हिमावृत चोटियों की श्रेणी, अनन्त आकाश के नीचे क्षुब्ध समुद्र! उपत्यका की कन्दरा में, प्राकृतिक उद्यान में खड़े हुए युवक ने युवती से कहा-”प्रिये!” ”प्रियतम! क्या होने वाला है?”   ”देखो क्या होता है,...

कहानी – सुजान भगत – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

सीधे-सादे किसान धन हाथ आते ही धर्म और कीर्ति की ओर झुकते हैं। दिव्य समाज की भाँति वे पहले अपने भोग-विलास की ओर नहीं दौड़ते। सुजान   की खेती में कई साल से कंचन...

उपन्यास – कंकाल, भाग -1 (लेखक – जयशंकर प्रसाद )

प्रतिष्ठान के खँडहर में और गंगा-तट की सिकता-भूमि में अनेक शिविर और फूस के झोंपड़े खड़े हैं। माघ की अमावस्या की गोधूली में प्रयाग में बाँध पर प्रभात का-सा जनरव और कोलाहल तथा धर्म...

कहानी – आत्म-संगीत – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

आधी रात थी। नदी का किनारा था। आकाश के तारे स्थिर थे और नदी में उनका प्रतिबिम्ब लहरों के साथ चंचल। एक स्वर्गीय संगीत की मनोहर और जीवनदायिनी, प्राण-पोषिणी घ्वनियॉँ इस निस्तब्ध और तमोमय...

उपन्यास – कंकाल, भाग -2 (लेखक – जयशंकर प्रसाद )

एक ओर तो जल बरस रहा था, पुरवाई से बूँदें तिरछी होकर गिर रही थीं, उधर पश्चिम में चौथे पहर की पीली धूप उनमें केसर घोल रही थी। मथुरा से वृन्दावन आने वाली सड़क...