Category: महान लेखकों की सामाजिक प्रेरणास्पद कहानियां, कवितायें और साहित्य का अध्ययन, प्रचार व प्रसार कर वापस दिलाइये मातृ भूमि भारतवर्ष की आदरणीय राष्ट्र भाषा हिन्दी के खोये हुए सम्मान को

उपन्यास – कंकाल, भाग -3 (लेखक – जयशंकर प्रसाद )

श्रीचन्द्र का एकमात्र अन्तरंग सखा धन था, क्योंकि उसके कौटुम्बिक जीवन में कोई आनन्द नहीं रह गया था। वह अपने व्यवसाय को लेकर मस्त रहता। लाखों का हेर-फेर करने में उसे उतना ही सुख...

कहानी – रानी सारन्धा – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

अँधेरी रात के सन्नाटे में धसान नदी चट्टानों से टकराती हुई ऐसी सुहावनी मालूम होती थी जैसे घुमुर-घुमुर करती हुई चक्कियाँ। नदी के दाहिने तट पर एक टीला है। उस पर एक पुराना दुर्ग...

उपन्यास – कंकाल, भाग -4 (लेखक – जयशंकर प्रसाद)

वह दरिद्रता और अभाव के गार्हस्थ्य जीवन की कटुता में दुलारा गया था। उसकी माँ चाहती थी कि वह अपने हाथ से दो रोटी कमा लेने के योग्य बन जाए, इसलिए वह बार-बार झिड़की...

कहानी – आभूषण – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

आभूषणों की निंदा करना हमारा उद्देश्य नहीं है। हम असहयोग का उत्पीड़न सह सकते हैं पर ललनाओं के निर्दय घातक वाक्बाणों को नहीं ओढ़ सकते। तो भी इतना अवश्य कहेंगे कि इस तृष्णा की...

कहानी – पंचायत (लेखक – जयशंकर प्रसाद)

मन्दाकिनी के तट पर रमणीक भवन में स्कन्द और गणेश अपने-अपने वाहनों पर टहल रहे हैं। नारद भगवान् ने अपनी वीणा को कलह-राग में बजाते-बजाते उस कानन को पवित्र किया, अभिवादन के उपरान्त स्कन्द,...

कहानी – त्यागी का प्रेम – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

लाला गोपीनाथ को युवावस्था में ही दर्शन से प्रेम हो गया था। अभी वह इंटरमीडियट क्लास में थे कि मिल और बर्कले के वैज्ञानिक विचार उनको कंठस्थ हो गये थे। उन्हें किसी प्रकार के...

कविताएँ – (लेखक – जयशंकर प्रसाद )

आह ! वेदना मिली विदाई आह ! वेदना मिली विदाई मैंने भ्रमवश जीवन संचित, मधुकरियों की भीख लुटाई   छलछल थे संध्या के श्रमकण आँसू-से गिरते थे प्रतिक्षण मेरी यात्रा पर लेती थी नीरवता...

कहानी – जुगनू की चमक – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

पंजाब के सिंह राजा रणजीतसिंह संसार से चल चुके थे और राज्य के वे प्रतिष्ठित पुरुष जिनके द्वारा उनका उत्तम प्रबंध चल रहा था परस्पर के द्वेष और अनबन के कारण मर मिटे थे।...

नाटक – प्रथम अंक – अजातशत्रु (लेखक – जयशंकर प्रसाद )

प्रथम दृश्य स्थान – प्रकोष्ठ   राजकुमार अजातशत्रु , पद्मावती , समुद्रदत्त और शिकारी लुब्धक।     अजातशत्रु : क्यों रे लुब्धक! आज तू मृग-शावक नहीं लाया। मेरा चित्रक अब किससे खेलेगा   समुद्रदत्त...

कहानी – मंत्र – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

पंडित लीलाधर चौबे की जबान में जादू था। जिस वक्त वह मंच पर खड़े हो कर अपनी वाणी की सुधावृष्टि करने लगते थे; श्रोताओं की आत्माएँ तृप्त हो जाती थीं, लोगों पर अनुराग का...

नाटक – कथा-प्रसंग – अजातशत्रु (लेखक – जयशंकर प्रसाद )

इतिहास में घटनाओं की प्रायः पुनरावृत्ति होते देखी जाती है। इसका तात्पर्य यह नहीं है कि उसमें कोई नई घटना होती ही नहीं। किन्तु असाधारण नई घटना भी भविष्यत् में फिर होने की आशा...

कहानी – सोहाग का शव – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

मध्यप्रदेश के एक पहाड़ी गॉँव में एक छोटे-से घर की छत पर एक युवक मानो संध्या की निस्तब्धता में लीन बैठा था। सामने चन्द्रमा के मलिन प्रकाश में ऊदी पर्वतमालाऍं अनन्त के स्वप्न की...

कविताएँ – कर्म सर्ग – कामायनी (लेखक – जयशंकर प्रसाद )

भाग-1 कर्मसूत्र – संकेत सदृश थी   सोम लता तब मनु को   चढ़ी शिज़नी सी, खींचा फिर   उसने जीवन धनु को।     हुए अग्रसर से मार्ग में   छुटे-तीर-से-फिर वे,  ...

नाटक – द्वितीय अंक – अजातशत्रु (लेखक – जयशंकर प्रसाद )

प्रथम दृश्य स्थान – मगध   अजातशत्रु की राजसभा।       अजातशत्रु : यह क्या सच है, समुद्र! मैं यह क्या सुन रहा हूँ! प्रजा भी ऐसा कहने का साहस कर सकती है?...

कहानी – गृह-दाह – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

सत्यप्रकाश के जन्मोत्सव में लाला देवप्रकाश ने बहुत रुपये खर्च किये थे। उसका विद्यारम्भ-संस्कार भी खूब धूम-धाम से किया गया। उसके हवा खाने को एक छोटी-सी गाड़ी थी। शाम को नौकर उसे टहलाने ले...

नाटक – तृतीय अंक – अजातशत्रु (लेखक – जयशंकर प्रसाद )

प्रथम दृश्य स्थान – मगध में राजकीय भवन   छलना और देवदत्त।       छलना : धूर्त्त! तेरी प्रवंचना से मैं इस दशा को प्राप्त हुई। पुत्र बन्दी होकर विदेश चला गया और...