Category: महान लेखकों की सामाजिक प्रेरणास्पद कहानियां, कवितायें और साहित्य का अध्ययन, प्रचार व प्रसार कर वापस दिलाइये मातृ भूमि भारतवर्ष की आदरणीय राष्ट्र भाषा हिन्दी के खोये हुए सम्मान को
टामी यों देखने में तो बहुत तगड़ा था। भूँकता तो सुननेवाले के कानों के परदे फट जाते। डील-डौल भी ऐसा कि अँधेरी रात में उस पर गधे का भ्रम हो जाता। लेकिन उसकी श्वानोचित...
जायसी का विरहवर्णन कहीं-कहीं अत्यंत अत्युक्तिपूर्ण होने पर भी मजाक की हद तक नहीं पहुँचने पाया है, उसमें गांभीर्य बना हुआ है। इनकी अत्युक्तियाँ बात की करामात नहीं जान पड़तीं, हृदय की अत्यंत तीव्र...
हिंदू समाज की वैवाहिक प्रथा इतनी दूषित, इतनी चिंताजनक, इतनी भयंकर हो गयी है कि कुछ समझ में नहीं आता, उसका सुधार क्योंकर हो। बिरले ही ऐसे माता-पिता होंगे जिनके सात पुत्रों के बाद...
पद्मावत की संपूर्ण आख्यायिका को हम दो भागों में विभक्त कर सकते हैं। रत्नसेन की सिंहलद्वीप यात्र से ले कर चित्तौर लौटने तक हम कथा का पूर्वार्ध मान सकते हैं और राघव के निकाले...
विपिन बाबू के लिए स्त्री ही संसार की सुन्दर वस्तु थी। वह कवि थे और उनकी कविता के लिए स्त्रियों के रूप और यौवन की प्रशंसा ही सबसे चित्तकर्षक विषय था। उनकी दृष्टि में...
वस्तु वर्णन-कौशल से कवि लोग इतिवृत्तात्मक अंशों को भी सरस बना सकते हैं। इस बात में हम संस्कृत के कवियों को अत्यंत निपुण पाते हैं। भाषा के कवियों में वह निपुणता नहीं पाई जाती।...
रात ‘भक्तमाल’ पढ़ते-पढ़ते न जाने कब नींद आ गयी। कैसे-कैसे महात्मा थे जिनके लिए भगवत्-प्रेम ही सबकुछ था, इसी में मग्न रहते थे। ऐसी भक्ति बड़ी तपस्या से मिलती है। क्या मैं यह तपस्या...
किसी प्रबंध कल्पना पर और कुछ विचार करने के पहले यह देखना चाहिए कि कवि घटनाओं को किसी आदर्श परिणाम पर ले जा कर तोड़ना चाहता है अथवा यों ही स्वाभाविक गति पर छोड़ना...
कांग्रेस कमेटी में यह सवाल पेश था-शराब और ताड़ी की दूकानों पर कौन धरना देने जाय? कमेटी के पच्चीस मेम्बर सिर झुकाये बैठे थे; पर किसी के मुँह से बात न निकलती थी। मुआमला...
पात्र द्वारा जिन स्थायी भावों की प्रधानत: व्यंजना जायसी ने कराई है वे रति, शोक और युध्दोत्साह हैं। दो एक स्थानों पर क्रोध की भी व्यंजना है। भय का केवल आलंबन मात्र हम समुद्रवर्णन...
पूर्ण स्वराज्य का जुलूस निकल रहा था। कुछ युवक, कुछ बूढ़े, कुछ बालक झंडियाँ और झंडे लिये वंदेमातरम् गाते हुए माल के सामने से निकले। दोनों तरफ दर्शकों की दीवारें खड़ी थीं, मानो उन्हें...
आरंभ में ही हम यह कह देना अच्छा समझते हैं कि जायसी का ध्यान स्वभावचित्रण की ओर वैसा न था। ‘पदमावत’ में हम न तो किसी व्यक्ति के ही स्वभाव का ऐसा प्रदर्शन पाते...
मिस्टर सेठ को सभी हिन्दुस्तानी चीजों से नफरत थी और उनकी सुन्दरी पत्नी गोदावरी को सभी विदेशी चीजों से चिढ़! मगर धैर्य और विनय भारत की देवियों का आभूषण है। गोदावरी दिल पर हजार...
आरंभ में ही हम काव्यानुशीलन को भावयोग कह आए हैं और उसे कर्मयोग और ज्ञानयोग के समकक्ष बता आए हैं। यहाँ पर अब यह कहने की आवश्यकता प्रतीत होती है कि ‘उपासना’ भावयोग का...
क्या नाम कि… प्रात:काल स्नान-पूजा से निपट, तिलक लगा, पीताम्बर पहन, खड़ाऊँ पाँव में डाल, बगल में पत्रा दबा, हाथ में मोटा-सा शत्रु-मस्तक-भंजन ले एक जजमान के घर चला। विवाह की साइत विचारनी थी।...
प्रबंधकाव्य में बड़ी भारी बात है संबंधनिर्वाह। माघ ने कहा है – बह्वपि स्वेच्छया कामं प्रकीर्णमभिधीयते। अनुज्झितार्थसंबंधा: प्रबन्धो दुरुदाहर:॥ जायसी का संबंधनिर्वाह अच्छा है। एक प्रसंग से दूसरे प्रसंग की श्रृखला बराबर...