Category: महान लेखकों की सामाजिक प्रेरणास्पद कहानियां, कवितायें और साहित्य का अध्ययन, प्रचार व प्रसार कर वापस दिलाइये मातृ भूमि भारतवर्ष की आदरणीय राष्ट्र भाषा हिन्दी के खोये हुए सम्मान को
यदि सारा भारत घर-बार छोड़कर घुमक्कड़ हो जाय, तो भी चिंता की बात नहीं है। लेकिन घुमकक्ड़ी एक सम्मानित नाम और पद है। उसमें, विशेषकर प्रथम श्रेणी के घुमक्कड़ों में सभी तरह के ऐरे-गैरे...
किसी-किसी पाठक को भ्रम हो सकता है, कि धर्म और आधुनिक घुमक्कड़ी में विरोध है। लेकिन धर्म से घुमक्कड़ी का विरोध कैसे हो सकता है, जबकि हम जानते हैं कि प्रथम श्रेणी के घुमक्कड़...
निरुद्देश्य का अर्थ है उद्देश्यरहित, अर्थात् बिना प्रयोजन का। प्रयोजन बिना तो कोई मंदबुद्धि भी काम नहीं करता। इसलिए कोई समझदार घुमक्कड़ यदि निरुद्देश्य ही बीहड़पथ को पकड़े तो यह विचित्र-सी बात है। निरुद्देश्य...
घुमक्कड़ी का अंकुर किसी देश, जाति या वर्ग में सीमित नहीं रहता। धनाढ्य कुल में भी घुमक्कड़ पैदा हो सकता है, लेकिन तभी जब कि उस देश का जातीय जीवन उन्मुख हो। पतनशील जाति...
घुमक्कड़ को दुनिया में विचरना है, उसे अपने जीवन को नदी के प्रवाह की तरह सतत प्रवाहित रखना है, इसीलिए उसे प्रवाह में बाधा डालने वाली बातों से सावधान रहना है। ऐसी बाधक बातों...
घुमक्कड़ असंग और निर्लेप रहता है, यद्यपि मानव के प्रति उसके हृदय में अपार स्नेह है। यही अपार स्नेह उसके हृदय में अनंत प्रकार की स्मृतियाँ एकत्रित कर देता है। वह कहीं किसी से...
घुमक्कड़ के स्वावलंबी होने के लिए उपसुक्त कुछ बातों को हम बतला चुके हैं। क्षौरकर्म, फोटोग्राफी या शारीरिक श्रम बहुत उपयोगी काम हैं, इसमें शक नहीं; लेकिन वह घुमक्कड़ की केवल शरीर-यात्रा में ही...
आज जिस प्रकार के घुमक्कड़ों की दुनिया को आवश्यकता है, उन्हें अपनी यात्रा केवल ”स्वांत: सुखाय” नहीं करनी है। उन्हें हरेक चीज इस दृष्टि से देखनी है, जिसमें कि घर बैठे रहनेवाले दूसरे लाखों...
बाहरवालों के लिए चाहे वह कष्ट, भय और रूखेपन का जीवन मालूम होता हो, लेकिन घुमक्कड़ी जीवन घुमक्कड़ के लिए मिसरी का लड्डू है, जिसे जहाँ से खाया जाय वहीं से मीठा लगता है...
अब तो मैं तीसरी बार तिब्बत में प्रवेश कर रहा था, इस रास्ते यह दूसरी बार जा रहा था। पहले प्रवेश में मुझे उतना ही कष्टों का सामना करना पड़ा था, जितना कि हनुमानजी...
अभी हम जंगल और वनस्पति की भूमि में ही थे, लेकिन कुछ ही मीलों बाद उसका साथ चिरकाल के लिए छूटने वाला था। तातपानी से यहाँ तक, भोटकाशी के दोनों किनारों के पहाड़ हरे-भरे...
एक अपैल के नौ बजे हम आगे के लिए रवाना हुए। हमारे और अभयसिंह के अतिरिक्त चार नेपाली सवार साथी हुए, जिनमें शि-गर्-चे के नेपाली फोटोग्राफर तेजरत्न तथा उनकी तिब्बती स्त्री भी थी। जोड़्...
2 मई को चाय-सत्तू (प्रातराश) करके आठ बजे हम तिड्रि से रवाना हुए। चार घंटे में नेमू गाँव में पहुँचे। आजकल यहाँ खेतों में जुताई का काम हो रहा था। आसपास के पहाड़ों पर...
आगे चले चलो अपवाद भय या कीर्ति प्रेम से निरत न हो, यदि खूब सोच-समझ कर मार्ग चुन लिया। प्रेरित हुए हो सत्य के विश्वास, प्रेम से, तो धार्य नियम, शौर्य से आगे चले...
हम उनके पास चंदा माँगने गए थे। चंदे के पुराने अभ्यासी का चेहरा बोलता है। वे हमें भाँप गए। हम भी उन्हें भाँप गए। चंदा माँगनेवाले और देनेवाले एक-दूसरे के शरीर की गंध बखूबी...
मैं सोच रहा, सिर पर अपार दिन, मास, वर्ष का धरे भार पल, प्रतिपल का अंबार लगा आखिर पाया तो क्या पाया? जब तान छिड़ी, मैं बोल उठा जब थाप पड़ी, पग डोल उठा...