Category: महान लेखकों की सामाजिक प्रेरणास्पद कहानियां, कवितायें और साहित्य का अध्ययन, प्रचार व प्रसार कर वापस दिलाइये मातृ भूमि भारतवर्ष की आदरणीय राष्ट्र भाषा हिन्दी के खोये हुए सम्मान को

निबंध – शिक्षा का प्रथम -I I (लेखक – गणेशशंकर विद्यार्थी)

वैसे तो हमारा देश-भर शिक्षा में, मनुष्‍य की बाहरी उन्‍नति के इस परमावश्‍यक साधन के विषय में, संसार-भर के सभ्‍य देशों से बहुत पिछड़ा हुआ है, परंतु देश में भी हमारा प्रांत इस विषय...

निबंध – सुगमता की माया (लेखक – गणेशशंकर विद्यार्थी)

काम करने के दो मार्ग हैं। एक तो यह कि आगे बढ़ा जाये, परंतु आदि से लेकर अंत तक नैतिक आधार न छोड़ा जाये। दूसरा यह कि, काम हो, और,‍ फिर चाहे जिस तरह,...

निबंध – संपादकाचार्य सुब्रह्मण्यम् अय्यर (लेखक – गणेशशंकर विद्यार्थी)

देश से सर्वश्रेष्‍ठ पत्र-संपादक उठ गया! ये संपादकाचार्य थे मद्रास के मि.सुब्रह्मण्‍यम् अय्यर। देश-भर में उनसा चतुर, योग्‍य और कुशाग्र बुद्धि का कोई पत्र-संपादक नहीं था। 23 वर्ष की अवस्‍था में उन्‍होंने ‘हिंदू’ पत्र...

निबंध – समुद्र-मंथन (लेखक – गणेशशंकर विद्यार्थी)

पुराने जमाने में, एक माँ की कोख से पैदा हुए दो भिन्‍न प्रकृति के बेटों ने युद्ध किया था। खूब घमासान लड़ाई हुई थी। खून की नदियाँ बहीं। फिर वे थक गये। कुछ शांत...

निबंध – स्व. श्रीयुत लक्ष्मीशंकर अवस्थी (लेखक – गणेशशंकर विद्यार्थी)

अवस्‍थी – यह केवल दुर्भाग्‍य ही नहीं, किंतु हृदय को हिला और उसे रुला देने वाली बात भी है कि इस प्रियजन के, जिसके बिछोह की कोई कल्‍पना भी न की गयी हो और...

निबंध – स्वर्गीय महात्मा गोखले (लेखक – गणेशशंकर विद्यार्थी)

अत्‍यंत शोक और हृदय-वेदना के साथ हम अपने पाठकों को महात्‍मा गोखले के देहांत का समाचार सुनाते हैं। हमारे राष्‍ट्रीय विकास के इतिहास में 19 फरवरी 1915 का दिन एक अशुभ दिन समझा जायेगा।...

निबंध – स्वर्गीय राय देवीप्रसाद ‘पूर्ण’ (लेखक – गणेशशंकर विद्यार्थी)

धीरे-धीरे एक-एक दीपक बुझते जा रहे हैं। इस विनाश-लीला में दुर्भाग्‍य ने जिस मजबूती के साथ हमारे प्रांत का पल्‍ला पकड़ा है, वैसी मजबती से दूसरे का नहीं। वर्ष के भीतर ही बाबू गंगाप्रसाद...

निबंध – हमारे जातीय जीवन के दोष (लेखक – गणेशशंकर विद्यार्थी)

अंग्रेजी साहित्‍य-क्षेत्र के हलधर मि. जी.के. चेस्‍टरटन ने एक बार कहा था कि स्‍वस्‍थ चित्‍त का यह चिन्‍ह है कि वह कभी-कभी आपकी मूर्खताओं का मजाक उड़ा सके। किसी समाज की मानसिक स्‍वस्‍थता का...

निबंध – स्वराज्य की आकांक्षा (लेखक – गणेशशंकर विद्यार्थी)

देश के सजीव हृदयों में स्‍वराज्‍य की प्रबल आकांक्षा का उदय हो गया है। वे भली-भाँति समझ गये हैं कि जिस देश के निवासियों को अपने कानून आप अनाने का अधिकार न हो, जो...

निबंध – हमारे वे मतवाले निर्वासित वीर (लेखक – गणेशशंकर विद्यार्थी)

जिन तपस्यिों ने अपने प्राण होम कर स्‍वतंत्रता का यज्ञ-कुंड प्रज्‍ज्‍वलित किया, उनमें से अनेक वीर आज विदेशों में पड़े हुए हैं। जो हुतात्‍मा भारतीय जेलों की विकराल दाढ़ों से बच गये, वे आज...

निबंध – हमारा सार्वजनिक जीवन (लेखक – गणेशशंकर विद्यार्थी)

देश में सार्वजनिक जीवन की बड़ी कमी है, जो कुछ है भी, वह दुर्भाग्‍य से ऐसा मलिन और नि:सार है कि हताश होकर किसी-किसी समय यह कहना पड़ता है कि वह न होता तो...

निबंध – हमारी विश्रृंखलता (लेखक – गणेशशंकर विद्यार्थी)

राष्‍ट्रों की घुड़दौड़ में हमारी विश्रृंखलता ही हमारे पिछड़ने का मुख्‍य कारण है और संगठन शक्ति पाश्‍चात्‍यों की चमत्‍कारिणी सफलता की वास्‍तविक कुंजी। अन्‍य युगों में, दूसरे प्रकार के सामाजिक, राजनैतिक और औद्योगिक संगठन...

निबंध – हिंदू-मुस्लिम विद्वेष और भारत सरकार (लेखक – गणेशशंकर विद्यार्थी)

उत्‍तुंग शिमला शैल के होटल सेसील में भारत के नये वायसराय लार्ड इरविन ने गत सप्‍ताह, हिंदू-मुस्लिम विद्वेष के संबंध में बड़े मार्के का भाषण दिया। वह वायसराय महोदय की प्रथम सार्वजनिक वक्‍तृता थी।...

डायरी – जेल-डायरी (लेखक – गणेशशंकर विद्यार्थी)

”आज लखनऊ जिला जेल में यह डायरी प्राप्‍त हुई। चार डायरियाँ थी, तीन बँट गईं, एक का इस्‍तेमाल मैं करूँगा।” यह पंक्तियाँ गणेशशंकर विद्यार्थी ने 31 जनवरी 1922 को लिखी थीं। उक्‍त जेलयात्रा विद्यार्थीजी...

उपन्यास – अधखिला फूल – समर्पण (लेखक – अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध)

श्रील श्रीयुत मानोन्नत अखिलगुण गौरवालंकृत सी.ई. क्राफोर्ड साहब बहादुर मुहतमिम बन्दोबस्त आजमगढ़ बिबुधबृन्दविभूषणेषु! प्रभुवर! बालार्कअरुणरागरंजित प्रफुल्ल पाटलप्रसून, परिमलविकीर्णकारी मन्दवाही प्रभात समीरण, अतसीकुसुमदलोपमेयकान्ति नवजलधरपटल, पीयूषप्रवर्षणकारी सुपूर्ण शुभ्र शारदीय शशांक, रविकिरणोद्भासित वीचिविक्षेपणशीला तरंगिणी, श्यामलतृणावरण- परिशोभित उतुंग...

उपन्यास – अधखिला फूल – अध्याय 2 (लेखक – अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध)

वैशाख का महीना, दो घड़ी रात बीत गयी है। चमकीले तारें चारों ओर आकाश में फैले हुए हैं, दूज का बाल सा पतला चाँद, पश्चिम ओर डूब रहा है, अंधियाला बढ़ता जाता है, ज्यों-ज्यों...