Category: महान लेखकों की सामाजिक प्रेरणास्पद कहानियां, कवितायें और साहित्य का अध्ययन, प्रचार व प्रसार कर वापस दिलाइये मातृ भूमि भारतवर्ष की आदरणीय राष्ट्र भाषा हिन्दी के खोये हुए सम्मान को

उपन्यास – अधखिला फूल – अध्याय 3 (लेखक – अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध)

जिस खेत में यह टूटा हुआ तारा गिरा, उसमें देखते-ही-देखते एक भीड़ सी लग गयी, लोग पर लोग चले आते थे, और सब यही चाहते थे, किसी भाँत भीड़ चीरकर उस तारे तक पहुँचें,...

उपन्यास – अधखिला फूल – अध्याय 4 (लेखक – अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध)

एक बहुत ही सजा हुआ घर है, भीतों पर एक-से-एक अच्छे बेल-बूटे बने हुए हैं। ठौर-ठौर भाँति-भाँति के खिलौने रक्खे हैं, बैठकी और हांड़ियों में मोमबत्तियाँ जल रही हैं, बड़ा उँजाला है, बीच में...

उपन्यास – अधखिला फूल – अध्याय 5 (लेखक – अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध)

चाँद कैसा सुन्दर है, उसकी छटा कैसी निराली है, उसकी शीतल किरणें कैसी प्यारी लगती हैं! जब नीले आकाश में चारों ओर जोति फैला कर वह छवि के साथ रस की वर्षा सी करने...

उपन्यास – अधखिला फूल – अध्याय 6 (लेखक – अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध)

बासमती जाने से कुछ ही पीछे हरलाल को ले कर लौट आयी। हरलाल छड़ी से टटोल-टटोल कर पाँव रखते हुए घर में आया। उसके आते ही पारबती और देवहूती वहाँ से हटकर कुछ आड़...

उपन्यास – अधखिला फूल – अध्याय 7 (लेखक – अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध)

भोर के सूरज की सुनहली किरणें धीरे-धीरे आकाश में फैल रही हैं, पेड़ों की पत्तियों को सुनहला बना रही हैं, और पास के पोखरे के जल में धीरे-धीरे आकर उतर रही हैं। चारों ओर...

वैदेही-वनवास – सती सीता ताटंक कविता

नील-नभो मण्डल बन-बन कर विविध-अलौकिक-दृश्य निलय। करता था उत्फुल्ल हृदय को तथा दृगों को कौतुकमय॥ नीली पीली लाल बैंगनी रंग बिरंगी उड़ु अवली। बनी दिखाती थी मनोज्ञ तम छटा-पुंज की केलि-थली॥2॥ कर फुलझड़ी क्रिया...

उपन्यास – अधखिला फूल – अध्याय 8 (लेखक – अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध)

चमकता हुआ सूरज पश्चिम ओर आकाश में धीरे-धीरे डूब रहा है। धीरे-ही-धीरे उसका चमकीला उजला रंग लाल हो रहा है। नीले आकाश में हलके लाल बादल चारों ओर छूट रहे हैं। और पहाड़ की...

उपन्यास – अधखिला फूल – अध्याय 9 (लेखक – अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध)

फूल तोड़ने के लिए देवहूती नित्य जाती, नित्य उसका जी कामिनीमोहन की ओर खींचने के लिए बासमती उपाय करती। कामिनीमोहन भी उसको अपनाने के लिए कोई जतन उठा न रखता, बनाव सिंगार, सज धज...

उपन्यास – अधखिला फूल – अध्याय 10 (लेखक – अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध)

कहा जाता है, दिन फल अपने हाथ नहीं, करम का लिखा हुआ अमिट है, हम अपने बस भर कोई बात उठा नहीं रखते, पर होता वही है, जो होना है, जतन उपाय ब्योंत सब...

उपन्यास – अधखिला फूल – अध्याय 11 (लेखक – अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध)

चारों ओर आग बरस रही है-लू और लपट के मारे मुँह निकालना दूभर है-सूरज बीच आकाश में खड़ा जलते अंगारे उगिल रहा है और चिलचिलाती धूप की चपेटों से पेड़ तक का पत्ता पानी...

उपन्यास – अधखिला फूल – अध्याय 12 (लेखक – अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध)

देवहूती और उसकी मौसी के घर के ठीक पीछे भीतों से घिरी हुई एक छोटी सी फुलवारी है। भाँत-भाँत के फूल के पौधे इसमें लगे हुए हैं, चारों ओर बड़ी-बड़ी क्यारियाँ हैं, एक-एक क्यारी...

उपन्यास – ठेठ हिंदी का ठाट – अध्याय 3 (लेखक – अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध)

आठवाँ ठाट बटोही ने जो कुछ आँखों देखा, कानों सुना, वह सब बातें उसको चकरा रही थीं, दुखी बना रही थीं, और सता रही थीं, पर इस घड़ी वह बहुत ही अनमना हो रहा...

उपन्यास – ठेठ हिंदी का ठाट – अध्याय 2 (लेखक – अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध)

पहला ठाट ललकि ललकि लोयनन तेहि, लखि लखि होहु निहाल। लाली इत उत की लहत, लहे जीव जेहि लाल। एक ग्यारह बरस की लड़की अपने घर के पास की फुलवारी में खड़ी हुई किसी...

उपन्यास – ठेठ हिंदी का ठाट – अध्याय 1 (लेखक – अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध)

बटोही ने जो कुछ आँखों देखा, कानों सुना, वह सब बातें उसको चकरा रही थीं, दुखी बना रही थीं, और सता रही थीं, पर इस घड़ी वह बहुत ही अनमना हो रहा था, वह...

उपन्यास – अधखिला फूल – अध्याय 26 (लेखक – अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध)

आज दस बरस पीछे हम फिर बंसनगर में चलते हैं। पौ फट रहा है, दिशाएँ उजली हो रही हैं, और आकाश के तारे एक-एक कर के डूब रहे हैं। सूरज अभी नहीं निकला है,...

उपन्यास – अधखिला फूल – अध्याय 25 (लेखक – अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध)

बासमती के मारे जाने पर दो चार दिन गाँव में बड़ी हलचल रही, थाने के लोगों ने आकर कितनों को पकड़ा, मारनेवाले को ढूँढ़ निकालने के लिए कोई बात उठा न रखी, पर बासमती...