Category: महान लेखकों की सामाजिक प्रेरणास्पद कहानियां, कवितायें और साहित्य का अध्ययन, प्रचार व प्रसार कर वापस दिलाइये मातृ भूमि भारतवर्ष की आदरणीय राष्ट्र भाषा हिन्दी के खोये हुए सम्मान को
बादल थे नभ में छाये। बदला था रंग समय का॥ थी प्रकृति भरी करुणा में। कर उपचय मेघ-निचय का॥1॥ वे विविध-रूप धारण कर। नभ-तल में घूम रहे थे॥ गिरि के ऊँचे शिखरों को। गौरव...
प्रकृति का नीलाम्बर उतरे। श्वेत-साड़ी उसने पाई॥ हटा घन-घूँघट शरदाभा। विहँसती महि में थी आई॥1॥ मलिनता दूर हुए तन की। दिशा थी बनी विकच-वदना॥ अधर में मंजु-नीलिमामय। था गगन-नवल-वितान तना॥2॥ चाँदनी छिटिक छिटिक छबि...
था संध्या का समय भवन मणिगण दमक। दीपक-पुंज समान जगमगा रहे थे॥ तोरण पर अति-मधुर-वाद्य था बज रहा। सौधों में स्वर सरस-स्रोत से बहे थे॥1॥ काली चादर ओढ़ रही थी यामिनी। जिसमें विपुल सुनहले...
था प्रभात का काल गगन-तल लाल था। अवनी थी अति-ललित-लालिमा से लसी॥ कानन के हरिताभ-दलों की कालिमा। जाती थी अरुणाभ-कसौटी पर कसी॥1॥ ऊँचे-ऊँचे विपुल-शाल-तरु शिर उठा। गगन-पथिक का पंथ देखते थे अड़े॥ हिला-हिला निज...
अवध पुरी आज सज्जिता है। बनी हुई दिव्य-सुन्दरी है॥ विहँस रही है विकास पाकर। अटा अटा में छटा भरी है॥1॥ दमक रहा है नगर, नागरिक। प्रवाह में मोद के बहे हैं॥ गली-गली है गयी...
प्रवहमान प्रात:-समीर था। उसकी गति में थी मंथरता॥ रजनी-मणिमाला थी टूटी। पर प्राची थी प्रभा-विरहिता॥1॥ छोटे-छोटे घन के टुकड़े। घूम रहे थे नभ-मण्डल में॥ मलिना-छाया पतित हुई थी। प्राय: जल के अन्तस्तल में॥2॥ कुछ...
प्रकृति-सुन्दरी विहँस रही थी चन्द्रानन था दमक रहा। परम-दिव्य बन कान्त-अंक में तारक-चय था चमक रहा॥ पहन श्वेत-साटिका सिता की वह लसिता दिखलाती थी। ले ले सुधा-सुधा-कर-कर से वसुधा पर बरसाती थी॥1॥ नील-नभो मण्डल...
अवधपुरी के निकट मनोरम-भूमि में। एक दिव्य-तम-आश्रम था शुचिता-सदन॥ बड़ी अलौकिक-शान्ति वहाँ थी राजती। दिखलाता था विपुल-विकच भव का वदन॥1॥ प्रकृति वहाँ थी रुचिर दिखाती सर्वदा। शीतल-मंद-समीर सतत हो सौरभित॥ बहता था बहु-ललित दिशाओं...
मन्त्रणा गृह में प्रात:काल। भरत लक्ष्मण रिपुसूदन संग॥ राम बैठे थे चिन्ता-मग्न। छिड़ा था जनकात्मजा प्रसंग॥1॥ कथन दुर्मुख का आद्योपान्त। राम ने सुना, कही यह बात॥ अमूलक जन-रव होवे किन्तु। कीर्ति पर करता है...
अवध के राज मन्दिरों मध्य। एक आलय था बहु-छबि-धाम॥ खिंचे थे जिसमें ऐसे चित्र। जो कहाते थे लोक-ललाम॥1॥ दिव्य-तम कारु-कार्य अवलोक। अलौकिक होता था आनन्द॥ रत्नमय पच्चीकारी देख। दिव विभा पड़ जाती थी मन्द॥2॥...
लोक-रंजिनी उषा-सुन्दरी रंजन-रत थी। नभ-तल था अनुराग-रँगा आभा-निर्गत थी॥ धीरे-धीरे तिरोभूत तामस होता था। ज्योति-बीज प्राची-प्रदेश में दिव बोता था॥1॥ किरणों का आगमन देख ऊषा मुसकाई। मिले साटिका-लैस-टँकी लसिता बन पाई॥ अरुण-अंक से छटा...
करुणरस द्रवीभूत हृदय का वह सरस-प्रवाह है, जिससे सहृदयता क्यारी सिंचित, मानवता फुलवारी विकसित और लोकहित का हरा-भरा उद्यान सुसज्जित होता है। उसमें दयालुता प्रतिफलित दृष्टिगत होती है, और भावुकता-विभूति-भरित। इसीलिए भावुक-प्रवर-भवभूति की भावमयी...
जब किसी बीमार के जी में यह बात बैठ जाती है कि अब बचना कठिन है, तो उसमें घबराहट का पैदा हो जाना कुछ आश्चर्य नहीं। अपने दुख को देखकर मैं भी बहुत घबराया,...
जिन दिनों माघ के महीने में मेरा स्वास्थ्य बहुत बिगड़ गया था, उन्हीं दिनों की बात है, कि एक दिन दो घड़ी रात रहे मेरी नींद अचानक टूट गयी। इस घड़ी रोग का पारा...
हम कौन हैं, आप यह जानकर क्या करेंगे। फिर हम आप से छिप कब सकते हैं, आपकी हमारी जान-पहचान बहुत दिनों की है। हमने कई बार आप से मीठी-मीठी बातें की हैं, आपका जी...