Category: महान लेखकों की सामाजिक प्रेरणास्पद कहानियां, कवितायें और साहित्य का अध्ययन, प्रचार व प्रसार कर वापस दिलाइये मातृ भूमि भारतवर्ष की आदरणीय राष्ट्र भाषा हिन्दी के खोये हुए सम्मान को
आज तक कुछ लोगों का ख्याल था कि हिंदी की जननी संस्कृत है। यह बात भारत की भाषाओं की खोज से गलत साबित हो गई। जो उद्गम-स्थान परिमार्जित संस्कृत का है, हिंदी जिन भाषाओं...
परिमार्जित संस्कृत जैसा कि लिखा जा चुका है कि प्रारंभिक, किंवा पहली, प्राकृत से संबंध रखने वाली कई एक भाषाएँ या बोलियाँ थीं। उनका धीरे-धीरे विकास होता गया। भारत की वर्तमान भाषाएँ उसी विकास...
अपभ्रंश भाषाओं की उत्पत्ति दूसरे प्रकार की प्राकृत का विकास होते-होते उस भाषा की उत्पत्ति हुई जिसे ”साहित्यसंबंधी अपभ्रंश” कहते हैं। अपभ्रंश का अर्थ है – ”भ्रष्ट हुई” या ”बिगड़ी हुई” भाषा। भाषाशास्त्र के...
आर्य लोगों की सबसे पुरानी भाषा के नमूने ऋग्वेद में हैं ऋग्वेद के मंत्रों का अधिकांश आर्यों ने अपनी रोजमर्रा की बोल-चाल की भाषा में निर्माण किया था। इसमें कोई संदेह नहीं। रामायण, महाभारत...
विषयारंभ हिंदी भाषा की उत्पत्ति का पता लगाने, और उसका थोड़ा भी इतिहास लिखने में बड़ी-बड़ी कठिनाइयाँ हैं। क्योंकि इसके लिए पतेवार सामग्री कहीं नहीं मिलती। अधिकतर अनुमान ही के आधार पर इमारत खड़ी...
पर्व और उत्सव मनुष्य का कार्य क्षेत्रा बड़ा विस्तृत है और उसमें उसकी तन्मयता अद््््भुत है। कारण यह है कि सांसारिकता का बन्धान ऐसा है कि वह मनुष्य को अधिाकतर कार्यरत रखता है, क्योंकि...
विभुता-विभूति प्रेम-प्रलाप भरे हैं उसमें जितने भाव, मलिन हैं, या वे हैं अभिराम, फूल-सम हैं या कुलिश-समान, बताऊँ क्या मैं तुझको श्याम! हृदय मेरा है तेरा धााम। गए तुम मुझको कैसे भूल, किसलिए लूँ...
भेद भरी बातें पी कहाँ चौपदे श्याम घन में है किसकी झलक। कौन रहता है रस से भरा। लुभा लेती है धारती किसे। दुपट्टा ओढ़ ओढ़ कर हरा।1। बड़ी ऍंधिायाली रातों में। बन बहुत...
पावन प्रसंग अभेद का भेद दोहा खोजे खोजी को मिला क्या हिन्दू क्या जैन। पत्ता पत्ता क्यों हमें पता बताता है न।1। रँगे रंग में जब रहे सकें रंग क्यों भूल। देख उसी की...
प्रभु-प्रताप [षट्पद] चाँद औ सूरज गगन में घूमते हैं रात दिन। तेज औ तम से, दिशा होती है उजली औ मलिन। वायु बहती है, घटा उठती है, जलती है अगिन। फूल होता है अचानक...
आज ऐसा है न कोई दिन भला। भाग से मिलते हैं ऐसे दिन कहीं। हाय! किसने किसलिए हमको छला। जो सदा मिलते हैं ऐसे दिन नहीं। हैं परब त्योहार के कितने दिवस। जिनमें करते...
ग्रंथावली के प्रस्तुत (चौथे) खंड में ‘हरिऔधा’ के खड़ीबोली के स्फुट काव्य को शामिल किया गया है। इसके पहले तीन खंड भी कविता से सम्बध्द हैं, जिसमें ‘हरिऔधा’ के ब्रजभाषा-काव्य, खड़ीबोली के महाकाव्य और...
गागर में सागर देवदेव चौपदे अब बहुत ही दलक रहा है दिल। हो गईं आज दसगुनी दलवें+। उ+बता हूँ उबारने वाले। आइये, हैं बिछी हुई पलवें+। डाल दे सिर पर न सारी उलझनें। जी...
जो किसी के भी नहीं बाँधो बँधो। प्रेमबंधान से गये वे ही कसे। तीन लोकों में नहीं जो बस सके। प्यारवाली आँख में वे ही बसे। पत्तिायों तक को भला वै+से न तब। कर...
हमारे साहित्यिकों की भारी विशेषता यह है कि जिसे देखो वहीं गम्भीर बना है, गम्भीर तत्ववाद पर बहस कर रहा है और जो कुछ भी वह लिखता है, उसके विषय में निश्चित धारणा बनाये...