Category: महान लेखकों की सामाजिक प्रेरणास्पद कहानियां, कवितायें और साहित्य का अध्ययन, प्रचार व प्रसार कर वापस दिलाइये मातृ भूमि भारतवर्ष की आदरणीय राष्ट्र भाषा हिन्दी के खोये हुए सम्मान को
‘अरे बेचन! न जाने कौन आया था— उर्दजी, उर्दजी, पुकार रहा था!’ ये शब्द मेरी दिवंगता जननी, काशी में जन्मी जयकली के हैं जिन्हें मैं ‘आई’ पुकारा करता था। यू.पी. में माता या माई...
उसके जाल में सीपियाँ उलझ गयी थीं। जग्गैया से उसने कहा-”इसे फैलाती हूँ, तू सुलझा दे।” जग्गैया ने कहा-”मैं क्या तेरा नौकर हूँ?” कामैया ने तिनककर अपने खेलने का छोटा-सा जाल और भी...
रामचन्द्र भगवानद्य सरयू नदी के किनारे पैदा हुए थे, मैं पैदा हुआ गंगा सुरसरि के किनारे। मुझे सरयू उतनी अच्छी नहीं लगतीं जितनी नर, नाग, विबुध बन्दनी गंगा। रामचन्द्र भगवान् अयोध्या नगरी में पैदा...
‘तारा ने बारह वर्ष दुर्गा की तपस्या की। न पलंग पर सोयी, न केशो को सँवारा और न नेत्रों में सुर्मा लगाया। पृथ्वी पर सोती, गेरुआ वस्त्र पहनती और रूखी रोटियाँ खाती। उसका मुख...
यह सन् 1910 ई. है। और यह नगर? इसका नाम है मिण्टगुमरी! मिण्टगुमरी? यह नगर कहाँ है रे बाबा! यह नगर इस समय पश्चिमी पाकिस्तान में है, लेकिन जब की बात लिखी जा रही...
तामसी रजनी के हृदय में नक्षत्र जगमगा रहे थे। शीतल पवन की चादर उन्हें ढँक लेना चाहती थी, परन्तु वे निविड़ अन्धकार को भेदकर निकल आये थे, फिर यह झीना आवरण क्या था! बीहड़,...
महन्त भागवतदास ‘कानियाँ’ की नागा-जमात के साथ मैंने पंजाब और नार्थवेस्ट फ्रण्टियर प्राविंस का लीला-भ्रमण किया। अमृतसर, लाहौर, सरगोधा मण्डी, चूहड़ काणा, पिंड दादन खाँ, मिण्टगुमरी, कोहाट और बन्नू तक रामलीलाओं में अपने राम...
बचपन में मेरे मुहल्ले में दो हस्तियाँ ऐसी थीं जिनका कमोबेश प्रभाव मुझ पर सारे जीवन रहा। उनमें एक थे भानुप्रताप तिवारी (जब मैं सात बरस का था, वह साठ के रहे होंगे), दूसरे...
पुरुषों और स्त्रियों में बड़ा अन्तर है, तुम लोगों का हृदय शीशे की तरह कठोर होता है और हमारा हृदय नरम, वह विरह की आँच नहीं सह सकता।’ ‘शीशा ठेस लगते ही टूट जाता...
‘बाबू!’ जवान लड़के ने वृद्ध, धनिक और पुत्रवत्सल पिता को सम्बोधित किया। ‘बचवा… !’ ‘मिर्ज़ापुर में पुलिस सब-इन्स्पेक्टर की नौकरी मेरा एक दोस्त, जो कि पुलिस में है, मुझे दिलाने को तैयार है। क्या...
मनोरमा, एक भूल से सचेत होकर जब तक उसे सुधारने में लगती है, तब तक उसकी दूसरी भूल उसे अपनी मनुष्यता पर ही सन्देह दिलाने लगती है। प्रतिदिन प्रतिक्षण भूल की अविच्छिन्न शृंखला मानव-जीवन...
मनुष्य की आर्थिक अवस्था का सबसे ज्यादा असर उसके नाम पर पड़ता है। मौजे बेला के मँगरू ठाकुर जब से कान्सटेबल हो गए हैं, इनका नाम मंगलसिंह हो गया है। अब उन्हें कोई मंगरू...
अब मैं चौदह साल का हो चला था कि रामलीला-मण्डली से छुट्टी मनाने बड़़े भाई के संग चुनार आया। इस बार अलीगढ़ में किसी बात पर महन्त राममनोहरदास और मेरे बड़े भाई में वाद-विवाद...
साजन के मन में नित्य वसन्त था। वही वसन्त जो उत्साह और उदासी का समझौता कराता, वह जीवन के उत्साह से कभी विरत नहीं, न-जाने कौन-सी आशा की लता उसके मन में कली लेती...
अरसा हुआ वाराणसी के दैनिक अखबार ‘आज’ में आदरणीय पं. श्रीकृष्णदत्तजी पालीवाल की चर्चा करते हुए मैंने लिखा था कि मेरे पाँच गुरु हैं, जिनमें एक पालीवालजी भी हैं। उन पाँचों में मैं अपने...