आखिर क्यों कई शास्त्रज्ञ गौ को ही साक्षात कृष्ण मानते हैं ?
सारे भारत में कहीं भी चले जाइए और सारे तीर्थ स्थानों के देवस्थान देख आइए।
आपको किसी मंदिर में केवल श्री विष्णु भगवान मिलेंगे, किसी मंदिर में श्री लक्ष्मी नारायण दो मिलेंगे। किसी में श्री भगवान सीता राम लक्ष्मण तीन मिलेंगे तो किसी मंदिर में श्री शंकर पार्वती, गणेश, कार्तिकेय, भैरव, हनुमान जी इस प्रकार छः देवी-देवता मिलेंगे।
अधिक से अधिक किसी में दस-बीस देवी-देवता मिल जाएँगे, पर सारे भूमंडल में ढूँढ़ने पर भी ऐसा कोई देवस्थान या तीर्थ नहीं मिलेगा जिसमें हजारों देवता एक साथ हों।
ऐसा दिव्य स्थान, ऐसा दिव्य मंदिर, दिव्य तीर्थ देखना हो तो बस, वह है गोमाता और इनसे बढ़कर सनातनधर्मी हिंदुओं के लिए न कोई देव स्थान है, न कोई जप-तप है, न ही कोई सुगम कल्याणकारी मार्ग, न कोई योग-यज्ञ है और न कोई मोक्ष का साधन ही है।
‘गावो विश्वस्य मातरः’ देव जिसे विश्व की माता बताते हों उस गौमाता की तुलना भला किससे और कैसे की जा सकती है ?
जिस प्रकार तीर्थों में तीर्थराज प्रयाग हैं उसी प्रकार देवी-देवताओं में अग्रणी गोमाता को बताया गया है। ‘ब्रह्मावैवर्तपुराण’ में कहा गया है-
गवामधिष्ठात्री देवी गवामाद्या गवां प्रसूः।
गवां प्रधाना सुरभिर्गोलोके सा समुद्भवा।
अर्थात् गौओं की अधिष्ठात्री देवी, आदि जननी, सर्व प्रधाना सुरभि है। समुद्र मंथन के समय लक्ष्मी जी के साथ सुरभि (गाय) भी प्रकट हुई थी। ऋग्वेद में लिखा है –
‘गौ मे माता ऋषभः पिता में
दिवं शर्म जगती मे प्रतिष्ठा।’
गाय मेरी माता और ऋषभ पिता हैं। वे इहलोक और परलोक में सुख, मंगल तथा प्रतिष्ठा प्रदान करें।
हमारे धर्मशास्त्रों के अनुसार भगवान का अवतार गौमाता, संतों तथा धर्म की रक्षा के लिए ही होता है।
गाय, गोपाल, गीता, गायत्री तथा गंगा धर्मप्राण भारत के प्राण हैं, आधार हैं। इनमें मैं गौमाता को सर्वोपरि महत्व है। पूजनीय गौमाता हमारी ऐसी माँ है जिनकी बराबरी न कोई देवी-देवता कर सकता है और न कोई तीर्थ। गौमाता के दर्शन मात्र से ऐसा पुण्य प्राप्त होता है जो बड़े-बड़े यज्ञ दान आदि कर्मों से भी नहीं प्राप्त हो सकता।
कई मूर्धन्य तपस्वी कहते हैं कि गौ माता ही साक्षात श्री कृष्ण की अथाह ममत्व की अवतार हैं ।
जिस गौमाता को स्वयं भगवान कृष्ण नंगे पाँव जंगल-जंगल चराते फिरे हों और जिन्होंने अपना नाम ही गोपाल रख लिया हो, उसकी रक्षा के लिए उन्होंने गोकुल में अवतार लिया। शास्त्रों में कहा है सब योनियों में मनुष्य योनी श्रेष्ठ है। यह इसलिए कहा है कि वह गौमाता की निर्मल छाया में अपने जीवन को धन्य कर सकते हैं। गौमाता के रोम-रोम में देवी-देवताओं का एवं समस्त तीर्थों का वास है।
गोमाता को एक ग्रास खिला दीजिए तो वह सभी देवी-देवताओं तक पहुँच जाएगा। इसीलिए धर्मग्रंथ बताते हैं समस्त देवी-देवताओं एवं पितरों को एक साथ प्रसन्न करना हो तो गोभक्ति-गोसेवा से बढ़कर कोई अनुष्ठान नहीं है।
भविष्य पुराण में लिखा है गोमाता कि पृष्ठदेश में ब्रह्म का वास है, गले में विष्णु का, मुख में रुद्र का, मध्य में समस्त देवताओं और रोमकूपों में महर्षिगण, पूँछ में अन्नत नाग, खूरों में समस्त पर्वत, गौमूत्र में गंगादि नदियाँ, गौमय (गोबर) में लक्ष्मी और नेत्रों में सूर्य-चन्द्र हैं।
भगवान भी जब अवतार लेते हैं तो कहते हैं –
‘विप्र धेनु सुर संत हित लीन्ह मनुज अवतार।’
मान्यता है कि गाय माता अपने बच्चे को दूध पिलाती दिख जाए तो उनका दर्शन बहुत शुभ प्रभाव देता है। गाय माता का दूध ही नहीं बल्कि गोबर और गोमूत्र भी बहुत पवित्र है। जरा सोचें वह स्वयं कितनी पवित्र होगी। उनके शरीर का स्पर्श करने वाली हवा भी पवित्र होती है। जहां गाय बैठती है, वहां की भूमि पवित्र होती है । गाय के चरणों की धूली भी पवित्र होती है।
आइये जानते है की गाय माता के किस किस अंग में कौन कौन से देवता का वास है –
भगवान ब्रह्मा और भगवान विष्णु गाय माता के दो सींगो पर
सभी पवित्र स्रोत और भगवान वेदव्यास सींगों के छोर पर
भगवान शंकर मध्य मस्तक पर
माता पार्वती मस्तक के किनारे पर
भगवान कार्तिकेय नाक पर, कंबल और अश्वतर देव नथुनों पर
कानों पर अश्विनीकुमार द्वय
आंखो में भगवान सूर्य और भगवान चंद्र
दांतों में वायु और जिह्वा पर वरुण भगवान
गाय माता के स्वर में सरस्वती माता
गलावलंब पर रक्षकगण
साध्य देव हृदय में
जांघो में धर्म भगवान
खुरों की फांक में गंधर्व, कोरों पर पन्नाग, बगलों में अप्सरायें
पीठ पर ११ रुद्र और यम, घाटी में अष्ट वसु
नाभि संधि मध्य पितृदेव, पेट के क्षेत्र में १२ आदित्य
पूंछ पर सोम, केशों पर सूर्यकिरणें, मूत्र में गंगा माता,माता लक्ष्मी-यमुना गोबर में
दूध में सरस्वती, दही में नर्मदा, घृत में अग्नि
३३ करोड़ देव केशों में
पेट में पृथ्वी, स्तनों में सागर, पूरे शरीर में कामधेनु
भाँहों कि जड़ में त्रिगुण, केशों के कूपों में ऋषिगण, श्वास में सब पवित्र झीलें
ओष्ठों पर चंडिका, त्वचा पर प्रजापति ब्रह्मा
नथुनों पर सुगंधित पुष्प
कांख में साध्यदेव
मुख पर वेदों के ६ भाग, चरणों में चार वेद, खुरों के ऊपर यम, कुबेर और गरुड़ दक्षिण में, यक्ष वाम भाग पार्श्व में, अंदर गंधर्व
पांवों के अग्र में खेचर, आंतो में नारायण, अस्थियों में पर्वत, चरणों में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष, ‘हुँ’ की ध्वनि में चारों वेद
क्या आप जानते हैं ऐसी गो सेवा करने के क्या-क्या लाभ हैं-
1. भगवत्प्रेम की प्राप्ति होती है।
2. जन्म-मरण से मुक्ति मिलती है।
3. संतोष मिलता है।
4. धन में वृद्धि होती है।
5. अथाह पुण्य की प्राप्ति होती है।
6. संतान की प्राप्ति होती है।
7. दु:ख दर्द दूर होते हैं।
8. ताप-संताप दूर होते हैं।
9. हृदय प्रफुलिलत होता है।
10. मन को शान्ति मिलती है।
11. स्वास्थ्य लाभ होता है।
12. तृप्ति का अनुभव होता है।
13. मनुष्य जन्म सफल होता है।
14. परिवार को सुख मिलता है।
15. ग्रह-नक्षत्र अनुकूल हो जाते हैं।
16. अश्वमेघ यज्ञ का फल मिलता है।
17. गाय माता सुखी होती है।
18. ईश्वर व संतों की प्रसन्नता प्राप्त होती है।
वैज्ञानिक महत्त्व –
गाय माता एकमात्र ऐसी प्राणी है, जो ऑक्सीजन ग्रहण करती है और ऑक्सीजन ही छोड़ती है।
गाय माता के मूत्र में पोटेशियम, सोडियम, नाइट्रोजन, फास्फेट, यूरिया, यूरिक एसिड होता है, दूध देते समय गाय के मूत्र में लेक्टोज की वृद्धि होती है। जो हृदय रोगों के लिए लाभकारी है।
गाय माता का दूध फैट रहित परंतु शक्तिशाली होता है उसे पीने से मोटापा नहीं बढ़ता तथा स्त्रियों के प्रदर रोग आदि में लाभ होता है। गाय के गोबर के कंडे से धुआं करने पर कीटाणु, मच्छर आदि भाग जाते हैं तथा दुर्गंध का नाश होता है।
गाय माता के समीप जाने से ही संक्रामक रोग कफ सर्दी, खांसी, जुकाम का नाश हो जाता है। गौमूत्र का एक पाव रोज़ सुबह ख़ाली पेट सेवन करने से कैंसर जैसा रोग भी नष्ट हो जाता है।
गाय माता के सींग गाय के रक्षा कवच होते हैं। गाय को इसके द्वारा सीधे तौर पर प्राकृतिक ऊर्जा मिलती है। यह एक प्रकार से गाय को ईश्वर द्वारा प्रदत्त एंटीना उपकरण है। गाय की मृत्यु के 45 साल बाद तक भी यह सुरक्षित बने रहते हैं। गाय माता की मृत्यु के बाद उसके सींग का उपयोग श्रेठ गुणवत्ता की खाद बनाने के लिए प्राचीन समय से होता आ रहा है।
गाय माता के गोबर में विटामिन बी-12 प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। यह रेडियोधर्मिता को भी सोख लेता है।
कृषि में गाय माता के गोबर की खाद्य, औषधि और उपयोग से पर्यावरण में काफ़ी सुधार होता है । जुताई करते समय गिरने वाले गोबर और गौमूत्र से भूमि में स्वतः खाद डलती जाती है। प्रकृति के 99% कीट प्रणाली के लिये लाभ दायक है, गौमूत्र या खमीर हुए छाछ से बने कीटनाशक इन सहायक कीटों को प्रभावित नहीं करते, एक गाय का गोबर 7 एकड़ भूमि को खाद और मूत्र 100 एकड़ भूमि की फसल को कीटों से बचा सकता है।
हिंदुओं के हर धार्मिक कार्यों में सर्वप्रथम पूज्य गणेश उनकी माता पार्वती को गाय माता के गोबर से बने पूजा स्थल में रखा जाता है।
गाय माता की उपस्थिति का पर्यावरण के लिए एक महत्त्वपूर्ण योगदान है, प्राचीन ग्रंथ बताते हैं कि गाय माता की पीठ पर के सूर्यकेतु स्नायु हानिकारक विकिरण को रोक कर वातावरण को स्वच्छ बनाते हैं।
चाय, कॉफ़ी जैसे लोकप्रिय पेय पदार्थों में दूध एक जरूरी पदार्थ है, भारत में ऐसी अनेक मिठाइयाँ जो गौ दूध पर आधारित होती है। दही, मक्खन और घी भारतीय भोजन के आवश्यक अंग हैं। छाछ न केवल प्यास बुझाती हैं बल्की बहुत से प्रचलित व्यंजनों का आधार है।
हमारे धर्म ग्रंथो में, गाय माता को लक्ष्मी जी का स्वरुप माना गया है। इसलिए कहा जाता है कि जहां गाय माता का आदर सम्मान होता है वहां लक्ष्मी जी की कृपा बनी रहती है। किसी जरुरी काम से जाते समय अगर गाय माता की आवाज सुनाई पड़े तो शुभ होता है। पद्मपुराण और कूर्मपुराण में कहा गया है कि गाय माता को कभी भी लांघकर नहीं जाना चाहिए इससे बनता काम भी बिगड़ जाता है। गाय माता के पैर की धूलि को घर के चारों ओर छिड़काव करने से घर में नकारात्मक उर्जा का संचार नहीं होता है। इससे धन समृद्घि बढ़ती है। गाय माता को प्रेम और आदर से उनका पेट भरने से और उनके रहने की अच्छी व्यवस्था करने से, सब सुख प्राप्त होता है, धीरे – धीरे सारी बीमारियों का नाश होता है और सारी मनोकामनाए निश्चित ही धीरे – धीरे पूर्ण होती है।
छत्तीसगढ़ में एक व्यक्ति ने ऐसी लालटेन बनाई है, जिसकी बैट्री को बिजली से चार्ज करने की जरूरत भी नहीं पड़ती है। बैट्री में एसिड की जगह गोमूत्र का इस्तेमाल होता है। बैट्री लो होने पर बिजली से चार्ज करने के बजाय गोमूत्र बदलने से ही लालटेन में लगी 12 वोल्ट की बैट्री फुल चार्ज हो जाएगी और लालटेन जलने लगेगा। ग्रामीणों के लिए बेहद उपयोगी इस लालटेन और बैट्री को ईजाद किया है कामधेनु पंचगव्य एवं अनुसंधान संस्थान अंजोरा के निदेशक डॉ. पी.एल. चौधरी ने। बैट्री की गुणवत्ता पर नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ रायपुर ने भी अपनी मुहर लगा दी है। बताया जाता है कि इस बैट्री में 500 ग्राम गोमूत्र का उपयोग कर 400 घंटे तक तीन वॉट के एलईडी (लेड) बल्ब से भरपूर रोशनी प्राप्त की जा सकती है। बैट्री बनाने वाले चौधरी के इस मॉडल को प्रदेश के मुख्यमंत्री के समक्ष भी प्रदर्शित किया गया है। उन्होंने खुशी जाहिर करते हुए इसे प्रदेश पंचगव्य संस्थान के लिए बड़ी उपलब्धि बताया।डॉ. चौधरी बताते हैं कि इस लालटेन में बैट्री के भीतर डाले जाने वाली एसिड की जगह गोमूत्र डाला गया। इसमें किसी भी प्रकार का कोई केमिकल नहीं मिलाया गया है, न ही बैट्री में कोई बदलाव किया गया है।
इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि बैट्री सिर्फ देसी गाय माता के गोमूत्र से ही चलेगी।
गाय का दूध उत्तम आहार माना गया है। माना जाता है कि मां के दूध के समान गाय का दूध पौष्टिक होता है। इसलिए गाय को माता भी कहा गया है। वैसे तो दूध के फायदे किसी से नहीं छिपे हैं लेकिन देसी गाय माता के दूध का एक फायदा आप अब तक नहीं जानते होंगे। हाल में ताइवान में हुए एक शोध में माना गया है कि गाय माता के दूध के नियमित सेवन से पेट के कैंसर की कोशिकाओं को बढ़ने से रोका जा सकता है। शोधकर्ताओं ने गाय माता के दूध में मौजूद लैक्टोफेरिसिन बी25 (लेफसिन बी25) की खोज की है जो गैस्ट्रिक कैंसर की कोशिकाओं को रोकने में मदद करती हैं।
शोधकर्ता वे-जुंग चेन के अनुसार, ”दुनिया भर में, खासतौर पर एशियाई देशों में गैस्ट्रिक कैंसर से मरने वाले रोगियों की संख्या बढ़ती जा रही है। इस दिशा में हमारी यह खोज एक बड़ी उपलब्धि है।” इतना ही नहीं, गाय के दूध में मौजूद यह तत्व शरीर में कैंसर या ट्यूमर बढ़ाने के लिए जिम्मेदार प्रोटीन बेसलिन 1 को रोकने में भी काफी अहम हो सकता है।
किसी भी धार्मिक कार्यों में देसी गाय माता के गोबर से स्थान को पवित्र किया जाता है। गाय माता के गोबर से बने उपले से हवन कुण्ड की अग्नि जलाई जाती है। आज भी गांवों में महिलाएं सुबह उठकर गोबर से घर के मुख्य द्वार को लिपती हैं। प्राचीन काल में मिट्टी और गाय का गोबर शरीर पर मलकर साधु संत स्नान भी किया करते थे। शास्त्रों के अनुसार गोमूत्र में गांगा मैया का वास है। इसलिए आयुर्वेद में चिकित्सा के लिए गोमूत्र पीने की भी सलाह दी जाती है। वैज्ञानिक दृष्टि से भी गोबर को चर्म रोग एवं गोमूत्र को कई रोगों में फायदेमंद बताया गया है।
नवग्रहों सूर्य, चंद्रमा, मंगल, राहु, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, केतु के साथ साथ वरूण, वायु आदि देवताओं को यज्ञ में दी हुई प्रत्येक आहुति गाय माता के घी से देने की परंपरा है, जिससे सूर्य की किरणों को विशेष ऊर्जा मिलती है। यही विशेष ऊर्जा वर्षा का कारण बनती है, और वर्षा से ही अन्न, पेड़-पौधों आदि को जीवन प्राप्त होता है।
गाय माता की छाया भी बेहद शुभप्रद मानी गयी है। गाय माता के दर्शन मात्र से ही यात्रा की सफलता स्वतः सिद्ध हो जाती है। दूध पिलाती गाय माता का दर्शन हो जाए तो यह बेहद शुभ माना जाता है।
गाय को शास्त्रों में माता का स्थान दिया गया है। गाय माता की सेवा करने के कारण भगवान श्री कृष्ण, गोपाल कहे जाते हैं। शास्त्रों में तो यह भी कहा गया है कि शिवलोक, बैकुण्ठ लोक, ब्रह्मलोक, देवलोक, पितृलोक की भांति गोलोक भी है। गोलोक के स्वामी भगवान श्री कृष्ण हैं। गाय माता का इतना महत्व यूं ही नहीं है।
गाय के सींग का आकार सामान्यतः पिरामिड जैसा होता है। यह एक शक्तिशाली एंटीना के रूप में काम करता है। सींगों की मदद से गाय आकाशीय ऊर्जाओं को शरीर में संचित कर लेती है। यह उर्जा हमें गोमूत्र, दूध और गोबर के द्वारा मिलती है।
देशी गाय माता के पीठ पर कूबड़ निकला होता है। यह सूर्य की उर्जा और कई आकाशीय तत्वों को शरीर में ग्रहण करने का काम करता है। यह उर्जा हमें दूध के माध्यम से प्राप्त होता है।
आजकल विदेशी नस्ल की गाय पालने का चलन बढ़ गया है। जिनके ना तो कूबड़ होते हैं और सींग भी बढ़ने नहीं दिए जाते हैं। यही कारण है कि जिन्होंने देशी गाय माता के दूध का स्वाद और फायदा जाना है, उन्हें विदेशी नस्ल की गायों के दूध में वह स्वाद नहीं मिलता है।
भारत में गाय माता की कई नस्लें पाई जाती हैं जिसमे रेड सिन्धी , साहिवाल , गिर, देवनी, थारपारकर आदि नस्लें भारत में दुधारू गायों की प्रमुख नस्लें हैं ।
ब्रज संस्कृति में गोपाष्टमी एक प्रमुख पर्व है। गाय माताओ की रक्षा करने के कारण भगवान श्रीकृष्ण जी का अतिप्रिय नाम ‘गोविन्द’ पड़ा। कार्तिक, शुक्ल पक्ष, प्रतिपदा से सप्तमी तक गो-गोप-गोपियों की रक्षा के लिए गोवर्धन पर्वत को धारण किया था। 8वें दिन इन्द्र अहंकाररहित होकर भगवान की शरण में आये। कामधेनु ने श्रीकृष्ण का अभिषेक किया और उसी दिन से इनका नाम गोविन्द पड़ा।
इसी समय से अष्टमी को गोपोष्टमी का पर्व मनाया जाने लगा, जो कि अब तक चला आ रहा है। इस दिन प्रात: काल गायों को स्नान कराएँ तथा गंध-धूप-पुष्प आदि से पूजा करें और अनेक प्रकार के वस्त्रालंकारों से अलंकृत करके ग्वालों का पूजन करें, गायों को गो-ग्रास देकर उनकी प्रदक्षिणा करें और थोड़ी दूर तक उनके साथ में जाएँ तो सभी प्रकार की अभीष्ट सिद्धि होती हैं।
गोपाष्टमी को सांयकाल गायें चरकर जब वापस आयें तो उस समय भी उनका अभिवादन और पंचोपचार पूजन करके कुछ भोजन कराएँ और उनकी चरण रज को माथे पर धारण करें। उससे सौभाग्य की वृद्धि होती है। भारतवर्ष के प्राय: सभी भागों में गोपाष्टमी का उत्सव बड़े ही उल्लास से मनाया जाता है। विशेषकर गोशालाओं तथा पिंजरा पोलो के लिए यह बड़े ही महत्त्व का उत्सव है।
इस दिन गोशालाओं की संस्था को कुछ दान देना चाहिए। इस प्रकार से सारा दिन गो-चर्चा में ही लगना चाहिए। ऐसा करने से ही गो वंश की सच्ची उन्नति हो सकेगी, जिस पर हमारी उन्नति सोलह आने निर्भर है। गाय की रक्षा को हमारी रक्षा समझना चाहिए। इस दिन गायों को नहलाकर नाना प्रकार से सजाया जाता है और मेंहदी के थापे तथा हल्दी रोली से पूजन कर उन्हें विभिन्न भोजन कराये जाते हैं।
गाय माता सदैव कल्याणकारिणी तथा पुरुषार्थ-चतुष्टय की सिद्धि प्रदान करने वाली है। मानव जाति की समृद्धि गाय माता की समृद्धि के साथ जुड़ी हुई है। गोपाष्टमी के पावन पर्व पर लोगों गौ माता का पूजन-परिक्रमा कर विश्व की मंगल कामना की प्रार्थना करते हैं।
गाय माता आधिदैविक, अधिदैहिक एवं आधिभौतिक तीनों तापों का नाश करने में सक्षम है। इसी कारण अमृततुल्य दूध, दही, घी, गोमूत्र, गोमय तथा गोरोचना-जैसी अमूल्य वस्तुएं प्रदान करने वाली गाय माता को शास्त्रों में सर्वसुखप्रदा कहा गया है।
गाय माता ऊर्जा का स्रोत है। गांव की अर्थव्यवस्था में गाय माता की महत्वपूर्ण भूमिका है। विज्ञान और कंप्यूटर के युग में भी गौमाता की महत्ता यथावत बनी हुई है।
एक गौमाता एक पूरे परिवार का भरणपोषण कर सकती है। बीमारियों के इलाज के लिए गौमूत्र से विभिन्न प्रकार की औषधियों का निर्माण हो रहा है।
सायंकाल में गौ माता को प्रणाम करके मंत्रोच्चार सहित पूजा कर गौधूल का तिलक लगाने से सौभाग्य की वृद्धि होती है।
गौ माता का हमारे उत्तम स्वास्थ्य से गहरा संबंध है। गोमूत्र मनुष्य जाति तथा वनस्पति-जगत को प्राप्त होने वाला दुर्लभ वरदान है। यह धर्मानुमोदित, प्राकृतिक, सहज प्राप्य, हानिरहित, कल्याणकारी रसायन है। स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य रक्षण तथा विकार-प्रशसन हेतु आयुर्वेद में गोमूत्र को दिव्यौषधि माना गया है और ऐसी मान्यता है कि देशी गाय माता के गोमूत्र से दुनिया की हर बीमारी का नाश निश्चित ही सम्भव है।
[नोट – यहाँ पर दिए गए सारे फायदे सिर्फ और सिर्फ भारतीय देशी गाय माता से प्राप्त होने वाले सभी अमृत तुल्य वस्तुओं (जैसे- गोबर, मूत्र, दूध, दही, छाछ, मक्खन आदि) के हैं, ना कि भैंस के या वैज्ञानिकों द्वारा सूअर के जीन्स से तैयार जर्सी गाय से प्राप्त होने वाली वस्तुओं के]
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