क्या पुरुष और प्रकृति के रौद्र रूप से कोई संतान नहीं पैदा हुई ?
इस पहलू को जानकर ही समझ में आता है कि ईश्वर ना कभी खुश होते हैं, ना ही कभी नाराज होते हैं !
जैसा कि हमारे शास्त्रों में बार बार कहा गया है कि ईश्वर मुख्य रूप से निराकार है और अलग अलग विशेष कार्यों के प्रतिपादन के लिए अलग अलग साकार अवतार ग्रहण करते हैं !
कल्प भेद की इन्ही अवतारों और उनके लीला चरित्र से सम्बंधित कुछ जानकारियाँ हमें उच्च कोटि के दिव्य दृष्टिधारी संत समाज से प्राप्त हुई जिसका निम्नवत वर्णन है –
एक बार प्रकृति ने लीला करते हुए अपने पुरुष अर्थात भगवान् शिव से कहा कि मै स्वयं ही सृष्टि का संचालन कर सकती हूँ !
परम पुरुष ने कहा, ठीक है जाओ कर लो !
तब प्रकृति ने अपने प्रचंड तेज से एक शक्तिपुंज का निर्माण किया जो तीनों काम करने में सक्षम था, उससे प्रकृति ने कहा कि, जाओ सृष्टि का संचालन करो !
तब उन शक्तिपुंज ने सृष्टि का संचालन करना शुरू तो किया लेकिन वे कोई भी कार्य अपने सोच से नहीं कर पा रहे थे, उन्हें जैसा आदेश माँ पार्वती से मिल रहा था, सिर्फ वैसा ही कर पा रहे थे !
तब प्रकृति ने माना कि, सृष्टि के सुचारू रूप से संचालन के लिए प्रकृति को पुरुष की उतनी ही जरूरत है जितना पुरुष को प्रकृति की !
तब प्राकृति के कहने पर पुरुष अर्थात शिवजी ने उन शक्तिपुंज को सर्वसमर्थ बनाने के लिए बहुत से परिवर्तन किये और उन्ही परिवर्तनों में से एक था कि उनमे मानव सिर हटाकर हाथी का सिर लगाना क्योंकि हाथी का दिमाग मानवों से काफी बड़ा होता है | इस तरह पुरुष और प्रकृति ने मिल कर जिस शक्तिपुंज का निर्माण किया उनका नाम श्री गणेश रखा गया, जिनमें प्रकृति और पुरुष की सम्मिलित शक्ति से सब कुछ सम्भव करने का महाबल उत्पन्न हुआ !
ईश्वर का रूद्र अवतार विशुद्ध नाश का रूप है, ईश्वर का विष्णु स्वरुप केवल वृद्धि प्रदान करने वाला है और ईश्वर का ब्रह्मा स्वरुप केवल रचना के लिए है !
रूद्र और प्रकृति के सौम्य स्वरुप अर्थात शिव और पार्वती ने खुद से एक ऐसी संतान पैदा की जो सिर्फ और सिर्फ कल्याण करने के लिए बनें हैं और जिन्हें दुनिया श्री स्कन्द या कार्तिकेय कहती है !
अब इसमें एक सबसे बड़ी रोचक बात यह है कि क्या पुरुष और प्रकृति के रौद्र रूप से कोई संतान नहीं पैदा हुई ?
यही एक ऐसा पहलू है जिसकी जानकारी इतिहास कि किसी उपलब्ध पुस्तक से नहीं, सिर्फ उच्च कोटि के दिव्य दृष्टि प्राप्त संतों से मिलती है !
ये संत बताते हैं कि सर्वविनाश स्वरुप रूद्र ने प्रलय स्वरुपा काली से संताने पैदा की, लेकिन उन संतानों के पैदा होने के थोड़े ही देर बाद, उनके माता पिता को अपनी संतानों को खुद ही अपने शरीर में वापस समा लेना पड़ा !
इसका कारण यही है कि स्वयं रूद्र और काली से उत्पन संतानों का तेज इतना प्रचण्ड विकट, भयंकर, असहनीय था कि पूरा ब्रह्मांड भय से थर थर कांपने लगा था !
तो यहाँ मुख्य समझने वाली बात यही है कि जिस महाविनाश (जैसे भूकम्प, सामूहिक मृत्यु आदि) को देखकर हमारे भय से आंसू निकलने लगते हैं, वही विनाश करना ईश्वर का रोज का सामान्य काम होता है और जिस कृपा (जैसे आकस्मिक अपार धन या सम्मान की प्राप्ती आदि) को देखकर हम ख़ुशी से निहाल हो जाते हैं, वो भी ईश्वर के लिए रोज का सामान्य काम होता है !
अतः ऐसे अविचलित और परम उदासीन ईश्वर को, क्या कोई खुश कर पायेगा और क्या कोई नाराज !
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