जब अन्तहीन परेशानियाँ आदमी को पागल करने लगें
भयंकर ठण्ड पड़े चाहे आतंकवादियों से जान का खतरा, कोई भी बाधा उस भक्त को माँ के पास पहुचने से नहीं रोक सकती जिसे माँ जगदम्बा वैष्णो देवी (Shakti Vaishno devi)ने स्वयं कृपा दान करने के लिए बुलाया हो !
जब संसार के सारे रास्ते बन्द होने लगते हैं तो उस समय परेशान आदमी की स्थिति पागलों जैसी होने लगती है, तो ऐसे में देवी बिना विलम्ब किये अपने भक्त को अपने धाम अर्थात वैष्णों धाम बुलाती है ! थका हारा भक्त जब माँ के सामने पहुँचता है तो माँ की ममता मयी स्नेह के स्पर्श मात्र से ही फफक कर रो पड़ता है !
इस धाम में सारे संकोच लाज शर्म छोड़ कर रोते बिलखते बहुत से भक्त मिल जायेंगे !
हर तरफ से दुखों से घिरा भक्त अपनी माँ से अपना दुखड़ा नहीं रोयेगा तो किससे रोयेगा !
आईये जानते हैं कैसे प्रकट हुई अनन्त ममता मयी माँ वैष्णों देवी !
पूर्व युग में जगत में धर्म की हानि होने और अधर्म की शक्तियों के बढऩे पर भगवान विष्णु की प्रेरणा से आदिशक्ति के सत्व, रज और तम तीनों रूप (श्री महासरस्वती, श्री महालक्ष्मी और श्री महाकाली) आपस में मिलकर एक महा शक्तिमान कन्या के रूप में प्रकट हुये !
जब कन्या के रूप में देवी प्रकट हुई तब उन्होंने अपनी माताओं श्री महालक्ष्मी, श्री महासरस्वती एवं श्री महाकाली से पूछा कि हे माता मेरी उत्पत्ति आपने किस प्रयोजन से किया है ! इस पर देवियों ने कहा कि संसार में धर्म की रक्षा एवं भक्तों के कल्याणार्थ हमने भगवान श्री विष्णु जी की प्रेरणा से तुम्हें उत्पन्न किया है !
माताओं के निर्देश के अनुसार श्री वैष्णो देवी ने रामेश्वरम के पास अति विद्वान् पण्डित श्री रत्नाकर के घर में जन्म लिया ! पण्डित श्री रत्नाकर बहुत ही अच्छे व मीठे स्वभाव के मेहनती व्यक्ति थे ! इन्होने अपनी दिव्य कन्या का नाम त्रिकुटा रखा !
देवी त्रिकुटा जी बाल्यावस्था से ही भगवान विष्णु की भक्ति में लीन रहने लगी तथा इनकी प्रचण्ड भक्ति एवं परम दिव्य तेज को देखकर सभी ऋषि गण आश्चर्य चकित हो गए और समझ गये की यह कन्या कोई साधारण मानव कन्या नहीं, बल्कि स्वयं जगदम्बा देवी की अवतार ही है !
जब देवी त्रिकुटा जी नौ वर्ष की हुई तब उन्हें ज्ञात हुआ कि इस समय पृथ्वी पर भगवान श्री विष्णु जी ने श्री रामचन्द्रजी के रूप में अवतार लिया है, तब देवी त्रिकुटा जी उन्हें पति रूप में पाने के लिए अपने पिता से आज्ञा लेकर वर्तमान रामेश्वरम् के पास ही अति कठिन तपस्या करने लगी ! रावण समेत असंख्य महाबली राक्षसों के नाश के लिए निकले, भगवान श्री राम जी रामेश्वरम् के पास जब पहुंचे, तब देवी त्रिकुटा जी को भगवान श्री रामचन्द्र जी के दर्शन हुए !
श्री त्रिकुटा जी ने भगवान श्री राम से विवाह की इच्छा जताई तो श्री राम जी ने कहा कि इस अवतार में तो उन्होंने माँ सीता जी को एक पत्नी व्रत का वचन दिया है अत: वह दूसरा विवाह नहीं कर सकते !
पर श्री त्रिकुटा जी के अति कठिन तप का सम्मान करते हुए श्री राम जी ने उन्हें आश्वासन दिया कि जब वे कलियुग के अन्त में कल्कि अवतार लेंगे तो उस समय वे उनसे अवश्य विवाह करेंगे !
इस अवधि के बीच श्री राम जी ने देवी त्रिकुटा जी से कहा की त्रिकुट पर्वत की गुफा में त्रिशक्ति के पिण्ड रूप में निवास करें और भक्तगण की मनोकामना पूर्ण कर उनके कष्ट हरें !
भगवान श्री रामजी के आदेशानुसार देवी त्रिकुटा जी, त्रिकुट पर्वत पर गुफा (जिसे भक्तगण वैष्णों देवी की गुफा के नाम से पुकारते हैं) में साक्षात् प्रत्यक्ष निवास करती हैं और इनके दर्शन का परम सौभाग्य उन्ही भक्तों को मिलता है जिन्हें देवी खुद बुलाती हैं !
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