(भाग – 2) जानिये कैसे, आँखों से गायब होती रौशनी अचानक वापस लौटी (श्री कृष्ण चन्द्र पाण्डेय जी आत्मकथा)
आजकल लोगों को आँखों से सम्बन्धित तरह – तरह की बीमारियाँ बहुत हो रही हैं और जिनके प्रमुख कारण हैं- डायबिटिज, किसी तरह का नशा करना, केमिकल व प्रिजर्वेटिव युक्त खाद्य पदार्थों को खाना या मेकअप के तौर पर इस्तेमाल करना, मोबाइल – कंप्यूटर – टी वी आदि की फ्लूरेसेंट स्क्रीन (चमकदार सतह; fluorescent screen) को कई – कई घंटे रोज – रोज देखना, सुबह देर तक या शाम को सोना, रात देर तक जागना, आँखों की रोज पानी से सफाई ना करना, सिर या आँखों में चोट लगना, मेंटल स्ट्रेस, अनुवांशिक कारण आदि !
आज भी आँखों की कई बीमारियाँ ऐसी हैं जिनका मॉडर्न मेडिकल साइंस में कोई भी इलाज नहीं हैं ! इसलिए ऐसी बीमारियों के इलाज के लिए आप चाहे तो अमेरिका व यूरोप के बड़े से बड़े हॉस्पिटल्स में जाकर करोड़ो रुपये खर्च भी कर लें, तब भी कुछ विशेष फायदा नही मिलने वाला है !
आयुर्वेद की जड़ीबूटी चिकित्सा व योगासन चिकित्सा से भी हर रोगों का निदान संभव है लेकिन जड़ीबूटी चिकित्सा के सही जानकार (अर्थात चिकित्सक) व जड़ीबूटियों का रोज ताज़ी अवस्था में मिल पाना, सभी रोगियों के लिए संभव नहीं हो पाता है इसलिए भी कई रोगियों को आयुर्वेद से वांछित त्वरित लाभ नहीं मिल पाता है !
योगासन चिकित्सा में लाभ पाने के लिए जिस स्तर के धैर्य व आहार विहार के परहेज की आवश्यकता होती है उसे निभा पाना भी सबके बस की बात नहीं होती है !
आईये आज हम बात करते हैं, रूद्र के अंश गृहस्थ अवतार के रूप में जन्म लेने वाले परम आदरणीय श्री कृष्ण चन्द्र पाण्डेय जी के जीवन में घटी कई दुर्लभ घटनाओं में से, सिर्फ उन घटनाओं के बारे में जिनमे उनके द्वारा किये गए पवित्र आध्यात्मिक प्रयासों से रोगियों की आँखों की कठिन बीमारियाँ ठीक हुई (श्री पाण्डेय जी का संक्षिप्त जीवन परिचय जानने के लिए कृपया उनसे सम्बन्धित पूर्व लेख को पढ़ें जिसका लिंक इस लेख के नीचे दिया गया है) !
परम आदरणीय श्री कृष्ण चन्द्र पाण्डेय जी के एक परिचित व्यक्ति थे जो कि पूर्वांचल के एक जिले के एक सम्मानित शख्सियत थे ! उन परिचित व्यक्ति के साथ एक बार, एक दुखद हादसा हुआ जब वो मंच पर खड़े होकर लोगो को सम्बोधित कर रहे थे !
प्राप्त जानकारी अनुसार, वो परिचित व्यक्ति जब स्टेज पर खड़े होकर माइक पर कुछ बोल रहे थे, तभी शायद माइक में बिजली का करंट उतर आया जिसकी वजह से माइक से बहुत तेज बिजली की चमक निकली ! उस समय दुर्भाग्यवश उन परिचित व्यक्ति की आँखे माइक के पास ही थी, जिसकी वजह से उस बिजली की तेज चमक को उनकी आँखों ने एकदम पास से देखा !
इस बिजली की चमक को पास से देखने के बाद से ही, अचानक से उनकी आँखों से बहुत कम दिखाई देने लगा ! उन्हें लगा कि शायद यह समस्या अपने आप कुछ देर में ठीक हो जायेगी !
लेकिन जब काफी समय बीत गया और किसी भी तरह से आराम ना मिला तो उन्हें काफी चिंता हुई ! उन्हें वास्तव में इतना कम दिखाई दे रहा था कि उन्हें नित्य कर्म करने के लिए बाथरूम वगैरह जाने में भी काफी दिक्कत हो रही थी !
किसी भी तरह से आँखों की समस्या ठीक ना होने पर, अंततः उन परिचित व्यक्ति ने सहारा लिया अपने गुरु स्वरुप श्री कृष्ण चन्द्र पाण्डेय जी का !
उन परिचित व्यक्ति ने अपनी सारी व्यथा श्री कृष्ण चन्द्र पाण्डेय जी को बताई तो पाण्डेय जी अपने परम परोपकारी स्वभाववश तुरंत तैयार हो गए उनकी मदद करने के लिए !
श्री पाण्डेय जी के अनुसार, दुनिया के सबसे बड़े वैज्ञानिकों अर्थात ऋषि मुनियों ने परम आदरणीय हिन्दू धर्म में आँखों का स्वामी, भगवान् सूर्य को बताया है इसलिए भगवान सूर्य को प्रसन्न करके आँखों के सभी रोगों से निश्चित मुक्ति पायी जा सकती है !
वेरी सायिंटीफिक हिन्दू धर्म में भगवान सूर्य को प्रसन्न करने के कई बेहद आसान तरीके दिए हुए हैं, जैसे- सूर्य नमस्कार योगासन करना, रोज सुबह उठकर माता पिता का पैर छूना (ज्योतिष शास्त्र में सूर्य को पिता का कारक बोला जाता है), अपने से सबऑर्डिनेट एम्प्ल्योईस (अधीनस्थ कर्मचारी) की इज्जत करना (क्योकि सूर्य पुत्र शनि, अधीनस्थ कर्मचारियों में वास करते हैं), रोज सुबह सूर्य को जल चढ़ाना, गौ माता की सेवा करना (सिर्फ अकेले गौ माता की बिना किसी स्वार्थ से सेवा करने मात्र से सभी ग्रहों व देवताओं को निश्चित प्रसन्न किया जा सकता हैं), गायत्री मन्त्र या सूर्य भगवान् से सम्बन्धित अन्य मन्त्रों का जप करना आदि !
अपनी आँखों की बिमारी से परेशान होने की वजह से उन परिचित व्यक्ति की स्थिति इस लायक नहीं थी कि वे भगवान सूर्य की प्रसन्नता से सम्बन्धित उपाय ठीक से कर सकें; इसलिए परम परोपकारी श्री कृष्ण चन्द्र पाण्डेय तुरंत तैयार हो गए उन परिचित व्यक्ति की आँखों के लिए, खुद की व्यस्त दिनचर्या में से समय निकाल कर उपाय करने को !
उन परिचित व्यक्ति की आँखों को ठीक करने के लिए, श्री पाण्डेय जी ने खुद रोज सुबह नहाने के बाद भगवान सूर्य के बेहद प्रसिद्ध मन्त्र- “ ॐ घृणि: सूर्याय नमः ” का 108 बार पूजा में जप करना शुरू किया और साथ ही साथ वो पूजा के बाद भगवान सूर्य को जल भी अर्पित करते थे !
पाण्डेय जी को इस तरह भगवान सूर्य की पूजा करते हुए अभी शायद 3 – 4 दिन ही बीते थे कि उन परिचित व्यक्ति के साथ एक आश्चर्यजनक घटना घटी !
वे परिचित व्यक्ति सुबह – सुबह बाथरूम से किसी तरह नहा धोकर बाहर निकल रहे थे तभी उन्होंने देखा कि हवा में उड़ती हुई, दीपक के लौ के समान दो ज्योति पुंज उनकी तरफ आ रहें हैं ! इससे पहले कि वे कुछ समझ पाते, वे लौ पुंज तेजी से उनकी दोनों आँखों में समा गए !
उन लौ पुंज के आँखों में समाते ही उन्हें तुंरत पहले जैसा सब कुछ साफ़ – साफ़ दिखाई देने लगा ! उन परिचित व्यक्ति की ख़ुशी का ठीकाना ना रहा ! उन्होंने तुरंत पाण्डेय जी से सम्पर्क करके उन्हें बारम्बार बहुत – बहुत धन्यवाद दिया !
उन परिचित व्यक्ति ने पाण्डेय जी से पूछा कि आपने जिस तरह से भगवान् सूर्य की पूजा मेरे लिए की थी उस तरह करके, क्या कोई भी आदमी अपने आँखों की, किसी भी तरह की समस्या को ठीक कर सकता है ? और क्या इस तरह पूजा करने से सभी को हवा में उड़ती हुई दिव्य ज्योति पुंज के दर्शन होते हैं ?
इस प्रश्न के उत्तर में अति ज्ञानी श्री पाण्डेय जी ने यही बताया था कि, हाँ बिल्कुल इस तरह भगवान सूर्य की आराधना करने से आँखों के सभी रोगों व तकलीफों (चाहे वे किसी भी कारण से पैदा हुई हों) का निश्चित नाश किया जा सकता है लेकिन कौन सी आँख की बिमारी कितने दिनों में ठीक होगी यह निर्भर करता है उस बिमारी के पीछे छिपे असली कारण यानी प्रारब्ध पर !
यानी प्रारब्ध अगर ज्यादा कठिन है तो बिमारी ठीक होने में ज्यादा समय लग सकता है और प्रारब्ध अगर सामान्य है तो बिमारी जल्दी ठीक हो सकती है !
श्री पाण्डेय जी के अनुसार दुनिया की कोई ऐसी आँखों की बिमारी नही है जो भगवान सूर्य के ऊपर दिए गए मन्त्र का जप करके, जल अर्पित करने से ठीक नही हो सकती ! लेकिन यह मन्त्र संस्कृत में है इसलिए इसका जप करते समय शरीर की शुद्धता, उच्चारण की शुद्धता और खान पान की शुद्धता (मतलब मांस – मदिरा, अंडा आदि को ना खाना) का भी ध्यान रखना चाहिए !
जहाँ तक बात दिव्य लौ पुंज के दर्शन की है तो पाण्डेय जी ने इसके उत्त्तर में उन परिचित व्यक्ति से यही बताया था कि, इस तरह भगवान सूर्य की पूजा करने वाले सभी की आँखे तो निश्चित ठीक होंगी, लेकिन ये ज़रूरी नही है कि सभी को इस तरह का कोई दिव्य अनुभव हो ! किसी तरह का दिव्य अनुभव होना या ना होना, पूरी तरह से भगवान सूर्य की इच्छा पर निर्भर होता है ! इसलिए बिना किसी दिव्य अनुभव की इच्छा लिए हुए, सिर्फ अपने आँखों की बिमारी के नाश के लिए भगवान् सूर्य की ऊपर बताये गए तरीके से आराधना करने पर सफलता निश्चित मिलती है !
अगर किसी को अपनी बिल्डिंग के फ्लैट से भगवान सूर्य के दर्शन ना होते हैं तो वह भगवान सूर्य का मानसिक ध्यान करके भी जल को किसी गमले में अर्पित कर सकता है ! यहाँ पर यह भी समझने की जरूरत है कि भगवान सूर्य के मन्त्र का जप करते समय, खड़े रहने की जरूरत नही है ! जप को किसी भी साफ़ सूती चद्दर या उनी कम्बल पर बैठकर कर सकते हैं ! अगर आप बहुत वृद्ध, बीमार ना हो तो आपको जल खड़े होकर ही अर्पित करना चाहिए ! अगर किसी कारणवश नहा नही सकते तो बस एक बार प्रेम से “जय माँ गंगा” बोलने से शरीर गंगा स्नान के समान पवित्र हो जाता है !
यह आध्यात्मिक ट्रीटमेंट अपने आप में एक पूर्ण ट्रीटमेंट है इसलिए आपको इसके साथ किसी अन्य तरह की दवा खाने की जरूरत नहीं है ! लेकिन अगर आप पहले से कोई एलोपैथिक दवा खा रहें हों तो उसे उसी तरह खाते रहें और जैसे – जैसे आपको आँखों की तकलीफ में इस आध्यात्मिक ट्रीटमेंट से मिलने वाला लाभ बढ़ता जाए, वैसे – वैसे आप एलोपैथिक दवाओं की मात्रा चिकित्सक की सलाह से धीरे – धीरे कम कर सकते हैं !
आँखों की बिमारी के ठीक होने से सम्बन्धित एक अन्य दृष्टांत इस प्रकार है ! पाण्डेय जी के एक अन्य परिचित (जो पूर्वांचल के एक दूसरे शहर के गणमान्य व्यक्ति थे) कि आँखे एक बार अत्यधिक तनाव की वजह से काफी लाल पड़ गयी थी ! मानो उनकी आँखों में खून उतर आया हो ! उन्होंने अपनी इस समस्या के लिए कई तरह की दवायें खायी और आँखों में लगाई भी लेकिन उन्हें कुछ भी लाभ नहीं मिला !
अंततः उन्हें भी किसी माध्यम से पाण्डेय जी द्वारा प्रदत्त भगवान् सूर्य की आराधना करने का तरीका पता चला तो उन्होंने भी प्रतिदिन “ ॐ घृणि: सूर्याय नमः ” का 108 बार पूजा में जप करना शुरू किया और साथ ही साथ वो पूजा के बाद भगवान सूर्य को जल भी अर्पित करते थे !
इस तरह 4 से 5 दिनों तक करने मात्र से ही उनकी आँखों की लालिमा ऐसी गायब हुई कि जैसे उन्हें वह बिमारी कभी थी ही नहीं ! ऐसे बहुत से उदाहरण है जिन्होंने इस तरीके को अपनाकर अपनी कठिन आँखों की बिमारी में आश्चर्यजनक रूप से लाभ पाया है !
इसलिए परम आदरणीय पाण्डेय जी के अनुसार वे सभी भुक्तभोगी जो अपनी आँखों की किसी भी लाइलाज बिमारी का इलाज करवाते – करवाते थक गएँ हों, उन्हें एक बार तो इस मुफ्त के इलाज को भी अवश्य आजमाना चाहिए ! और अगर आँखों की कोई बिमारी नही है तो भी रोज मात्र 12 बार इस मन्त्र को जपकर भगवान सूर्य को जल देने से आँखों व दिमाग सम्बंधित कोई बिमारी तब तक नही होने पाती है जब तक कि कोई बड़ा बदपरहेज ना किया जाए (दिमाग स्वस्थ रहने पर शरीर के अन्य अंगो में भी बिमारी जल्दी नहीं होने पाती है क्योकि आधुनिक रिसर्च से भी साबित हो चुका है कि शरीर की सभी बीमारियों को ठीक करने की कंट्रोलर कीज यानी नियंत्रक चाभियाँ मानव के अचेतन मन में ही कहीं छिपी हुई होती हैं) !
वास्तव में देखा जाए तो परम आदरणीय श्री कृष्ण चन्द्र पाण्डेय जी जैसे व्यक्ति ही एक सच्चे अवतारी पुरुष होते हैं क्योकि जब तक वे इस धरती लोक पर रहते हैं तब तक उनसे जो कुछ भी बन पड़ता है वो दूसरों की भलाई के लिए जरूर करते हैं और उनके जाने के बाद उनसे जुड़ी ज्ञानवर्धक कथाये भी ना जाने कितने ही परेशान लोगो का भला करती रहती हैं !
धन्य है ऐसे सनातन संतो द्वारा प्रतिपालित सनातन हिन्दू धर्म जिसमे शुरू से ही हर बच्चे को सिखाया जाता है कि सच्चा सुख, सिर्फ दूसरों का दुःख हरने से ही मिलता है !
वास्तव में इस सच्चाई को जानने के बाद भी हममे से बहुत कम ही लोग, सदा दूसरों की भलाई करने वाले वाले सेवा धर्म को निभा पाते हैं क्योकि इस कलियुग में सबसे कठिन धर्म, सेवा धर्म को बताया गया है !
सेवा धर्म को सबसे कठिन इसलिए बताया गया है क्योकि यह भी देखा गया है कि आप जिसका भला करते हैं उससे कुछ देर बाद किसी ना किसी तरह की तकलीफ भी प्राप्त कर सकते हैं ! इसलिए अधिकाँश लोगों की यही राय होती है कि “आज की डेट में किसी का भला करने लायक नही है” !
महायोगी भर्तृहरि ने भी सेवा धर्म के बारे में बताया है कि-
“मौनान्मूकः प्रवचनपटुश्चाटुलो जल्पको वा, धृष्टः पार्श्वे वसति च तदा दूरतश्चाप्रगल्भः !
क्षान्त्या भीरुर्यदि न सहते प्रायशो नाभिजातः, सेवाधर्मः परमगहनो योगिनामप्यगम्यः !!”
मतलब – बिना अपने किसी फायदे के निःस्वार्थ भाव से सबकी सेवा करने वाला आदमी, यदि चुपचाप रहे तो कई बार लोग उसे गूँगा कह सकते है, अच्छा उपदेश देने वाला हो तो कई बार लोग उसे पागल और बकवासी कहते है, पास में रहता है तो धृष्ट कहते है, दूर रहे तो मूर्ख कहते है, क्षमाशील हो तो डरपोक कहते है, असहनशील हो तो निकृष्ट कुल का कहना शुरू कर देते हैं ।
वास्तव में यही होती है सेवा धर्म की “परीक्षा” ! यह परीक्षा कभी ख़त्म नही होती मतलब आप जब तक सेवा धर्म निभाते रहेंगे, तब तक आपकी इस तरह की परीक्षायें होती रह सकती है !
सेवा धर्म की इन्ही कठिन परीक्षाओं से तंग आकर 99.99 % लोग परमार्थ छोड़कर, सिर्फ अपने स्वार्थ पूर्ती में लग जाते हैं ! लेकिन जो असली बाहुबली होते हैं वे लाख तकलीफों को झेलकर भी, विनम्रता पूर्वक अपना सेवा धर्म निभाना कभी नही छोड़ते !
(भाग – 1) रूद्र के अंश गृहस्थ अवतार श्री कृष्ण चन्द्र पाण्डेय जी
(भाग – 5) जब विनम्र स्वभाव ने जीवन रक्षा की (श्री कृष्ण चन्द्र पाण्डेय जी आत्मकथा)
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