पिता हों तो ऐसे
आईये जानते हैं सबसे पहले कि परम आदरणीय हिन्दू धर्म के अनुसार, पिता कहतें किसे हैं–
पिता- ‘पा रक्षणे’ धातु से ‘पिता’ शब्द निष्पन्न होता है अर्थात ‘य: पाति स पिता’ जो रक्षा करता है, वह पिता कहलाता है !
एक अन्य ग्रन्थ में लिखा है- ’पिता पाता वा पालयिता वा’-नि ”पिता-गोपिता”-नि,- अर्थात पालक, पोषक और रक्षक को पिता कहते हैं !
एक अन्य परिभाषानुसार, पांच प्रकार के लोगों को पिता कहा जा सकता है-
जनिता चोपनेता च यस्तु विद्यां प्रयच्छति। अन्नदाता भयत्राता पंचैते पितर: स्मृता:।।
अर्थात- जन्म देने वाला, यज्ञोपवीत आदि मुख्य संस्कार कराने वाला, अध्यापक, अन्न देने वाला तथा भय से बचाने वाला – ये पांच पितर, पिता के समान गिने जाते हैं !
पुनरपि च – अन्नदाता भयत्राता, पत्नी तातस्तथैव च। विद्यादाता, जन्मदाता पञ्चैते पितरो नृणाम।।
अर्थात- अन्नदाता, भयत्राता, विद्यादाता, पत्नी का पिता और जन्म देने वाला – ये पांच लोग, मनुष्य के पितर या पिता हैं !
तथा जो पिता के बड़े तथा छोटे भाई हों, वे तथा पिता के भी पिता – ये सब भी पिता के ही तुल्य पूज्यनीय होतें हैं !
कलियुग का असर दिन ब दिन गहराता जा रहा है, जिसकी वजह से माता पिता जैसे भगवान् के समान पूज्यनीय रिश्तों में भी भारी मिलावट देखने को मिल रही है ! बहुत से लापरवाह पिता सर्वत्र देखने को मिल जातें हैं, जिन्होंने अपनी संतानों को उचित संस्कारी परवरिश देने के लिए अपने जीवन में कुछ भी विशेष मेहनत नहीं की होती है, जिसका परिणाम यह देखने को मिलता है कि उनकी संतान गली मुहल्ले में मिलने वाले गंदे, भ्रष्ट, गलत संस्कारों को सीख सीख कर बड़े हो गए और फिर बड़े होकर अपने ऐशो आराम को पूरा करने के लिए हर उन गलत गतिविधियों में लिप्त हो गए जिसका दूरगामी दुष्परिणाम कहीं ना कहीं पूरे समाज को भी भुगतना पड़ता है !
सारांश तौर पर निष्कर्ष यही है कि, संतान को उचित परवरिश देना कोई साइड वर्क या टाइम पास नहीं है बल्कि एक महान पुण्य का कार्य है, और इसे सही तरीके से क्रियान्वित करने पर ईश्वर उसी तरह अति प्रसन्न होतें हैं, जैसे परोपकार व सेवा के दूसरे महान कार्यों को करने पर !
रोज लाखो लोग मरते हैं और जन्म लेते हैं पर एक आदर्श पिता कभी नहीं मरते और ऐसे आदर्श पिता के अत्यंत कृपामयी सानिध्य से नित्य अभिभूत होने वाले संतान बरबस बार बार कह उठते हैं कि “पिता हो तो ऐसे” !
अगर किसी पुत्र को लगता है कि उसके पिता ने उसके प्रति कुछ या कई गलतियाँ की है, तो इसका मतलब यह कत्तई नहीं होता है कि उस पुत्र को अपने पिता का बार बार अपमान करने का अधिकार मिल जाता है | माता पिता से पूर्व में हुई किसी भी गलती की सजा, पुत्र के द्वारा डांटने फटकारने के रूप में देना जघन्य पाप है और इसकी भयंकर सजा पुत्र को आज नहीं तो कल, किसी ना किसी रूप में भुगतनी ही पड़ती है इसलिए माता पिता से सम्बंधित किसी भी समस्या को बहुत प्यार से समझा बुझा कर ही हल करना चाहिए !
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