श्री मालवीय जी जिन्हें शिव का अवतार मानते थे ऐसे दिगम्बर बाबा श्री हरिहर जी
भारत भूमि का पृथ्वी पर अपना एक विशिष्ट स्थान है क्योंकि यहाँ एक से बढ़कर एक दिव्य तीर्थ स्थल हैं (जैसे – हिमालय, वृन्दावन, जगन्नाथपुरी, अयोध्या, विन्ध्याचल, द्वारिका, रामेश्वरम, काशी आदि) और इन सभी तीर्थ स्थलों को और ज्यादा सुशोभित करतें हैं, वहां वास करने वाले दिव्य साधू, सन्यासी, योगी, महात्मा आदि !
इसमें से कुछ परम आदरणीय साधू महात्मा ऐसे होतें है जिन्होंने अपने कई जन्मों की अथक साधना से ना केवल ईश्वर का साक्षात् दर्शन पाने का महासौभाग्य प्राप्त कर लिया होता है बल्कि ईश्वर से वरदान में कोई नश्वर भौतिक सुख (जैसे धन दौलत आदि) मांगने की बजाय ईश्वर का ही शाश्वत सानिध्य मांग लिया होता है जिसकी वजह से ईश्वर उन्हें वरदान देने के तुरंत बाद से ही हर समय उन दिव्य योगियों के पास ही अदृश्य रूप में खुद सदैव वास करतें रहतें हैं जिन्हें सिर्फ वे ईश्वर दर्शन प्राप्त योगी ही देख व महसूस कर पातें हैं !
ऐसे ईश्वर का शाश्वत सानिध्य प्राप्त योगी, वास्तव में अपने इष्ट ईश्वर के ही साक्षात् रूप हो जातें हैं इसलिए ऐसे योगियों का आशीर्वाद और सेवा का फल वैसे ही मिलता है जैसा स्वयं ईश्वर की कृपा प्राप्त होने से होता है !
ऐसे ही ईश्वर दर्शन प्राप्त एक साधू थे बाबा श्री हरिहर जी, जो काशी में अस्सी घाट पर गंगा जी के किनारे हमेशा दिगम्बर रूप में रहा करते थे !
बड़े बड़े राजा, महाराजा, विद्वान, अमीर गरीब सभी उनके दर्शन करने नित्य आया करते थे ! श्री महामना मालवीय जी (madan mohan malviya founder of banaras hindu university) तो उन्हें साक्षात् भगवान् शंकर का ही चलता फिरता रूप मानते थे !
श्री बाबा हरिहर जी ने गंगा जी में खड़े होकर भगवान सूर्य की ओर मुह करके कई वर्षों तक बेहद कठिन तपस्या की थी जिसके फलस्वरूप उन्हें आत्मसाक्षात्कार हुआ था !
श्री बाबा हरिहर जी ने अपने पास आने वाले हजारों भक्तों को, सूर्य की पूजा, भगवान् की तरह करना सिखाया था !
बाबा जी अपने पास आने वाले अधिकाँश भक्तों को कहते थे कि सिर्फ दो बेहद आसान काम करने से तुम्हारा कल्याण निश्चित होगा !
जिसमें से पहला काम है कि रोज नहाने के बाद भगवान सूर्य को प्रेम से जल देकर प्रणाम करना और जल देते समय भगवान सूर्य से प्रार्थना करना कि हे प्रत्यक्ष भगवान कृपया मेरी सभी गलतियों के लिए मुझे माफ़ करते हुए कृपया मेरा कल्याण करिए !
और दूसरा काम है कम से कम 1 माला “राम” नाम का रोज जप करना !
श्री बाबा हरिहर जी का कहना है कि इस उपाय को नियमित करने से व्यक्ति का अन्तःकरण शुद्ध होने लगता है और जैसे जैसे मन जितना ज्यादा पवित्र होने लगता है वैसे वैसे वह व्यक्ति उतना ज्यादा पात्र होने लगता है ईश्वरीय कृपा प्राप्त करने का ! ऐसा शुद्ध हृदय का व्यक्ति अपनी सभी भौतिक व आध्यात्मिक जिम्मेदारियों व कर्तव्यों को बिना आलस्य किये हुए एकदम नियम से और ईमानदारी से निभाने लगता है !
ईश्वरीय कृपा के अंतर्गत केवल सुख ही सुख नहीं मिलते बल्कि कई कठिन कष्ट भी मिलतें हैं लेकिन उन कष्टों के पीछे भी ईश्वर की कोई दूरगामी कृपा छुपी रहती है जो उस कष्ट के बीत जाने के बाद ही पता चल पाती है !
(आजकल के महानगरों में अपार्टमेन्ट में रहने वालों को भगवान् सूर्य को जल देने में समस्या आती है कि उनके द्वारा दिया गया जल बालकनी से देने से नीचे किसी दूसरे व्यक्ति पर गिरने की संभावना बनी रहती है अतः इस समस्या का सबसे बढियां उपाय है कि बालकनी में लोटे से जल देते समय, नीचे गमला रख देना चाहिए जिससे जल गमले में उगे पौधे की सिचाई के काम आ जाए और यदि गमले में तुलसी जी का पौधा लगा हो तो सर्वोत्तम है |
अगर बालकनी से भगवान् सूर्य नहीं दिखाई देतें हों तो उस समय मन में भगवान् सूर्य से प्रार्थना करनी चाहिए कि हे सर्वव्यापी प्रत्यक्ष भगवान् सूर्य, मै अपनी असमर्थता की वजह से आपका इस समय प्रत्यक्ष दर्शन नहीं कर पा रहां हूँ इसलिए आप इस समय चाहे जिस भी दिशा में हों, कृपया मेरे द्वारा अर्पण किये जाने वाले इस जल स्वीकार करें) |
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