एलियन्स कैसे घूमते और अचानक गायब हो जाते हैं
लम्बे समय से ब्रह्मांड से सम्बंधित सभी पहलुओं पर रिसर्च करने वाले, “स्वयं बनें गोपाल” समूह से जुड़े हुए विद्वान रिसर्चर श्री डॉक्टर सौरभ उपाध्याय (Doctor Saurabh Upadhyay) के निजी विचार ही निम्नलिखित आर्टिकल में दी गयी जानकारियों के रूप में प्रस्तुत हैं-
सबसे पहली बात की भूत प्रेत एलियन नहीं होते हैं ! भूत प्रेत, मानवों से निचले स्तर की प्रजातियाँ हैं जबकि एलियन्स (नाग, यक्ष, गन्धर्व, किन्नर, किरात, विद्याधर, ऋक्ष, पितर, देवता, प्रजापति, दिक्पाल आदि) मानवों से ऊँचे किस्म की प्रजातियाँ हैं जो साइंस और टेक्नालॉजी में मानवों से कही आगे हैं (इस बात का खुलासा “स्वयं बनें गोपाल” समूह ने अपने पूर्व के आर्टिकल में विस्तार से किया है, जिसका लिंक इस आर्टिकल के नीचे दिया गया है) |
भारत के प्राचीन ज्ञान, विज्ञान और इतिहास के मूर्धन्य जानकार श्री डॉक्टर सौरभ उपाध्याय जी बताते हैं की साधारण लोगों को ये नहीं समझ में आता है की आखिर एलियन्स हमेशा गायब क्यों रहते हैं और कभी किसी को दिखते भी हैं तो इतने भयानक रूप और आकृति वाले क्यों लगते हैं !
इस बात को इस साधारण उदाहरण से थोड़ा बहुत समझा जा सकता है कि जैसे आप किसी जगह पर अपना कोई बहुत गंभीर और जरूरी काम कर रहें हो और वहां पर कोई बहुत छोटा लड़का खेलने आ जाय और आपके काम से उसको खतरा हो सकता हो तो आप कोशिश करेंगे की वो छोटा लड़का उस जगह से जल्द से जल्द चला जाय और इसके लिए आप उस नासमझ लड़के को कई तरह के संकेत करेंगे जिससे लड़का वहां से भाग जाय पर लड़का उन संकेतो को ना समझ सके या समझ भी जाय पर जबरदस्ती करके वही टिका रहे, तब आपकी मजबूरी बन जाती है आप उस लड़के को अपने क्रोध से डराकर भगा दें !
ठीक यही काम एलियन्स करते हैं !
पृथ्वी पर कुछ जगह ऐसी हैं जहाँ ऐसी ज्यामिति होती है की इन्टर डाइमेंशनल मूवमेंट (दूसरे आयामों से आना जाना) सम्भव होता है और इन्ही जगहों पर बने पोर्टल (द्वार) से उच्च शक्ति प्राप्त एलियन्स पृथ्वी पर आते जाते हैं ! बारमूडा ट्रेंगल इन्हीं पोर्टल में से एक है जिससे हमारे पूरे ब्रहमाण्ड के दूसरे आयामों में विचरण किया जा सकता है ! हाँलाकि उच्च शक्ति और ईश्वर विशेष कृपा प्राप्त देव बिना किसी इन्टर डाइमेंशनल पोर्टल की मदद के ही ब्रह्माण्ड में कहीं भी आ जा सकते हैं !
यद्दपि ऐसे पोर्टल को कृत्रिम रूप से बनाया भी जा सकता है पर इसके पीछे मास (द्रव्यमान) के विस्थापन से स्पेस (स्थान) और टाइम (समय) के पदार्पण का बहुत ही जटिल सिद्धान्त लागू होता है ! बिना उचित यौगिक शक्ति के कोई वैज्ञानिक अगर कुछ देर के लिए अचानक संयोग से ऐसा पोर्टल बना भी ले तो भी उसे विशेष फायदा नही होने वाला क्योंकि वो वैज्ञानिक सिर्फ दूसरी दुनिया की कुछ झलक मात्र ही देख पायेगा, ना की कोई कम्युनिकेशन (बातचीत) कर पायेगा !
डॉक्टर उपाध्याय आगे बताते हैं कि एलियन्स अपने कई तरह के अनुसन्धान और प्रयोगों के लिए पृथ्वी पर आते जाते रहते हैं और इनके गम्भीर प्रयोंगो के दौरान अगर गलती से कोई साधारण इन्सान (जिसमें विशेष यौगिक या दिव्य शक्ति ना हो) वहां पहुंच जाय तो एलियन उस इन्सान को वहां से चले जाने के लिए कई तरह के संकेत देते हैं और इन्सान अगर उसके बाद भी वहां से ना जाय तो उन एलियन के लिए सबसे आसान तरीका यही होता है कि अपनी शक्ल सूरत को भयानक करके उस इन्सान को दिखा दिया जाय जिससे या तो इन्सान वहां से डरकर भाग जाय या बेहोश हो जाय जिससे उनके गुप्त प्रयोगों के बारे में थोड़ा सा भी ना जान सके !
दो आयामी भी जीव होते हैं पर हम तीन आयामी इन्सान उनके लिए उसी तरह अदृश्य होते हैं जैसे हम से ज्यादा आयाम में रहने वाले एलियन्स हमारे लिए अदृश्य होते हैं ! जैसे मानव पृथ्वी पर रहने वाले अन्य सभी जीवों (जैसे शेर, हाथी, बन्दर, चूहे, कीड़े आदि) से ज्यादा बुद्धिमान और शक्तिशाली है इसलिए हमेशा कुछ नया सीखने के लिए मानव पृथ्वी के अन्य जीवों पर लगातार तरह तरह के रिसर्च (प्रयोग) करते रहते हैं ठीक उसी तरह एलियन जो मानवों से बुद्धि, विज्ञान और शक्ति में बहुत आगे हैं, वो भी मानवों पर तरह तरह के प्रयोग हमेशा करते रहते हैं !
मानवों में सारे मानव अच्छे स्वभाव के हों ऐसा जरूरी नहीं हैं ठीक उसी तरह सारे एलियन्स अच्छे स्वभाव के हों यह भी जरूरी नहीं है ! अच्छे स्वभाव वाले एलियन ब्रह्मा जी के द्वारा बनाए गए नियमों के दायरे में रहकर ही मानवों पर प्रयोग (जिसे मानवों की सहायता कहना ज्यादा उचित होगा) करते हैं जबकि कुछ एलियन ऐसे भी हैं जो इन नियमों की बिना परवाह किये मानवों पर मनमाना अनुसन्धान (प्रयोग) करते हैं, हाँलाकि मानवों से ऊपर के लोकों में किसी भी एलियन द्वारा किये गए गलत काम का दंड अक्सर उसे तुरन्त मिलता है !
संभवतः आज के समय में भी पृथ्वी के कुछ लोग, एलियन्स के सम्पर्क में हो सकते हैं ! पर इन सभी सम्पर्कों में सबसे बड़ी समस्या आ सकती है कम्युनिकेशन (बातचीत) की ! पृथ्वी के ज्यादातर इन मानवों को एलियन्स की भाषा समझ में नहीं आ सकती है !
बहुत सम्भव है कि पृथ्वी के ऐसे मानव जो एलियन की कृपा से एलियन को देखने का मौका पाते हैं उनमें से अधिकाँश मानव इस बारे में किसी को कुछ बताते नहीं हैं क्योंकि एक तो उन्हें एलियन के द्वारा ना बताने का आदेश भी हो सकता है तथा दूसरा उन मानवों को लग सकता है कि किसी एलियन को देख पाना उनके लिए एक बहुत बड़ी उपलब्धि है जिसे आसानी से सभी को नहीं बताना चाहिए पर ये उनकी भूल है क्योंकि किसी एलियन को देख सकना या बात कर सकना उनकी समझ के हिसाब से बहुत बड़ी बात है, जबकि भारत की पवित्र भूमि पर आज भी ऐसे हजारों तपस्वी साधू हैं जो ऊपर से देखने में तो साधारण निर्धन लग सकते हैं पर अन्दर से दिव्य शक्ति प्राप्त साधक होते हैं और जिनके लिए हर तरह के एलियन को देखना व बात करना उसी तरह का मामूली काम होता है जैसे निकट भविष्य में होने वाली घटनाओं को देख पाना ! पर इन साधुओं को, ना तो एलियन देखने में कोई रुचि होती है, ना ही भविष्य देखने में, क्योंकि इनकी रुचि तो सिर्फ और सिर्फ सबके रचयिता अर्थात ईश्वर को देखने में होती है !
जिसने एक बार गर्म गर्म अति स्वादिष्ट रसगुल्ला खा लिया हो उसे सूखा गुड़ खाने में क्या मजा मिलेगा ठीक उसी तरह जिसने एक बार अनन्त ब्रह्मांडों को बनाने वाले ईश्वर का दर्शन, हल्की सी झलक भर देखने या महसूस करने का ही महा सुख प्राप्त कर लिया हो उसे एलियन जैसी प्रजातियों के दर्शन में क्यों सुख या रोमांच महसूस होगा !
हालाँकि भारत में अध्यात्मिक उत्सुकता को शान्त करने के चक्कर में कई देशी विदेशी लोग, फर्जी साधुओं द्वारा ठगे भी जाते हैं ! इसलिए सिर्फ किसी सच्चे साधू के पास ही अपनी जिज्ञासा का उत्तर जानने के लिए जाना चाहिए !
माना जाता है कि एलियन्स अपनी दिव्य शक्तियों से आदमी की याददाश्त का कुछ हिस्सा मिटा देने में भी सक्षम होते हैं जिससे होश में आने के बाद आदमी उनके रूप, विमान या प्रयोग के बारे में किसी दूसरे को कुछ बता ना सके (लेकिन एलियन हर बार याददाश्त मिटा दें ये जरूरी नहीं है) !
संभवतः एलियन्स का “ग्रे एलियन” के आधुनिक रूप में पहचान होना, इसी याददाश्त गायब करने का ही परिणाम हैं, मतलब सम्भव है कि ग्रे एलियन जैसा कोई रूप हो ही नहीं क्योंकि होश में आने के बाद चश्मदीद लोगों को जो थोड़ी बहुत झलक याद रही उसी के आधार पर ग्रे एलियन का आधुनिक रूप प्रचलन में आ गया हो !
श्री प्रोफेसर सौरभ बताते हैं कि प्राप्त जानकारी अनुसार उच्च शक्ति प्राप्त एलियन्स, अनन्त वर्ष पुराने हिन्दू धर्म की भाषा संस्कृत व प्राकृत (यद्द्पि आज के विद्वानों को भी प्राकृत भाषा के बारे में पूर्ण जानकारी नहीं है) में बोलते हैं तथा इसी वजह से संस्कृत को देव भाषा भी कहते हैं ! एलियन्स की बोलने की स्पीड (गति) भी इतनी तेज हो सकती है की साधारण आदमी को इनकी आवाज सिर्फ एक तेज सरसराहट जैसी महसूस हो सकती है !
कई बार ईश्वरीय इच्छा से प्रेरित उच्च लोकों में रहने वाले देवता, महा स्थान में आकर अनुसन्धान कर के अपना ऐसा कॉस्मिक बॉडी (अन्तर आयामीय शरीर) तैयार करते हैं जिसका तेज साधारण मानव बर्दाश्त कर सकें और इसी कॉस्मिक बॉडी की मदद से, ये देवता, योग्य मानवों के पास आकर उन्हें ईश्वर की बनायी इस परम रहस्यमय और अनन्त सृष्टि का रहस्य समझाते हैं !
एक सीमित स्तर तक ही सोच व अनुमान लगा सकने वाले वैज्ञानिकों को अचानक से एकदम नयी और अदभुत थ्योरी सुझाने वाले भी एलियन्स हो सकते हैं पर ये सभी थ्योरी बिल्कुल सही हो ऐसा जरूरी नहीं है क्योंकि सीमित आयामों तक में रहने वाले एलियन्स (नाग, यक्ष, गन्धर्व, किन्नर, किरात, विद्याधर, ऋक्ष, पितर, देवता, प्रजापति, दिक्पाल आदि) की भी क्षमता भी सीमित होती है और इस ब्रह्माण्ड के बारे में वे एलियन्स खुद जो थोड़ा बहुत जानकारी समझ पाते हैं, केवल वहीँ जानकारी ही अपने सम्पर्क में रहने वाले मानवों को बता पाते हैं !
अपने इस ब्रह्माण्ड की पूर्ण सही जानकारी सिर्फ इस ब्रह्माण्ड के रचयिता श्री ब्रह्मा जी को पता है या अनन्त आयामों के निर्माता ईश्वर को ! हालाँकि गोलोक आदि के असीमित आयामों में रहने वाले, ईश्वर के ही स्वरुप, ईश्वर के विशिष्ट कृपा पात्र गण जब किसी परोपकारी संत की योग्यता से प्रसन्न होते हैं तो ईश्वर के आदेश से ही अपनी कॉस्मिक बॉडी में उस योग्य व्यक्ति के पास आकर उसे सृष्टि का जो रहस्य समझा सकते हैं वो अदभुत एवं सत्य होता है !
डॉक्टर सौरभ उपाध्याय कहते हैं कि इस इन्टर डाइमेंशनल मूवमेंट के पोर्टल के रहस्य को समझने के लिए एक छोटे से उदाहरण का सहारा लिया जा सकता है कि जैसे आप एक सिक्के को देखें तो पायेंगे की उसमें हेड और टेल अलग अलग नहीं है बस एक साथ दिखते नहीं उसी तरह इस ब्रह्माण्ड में समय और स्पेस (स्थान) अलग अलग नहीं हैं बस एक साथ दिखते नहीं मतलब अगर हमें स्थान दिख रहा तो हमें समय नहीं दिखाई देगा और अगर हम समय को महसूस करेंगे तो स्थान गायब हो जायेगा !
इसको इस तरह से भी समझा जा सकता है कि जैसे भगवान् के अवतार गौतम बुद्ध जब अपने शिष्यों के साथ नदी किनारे खड़े होकर नदी पार करना चाह रहे थे पर नदी में भयंकर बाढ़ आई हुई थी तब भगवान् बुद्ध ने आसमान की तरफ हाथ उठाया और वो गायब होकर अचानक से नदी के दूसरे किनारे पर प्रकट हो गए ! डॉक्टर उपाध्याय बताते हैं की यहाँ भी वही सिद्धान्त लागू होता है श्री बुद्ध ने जब समय में सफ़र किया तो स्थान में वो अदृश्य हो गये !
महर्षि लोमष जिनके एक दिन में एक ब्रह्मा मरते हैं वो ऐसी अदभुत जगह पर रहते हैं जहाँ अनन्त ब्रह्माण्ड में विचरण कर सकने योग्य इन्टर डाइमेंशनल पोर्टल आपस में मिलते हैं ! वहां पर स्थान इतना ज्यादा मुड़ चुका है कि वहां पर स्थान व समय में भेद करना मुश्किल है, हालांकि ये ब्लैक होल (Black Hole या कृष्ण विवर) या व्हाइट होल (White Hole या श्वेत विवर) नहीं है !
प्रोफेसर सौरभ आगे बताते हैं कि अपना ब्रह्माण्ड जो की एक अंडाकार आकृति के रूप में है व उसका आधा हिस्सा एंटी ब्रह्माण्ड की तरह कार्य करता है ! ये दोनों ब्रह्माण्ड एक दूसरे के ऊपर स्थित होकर परस्पर विपरीत दिशा में बहुत तेजी से घूर्णन करते हैं जिससे प्रचण्ड तेजस्वी शक्ति प्रकट होती है और यह शक्ति ब्रह्माण्ड केंद्र से नीचे के लोकों पर नकारात्मक प्रभाव डालती है जबकि केंद्र से ऊपर के लोकों पर दिव्य सकरात्मक प्रभाव डालती है ! हमारी पृथ्वी और सप्तर्षि तारा मंडल हमारे ब्रह्माण्ड को बीच से विभाजित करने वाली रेखा पर स्थित हैं इसलिए इस शक्ति के प्रभाव से अछूते रहते हैं !
प्रोफेसर सौरभ बताते हैं कि ब्रहमाण्ड और एंटी ब्रह्माण्ड के परस्पर विपरीत दिशा में प्रचण्ड वेग में घूमने की वजह से ही एक बड़ा आश्चर्य जनक पहलू यह देखने को मिलता है कि इस ब्रह्माण्ड में किसी भी एक स्थान से दूसरे स्थान की दूरी हमेशा बराबर बनी रहती है !
जैसे आप एक सिक्के को बहुत तेज गति से गोल घुमा दें तो सामने से देखने पर आपको सिक्के की जगह केवल एक सीधी खड़ी रेखा दिखाई देगी पर जब आप उस घूमते सिक्के को ऊपर से देखेंगे तो आपको रेखा नहीं केवल एक घेरा जैसा दिखाई देगा ! यहाँ पर सीधी रेखा को समय का प्रतीक माना जा सकता है और घेरे को ब्रह्माण्डीय स्थान या स्पेस समझा जा सकता है और यह प्रक्रिया इसी निष्कर्ष का निष्पादन करती हैं कि जब स्थान महसूस होगा तब समय अदृश्य रहेगा और जब समय महसूस होगा, स्थान दृश्य नहीं होगा !
प्रोफेसर सौरभ उपाध्याय आगे बताते हैं की हमारे हिन्दू धर्म के दुर्लभ ग्रन्थ बताते हैं की ब्रह्मा जी ने जब इस ब्रह्माण्ड का निर्माण किया तो ये ब्रह्माण्ड और इसका कोई भी कम्पोनेन्ट (अवयव) किसी भी प्रकार की गति से रहित था मतलब जैसे बिना प्राण का शरीर, तब निराकार ईश्वर ने ब्रह्मा जी को आदेश दिया, इस पूरे अपने ब्रह्माण्ड को भी एक विशिष्ट धुरी पर घुमाने का ! ब्रह्मा जी द्वारा ईश्वर के इस आदेश का पालन करने से ही अपने इस ब्रह्माण्ड में जीवन का संचार हुआ !
वो विशिष्ट धुरी क्या थी इसका खुलासा हम आगे आने वाले लेखों में करेंगे |
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