जानिये, मानवों के भेष में जन्म लेने वाले एलियंस को कैसे पहचाना जा सकता है
लम्बे समय से ब्रह्मांड से सम्बंधित सभी पहलुओं पर रिसर्च करने वाले, “स्वयं बनें गोपाल” समूह से जुड़े हुए विद्वान रिसर्चर श्री डॉक्टर सौरभ उपाध्याय (Doctor Saurabh Upadhyay) के निजी विचार ही निम्नलिखित आर्टिकल में दी गयी जानकारियों के रूप में प्रस्तुत हैं-
भारत के प्राचीन ज्ञान, विज्ञान एवं इतिहास के मूर्धन्य जानकार श्री डॉक्टर सौरभ उपाध्याय जी बताते हैं कि एलियन शब्द की उत्पत्ति “अलिन” शब्द से हुई है !
वैज्ञानिकों द्वारा भी यह साबित हो चुका है कि इस ब्रह्माण्ड कि सबसे पुरानी भाषा, संस्कृत है और संस्कृत के ही कई शब्दों के प्रयोग से संसार कि बहुत सी भाषाओँ का निर्माण हुआ है !
डॉक्टर उपाध्याय बताते हैं कि अति दुर्लभता से सानिध्य प्रदान करने वाले दिव्य ऋषिसत्ता के आशीर्वाद से प्राप्त जानकारीनुसार ‘एलियन’ शब्द, संस्कृत के शब्द “अलिन” का ही अपभ्रंश रूप है !
अपने इस ब्रह्माण्ड के रचयिता श्री ब्रह्मा जी के पुराणों में दिए गए नामों में एक नाम “अलिन” भी है !
वेदों में भी अलिन शब्द का प्रयोग हुआ है !
संस्कृत के शब्द अलिन का अर्थ हिन्दी में होता है – “एक, जो बहुत रूपों वाला है” ! अलिन का दूसरा अर्थ – ‘महान’ भी होता है !
अलिन इतना प्राचीन शब्द है कि इसका वर्णन स्वीडिश भाषा में, अमेरिकन भाषा में भी देखने को मिलता है और इन भाषाओं में भी इस शब्द का अर्थ लगभग वही है, जो संस्कृत भाषा में है !
अब यहाँ पर सोचने वाली बात यह है कि आखिर ब्रह्मा जी को अलिन क्यों कहा गया है !
असल में आदि काल में जब निराकार परम ब्रह्म अर्थात निराकार ईश्वर को सृष्टि रचने की इच्छा हुई तो उन्होंने अपने ही अंश से ब्रह्मा जी को प्रकट किया !
परम ब्रह्म की शक्तियां ‘परा माया’ और ‘अपरा माया’ जो सबकी रचयिता हैं और परम ब्रह्म के आश्रित हैं, उन्ही के प्रभाव से परम ब्रह्म से उत्पन्न ब्रह्मा जी खुद को ही नहीं पहचान पाए कि वो कौन हैं और उनका जन्म क्यों हुआ है !
तब ऐसे में परा माया ने भगवान् विष्णु का रूप धारण किया और अपरा माया ने कमल का रूप धारण किया जिस पर बैठ कर ब्रह्मा जी ने भीषण तप द्वारा आत्म साक्षात्कार किया !
ब्रह्मा जी को परम ब्रह्म से निर्देश प्राप्त हुआ कि सृष्टि का निर्माण करो !
तब ब्रह्मा जी ने हमारे इस ब्रहमांड का निर्माण किया !
चूंकि हमारा यह पूरा ब्रहमांड, ब्रह्मा जी का ही रूप है और यह ब्रह्माण्ड उनके अन्दर ही समाहित है अर्थात ब्रह्मा जी के गर्भ में स्थित है, इसलिए इसका नाम “ब्रह्माण्ड” पड़ा !
ब्रह्मा जी ने आदमी, औरत, सभी जीव, जंतुओं, पहाड़, नदियाँ, पौधे आदि का निर्माण किया और इन सभी रूपों में, अंश रूप में (माता, पिता के रूप में) खुद ही विद्यमान हुए, इसलिए भी उन्हें “अलिन” कहा गया है !
ब्रह्मा जी पहले एलियन थे और उनकी बनायी हुई इस सृष्टि में और भी कई एलियंस हैं !
ज्यादातर जीवात्मायें एक यात्री की तरह होती हैं जो अपने द्वारा किये गए पाप पुण्य कर्मों कि बदौलत अलग अलग लोकों में या इसी धरती पर, कई बार जन्म लेकर हमेशा भटकती रहती हैं पर कुछ विशेष जीवात्मायें ऐसी होती हैं जिनके महान कर्मों कि बदौलत, उनका किसी परम उच्च लोक (जैसे भगवान के निज धाम गोलोक, शिवलोक आदि) में परमानेंट (स्थायी) निवास होता है और वे कभी-कभी पथ-भ्रष्ट होकर या किसी विशिष्ट उद्देश्य की पूर्ती के लिए, स्वयं ईश्वर के आदेश पर ही इस धरती पर जन्म लेते हैं और साधारण मनुष्यों की ही तरह सभी समस्याओं, तकलीफों को झेलते हुए भी बहुत से परोपकारी कार्य करते हैं !
ईश्वर (साकार ब्रह्म) के महान दुर्लभ निज धाम में शाश्वत निवास करने वाली यह विशिष्ट आत्माएं जब ईश्वर के आदेश पर अपना परमानेंट आवास छोड़कर, कार्य विशेष के लिए पृथ्वी पर जन्म लेती हैं तो इन्हें मानवों के भेष में जन्म लेने वाले एलियंस कहा जा सकता है !
पृथ्वी पर जन्म लेने के बाद, उचित (ईश्वर द्वारा निर्धारित) समय आने पर ऐसे मानवों को जब अपने दिव्य अतीत का स्मरण होने लगता है तो इनसे मिलने के लिए दिव्य लोकों की कई बड़ी हस्तियाँ (जैसे ऋषि, मुनि, देवता, ईश्वर के गण, पार्षद आदि) अक्सर आती रहती हैं !
तथा कभी कभी स्वयं ईश्वर भी अप्रत्यक्ष रूप से आकर, अपने साथ और आशीर्वाद का अहसास कराते रहते हैं कि इसी तरह से सन्मार्ग पर बने रहो, आने वाले भविष्य में तुम मानवता के हितार्थ इतिहास का रुख मोड़ोगे !
ऐसे मानवों की रोज की आम दिनचर्या में होने वाले ऐसे अद्भुत और दिव्य अनुभवों को अगर कोई साधारण संसारी आदमी देख ले तो डर के मारे उसकी घिग्गी बंध जाय ! इसलिए देव सत्ताएं ऐसा इन्तजाम खुद करती हैं कि कोई मानसिक रूप से अपरिपक्व व्यक्ति चाहे वो कितना भी परिचित या घनिष्ठ क्यों ना हो, लाख चाहकर भी ऐसे मानवों के पास अनावश्यक ना आकर रहने लगे क्योंकि ये सारे दिव्य अनुभव, दुर्लभ ज्ञान के समावेश के फलस्वरूप पैदा होतें हैं और एक अल्प ज्ञानी संसारी पुरुष के लिए यह मात्र क्षणिक चमत्कारी आनन्द भर ही होते है !
कोई आदमी या औरत इस पृथ्वी पर जन्म लेने से पहले किसी परम उच्च लोक से आया है कि नहीं, यह उसके कुछ परोपकारी कर्मों के अलावा कुछ लक्षणों से भी परिलक्षित होता है, जो कि निम्नवत हैं –
– पहला लक्षण अच्छे से समझने के लिए इस उदाहरण का सहारा लिया जा सकता है कि, जैसे आप एक बहुत ही अमीर (खरबपति) आदमी हैं और आप किसी काम से रास्ते में जा रहें है तथा रास्ते में आपसे किसी गरीब ने 10 रूपए मांग लिया तो आप ख़ुशी ख़ुशी उस गरीब को 10 रूपए दे देंगे क्योंकि आपको पता है कि इस 10 रूपए से सिर्फ आपके जेब में रखे कैश रूपए कुछ कम पड़ सकते हैं लेकिन जो कुबेर का खजाना आपके घर में पड़ा है वो तो आवश्यकता से अधिक है ! ठीक यही भावना परम उच्च लोक से पृथ्वी पर जन्म लेने वाले मानवों के अचेतन मन में, अनजान रूप में लगातार बनी रहती है ! ऐसे मानवों के मन में कहीं ना कहीं यह भावना हमेशा बनी रहती है कि यह पृथ्वी का जन्म उनके लिए एक रास्ते जैसा है इसलिए यहाँ जो पाया, उसमें से जितना हो सका सब बाटते चले गए क्योंकि वापस अपने घर (अर्थात उस उच्च लोक) जाने पर, ऐसी भौतिक संपत्तियों का कोई महत्व नहीं, वहां कि वास्तविक सम्पत्ति हमारा अपना ज्ञान, विस्तृत चेतना और परब्रह्म द्वारा रचे हुए इस परम रहस्यमय संसार को समझने व आत्मसात करने कि लालसा, उत्सुकता ही है ! ये बातें पूरी तरह से विस्मृत (भूले) रहते हुए भी कहीं न कहीं अचेतन मन से उसको प्रेरित करती रहती हैं !
– दूसरा लक्षण समझने के लिए भी इस उदाहरण का सहारा लिया जा सकता है कि जैसे आप किसी देश के सर्वोच्च शक्तिशाली हस्ती यानी राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री के पुत्र हों और आप स्वभाव से एक अच्छे इंसान भी हैं तो ऐसे में आपके द्वारा किसी बढ़िया काम करने के दौरान कोई ऐसा दुष्ट आदमी जो आपको ना पहचानता हो, आकर आपको बेवजह धमकाए तो क्या आप उससे डरेंगे ? बिल्कुल नहीं क्योंकि आपको पता है कि आपके पीछे आपके देश का सर्वोच्च शक्तिशाली आदमी खड़ा है ! ठीक इसी तरह उच्च लोक की कोई आत्मा पृथ्वी पर जन्म लेती है तो वो कभी भी किसी दुष्ट का अत्याचार एक लेवल के बाद बर्दाश्त कर ही नहीं पाती है क्योंकि उसके अचेतन मन में कही ना कहीं यह बात हमेशा बनी रहती है कि वो तो सबसे ताकतवर ईश्वर का पुत्र या पुत्री है इसलिए उसे क्या जरूरत है किसी अत्याचारी से डरने की !
– तीसरा लक्षण है किसी के गलत बहकावे में ना आने का ! चूंकि उच्च लोक से आने वाली जीवात्मा, उच्च लोक में निवास करने के दौरान, सीधे ईश्वर (साकार ब्रह्म) के ही नानाविधि रूपों से ही ज्ञान प्राप्त करती रहती है इसलिए मृत्युलोक में भी जन्म लेने पर, उसकी मेधा इतनी परिष्कृत होती है कि कभी वो किसी गलत बात के बहकावे में लम्बे समय के लिए नहीं आ सकती ! प्रचंड शक्तिशाली कलियुग के प्रभाव से वो कभी क्षणिक बहकावे में आ सकता है लेकिन जैसे ही उसे अपनी गलती का अहसास होता है वो बिना उस गलती का प्रायश्चित किये हुए, सुखी नहीं हो पाता है !
– इसके अलावा कुछ अन्य लक्षण भी हैं, जैसे अक्सर उसके अन्दर संसार के सुखों के प्रति उदासीनता का पैदा होना, अकेले में बैठकर अपनी जिंदगी के उद्देश्य के बारे में बार बार मंथन करना, अंध विश्वास और आडम्बरों से दूर रहना, स्वप्न में या प्रत्यक्ष दिव्य ऋषि सत्ता या मन्त्र दिखाई/सुनाई पड़ना, मै एक दिन मर जाऊंगा व मै एक दिन बूढ़ा बदसूरत हो जाऊंगा इस बात को कभी नहीं भूलना, ये सिर्फ मेरी मेहनत नहीं बल्कि ईश्वर की कृपा भी है कि मुझे रोज खाने को खाना और पीने को पानी मिल जा रहा है नहीं तो बहुत से लोग ऐसे हैं जो बहुत मेहनत करने के बाद भी अपने और अपने परिवार का पूरा पेट नहीं भर पा रहें हैं, यह भाव हमेशा मन में रहना जिससे किसी चीज का अहंकार ना पैदा होना, आदि !
उच्च लोक से आये स्त्री-पुरुष, अपनी मार्गदर्शक सत्ता के आवाहन पर तुरन्त अपनी सारी संपत्ति छोड़ने को हर समय तैयार रहते हैं और इनकी इसी खूबी कि वजह से ही ये बार बार अपने ऊपर पड़ने वाली भीषण आपदा ,त्रासदी और दुर्घटनाओं के बावजूद भी ये फिर पहले से ज्यादा मजबूत तरीके से एक निडर योद्धा की तरह उठ खड़े होते हैं !
अपनी मार्गदर्शक ऋषि सत्ता की कृपा से जैसे जैसे उन्हें अपने दिव्य अतीत की स्मृति याद आती जाती है वैसे वैसे वे अपने पर्सनल सुखों से ऊपर उठकर दूसरे जरूरतमंदों के लिए ही जीना मरना शुरू कर देते हैं, भले ही उनके परोपकारी महान कार्यों के बदले उन्हें सम्मान मिले या अपमान !
मानवो के भेष में जन्म लेने वाले इन परम उच्च लोक से आये एलियंस के दिल में हर दुखी जरूरतमंदों के लिए धीरे धीरे इतनी ज्यादा दया व करुणा पैदा होने लगती है कि ये चाहकर भी एक नार्मल, सेल्फ सेंटर्ड आम जिंदगी, जो अपने बीवी बच्चों से शुरू होकर अपने रिश्तेदार यार दोस्तों पर ही ख़त्म होकर रह जाती है, नहीं जी पाते हैं क्योंकि हर बेचैन जीव के अंदर ही उन्हें कृष्ण महसूस होने लगते हैं और जब स्वयं साक्षात् कृष्ण सामने खड़े प्रतीत हों तो कैसे कोई उनसे मुंह फेरने की सोचे भी !
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