क्रन्तिकारी भाई राजीव दीक्षित के आयुर्वेदिक नुस्खे (भाग -1)
(भाई राजीव दीक्षित सही मायने में आधुनिक युग के निर्भीक कान्तिकारी थे जिन्होंने कानपुर आई आई टी से M. TECH और अन्य कई बड़े साइंस प्रोजेक्ट से जुड़ने के बावजूद अपना सुनहरा वर्तमान और भविष्य छोड़ कर पूरी तरह से स्वदेशी आंदोलन के प्रचार प्रसार में अपना जीवन समर्पित कर दिया। उनका मानना था की भारतवर्ष फिर से सोने की चिड़िया तभी कहलायेगा जब वह पूरी तरह से स्वावलम्बी होगा। उन्होंने स्वदेशी चिकित्सा, स्वदेशी भोजन, स्वदेशी अर्थव्यस्था के हर पहलुओ पर अथक मेहनत किया। प्रस्तुत है उनके कुछ विशिष्ट आख्यानों के अंश)-
आर्थराइटिस का उपचार –
– दोनों तरह के आर्थराइटिस (Osteoarthritis और Rheumatoid arthritis) मे आप एक दावा का प्रयोग करे जिसका नाम है चूना, वही चूना जो आप पान मे खाते हो | गेहूं के दाने के बराबर चुना रोज सुबह खाली पेट एक कप दही मे मिलाके खाना चाहिए, नही तो दाल मे मिलाके, नही तो पानी मे मिलाके पीना लगातार तिन महीने तक, तो आर्थराइटिस ठीक हो जाती है | ध्यान रहे पानी पिने के समय हमेशा बैठ के पीना चाहिए नही तो ठीक होने मे समय लगेगा | अगर आपके हात या पैर के हड्डी मे खट खट आवाज आती हो तो वो भी चूना से ठीक हो जायेगा |
– दोनों तरह के आर्थराइटिस के लिए और एक अच्छी दावा है मेथी का दाना | एक छोटा चम्मच मेथी का दाना एक काच की गिलास मे गरम पानी लेके उसमे डालना, फिर उसको रात भर भिगोके रखना | सबेरे उठके पानी सिप सिप करके पीना और मेथी का दाना चबाके खाना | तिन महीने तक लेने से आर्थराइटिस ठीक हो जाती है | ध्यान रहे पानी पिने के समय हमेशा बैठ के पीना चाहिए नही तो ठीक होने मे समय लगेगा |
– ऐसे आर्थराइटिस के मरीज जो पूरी तरह बिस्तर पकड़ जुके है, चालीस साल से तकलीफ है या तीस साल से तकलीफ है, कोई कहेगा बीस साल से तकलीफ है, और ऐसी हालत हो सकती है के वे दो कदम भी न चल सके, हात भी नही हिला सकते है, लेटे रहते है बेड पे, करवट भी नही बदल सकते ऐसी अवस्था हो गयी है, ऐसे रोगियों के लिए एक बहुत अच्छी औषधि है जो इसीके लिए काम आती है | एक पेड़ होता है उसे हिंदी में हरसिंगार कहते है, संस्कृत पे पारिजात कहते है, बंगला में शिउली कहते है, उस पेड़ पर छोटे छोटे सफ़ेद फूल आते है, और फूल की डंडी नारंगी रंग की होती है, और उसमे खुशबू बहुत आती है, रात को फूल खिलते है और सुबह जमीन में गिर जाते है । इस पेड़ के छह सात पत्ते तोड़ के पत्थर में पीस के चटनी बनाइये और एक ग्लास पानी में इतना गरम करो के पानी आधा हो जाये फिर इसको ठंडा करके रोज सुबह खाली पेट पिलाना है जिसको भी बीस तीस चालीस साल पुराना आर्थराइटिस हो या जोड़ो का दर्द हो | यह उन सबके लिए अमृत की तरह काम करेगा | इसको तीन महीना लगातार देना है अगर पूरी तरह ठीक नही हुआ तो फिर 10-15 दिन का गैप देके फिर से तीन महीने देना है | अधिकतम केसेस मे ज्यादा से ज्यादा एक से डेढ़ महीने मे रोगी ठीक हो जाते है | इसको हर रोज नया बनाके पीना है | ये औषधि Exclusive है और बहुत strong औषधि है इसलिए अकेली ही देना चाहिये, इसके साथ कोई भी दूसरी दावा न दे नही तो तकलीफ होगी | ध्यान रहे पानी पीने के समय हमेशा बैठ के पीना चाहिए नही तो ठीक होने मे समय लगेगा |
घुटने मत बदलिए –
RARA Factor जिनका प्रोब्लेमाटिक है और डॉक्टर कहता है के इसके ठीक होने का कोई चांस नही है | कई बार कार्टिलेज पूरी तरह से ख़तम हो जाती है और डॉक्टर कहते है के अब कोई चांस नही है Knee Joints आपको replace करने हि पड़ेंगे, Hip joints आपको replace करने हि पड़ेंगे | तो जिनके घुटने निकाल के नया लगाने की नौबत आ गयी हो, Hip joints निकालके नया लगाना पड़ रहा हो उन सबके लिए यह औषधि है जिसका नाम है हरसिंगार का काढ़ा |
राजीव भाई का कहना है के आप कभी भी Knee Joints को और Hip joints को replace मत कराइए | चाहे कितना भी अच्छा डॉक्टर आये और कितना भी बड़ा गारंटी दे पर कभी भी मत करिये | भगवान की जो बनाई हुई है आपको कोई भी दोबारा बनाके नही दे सकता | आपके पास जो है उसिको repair करके काम चलाइए | हमारे देश के प्रधानमंत्री श्री अटलजी ने यह प्रयास किया था, Knee Joints का replace हुआ अमेरिका के एक बहुत बड़े डॉक्टर ने किया पर आज उनकी तकलीफ पहले से ज्यादा है | पहले तो थोडा बहुत चल लेते थे अब चलना बिलकुल बंध हो गया है कुर्सी पे ले जाना पड़ता है | आप सोचिये जब प्रधानमंत्री के साथ यह हो सकता है आप तो आम आदमी है |
बुखार का दर्द का उपचार –
डेंगू जैसे बुखार मे शरीर मे बहुत दर्द होता है, बुखार चला जाता है पर कई बार दर्द नही जाता | ऐसे केसेस मे आप हरसिंगार की पत्ते की काढ़ा इस्तेमाल करे, 10-15 दिन मे ठीक हो जायेगा |
चूना का चमत्कार –
(नोट – पथरी के रोगी को चूना नहीं खाना है)
शुद्ध चूना जो आप पान में खाते है वो सत्तर बीमारी ठीक कर सकता है !
जैसे किसी को पीलिया हो जाये तो उसकी सबसे अच्छी दवा है चूना, गेहूँ के दाने के बराबर चूना गन्ने के रस में मिलाकर पिलाने से बहुत जल्दी पीलिया ठीक कर देता है ।
चूना नपुंसकता की सबसे अच्छी दवा है –
अगर किसीके शुक्राणु नही बनता उसको अगर गन्ने के रस के साथ चूना पिलाया जाये तो साल डेढ़ साल में भरपूर शुक्राणु बनने लगेंगे और जिन माताओं के शरीर में अन्डे नही बनते उनकी बहुत अच्छी दवा है ये चूना ।
चूना लम्बाई बढाता है – गेहूँ के दाने के बराबर चूना रोज दही में मिलाके खाना चाहिए, दही नही है तो दाल में मिलाके खाओ, दाल नही है तो पानी में मिलाके पियो, इससे लम्बाई बढने के साथ साथ स्मरण शक्ति भी बहुत अच्छा होता है ।
जिन बच्चो की बुद्धि कम काम करती है, मतिमंद बच्चे उनकी सबसे अच्छी दवा है चूना, जो बच्चे बुद्धि से कम है, दिमाग देर में काम करते है, देर में सोचते है हर चीज उनकी स्लो है उन सभी बच्चे को चूना खिलाने से ठीक हो जायेंगे ।
बहनों को अपने मासिक धर्म के समय अगर कुछ भी तकलीफ होती हो तो उसका सबसे अच्छी दवा है चूना । और हमारे घर में जो माताएं है जिनकी उम्र पचास वर्ष हो गयी और उनका मासिक धर्म बंध हुआ उनकी सबसे अच्छी दवा है चूना; गेहूँ के दाने के बराबर चूना हरदिन खाना दाल में, लस्सी में, नही तो पानी में घोल के पीना ।
जब कोई माँ गर्भावस्था में है तो चूना रोज खाना चाहिए क्योकि गर्भवती माँ को सबसे जादा काल्सियम की जरुरत होती है और चूना कैल्सियम का सब्से बड़ा भंडार है । गर्भवती माँ को चूना खिलाना चाहिए अनार के रस में – अनार का रस एक कप और चूना गेहूँ के दाने के बराबर ये मिलाके रोज पिलाइए नौ महीने तक लगातार दीजिये तो चार फायदे होंगे – पहला फायदा होगा के माँ को बच्चे के जनम के समय कोई तकलीफ नही होगी और नोर्मल डेलीभरी होगा, दूसरा बच्चा जो पैदा होगा वो बहुत हिस्टपुष्ट और तंदरुस्त होगा , तीसरा फ़ायदा वो बच्चा जिन्दगी में जल्दी बीमार नही पड़ता जिसकी माँ ने चूना खाया , और चौथा सबसे बड़ा लाभ है वो बच्चा बहुत होसियार होता है बहुत Intelligent और Brilliant होता है उसका IQ बहुत अच्छा होता है ।
चूना घुटने का दर्द ठीक करता है , कमर का दर्द ठीक करता है , कंधे का दर्द ठीक करता है, एक खतरनाक बीमारी है Spondylitis वो चुने से ठीक होता है । कई बार हमारे रीड़ की हड्डी में जो मनके होते है उसमे दुरी बड़ जाती है Gap आ जाता है – ये चूना ही ठीक करता है उसको; रीड़ की हड्डी की सब बीमारिया चुने से ठीक होता है । अगर आपकी हड्डी टूट जाये तो टूटी हुई हड्डी को जोड़ने की ताकत सबसे जादा चुने में है । चूना खाइए सुबह को खाली पेट ।
अगर मुह में ठंडा गरम पानी लगता है तो चूना खाओ बिलकुल ठीक हो जाता है, मुह में अगर छाले हो गए है तो चुने का पानी पियो तुरन्त ठीक हो जाता है । शारीर में जब खून कम हो जाये तो चूना जरुर लेना चाहिए , अनीमिया है खून की कमी है उसकी सबसे अच्छी दवा है ये चूना , चूना पीते रहो गन्ने के रस में , या संतरे के रस में नही तो सबसे अच्छा है अनार के रस में – अनार के रस में चूना पिए खून बहुत बढता है , बहुत जल्दी खून बनता है – एक कप अनार का रस गेहूँ के दाने के बराबर चूना सुबह खाली पेट ।
भारत के जो लोग चुने से पान खाते है, बहुत होशियार लोग है पर तम्बाकू नही खाना, तम्बाकू ज़हर है और चूना अमृत है तो चूना खाइए तम्बाकू मत खाइए और पान खाइए चुने का उसमे कत्था मत लगाइए, कत्था कन्सर करता है, पान में सुपारी मत डालिए सोंट डालिए उसमे , इलाइची डालिए, लोंग डालिए, केशर डालिए; ये सब डालिए पान में चूना लगाके पर तम्बाकू नही, सुपारी नही और कत्था नही ।
राजीव भाई कहते है अगर आपकी पेट ख़राब है – दस्त हो गया है , बार बार आपको टॉयलेट जाना पड़ रहा है तो इसकी सबसे अच्छी दवा है जीरा | आधा चम्मच जीरा चबाके खा लो पीछे से गुनगुना पानी पी लो तो दस्त एकदम बंद हो जाते है एक ही खुराक में |
अगर बहुत ज्यादा दस्त हो | हर दो मिनिट में आपको टॉयलेट जाना पड़ रहा है तो आधा कप कच्चा दूध ले लो बिना गरम किया हुआ और उसमे निम्बू डालके जल्दी से पी लो | दूध फटने से पहले पीना है और बस एक ही खुराक लेना है बस इतने में ही खतरनाक दस्त ठीक हो जाते है |
और एक अच्छी दवा है ये जो बेल पत्र के पेड़ पर जो फल होते है उसका गुदा चबाके खा लो पीछे से थोडा पानी पी लो ये भी दस्त ठीक कर देता है | बेल का पाउडर मिलता है बाज़ार में उसका एक चम्मच गुनगुना पानी के साथ पी लो ये भी दस्त ठीक कर देता है |
पेट अगर आपका साफ़ नही रहता कब्जियत रहती है तो इसकी सबसे अच्छी दवा है अजवाईन | इसको गुड में मिलाके चबाके खाओ और पीछे से गरम पानी पी लो तो पेट तुरंत साफ़ होता है, रात को खा के सो जाओ सुबह उठते ही पेट साफ होगा |
और एक अच्छी दवा है पेट साफ करने की वो है त्रिफला चूर्ण , रात को सोते समय एक चम्मच त्रिफला चूर्ण ले लो पानी के साथ पेट साफ हो जायेगा |
पेट जुडी दो तिन ख़राब बिमारिय है जैसे बवासीर, पाईल्स, हेमोरोइड्स, फिसचुला, फिसरये सब बिमारिओ में अच्छी दवा है मूली का रस | एक कप मूली का रस पियो खाना खाने के बाद दोपहर को या सबेरे पर शाम को मत पीना तो हर तरेह का बवासीर ठीक हो जाता है, भगंदर ठीक होता है फिसचुला, फिसर ठीक होता है, अनार का रस पियो तो भी ठीक हो जाता है |
सैंधा नमक / काला नमक /डेले वाला नमक का ही उपयोग करे –
राजीव भाई आयोडीन के नाम पर हम जो नमक खाते हैं उसमें कोर्इ तत्व नहीं होता। आयोडीन और फ्रीफ्लो नमक बनाते समय नमक से सारे तत्व निकाल लिए जाते हैं और उनकी बिक्री अलग से करके बाजार में सिर्फ सोडियम वाला नमक ही उपलब्ध होता है जो आयोडीन की कमी के नाम पर पूरे देश में बेचा जाता है, जबकि आयोडीन की कमी सिर्फ पर्वतीय क्षेत्रों में ही पार्इ जाती है इसलिए आयोडीन युक्त नमक केवल उन्ही क्षेत्रों के लिए जरुरी है।
सेन्धा नमक समुद्र के जल और धूप की गर्मी से वाष्पित होकर बनने वाले नमक में सोडियम, मैग्नीशियम, कैल्शियम, पोटेशियम जैसे तत्व मिले रहते हैं ये तत्व वर्षा के जल के द्वारा जमीन की मिटटी से मिलते हुए समुद्र में मिलते हैं और यही नमक में आते हैं। इसलिए खड़ा नमक अधिक अच्छा है, लेकिन सोडियम की मात्रा अधिक होने के कारण वह शरीर में नुकसान भी करता है।
इसकी तुलना में सेंधा नमक /काला नमक / डेले वाले नमक में सोडियम की मात्रा कम होती है और मैग्नीशियम, कैल्शियम, पोटेशियम आदि का अनुपात सन्तुलित होता है इसलिये यह नमक हल्का, सुपाच्य और शरीर के लिए लाभदायक होता है। हम प्रतिदिन जो अनाज, सब्जियाँ और फल खाते हैं उनमें आजकल भरपूर मात्रा में UREA, DAP के रुप में रासायनिक खाद और विभिन्न प्रकार के कीटनाशक डाले जाते हैं जिसके कारण ये विष हमारे शरीर में जाते हैं और एक अनुमान के अनुसार हम एक वर्ष में लगभग 70 ग्राम विष खा लेते हैं।
सेंधा नमक / काला नमक / डेले वाला नमक इस विष को कम करता है और थायराइड, लकवा, मिर्गी आदि रोगों को रोकता है। काला और सेंधा नमक में 84 मिनरल्स होते हैं इसके अलावा इसमें Trace Minerals भी होते हैं इन Trace Minerals के कारण ही सोडियम शरीर को निरोगी बनाता है।
रिफाइण्ड नमक में 98% सोडियम क्लोराइड ही है शरीर इसे विजातीय पदार्थ के रुप में रखता है। यह शरीर में घुलता नही है। इस नमक में आयोडीन को बनाये रखने के लिए Tricalcium Phosphate, Magnesium Carbonate, Sodium Alumino Silicate जैसे रसायन मिलाये जाते हैं जो सीमेंट बनाने में भी इस्तेमाल होते है।
विज्ञान के अनुसार यह रसायन शरीर में रक्त वाहिनियों को कड़ा बनाते हैं जिससे ब्लाक्स बनने की संभावना और आक्सीजन जाने मे परेशानी होती है, जोड़ो का दर्द और गढिया, प्रोस्टेट आदि होती है। आयोडीन नमक से पानी की जरुरत ज्यादा होती है। 1 ग्राम नमक अपने से 23 गुना अधिक पानी खींचता है। यह पानी कोशिकाओ के पानी को कम करता है। इसी कारण हमें प्यास ज्यादा लगती है।
अपने आसपास के दुकान वालों से सेंधा नमक या काला नमक या डेले वाला नमक लें अगर उपलब्ध न हो तो बतायें हमारे साथी कार्यकर्ता उपलब्ध करवा सकते हैं।
सुबह का खाना सबसे अच्छा –
हमारे भोजन की दिनचर्या अत्यधिक बिगड़ गर्इ है ना तो हम अपनी प्रकृति के अनुसार भोजन करते हैं और ना ही सही समय पर भोजन करते हैं । देर रात में भोजन करना सबसे हानिकारक है क्योंकि उस समय हमारी जठराग्नि सबसे मंद होती है जिसके कारण भोजन का पाचन भली-भांति नहीं हो पाता और वह सड़कर कर्इ प्रकार की बीमारियों को जन्म देता है।
दिन में सूर्य के प्रकाश के ताप से जठराग्नि सबसे अधिक सक्रिय रहती है जो भोजन के पाचन के लिये उत्तम है इसलिये महर्षि वागभट्ट ने कहा है कि प्रातः काल सूर्योदय से ढाई घण्टे के अन्दर भरपेट भोजन करना चाहिये क्योंकि उस समय जठराग्नि सबसे तीव्र होती है। फिर दोपहर के बाद शाम को 4-6 बजे के बीच में भोजन ग्रहण करना चाहिए क्योंकि सूर्यास्त के बाद जठराग्नि मंद होने लगती है । इसलिए रात में भोजन ना करें।
सुबह भोजन के तुरन्त बाद ऋतु के अनुसार किसी भी फल का रस ले सकते हैं।
दोपहर में खाने के तुरन्त बाद छाछ या मठ्ठा ले सकते हैं।
शाम के भोजन के बाद, रात में दूध पीकर सोना सर्वोत्तम है।
भोजन की दिनचर्या में इतना भी परिवर्तन हो जाये तो स्वास्थ्य काफी अच्छा रहता है।
भोजन –
भोजन जब भी करें तो ज़मीन पर चौकड़ी मारकर ही करें क्योंकि हमारे कूल्हों के ऊपर एक चक्र होता है जिसका सीधा सम्बन्ध जठराग्नि से होता है इसलिए सुखासन (आल्ति-पालती) मारकर सीधे बैठकर भोजन ग्रहण करने से जठराग्नि तीव्रता से काम करती है, परन्तु जब हम कुर्सी पर बैठकर या खड़े होकर भोजन करते हैं तो इसका ठीक उल्टा होता है इसलिये कभी भी खड़े होकर या कुर्सी में बैठकर भोजन नहीं करना चाहिये । भोजन लेने के बाद दस मिनट वज्रासन में अवश्य बैठना चाहिए जिससे हमारा भोजन अच्छी तरह से अमाशय में पहुँच जाता है।
24 घण्टे में यदि हम एक बार भोजन करें तो वह सबसे अच्छा पचता है क्योंकि शरीर में बनने वाला पाचक रस पूर्ण रूप से उसी कार्य में प्रयुक्त होता है इसीलिये ऋषि-मुनि तपस्वी लोग एक बार के भोजन से ही लम्बी आयु जीते थे। अगर दो बार भोजन करें तो भी अच्छा है सामान्य रुप से कम से कम दो बार अवश्य भोजन करें और अधिक से अधिक 24 घण्टे में 3 बार ही भोजन करें, क्योंकि हम जितनी अधिक बार भोजन करते हैं हमारा पाचक रस उतनी मात्रा में बँटता जाता है और पाचन की शक्ति कम होती जाती है।
लाभ:- पित्त की अधिकता के कारण होने वाले रोगों से छुटकारा मिलता है। अपच, खट्टी डकारें, अम्लता, एसिडिटी, रक्त विकार, उच्च रक्तचाप, मोटापा आदि रोगों में लाभ प्राप्त होता है।
खतरनाक है ऐल्युमिनियम के बर्तन –
हमारे देश में एल्यूमिनियम के बर्तन 100-150 साल पहले ही आये हैं उससे पहले धातुओं में पीतल, काँसा, चाँदी, फूल आदि के बर्तन ही चला करते थे और बाकी मिटटी के बर्तन चलते थे। अंग्रेजों ने जेलों में कैदियों के लिये ऐल्यूमीनियम के बर्तन शुरु किये क्योंकि उसमें से धीरे-धीरे विष हमारे शरीर में जाता है। ऐल्यूमीनियम के बर्तन के उपयोग से कर्इ प्रकार के गंभीर रोग होते हैं जैसे अस्थमा, वात रोग, टी.बी. शुगर आदि ।
पुराने समय में फूल और पीतल के बर्तन होते थे जो स्वास्थ्य के लिये अच्छे माने जाते हैं यदि संभव हो तो वही बर्तन फिर से लेकर आयें, हमारे पुराने वैज्ञानिकों को मालूम था कि एल्यूमीनियम बाक्साइट से बनता है और भारत में इसकी भरपूर खदानें हैं फिर भी उन्होंने एल्यूमीनियम के बर्तन नहीं बनाये क्योंकि यह भोजन बनाने और खाने के लिए सबसे घटिया धातु है इससे अस्थमा, टी.बी., वात रोग में बढ़ावा मिलता है इसलिये एल्यूमीनियम के बर्तनों का उपयोग बन्द करें ।.
आटा 15 दिन से ज्यादा पुराना न खायें –
15 दिन से अधिक पुराने आटे के पोषक तत्त्व नष्ट हो जाते हैं जिससे केवल हमारा पेट ही भरता है और शरीर को कोई पोषकता नहीं मिलती। गेहूँ का आटा 15 दिन, और बाजरा, ज्वार, जौ आदि का आटा 7 दिन से अधिक पुराना नहीं होना चाहिए।
सबसे अच्छा हाथ की चक्की से पिसा हुआ आटा होता है क्योंकि हाथ की चक्की से गेहूँ पीसते समय आटे का तापमान 25 से 30 डिग्री से ज्यादा नहीं होता है और हम उसे आसानी से स्पर्श कर सकते हैं और पीसते समय कम तापमान होने के कारण उसके सारे पोषक तत्व सुरक्षित रहते हैं, लेकिन आधुनिक चक्की से पिसा हुआ आटा इतना गर्म होता है कि, हम तुरन्त उसे स्पर्श तक नहीं कर सकते और अधिक तापमान होने के कारण उसके पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं। पुराने समय में हमारी मातायें हाथ की चक्की से ही गेहूँ पीसती थीं जिससे उनके गर्भाशय का व्यायाम होता था और गर्भाशय का लचीलापन बना रहता था जिसके कारण प्रसूति में सिजेरियन की आवश्यकता नहीं होती थी व सभी की सामान्य प्रसूति (Normal Delivery) होती थी ।
पानी हमेशा घूँट-घूँट और बैठ कर पिएं –
पानी सदैव धीरे-धीरे पीना चाहिये अर्थात घूँट-घूँट कर पीना चाहिये, यदि हम धीरे-धीरे पानी पीते हैं तो उसका एक लाभ यह है कि हमारे हर घूँट में मुँह की लार पानी के साथ मिलकर पेट में जायेगी और पेट में बनने वाले अम्ल को शान्त करेगी क्योंकि हमारी लार क्षारीय होती है और बहुत मूल्यवान होती है। हमारे पित्त को संतुलित करने में इस क्षारीय लार का बहुत योगदान होता है।
जब हम भोजन चबाते हैं तो वह लार में ही लुगदी बनकर आहार नली द्वारा अमाशय में जाता है और अमाशय में जाकर वह पित्त के साथ मिलकर पाचन क्रिया को पूरा करता है। इसलिये मुँह की लार अधिक से अधिक पेट में जाये इसके लिये पानी घूँट-घूँट पीना चाहिये और बैठकर पीना चाहिए।
कभी भी खड़े होकर पानी नहीं पीना चाहिए (घुटनों के दर्द से बचने के लिए) ! कभी भी बाहर से आने पर जब शरीर गर्म हो या श्वाँस तेज चल रही हो तब थोड़ा रुककर, शरीर का ताप सामान्य होने पर ही पानी पीना चाहिए। भोजन करने से डेढ़ घंटा पहले पानी अवश्य पियें इससे भोजन के समय प्यास नहीं लगेगी।
प्रातः काल उठते ही सर्वप्रथम बिना मुँह धोए, बिना ब्रश किये कम से कम एक गिलास पानी अवश्य पियें क्योंकि रात भर में हमारे मुँह में Lysozyme नामक जीवाणुनाशक तैयार होता है जो पानी के साथ पेट मे जाकर पाचन संस्थान को रोगमुक्त करता है।
सुबह उठकर मुँह की लार आँखों में भी लगार्इ जा सकती है चूंकि यह काफी क्षारीय होती है इसलिए आँखों की ज्योति और काले सर्किल के लिए काफी लाभकारी होती है। दिन भर में कम से कम 4 लीटर पानी अवश्य पियें, किडनी में स्टोन ना बने इसके लिये यह अति आवश्यक है कि अधिक मात्रा में पानी पियें और अधिक बार मूत्र त्याग करें।
पानी कितना पियें –
आयुर्वेद के अनुसार सूत्र – शरीर के भार के 10 वें भाग से 2 को घटाने पर प्राप्त मात्रा जितना पानी पियें ।
उदाहरण: अगर भार 60 किलो है तो उसका 10 वां भाग 6 होगा और उसमें से 2 घटाने पर प्राप्त मात्रा 4 लीटर होगी ।
लाभ – कब्ज, अपच आदि रोगों में रामबाण पद्धति है मोटापा कम करने में भी सहायता होगी, जिनको पित्त अधिक बनता है उनको भी लाभ होगा।
रेफ्रिजरेटर का उपयोग घातक है –
मिट्टी के बर्त्तनों का ही प्रयोग करें
रेफ्रिजरेटर का उपयोग मूलत: कम तापमान पर रहने वाली दवाओं के लिये किया जाता था लेकिन आज वह हमारी रसोर्इ का हिस्सा है। इसमें से कर्इ प्रकार की विषैली गैसें निकलती हैं जैसे HFC,CFC के अन्तर्गत CFC-2,CFC-3,CFC-4 से लेकर CFC-12 तक । क्लोरीन, फ्लोरीन, कार्बन डार्इ आक्सार्इड जैसी विषैली गैसों के उपयोग से बना यह रेफ्रिजरेटर मूलत: ठंडे देशों के लिए है जहाँ का तापमान शून्य से भी नीचे चला जाता है।
हमारे यहाँ तो सूर्य का प्रकाश बारह महीने रहता है इसलिए यहाँ की समशीतोष्ण जलवायु के कारण हमेशा ताजा और गर्म खाने का चलन है। इसके अलावा, रेफ्रिजरेटर में सूर्य का प्रकाश और पवन का स्पर्श भी नहीं हो सकता, इसलिए इसमें रखा हुआ भोजन भी विष के समान हो जाता है।
भोजन के अन्त मे पानी विष के समान है –
भोजन हमेशा धीरे-धीरे, आराम से जमीन पर बैठकर करना चाहिए ताकि वह सीधे आमाशय में जा सके। यदि पानी पीना हो तो भोजन से 48 मिनट पहले और डेढ़ घण्टा बाद पानी पियें। भोजन के समय पानी ना पियें, यदि प्यास लगती हो या भोजन अटकता हो तो मठ्ठा/छाछ ले सकते है या उस मौसम के किसी भी फल का रस पी सकते हैं (डिब्बा बन्द फलों का रस ग़लती से भी ना पियें) !
पानी नहीं पीना है क्योंकि जब हम भोजन करते हैं तो उस भोजन को पचाने के लिए हमारे जठर में अग्नि प्रदीप्त होती है उसी अग्नि से वह भोजन पचता है। यदि हम पानी पीते हैं तो भोजन पचाने के लिए उत्पन्न हुर्इ अग्नि मंद पड़ती है जिसके कारण भोजन अच्छी तरह से नहीं पचता और वह विष बनता है जो कर्इ प्रकार के रोगों को उत्पन्न करता है। भोजन के मध्य में थोड़ा सा पानी पी सकते हैं एक/दो छोटे घूँट केवल तीन परिस्थितियों में ही, जैसेः-
1) भोजन गले में अटक जाये,
2) भोजन करते समय छींक या खांसी के कारण और
3) यदि आपके भोजन में दो प्रकार के अन्न है (जैसे गेहूँ और चावल, गेहूँ और बाजरा, मक्की और चावल आदि), तो भोजन के मध्य मे एक अन्न को लेने के बाद और दूसरा अन्न प्रारम्भ कर्रने से पहले आप एक/दो छोटे घूँट पानी ले सकते है लेकिन अन्त में पानी ना पियें।
भोजन के तुरन्त बाद पानी नहीं पीना, तो क्या पियें ?
भोजन के अंत में सुबह के समय ऋतु के अनुसार फलों का रस ले सकते हैं।
दोपहर में भोजन के बाद छाछ या मटठा या तक्रम ले सकते हैं।
शाम के भोजन के बाद रात्रि में दूध पीकर सोना सबसे अच्छा है।
भोजन की दिनचर्या में इतना परिवर्तन हो जाये तो स्वास्थ्य अच्छा हो जायेगा। अगर मोटापा दूर करना हो तो भोजन के अन्त में पानी पीना बन्द कर दें एक – दो महीने में लाभ मिलेगा, अपनी दिनचर्या मे परिवर्तन करके देख सकते हैं।
लाभ :- मोटापा कम करने के लिए यह पध्दति सर्वोत्त्तम है। पित्त की रोगों को कम करने के लिए अपच, खट्टी डकारें, पेट दर्द, कब्ज, गैस आदि रोगों को इस पध्दति से अच्छी तरह से ठीक किया जा सकता है।
गुड़ स्वास्थ के लिए अमृत है –
चीनी को सफेद ज़हर कहा जाता है जबकि गुड़ स्वास्थ्य के लिए अमृत है क्योंकि गुड़ खाने के बाद यह शरीर में क्षार पैदा करता है जो हमारे पाचन को अच्छा बनाता है (इसलिये वागभट्टजी ने खाना खाने के बाद थोड़ा सा गुड़ खाने की सलाह दी है) जबकि चीनी अम्ल पैदा करती है जो शरीर के लिए हानिकारक है। गुड़ को पचाने में शरीर को यदि 100 कैलोरी ऊर्जा लगती है तो चीनी को पचाने में 500 कैलोरी खर्च होती है।
गुड़ में कैल्शियम के साथ-साथ फास्फोरस भी होता है जो शरीर के लिए बहुत अच्छा माना जाता है और अस्थियों को बनाने में सहायक होता है। जबकि चीनी को बनाने की प्रक्रिया में इतना अधिक तापमान होता है कि फास्फोरस जल जाता है चीनी में कोई प्रोटीन नहीं, विटामिन नहीं, कोई सूक्ष्म पोषक तत्व नहीं होता केवल मीठापन है और वो मीठापन भी शरीर के काम का नही ! इसलिये अच्छे स्वास्थ्य के लिए गुड़ का उपयोग करें।
गुड़ में कैल्शियम, फास्फोरस, मैग्नीशियम, पोटेशियम, आयरन और कुछ मात्रा मे कॉपर जैसे स्वास्थ्य वर्धक पदार्थ होते हैं। आँकड़ों के अनुसार गुड़ में ब्राउन शुगर की अपेक्षा पाँच गुना अधिक और शक्कर की अपेक्षा पचास गुना अधिक मिनरल्स होते है। गुड़ की न्यूट्रीशन वैल्यू शहद के बराबर है। बच्चे के जन्म के बाद माता को गुड़ देने से कर्इ बड़ी बीमारियां दूर होती हैं यह मिनरल्स की कमी को दूर करता है बच्चे के जन्म के 40 दिनों के अन्दर माता के शरीर में बनने वाले सभी ब्लड क्लाट्स को खत्म करता है। गुड़ आधे सिर के दर्द से बचाव करता है स्त्रियों में मासिक धर्म से सम्बंधित परेशानियों को ठीक करता है और शरीर को ठंडा रखता है।
मिट्टी के बर्तन की विशेषताएं –
हजारों वर्षों से हमारे यहाँ मिट्टी के बर्तनों का उपयोग होता आया है अभी कुछ वर्षों पूर्व तक गाँवों में वैवाहिक कार्यक्रमों में तो मिट्टी के बर्तन ही उपयोग में आते थे। घरों में दाल पकाने, दूध गर्म करने, दही जमाने, चावल बनाने और अचार रखने के लिए मिट्टी के बर्तनों का उपयोग होता रहा है।
मिट्टी के बर्तन में जो भोजन पकता है उसमें सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी नहीं होती जबकि प्रेशर कुकर व अन्य बर्तनों में भोजन पकाने से सूक्ष्म पोषक तत्व कम हो जाते हैं जिससे हमारे भोजन की पौष्टिकता कम हो जाती है। भोजन को धीरे-धीरे ही पकना चाहिये तभी वह पौष्टिक और स्वादिष्ट पकेगा और उसके सभी सूक्ष्म पोषक तत्व सुरक्षित रहेंगे ।
मिट्टी
महर्षि वागभट्ट के अनुसार भोजन को पकाते समय उसे सूर्य का प्रकाश और पवन का स्पर्श मिलना आवश्यक है जबकि प्रेशर कुकर में पकाते समय भोजन को ना तो सूर्य का प्रकाश और ना ही पवन का स्पर्श मिल पाता, जिससे उसके सारे पोषक तत्व क्षींण हो जाते हैं ।
और प्रेशर कुकर एल्यूमीनियम का बना होता है जो कि भोजन पकाने के लिये सबसे घटिया धातु है क्योंकि एल्यूमीनियम भारी धातु होती है और यह हमारे शरीर से अपशिष्ट पदार्थ के रूप में बाहर नहीं निकल पाती है । इसी कारण एल्यूमीनियम के बर्तनों का उपयोग करने से कर्इ प्रकार के गंभीर रोग होते हैं जैसे अस्थमा, वात रोग, टी.बी. मधुमेह (डायबिटीज), पक्षाघात (पेरेलिसिस), स्मरण शक्ति का कम होना आदि! वैसे भी भाप के दबाव से भोजन उबल जाता है पकता नहीं है।
आयुर्वेद के अनुसार जो भोजन धीरे-धीरे पकता है वह भोजन सबसे अधिक पौष्टिक होता है । भोजन को शीघ्र पकाने के लिये अधिक तापमान का उपयोग करना सबसे हानिकारक है। हमारे शरीर को प्रतिदिन 18 प्रकार के सूक्ष्म पोषक तत्व चाहिए जो मिट्टी से ही आते है। जैसे- Calcium, Magnesium, Sulphur, Iron, Silicon, Cobalt, Gypsum आदि। मिट्टी के इन्ही गुणों और पवित्रता के कारण हमारे यहाँ पुरी के मंदिरों (उड़ीसा) के अलावा कर्इ मंदिरों में आज भी मिट्टी के बर्तनों में प्रसाद बनता है। अधिक जानकारी के लिए पुरी के मंदिर की रसोर्इ देखें।
कच्ची घानी का तेल खायें –
आधुनिक विज्ञान ने हमें तेल के नाम पर विष खाने के लिए विवश कर दिया है। आज रिफाइंड तेल बनाने के नाम पर हमारे स्वास्थ्य के लिये लाभदायक महत्वपूर्ण घटक (गंध, चिपचिपापन) निकाल लिये जाते है। तेल की मूल गंध जो प्रोटीन होती है और चिपचिपापन जिसके कारण उसे तेल कहते हैं उसके निकलने के बाद वह तेल नहीं है तेल जैसा पदार्थ रह जाता है।
रिफाइंड बनाने की इस प्रक्रिया में उसमें कर्इ हानिकारक रसायन ज़हर भी मिलाये जाते है। इसके साथ ही कानून की मदद से इसमें Palm oil मिलाकर बाजार में बेचा जा रहा है। जब से हम रिफाइंड तेल खाने लगे हैं तब से रक्त चाप, कैंसर, ह्रदयघात जैसे रोगों में गुणात्मक वृद्धि हुर्इ है।
रिफाइंड ओयल
पहले तेल में गैसोलीन नामक केरोसिन फेमिली का रसायन मिलाकर उसे पतला किया जाता है फिर उसमें हेक्सेन मिलाकर खूब हिलाया जाता है और तेल में उपस्थित महत्वपूर्ण घटक Fatty Acid और विटामिन-र्इ तथा Minerals निकाल लिए जाते हैं जबकि हमारा शरीर इनको स्वयं नहीं बना पाता, इसी कारण ये तत्व हमें तेल से प्राप्त होते हैं।
फिर इस तेल को 300 फैरेनहाइट पर उबाला जाता है ताकि गैसोलीन और हेक्सेन की दुर्गन्ध को दूर किया जा सके, तेल का मटमैला रंग निकालकर उसे ट्रांसपेरेन्ट बनाने के लिए ब्लीचिंग किया जाता है जिसके कारण वीटा केरोटिन और क्लोरोफिल खत्म हो जाता है, ये तत्व हमारे शरीर में कोलेस्ट्राल घटाने का काम करते हैं।
इसके बाद Degumming प्रक्रिया द्वारा तेल के महत्वपूर्ण घटकों Phosphalipiel तथा Lecithene को निकाल लिया जाता है जिससे तेल और अधिक पतला हो जाता है। फिर तेल से उसकी दुर्गन्ध निकालने के लिए तेल को 464 डिग्री फैरेनहाइट पर गर्म किया जाता है और सबसे अन्त में इस घटिया और तत्वहीन तेल को लम्बे समय तक टिकाये रखने के लिये उसमें प्रिजरवेटिव के रुप में Synthetic Anti Oxidants डाले जाते हैं। अब आप ही सोचिए कि हम तेल खा रहे हैं या विष ?
खाने के लिए घानी का तेल ही सबसे अच्छा होता है क्योंकि इसमें तेल को पेरते समय उसका तापमान 20 – 25 अंश सेन्टीग्रेट से ऊपर नहीं जाता जिससे उस तेल के तत्व नष्ट नहीं होते। जबकि रिफाइंड तेल को बनाने में उच्च तापमान का उपयोग किया जाता है और एक बार उच्च तापमान पर बना तेल दोबारा खाने योग्य नहीं होता । इसलिये खाने के लिये घानी का तेल ही सर्वोत्तम है अतः आप अपने-अपने क्षेत्र में घानी लगायें और घानी का तेल ही खायें ।
भोजन हमेशा अपने शरीर की प्रकृति और मौसम के हिसाब से करें –
आज के समय में हमें यह पता नहीं होता कि हमारा शरीर किस प्रकृति का है या हमारे शरीर में किस प्रकृति की प्रधानता है। वात-पित्त-कफ में से हमारे शरीर में असंतुलन किस प्रकार का है, बिना यह जाने हम भोजन करते हैं और वह भोजन हमारे शरीर की प्रकृति के विरुद्ध होता है जिससे हम रोगों को बढ़ावा देते हैं। जैसे यदि हमारे शरीर में पित्त बिगड़ा है तो पेट से सम्बंधित रोग होंगे । लेकिन हम जो भोजन करते हैं वह पित्त बढ़ाने वाला होता है जो रोगों को और अधिक बढ़ावा देता है।
पित्त प्रकृति वालों को पित्त शान्त करने वाला या वात बढ़ाने वाला भोजन करना चाहिये जिससे पेट के सभी रोगों को आसानी से ठीक किया जा सके। जिसके शरीर में वात बढ़ा हुआ है उसे पित्त बढ़ाने वाला भोजन करना चाहिये ताकि वात को कम किया जा सके।
वात,पित्त और कफ –
इसी प्रकार जिन लोगों का कफ प्रधान होता है उन्हें पित्त बढ़ाने वाला भोजन करना चाहिये और ठण्डी प्रकृति के पदार्थ से बचना चाहिए। सर्दियों में पित्त बढ़ाने वाला भोजन करना चाहिये जिससे जठराग्नि तीव्र रहे और भोजन का पाचन अच्छे से हो, सर्दियों में ठंडी प्रकृति वाला भोजन नहीं करना चाहिए ।
इसी प्रकार ग्रीष्म काल में पित्त की अधिकता रहती है इसलिये हल्का सुपाच्य भोजन लेना चाहिए और वर्षा ऋतु में जठरागिन मंद होती है इसलिये गर्म पानी और हल्का सुपाच्य भोजन ही लेना चाहिए।
वृद्धावस्था में वायु का प्रकोप अधिक रहता है, युवावस्था में पित्त की अधिकता रहती है और बचपन में कफ की प्रधानता रहती है। इसी प्रकार सुबह कफ का प्रभाव अधिक होता है इसलिए प्राय: सभी को कफ की समस्या रहती है। दोपहर में पित्त का प्रभाव अधिक होता है इसलिए बचपन जल्दी करना चाहिए और शाम को वायु का प्रभाव अधिक होता है।
इसलिए उम्र के प्रत्येक पड़ाव के लिए खान-पान की पद्धति उसी प्रकार की होनी चाहिए। बचपन में कफ अधिक बनता है यह अच्छी बात है क्योंकि बच्चे कफ से ही बड़े होते हैं लेकिन अधिक कफ बने तो भी समस्या है, इसलिए बच्चे मीठा अधिक खाते हैं क्योंकि वह कफ दूर करता है।
युवावस्था में पित्त अधिक बनता है इसलिए कुछ भी खालें उसका पाचन आसानी से हो जाता है, लेकिन पित्त अगर मात्रा से अधिक बनता है तो सावधान रहना पड़ेगा और वृद्धावस्था में वायु अधिक होने के कारण हल्का और सुपाच्य भोजन ही करें।
ठंडा पानी कभी न पिएं, हल्का गर्म पानी सर्वोत्त्तम है –
आजकल हमारे घरों में फ्रिज रखने का कुप्रचलन चल रहा है और उससे भी ज्यादा खतरनाक है फ्रिज से निकालकर ठंडा पानी पीना, फ्रिज का यह ठंडा पानी पित्ताशय के लिए अत्यधिक हानिकारक है। हमारे शरीर का तापमान 98.6 डिग्री सेल्सियस है, उसके हिसाब से हमारे शरीर के लिए 20-22 डिग्री तापमान का पानी उपयुक्त है उससे अधिक ठंडा पानी हानिकारक है।
आप खुद देखें जब आप अधिक ठंडा पानी पीते हैं तो वह तुरन्त गले के नीचे नहीं जाता, पहले वह मुँह में ही रहता है जब उसका तापमान सामान्य हो जाता है, तभी गला उसे नीचे उतारता है और अधिक समय तक ठंडा पानी पीते रहने से टॉन्सिल्स की समस्या उत्पन्न होती है एवं जठरागिन मंद पड़ती है।
इसके अलावा ठंडे पानी को गर्म करने के लिए शरीर को अतिरिक्त ऊर्जा खर्च करनी पड़ती है और रक्त संचार भी अधिक करना पड़ता है तथा ठंडा पानी हमारे शरीर में बनने वाले पाचक रस का तापमान भी कम कर देता है जिससे भोजन के पाचन में कठिनाई होती है और ठण्डे पानी से पेट की बड़ी आंत भी सिकुड़ जाती है जो कोष्ठबध्दता (Constipation) का मूल कारण है।
हम सबका अनुभव है कि यदि हम पेड़ा, बर्फी, आइसक्रीम आदि फ्रिज मे रखते हैं तो वे जम जाते हैं और कड़े हो जाते हैं ठीक इसी प्रकार ठंडा पानी मल को जमा देता है जो पाइल्स या बड़ी आंत से सम्बन्धित रोगों का सबसे बड़ा कारण है जिसमें मल कठोर हो जाता है और अधिकांशत: मल के साथ खून आता है, इसलिए अधिक ठंडा या फ्रिज का पानी न पियें।
सुबह उठकर सबसे पहले कुल्ला या ब्रश किए बिना पानी पियें, क्योंकि सुबह की लार बहुत क्षारीय(Alkaline) होती है! प्राकृतिक रूप से पेट मे अम्ल (Acid) बनता रहता है और मुंह मे क्षार (लार) बनती है !
मुंह की क्षार जब पेट मे जाती है तो, क्षार और अम्ल दोनो मिलकर अनावेशित (न्यूट्रल) हो जाते है और जिसका भी पेट अनावेशित (न्यूट्रल) हो जाता है वह एक लम्बे समय तक निरोगी जीवन व्यतीत कर सकता है इसलिये सुबह की लार पेट में अवश्य जानी चाहियें। सुबह की लार को यादि त्वचा पर कोई दाग – धब्बा, चोट पर, आँखों के नीचे काले घेरे और दाद-खाज खुजली आदि पर लगाकर हल्के हाथ से मालिश करे तो इसका औषधीय प्रभाव होता है !
सुबह की लार शरीर के लियें अमृत समान है !
जिनका पित्त अधिक बनता है, उन्हें पानी को उबाल कर, उसे कमरे के तापमान जितना ठंडा करने के बाद ही पीना चाहिए! उन्हें गर्म पानी या गुनगुना पानी कभी नहीं पीना चाहिए। पानी को इतना उबाले कि पानी का 1/4 भाग (चतुर्थांश) वाष्पित हो जाये, फिर उसे ठंडा करके पियें!
जिनका कफ अधिक बनता हो, वो पानी को इतना उबाले कि पानी का 2/3 भाग वाष्पित हो जायें और बाकी 1/4 भाग पानी को ठंडा करके पियें!
जिनको वायु अधिक बनती हो उनको पानी को गर्म करने पर जब आधा वाष्पित हो जाये, तब उसे ठंडा करके पीने का विधान है।
फ्रिज के ठंडे पानी को पेट मे पचने में 6 घण्टे लगते हैं, गर्म करके ठंडा किया हुआ पानी 3 घण्टे में पचता है और गुनगुना पानी पीने पर वह एक घण्टे में ही पच जाता है गर्म पानी सुपाच्य और गले की बीमारियों को दूर करने वाला होता है! इसलिए गुनगुना पानी पीना सर्वोत्त्तम है(जिनका पित्त अधिक हो उनको छोड़ कर)।
वर्षा ऋतु में पहली 2 -3 बारिश को छोड़कर, वर्षा के जल को किसी पात्र में एकत्र करना चाहिए, यह जल ही सर्वोत्त्तम है, वर्षा ऋतु में नदियों, कुओं,तलाबों और नल के पानी को साफ सूती कपड़े से छान कर और उबाल कर ही पीना चाहिए।
लाभ :-
– मुँह के टॉन्सिल्स को ठीक होने में मदद मिलती है।
– पित्त बिगड़ने से (पेट सम्बन्धित रोग) होने वाले रोगों को ठीक करने में सहायता मिलती है।
– मोटापा कम करने में सहायता होती है।
– त्वचा सम्बन्धी रोगों एवं रक्त सम्बन्धी रोगों में लाभ होता है।
हम क्यो बीमार पड़ते है –
हम सब जानते हैं कि हमारा शरीर वात-पित्त-कफ (त्रिदोषों) के संतुलन से ही स्वस्थ रहता है। अगर किसी कारण से वात-पित्त-कफ का यह संतुलन बिगड़ता है तो हम बीमार पड़ते हैं और मृत्यु का कारण भी बनता है। अगर हम अपने शरीर पर ध्यान दें तो यह बिगड़ा हुआ संतुलन सुधारा जा सकता है। मौसम में परिवर्तन होने से भी हम बीमार पड़ते हैं सर्दी, बरसात, गर्मी के परिवर्तन से मौसम सम्बन्धी बीमारियाँ होती हैं जिन्हें हम जरा सी सावधानी से ठीक कर सकते हैं ।
अनियमित खान-पान, बेमेल खान-पान से भी हम बीमार पड़ते हैं बाजारु, सड़ी-गली चीजें खाने से, विपरीत आहार करने से, या अपनी प्रकृति के विरुद्ध आहार करने से भी हम बीमार पड़ते हैं, जैसे यदि हमारी प्रकृति पित्त प्रधान है तो हम अनजाने में पित्त बढ़ाने वाला भोजन करते हैं तथा बीमारी को और बढ़ावा देते हैं। अपनी प्रकृति को जानकर भोजन ग्रहण करें तो स्वस्थ रह सकते हैं।
अनियमित दिनचर्या जैसे देर रात तक जागना या देर तक सोना, अनावश्यक तनाव के कारण भी कर्इ सारी बीमारियाँ होती हैं। योग प्राणायाम, आसन आदि द्वारा हम स्वस्थ रह सकते हैं ।
बीमार होने का एक दूसरा बड़ा कारण यह भी है कि हम आज अनाज, फल, सब्जी आदि के रुप में जो भी खा रहे हैं वह सब रासायनिक खाद और कीटनाशकों के सहयोग से उत्पन्न किये जाते हैं। इसलिए वह खतरनाक रासायनिक तत्व अनाजों के द्वारा हमारे शरीर में आते हैं और अलग-अलग तरह की बीमारियों को जन्म देते हैं। दूध, घी, तेल, मसाले, दवाईयों में भी भारी मिलावट रहती है।
बीमारियाँ दो प्रकार की होती हैं एक तो वे जिनकी उत्पत्त्ति जीवाणुओं, वायरस या फंगस से होती हैं जैसे टी.बी. टायफाइड, टिटनेस, मलेरिया, निमोनिया आदि, ये बीमारियाँ जल्दी ठीक हो जाती हैं और इनकी दवायें भी विकसित हो गयी हैं।
दूसरे प्रकार की बीमारियाँ शरीर में बिना जीवाणुओं के होती हैं और धीरे-धीरे असाध्य बन जाती हैं, चूंकि इनके कारण का पता नहीं होता इसलिये इनकी दवायें पूरी तरह से विकसित नहीं हो पायी हैं जैसे एसिडिटी, दमा, उच्च रक्तचाप, गठिया, कर्क रोग, मधुमेह, प्रोस्टेट आदि। इन असाध्य बीमारियों को ठीक करने के लिए ही स्वदेशी चिकित्सा के प्रयोग किये जा रहे हैं।
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