जानिये सोना फसल उगाने वाली आयुर्वेदिक खाद व कीटनाशक का जबरदस्त फार्मूला
बिल्कुल समझ में नहीं आता कि आखिर खेतों में महंगे केमिकल्स युक्त फर्टिलाईजर्स और पेस्टीसाइड्स को डालने की जरूरत है ही क्यों, जबकि इनसे कई गुना ज्यादा फसल की पैदावार, इनसे कई गुना सस्ते हर्बल फर्टिलाईजर्स और पेस्टीसाइड्स से की जा सकती है !
यदि कोई किसान लगातार 3 – 4 फसल सिर्फ आयुर्वेदिक खादों और कीटनाशकों के भरोसे बोये तो फिर देखे कि कैसे नहीं उसकी फसल का मुनाफा बढ़ रहा है !
असल में आयुर्वेदिक खादों और कीटनाशकों के एक दो बार प्रयोग करने से तो खेतों से पुराना केमिकल युक्त खादों और कीटनाशकों का जहर खत्म होता है और फिर खेत की उपजाऊ क्षमता में जबरदस्त इजाफा होने लगता है जिससे किसान के मुनाफे में भारी बढ़ोतरी होती है !
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद बंद पड़ी रासायनिक हथियारों की फैक्ट्रियों को फिर से चालू करने के लिए अंग्रेजों ने इन फैक्ट्रियों से रासायनिक खाद और कीटनाशक का उत्पादन कर जबरदस्ती हम गुलाम भारतियों को केमिकल युक्त कीटनाशक और खाद का प्रयोग करने पर मजबूर किया पर अंग्रेजों की यह जबरदस्ती धीरे धीरे हमारी आदत में तब्दील हो गयी जिसकी वजह से आज कैंसर (cancer) जैसी सैकड़ों घातक बीमारियाँ भारत के लगभग हर पांचवें घर में घुस चुकी है !
आईये जानते हैं उन बेहद आसान और प्रसिद्ध फार्मूलों में से 2 फार्मूलों के बारें में जिनकी मदद से हमारे भारत के पूर्वज खेतों से इतना ज्यादा मुनाफा कमाते थे कि उन्हें पैसा कमाने के लिए किसी और रोजगार या नौकरी की जरूरत ही नहीं पड़ती थी !
उनमें से एक खाद का नाम है “जीवामृत” खाद जिसे बनाने के लिए चाहिए होता है सिर्फ– भारतीय देशी गाय माता का गोबर, गोमूत्र, दही, दाल का आटा (बेसन), गुड़ और एक मुट्ठी बिना कीटनाशक वाली मिटटी (जो आसानी से किसी भी बरगद, पीपल या किसी भी पुराने पेड़ के जड़ में मिल जायेगी) !
इसके निर्माण के लिए – 200 लीटर जल में, 15 किलोग्राम गोबर, 5 लीटर गोमूत्र, किसी दाल का 1 किलो आटा, 1 किलोग्राम गुड़, 1 लीटर दही और एक मुट्ठी मिटटी को अच्छी तरह से मिलाकर मिश्रण बना लें और इसे 15 दिनों तक छाया में रखें (15 दिनों तक इस मिश्रण को रोज 1 – 2 मिनट के लिए किसी डंडे से हिलाना ना भूलें) !
इसकी प्रयोग विधि इस प्रकार है- पहले नार्मल गोबर खाद को खेत में डाल दें ! उसके तुरंत बाद ऊपर लिखी हुई विधि से 15 दिन बाद तैयार हुई जीवामृत लिक्विड खाद को एक एकड़ खेत में छिड़काव करें ! यह जीवामृत खाद, खेत में असंख्य लाभप्रद जीवाणुओं को पैदा करती है जिससे खेत की उपजाऊ क्षमता बहुत बढ़ जाती है (माना जाता है कि इस खाद की कोई एक्सपायरी डेट भी नहीं है क्योकि जैसे ही इसे उचित माहौल मिलता है, वैसे ही फिर से इसमें असंख्य लाभप्रद जीवाणु पैदा हो जातें हैं) !
भारतीय देशी गाय माता के गोबर, गोमूत्र, दही, दाल के आटे और गुड़ से बनी यह खाद फसल की पैदावार बढ़ाने के लिए बेजोड़ है और हर किसान को इसका असली चमत्कार देखने के लिए कम से कम 1 साल के लिए सिर्फ इसका अर्थात आयुर्वेदिक खाद और कीट नाशक का प्रयोग करके जरूर देखना चाहिए (सबसे बढ़िया परिणाम पाने के लिए हर 21 दिन में इस जीवामृत खाद का छिड़काव किया जा सकता है) !
कई अनुभवी बुद्धिजीवियों का मानना है कि ये जीवामृत खाद दुनिया की सबसे अच्छी खाद होती है क्योकि यह अन्य जैविक खादों (जैसे- वर्मीकम्पोस्ट यानी केचुआ खाद) से भी कई गुना ज्यादा फायदेमंद, सस्ती और जल्दी तैयार हो जाती है !
फसल के अलावा अगर आप किसी पेड़ के फलों की पैदावार भी बढ़ाना चाहते हैं तो उस फलदार वृक्ष के तने से 1 – 2 मीटर दूर, एक फुट चौड़ा व एक फुट गहरा गड्ढा खोदकर, उसे खेत में उपलब्ध कूड़ा-करकट (सूखी पत्ती, खरपतवार आदि) से भर दें और अन्त में उस गड्ढे को जीवामृत खाद से अच्छे से गीला कर दें । इसके फलस्वरूप पेड़ में फलों की पैदावार खूब ब़ढ जाती है !
उपर्युक्त खाद के फ़ॉर्मूले के अलावा एक और चमत्कारी खाद का फार्मूला जिसके निर्माण के लिए सिर्फ 2 चीज चाहिए होती है, एक गाय माता का गोबर और दूसरा किसी मरी हुई गाय माता का सींग !
इस चमत्कारी खाद का निर्माण तो बहुत आसान है पर इसके निर्माण में लगभग 6 महीने लग जाते हैं, किन्तु इसके लाभ इतने चमत्कारी हैं कि कोई भी प्रयोगकर्ता आसानी से इसके निर्माण के लिए 6 महीने इन्तजार करने को ख़ुशी – ख़ुशी तैयार हो जाता है !
इसे बनाने से पहले जानना जरूरी है कि आखिर गाय माता की सींग में क्या आश्चर्यजनक विशेषताएं है ?
वैसे तो प्रथम द्रष्टया गाय माता का सींग केवल एक रक्षा अस्त्र की तरह ही दिखता है लेकिन गाय माता को इसके द्वारा सीधे तौर पर अन्तरिक्ष से रहस्यमयी ऊर्जा मिलती रहती है अतः इसे एक प्रकार से गाय माता को ईश्वर द्वारा प्रदत्त दुर्लभ एंटीना माना जा सकता है। गाय माता की मृत्यु के 45 साल बाद तक भी यह सुरक्षित बना रहता है। गाय माता की मृत्यु के बाद उनकी सींग के उपयोग से श्रेठ गुणवत्ता की खाद बनाने की परम्परा वैदिक काल से चली आ रही है। सींग से बनी खाद, एक मृदा उत्प्रेरक की तरह भूमि की उर्वरता बढाती है जिससे पैदावार खूब बढती है !
इसके निर्माण कि विधि इस प्रकार है – सर्वप्रथम सींग को साफकर उसमें ताजे गोबर को अच्छी तरह से भर लें। सितंबर – अक्तूबर महीने में जब सूर्य दक्षिणायन पक्ष में हों, तब इस गोबर भरी सींग को एक से डेढ़ फिट गहरे गड्ढे में नुकीला सिरा ऊपर रखते हुए गाड़ देते हैं। इस सींग को गड्ढे से छः माह बाद मार्च – अप्रैल में भूमि से निकाल लेते हैं। इस खाद से मीठी महक आती है जो इसके अच्छी प्रकार से तैयार हो जाने का प्रमाण है !
इस प्रकार मात्र एक सींग से तीन – चार एकड़ खेत के लिए खाद तैयार हो सकती है। यह खाद खेत के लिए साक्षात् अमृत है और हर तरह से पौधों का पोषण करती है !
इसे प्रयोग कराने का तरीका- इस खाद को प्रयोग करने के लिए 25 ग्राम सींग खाद को 13 लीटर स्वच्छ जल में घोल लेते हैं। घोलने के समय कम से कम एक घंटे तक इसे लकड़ी की सहायता से हिलाते – मिलाते रहना चाहिए। सींग खाद से बने घोल का प्रयोग बीज की बुआई अथवा रोपाई से पहले सायंकाल छिड़काव विधि से करना ज्यादा बेहतर होता है !
अब बात करते हैं आयुर्वेदिक कीट नाशकों की-
यहाँ पर प्राचीन भारत के कई जबरदस्त आयुर्वेदिक कीटनाशकों के फ़ॉर्मूले दिए जा रहें हैं, इनमे से जो भी आसान लगे उसे बनाकर आजमाया जा सकते हैं–
– पक्की मिट्टी के नाद में अथवा किसी पात्र में 40 – 50 दिन पुराना 10 लीटर गोमूत्र रखना चाहिए। इसमें ढाई किलोग्राम नीम की पत्ती को डाल कर इसे 15 दिनों तक गोमूत्र में सड़ने दें। 15 दिन बाद इस गोमूत्र को छान लें। इस प्रकार एक जबरदस्त कीट-नियंत्रक गोमूत्र तैयार हो जाता है !
– कम से कम 40 – 50 दिन पुरानी, 15 लीटर गोमूत्र को तांबे के बर्तन में रखकर 5 किलोग्राम धतूरे की पत्तियों एवं तने के साथ उबालें ! 7.5 लीटर गोमूत्र शेष रहने पर इसे आग से उतार कर ठंडा करें एवं छान लें !
– मदार की 5 किलोग्राम पत्ती, 15 लीटर गोमूत्र में उबालें। 7.5 लीटर मात्रा शेष रहने पर छान लें !
– तंबाकू की 2.5 किलोग्राम पत्तियों को 10 लीटर गोमूत्र में उबालें और 5 लीटर मात्रा शेष रहने पर छान लें !
– नीम की 15 किलो पत्तियों को 30 लीटर गोमूत्र में 10 लीटर मात्रा शेष रहने तक उबालें। ठंडा कर छान लें !
प्रयोग विधि – एक लीटर कीटनाशक को 10 लीटर जल में मिलाकर पौधों में छिड़काव करें !
यह बार बार देखा गया है कि भारतीय देशी गौमाता और देशी नन्दी (बैल) का मूत्र जितना ज्यादा पुराना होता जाता है उतना ज्यादा उसकी गुणवत्ता अच्छी होती जाती है जबकि जितने भी मल्टीनेशनल कम्पनियों के कीट नाशक होते हैं उन सबकी एक्सपायरी डेट होती है जिसके बाद उनसे कीड़े मरते नहीं है !
कई बार किसान इन केमिकल युक्त खादों और कीटनाशकों के छिड़काव के दौरान उसे सूंघने या ओठों पर छीटे पड़ने से गम्भीर रूप से बीमार या मर जाते हैं जबकि इन आयुर्वेदिक प्रोडक्ट्स के साथ ऐसा खतरा नहीं हैं !
शरीर को तो जो नुकसान है वो तो है ही उसके अलावा यह एक महा पाप भी है कि जगत माता अर्थात धरती माता को बार – बार केमिकल युक्त जहरीली खाद और कीटनाशक से सींच कर धीरे धीरे उन्हें बंजर बनाना !
गाय माता से प्राप्त चीजों से बने इन आयुर्वेदिक खाद और कीटनाशक के लगातार तीन – चार साल इस्तेमाल करने पर खेत की मिट्टी एकदम पवित्र और शुद्ध बनने लगती है, मिट्टी में एक कण भी जहर का नहीं बचता है। उत्पादन भी पहले से काफी अधिक बढ़ जाता है। ध्यान देने की बात है कि फसल का उत्पादन हर साल धीरे – धीरे बढता ही जाता है लेकिन खाद और कीटनाशक का खर्चा पहले ही साल से काफी कम हो जाता है !
[नोट – यहाँ पर दिए गए सारे फायदे सिर्फ और सिर्फ भारतीय देशी गाय माता से प्राप्त होने वाले सभी अमृत तुल्य वस्तुओं (जैसे- गोबर, मूत्र, दूध, दही, छाछ, मक्खन आदि) के हैं, ना कि भैंस के या वैज्ञानिकों द्वारा सूअर के जीन्स से तैयार जर्सी गाय से प्राप्त होने वाली वस्तुओं के]
कृपया हमारे फेसबुक पेज से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करें
कृपया हमारे यूट्यूब चैनल से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करें
कृपया हमारे एक्स (ट्विटर) पेज से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करें
कृपया हमारे ऐप (App) को इंस्टाल करने के लिए यहाँ क्लिक करें
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण से संबन्धित आवश्यक सूचना)- विभिन्न स्रोतों व अनुभवों से प्राप्त यथासम्भव सही व उपयोगी जानकारियों के आधार पर लिखे गए विभिन्न लेखकों/एक्सपर्ट्स के निजी विचार ही “स्वयं बनें गोपाल” संस्थान की इस वेबसाइट/फेसबुक पेज/ट्विटर पेज/यूट्यूब चैनल आदि पर विभिन्न लेखों/कहानियों/कविताओं/पोस्ट्स/विडियोज़ आदि के तौर पर प्रकाशित हैं, लेकिन “स्वयं बनें गोपाल” संस्थान और इससे जुड़े हुए कोई भी लेखक/एक्सपर्ट, इस वेबसाइट/फेसबुक पेज/ट्विटर पेज/यूट्यूब चैनल आदि के द्वारा, और किसी भी अन्य माध्यम के द्वारा, दी गयी किसी भी तरह की जानकारी की सत्यता, प्रमाणिकता व उपयोगिता का किसी भी प्रकार से दावा, पुष्टि व समर्थन नहीं करतें हैं, इसलिए कृपया इन जानकारियों को किसी भी तरह से प्रयोग में लाने से पहले, प्रत्यक्ष रूप से मिलकर, उन सम्बन्धित जानकारियों के दूसरे एक्सपर्ट्स से भी परामर्श अवश्य ले लें, क्योंकि हर मानव की शारीरिक सरंचना व परिस्थितियां अलग - अलग हो सकतीं हैं ! अतः किसी को भी, “स्वयं बनें गोपाल” संस्थान की इस वेबसाइट/फेसबुक पेज/ट्विटर पेज/यूट्यूब चैनल आदि के द्वारा, और इससे जुड़े हुए किसी भी लेखक/एक्सपर्ट के द्वारा, और किसी भी अन्य माध्यम के द्वारा, प्राप्त हुई किसी भी प्रकार की जानकारी को प्रयोग में लाने से हुई, किसी भी तरह की हानि व समस्या के लिए “स्वयं बनें गोपाल” संस्थान और इससे जुड़े हुए कोई भी लेखक/एक्सपर्ट जिम्मेदार नहीं होंगे ! धन्यवाद !