मृत्यु दर्प नाशनं : मौत का घमण्ड चूर करने वाले प्रचण्ड भैरव
भगवान सदाशिव ने श्री भैरव का नामकरण करते हुए स्पष्ट किया कि आपसे काल भी डरेगा। इस कारण इस लोक में ‘काल भैरव’ के नाम से आपकी प्रसिद्धि होगी।
काशी में श्री चित्रगुप्त और जयराम का कोई अधिकार तो नहीं होगा वरन् काशी में पाप-पुण्य का लेखा-जोखा और पापी व्यक्ति के शमन-दमन का एकमेव अधिकार आपके हाथों में होगा।
योगिनीहदयदीपिका टीका में लिखा हैं- ‘विश्वस्य भरणाद् रमणाद् वमनात् सृष्टि-स्थिति-संहारकारी परशिवो भैरवः।’
तंत्रालोक की विवेक टीका में भगवान शंकर के भैरव रूप को ही सृष्टि का संचालक बताया गया है।
श्री तंत्वनिधि नाम तंत्र-मंत्र में भैरव शब्द के तीन अक्षरों के ध्यान के उनके त्रिगुणात्मक स्वरूप को सुस्पष्ट परिचय मिलता है, क्योंकि ये तीनों शक्तियां उनमें समाविष्ट हैं !
‘भ’ अक्षरवाली जो भैरव मूर्ति हैं वह श्यामला हैं, भद्रासन पर विराजमान हैं तथा उदय कालिक सूर्य के समान सिंदूरवर्णी उनकी कांति है। वे एक मुखी विग्रह, अपने चारों हाथों में धनुष, बाण, वर तथा अभय धारण किए हुए हैं।
‘र’ अक्षरवाली भैरव मूर्ति श्याम वर्ण हैं। उनके वस्त्र लाल हैं। सिंह पर आरूढ़ वह पंचमुखी देवी अपने आठ हाथों में खड्ग, खेट (मूसल), अंकुश, गदा, पाश, शूल, वर तथा अभय धारण किए हुए हैं।
‘व’ अक्षरवाली भैरवी शक्ति के आभूषण श्वेत हैं। वह देवी समस्त लोकों का आश्रय है। विकसित कमल पुष्प उनका आसन है। वे चारों हाथों में क्रमशः दो कमल, वर एवं अभय धारण करती हैं।
मत्स्य पुराण में शिवजी माता पार्वती से कहते है कि वाराणसी मेरी प्रिय नगरी है। यहाँ पापी भी मोक्ष पाते है तथा सब प्राणियों को मुक्ति मिलती है। यहाँ नाना तरह के सिद्ध, संन्यासी और योगी रहते है। मेरे द्वारा इस नगरी को कभी न छोड़ने की वजह से ही इसे अविमुक्त क्षेत्र कहा जाता है।
बाबा काल भैरव को काशी का कोतवाल कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि श्री विश्वनाथ के दर्शन से पहले बाबा काल भैरव की इजाजत (दर्शन) लेना जरूरी है।
बाबा काल भैरव का प्रसिद्ध और प्राचीन मंदिर शहर के मैदागिन क्षेत्र में स्थित है।
बाबा काल भैरव मंदिर के पुरोहित बताते हैं कि बाबा से जुड़ी एक और रोचक मान्यता है कि, आमतौर पर शहरों में कभी-कभी बड़े अधिकारियों द्वारा सभी पुलिस थानों का निरीक्षण किया जाता है, लेकिन बाबा काल भैरव के मंदिर के पास के थाने में कभी निरीक्षण नहीं होता है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि बाबा खुद उसका निरीक्षण करते हैं।
पुराणों में उल्लेख मिलता है कि कालान्तर में ब्रह्मा जी के पांच मुंखों में से एक मुख से अचानक से भगवान् शिव की निंदा हो गयी थी । इससे नाराज श्री काल भैरव ने ब्रह्माजी के उस मुख को ही अपने नाख़ून से काट दिया । श्री काल भैरव के नाख़ून में श्री ब्रह्मा के मुख का अंश चिपका रह गया था, जो हट नहीं रहा था।
श्री भैरव ने परेशान होकर सारे लोकों की यात्रा कर ली, मगर ब्रह्महत्या से मुक्ति नहीं मिली। तब भगवान विष्णु ने काल भैरव को काशी भेजा। यहां पहुंचकर उन्हें ब्रह्म हत्या के दोष से मुक्ति मिली और उसके बाद से वे यहीं स्थापित हो गए।
तंत्रसार में वर्णित आठ भैरव असितांग, रूरू, चंड, क्रोध, उन्मत्त, कपाली, भीषण, संहार नाम वाले कहे गए हैं।
भगवान भैरव की महिमा अनेक शास्त्रों में मिलती है। श्री भैरव जहाँ भगवान् शिव के प्रमुख गण के रूप में जाने जाते हैं, वहीं वे माँ दुर्गा के अनुचारी भी माने जाते हैं। श्री भैरव की सवारी कुत्ता है।
चमेली फूल प्रिय होने के कारण उपासना में इसका विशेष महत्व है। साथ ही भैरव रात्रि के देवता माने जाते हैं और इनकी आराधना का खास समय भी मध्य रात्रि में 12 माना जाता है।
भगवान् भैरव की अत्यंत दयामयी कृपा से मनुष्य को सभी रोगों से मुक्ति मिलती है। वे संतान को लंबी उम्र प्रदान करते है। अगर कोई भूत-प्रेत बाधा, तांत्रिक क्रियाओं से परेशान है, तो उसे भगवान् भैरव की कृपा से निश्चित ही मुक्ति मिलती हैं।
जन्मकुंडली में अगर आप दोषों से परेशान हैं तो भैरव की पूजा करके पत्रिका के दोषों का निवारण आसानी से कर सकते है।
साक्षात् भगवान् शिव के ही स्वरुप श्री काल भैरव की प्रचण्ड सामर्थ्य के बारे में पुराणों में कहा गया है कि कौन सी ऐसी तकलीफ है जिसे नष्ट करने में ये सक्षम नहीं हैं या कौन सा ऐसा सुख है जिसे देने में ये सक्षम नहीं हैं अर्थात श्री काल भैरव निश्चित ही सर्वमनोरथ पूरक व सर्वकष्टहर्ता हैं !
भगवान् भैरव ने काशी की सुरक्षा के लिए 8 चौकियां भी स्थापित की है । बाबा कालभैरव का प्रसिद्ध मंदिर विश्वेशर गंज में है। इस मंदिर परिसर में बाबा दिव्य प्रतिमा रूप में वास करते हैं। मार्ग शीर्ष के कृष्णपक्ष की अष्टमी को सायंकाल बाबा कालभैरव प्रकट हुए थे।
इस दिन को बाबा के जन्मोत्सव के रूप में धूमधाम से मनाया जाता है। इस दौरान बाबा की प्रतिमा का कई प्रकार के सुगन्धित फूलों से आकर्षक ढंग का श्रृंगार किया जाता है। इसी दिन को ही भैरवाष्टमी भी कहते हैं और इनकी वार्षिक यात्रा भी होती है।
एक पैर पर खड़े बाबा कालभैरव काशी के दण्डाधिकारी हैं। प्रत्येक रविवार को बाबा कालभैरव के दर्शन-पूजन का विशेष विधान है। इस दिन काफी संख्या में भक्त दर्शन करने बाबा दरबार में पहुंचते हैं।
वाराणसी में नियुक्त होने वाले तमाम बड़े प्रशासनिक एवं पुलिस अधिकारी सर्वप्रथम बाबा विश्वनाथ एवं काल भैरव का दर्शन कर आशीर्वाद लेते हैं। कालभैरव का मंदिर प्रातःकाल 5 से दोपहर डेढ़ बजे तक एवं सायंकाल साढ़े 4 से रात साढ़े 9 बजे तक खुला रहता है।
श्री बटुक भैरव – श्री भैरव के इन्हीं महत्वपूर्ण मंदिरों में से एक मंदिर है श्री बटुक भैरव का। श्री बटुक भैरव का प्रसिद्ध मंदिर कमच्छा मोहल्ले में स्थित है। काफी बड़े मंदिर परिसर में मुख्य द्वार से भीतर जाते ही बायीं ओर बटुक भैरव की दिव्य प्रतिमा स्थापित है। इस मंदिर परिसर में भैरव के वाहन कुत्ते काफी संख्या में रहते हैं।
इस मंदिर में रविवार को काफी संख्या में श्रद्धालु दर्शन-पूजन के लिए आते हैं। वहीं अन्य दिनों में भी भक्त बटुक भैरव का दर्शन करते रहते हैं। पुराणों के अनुसार बटुक भैरव के दर्शन से भय नहीं लगता और भक्त काशी में बिना किसी कष्ट के निवास करता है। बटुक भैरव के मंदिर के पास ही कामाख्या देवी का प्रसिद्ध मंदिर स्थित है।
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