कैंसर एडवांस्ड स्टेज पर करते हैं भीषण प्रहार ये प्राकृतिक उपाय
जब शत्रु प्रबल हो और लड़ने के लिए समय भी इफरात ना हो तो बहुत जबरदस्त मोर्चाबंदी करनी पड़ती है शत्रु को कुचल डालने के लिए !
कैंसर (कर्कट रोग) इसी स्तर का शत्रु है और खासकर अगर यह बढ़कर एडवांस्ड स्टेज में पहुच गया हो तो !
कोई भी बीमारी चाहे कितना भी खतरनाक रूप पकड़ ले लेकिन तीन काम करने से उस पर निश्चित काबू पाया जा सकता है, और वो तीन काम है –
सही दवा का चुनाव, उचित परहेजों को नियमित करना और बीमारी से जीत जाने की तीव्र इच्छा का मन में होना !
ये तीनों काम बराबर के महत्व पूर्ण है क्योंकि बिना परहेज के सही दवा अपना फुल रिजल्ट नहीं दे पाती है और सिर्फ परहेज करने से बीमारी पूरी तरह से ठीक हो जाए, यह भी जरूरी नहीं है किन्तु किसी मरीज का मन यदि पहले से ही हार मान बैठा हो तो उस निराशा की वजह से शरीर में बहुत से हानिकारक हारमोंस पैदा होने लगतें है जो उस बिमारी को और ज्यादा उग्र होने में मदद करते हैं !
इसलिए जो कहावत है कि “मन के हारे हार है, मन के जीते जीत” एकदम सही है !
सही दवा का चुनाव भी आसान काम नहीं है क्योंकि जब कोई व्यक्ति किसी खतरनाक बीमारी से ग्रसित हो जाता है तो घबराहट में वह अक्सर विवेक पूर्ण निर्णय नहीं ले पाता है और जो जैसा समझा देता है वैसा ही समझ जाता है !
किसी भी काम का सही फल पाने में सिर्फ मेहनत और त्याग ही जरूरी नहीं होते बल्कि बुद्धि की भी सख्त जरूरत होती है और बुद्धि भी कैसी होनी चाहिए – सिर्फ शुद्ध तार्किक बुद्धि होनी चाहिए ना कि बहकावे या भीड़ से प्रभावित होने वाली !
कभी कभी यह भी देखने सुनने को मिलता है कि जो मरीज अपनी बीमारी से मर सकता है कुछ सालों में, वही मरीज डॉक्टर्स द्वारा खिलाई जाने वाली ढेर सारी एंटीबायोटिक्स समेत अन्य एलोपैथिक दवाओं के साइड इफेक्ट्स से कुछ ही महीनों में मर जाता है मतलब ऐसे मौके पर बीमारी से ज्यादा खतरनाक इलाज महसूस होता है !
इस खून के आंसू रुलाने वाली स्थिति को कोई और नहीं, सिर्फ और सिर्फ वही समझ सकता है जिसका कभी एलोपैथिक दवाओं के लम्बे भयंकर प्रकोप से पाला पड़ चुका हो !
अतः ऐसे लगभग हर भुक्त भोगी की एक सुर से यही सलाह रहती है कि यदि कोई आकस्मिक शारीरिक मुसीबत (इमेरजेंसी जैसे- हार्ट अटैक या एक्सीडेंट आदि) ना पड़ी हो तो अपनी किसी कठिन बीमारी के इलाज के लिए एलोपैथिक ट्रीटमेंट नाम की कष्टकारी गुफा में घुसने से पहले कम से कम एक बार तो योग व आयुर्वेद के सूरज को खोजने की कोशिश जरूर करनी चाहिए !
अगर अपार पैसा खर्च करने से कैंसर का इलाज होने की गारंटी हो जाती तो दुबई के बहुत से अरबपति शेख, कैंसर की सभी तकलीफों को भोगकर नहीं मरते !
ध्यान रहे कि परम आदरणीय हिन्दू धर्म में योग और आयुर्वेद की ताकत सिर्फ सभी बिमारियों के नाश तक ही सीमित नहीं बतायी गयी है बल्कि योग से किसी इंसान की सर्वोच्च उपलब्धी अर्थात अनंत ब्रह्मांडों के निर्माता ईश्वर के ही समान दिव्य रूप की प्राप्ति को भी बताया गया है !
आयुर्वेद पुनः विश्व में अपना खोया हुआ अखण्ड साम्राज्य प्राप्त करने की दिशा की ओर तेजी से अग्रसर हो रहा है जिसे साबित करता है अमेरिका और यूरोपियन देशों से भारत आकर, योग आयुर्वेद से अपनी कठिन बिमारियों का इलाज करवाने वाले मरीजों की संख्या में होने वाला तेज इजाफा !
आखिर अमेरिका व यूरोपियन देशों जैसे विकसित देशों से मरीज अपना इलाज करवाने कई समंदर पार कर भारत के विभिन्न योग व आयुर्वेद संस्थानों में क्यों आ रहें हैं ?
इसके दो ही कारण मुख्य हो सकतें हैं, पहला कारण यह हो सकता है कि उनकी किसी असाध्य बीमारी का परमानेंट इलाज आज के मॉडर्न साइंस के एलोपैथी में हो ही ना (कैंसर के कुछ केसेस में, कन्वेंशनल कीमोथेरेपी, सर्जरी व रेडियेशन ट्रीटमेंट आदि तरीके से ठीक हुए मरीजों में यह बीमारी फिर से लौटने की संभावना बनी रहती है) तथा दूसरा कारण यह भी हो सकता है कि उन्हें अपनी किसी कठिन बिमारी से मुक्ति पाने के लिए, एलोपैथी की तुलना में योग आयुर्वेद ज्यादा आसान व बेहद कम कष्टकारी तरीका लगा हो (जबकि भारत में आज भी बहुत से भारतियों को लगता है कि अमेरिका के बड़े बड़े हॉस्पिटल्स में शायद कोई बेहद अनोखा दिव्य चमत्कारी टाइप का इलाज होता है) !
इसलिए योग और आयुर्वेद से अपनी सभी कठिन बिमारियों में निश्चित आराम पाया जा सकता है बशर्ते किसी मरीज की, योग और आयुर्वेद के सही जानकार से मुलाकात हो पाए !
अतः अब यह आपकी जिम्मेदारी है कि अगर आप वाकई में अपने किसी सगे (जिसे कैंसर जैसी कोई कठिन बीमारी हो) के लिए दिल से समर्पित हैं तो उसके इलाज के लिए धरती आसमान एक कर दीजिये पर कहीं ना कहीं से योग आयुर्वेद के सच्चे जानकार को खोज निकालिए !
यह जरूरी नहीं है कि ऐसे जानकार आपको सिर्फ किसी बड़े योग आयुर्वेद संस्थानों में ही मिल सकें क्योंकि इस धरती का कोई भी कोना वीरों और विद्वानों से कभी भी शून्य नहीं हो सकता है अतः ऐसे जानकार हो सकता है कि आपके शहर के आस पास के किसी छोटे से गाँव में ही आपको मिल जाएँ पर हां खोजने में इतने भी आतुर ना हो जाएँ कि आपको नीम हकीम और सच्चे जानकार में कोई अंतर ही समझ में ना आये (भारत में अभी भी नीम हकीमों का नेटवर्क बहुत बड़ा है जिनके चंगुल में फस कर परेशान होने वालों का आयुर्वेद से भरोसा ही उठ जाता है इसलिए ऐसे ढोंगियों से बचना चाहिए) | वैसे अगर आपको किसी एक पतंजली स्टोर पर बैठने वाले आयुर्वेदिक चिकित्सक का इलाज लाभदायक ना लगा हो तो आप दूसरे पतंजली स्टोर या दूसरे शहर के पतंजली स्टोर के वैद्य के पास भी जाकर अनुभव ले सकतें हैं और अगर मरीज खुद वैद्य के पास जाने में सक्षम ना हो तो आप चिकित्सक को निवेदन कर या फीस देकर घर पर भी बुलाकर मरीज सम्बंधित सलाह प्राप्त करने का प्रयास कर सकतें है (पतंजलि स्टोर के अलावा अन्य जगह भी जानकार आयुर्वेदिक चिकित्सक मिल सकतें हैं) !
हर तरह के कैंसर के एडवांस्ड स्टेज में भी बेहद फायदेमंद कुछ औषधियों, परहेजों एवं मनोबल बढ़ाने के कुछ जबरदस्त उपायों का वर्णन हम यहाँ कर रहें जिनकी जानकारी हमें “स्वयं बनें गोपाल” समूह से जुड़े कुछ मूर्धन्य वैद्यों ने दी है !
सबसे पहले हम जानतें है कि कैंसर कितने प्रकार के हो सकतें हैं –
लोकप्रचलन में पहचानने के आधार पर कैंसर के प्रकार- ब्लड कैंसर (रक्त कैंसर), बोन कैंसर (हड्डियों का कैंसर), ब्रेन कैंसर (मष्तिष्क का कैंसर), ब्रेस्ट कैंसर (स्तन कैंसर), कोलेरेक्टल कैंसर, किडनी कैंसर, ल्यूकेमिया, लंग कैंसर (फेफड़ों के कैंसर,सॉलिटेरी फुफ्फुसीय गांठ) ओरल कैंसर (मुख कैंसर), आवेरियन कैंसर (एव्डोमीनल स्वेलींग), पेनक्रिएटिक कैंसर (पेनक्रियाज कैंसर), प्रोस्टेट कैंसर, यूट्रायीन कैंसर, कोलोन कैंसर, सर्वाइकल कैंसर (जो रक्त एवं लिम्फेटिक सिस्टम में होते है), होजकिन्स डिसीज, ल्यूकेमिया, लिम्फोमास, मल्टीपल मायोलोमा, वाल्डेन्सट्राम्स डिसीज, त्वचा कैंसर, मेलिग मेलानोमा, हेड एण्ड नेक कैंसर्स (गले का कैंसर), डायजेस्टिव सिस्टम के कैंसर (स्टमक कैंसर या पेट का कैंसर, लीवर कैंसर), इसोफेक्युअल कैंसर, ईसोफेगीएल कैंसर, रेक्टल कैंसर, एनल कैंसर, यूरेनरी सिस्टम के कैंसर (ब्लैडर कैंसर, टेस्टीज कैंसर), महिलाओं में कैंसर (गायनेकोलाॅजीकल कैंसर, कोरिओ कार्सीनोमा कैंसर) मिसलेनियस (Miscellaneous Cancers), ब्रेन ट्यूमर्स, बोन ट्यूमर्स, कार्सीनोईड ट्यूमर, Nasopharynqual Cancer, रेट्रोप्रिटोनेल सार्कोमास, साॅफ्ट टिश्यू ट्यूमर्स, थायराईड कैंसर, कैंसर ऑफ़ अननोन प्रायमरी साईट, गेस्ट्रोइन स्टेटीनाॅल कैंसर, एण्डोक्राइन कैंसर, आई कैंसर, जेनिटो यूरेनरी कैंसर, हेड एण्ड नेक कैंसर, स्किन कैंसर, थायराईड कैंसर आदि !
[ Detail descriptions of different types of cancers in English Language- Acute Lymphoblastic Leukemia (ALL), Acute Myeloid Leukemia (AML), Adolescents, Cancer in Adrenocortical Carcinoma, AdultvChildhood Adrenocortical Carcinoma (Unusual Cancers of Childhood), AIDS-Related Cancers, Kaposi Sarcoma (Soft Tissue Sarcoma), AIDS-Related Lymphoma (Lymphoma), Primary CNS Lymphoma (Lymphoma), Anal Cancer, Appendix Cancer (Gastrointestinal Carcinoid Tumors), Astrocytomas, Childhood (Brain Cancer), Atypical Teratoid/Rhabdoid Tumor, Childhood, Central Nervous System (Brain Cancer), Basal Cell Carcinoma of the Skin (Skin Cancer), Bile Duct Cancer, Bladder Cancer, Childhood Bladder Cancer (Unusual Cancers of Childhood), Bone Cancer (includes Ewing Sarcoma and Osteosarcoma and Malignant Fibrous Histiocytoma), Brain Tumors, Breast Cancer, Childhood Breast Cancer (Unusual Cancers of Childhood), Bronchial Tumors, Childhood (Unusual Cancers of Childhood), Burkitt Lymphoma (Non-Hodgkin Lymphoma), Carcinoid Tumor (Gastrointestinal), Childhood Carcinoid Tumors (Unusual Cancers of Childhood), Carcinoma of Unknown Primary, Childhood Carcinoma of Unknown Primary (Unusual Cancers of Childhood), Cardiac (Heart) Tumors, Childhood (Unusual Cancers of Childhood), Central Nervous System, Atypical Teratoid/Rhabdoid Tumor, Childhood (Brain Cancer), Embryonal Tumors, Childhood (Brain Cancer), Germ Cell Tumor, Childhood (Brain Cancer), Primary CNS Lymphoma, Cervical Cancer, Childhood Cervical Cancer (Unusual Cancers of Childhood), Childhood Cancers, Cancers of Childhood, Unusual Cholangiocarcinoma (Bile Duct Cancer Chordoma) Chronic Lymphocytic Leukemia (CLL), Chronic Myelogenous Leukemia (CML), Chronic Myeloproliferative Neoplasms, Colorectal Cancer, Childhood Colorectal Cancer (Unusual Cancers of Childhood), Craniopharyngioma, Childhood (Brain Cancer), Cutaneous T-Cell Lymphoma Lymphoma (Mycosis Fungoides and Sézary Syndrome), Ductal Carcinoma In Situ (DCIS), Breast Cancer, Embryonal Tumors, Central Nervous System, Childhood (Brain Cancer), Endometrial Cancer (Uterine Cancer), Ependymoma, Childhood (Brain Cancer), Esophageal Cancer, Childhood Esophageal Cancer, Esthesioneuroblastoma, Ewing Sarcoma (Bone Cancer), Extracranial Germ Cell Tumor, Childhood, Extragonadal Germ Cell Tumor, Eye Cancer, Childhood Intraocular Melanoma, Intraocular Melanoma, Retinoblastoma, Fallopian Tube Cancer, Fibrous Histiocytoma of Bone, Malignant, and Osteosarcoma, Gallbladder Cancer, Gastric (Stomach) Cancer, Childhood Gastric (Stomach) Cancer, Gastrointestinal Carcinoid Tumor, Gastrointestinal Stromal Tumors (GIST) (Soft Tissue Sarcoma), Childhood Gastrointestinal Stromal Tumors, Germ Cell Tumors, Childhood Central Nervous System Germ Cell Tumors (Brain Cancer), Childhood Extracranial Germ Cell Tumors, Extragonadal Germ Cell Tumors, Ovarian Germ Cell Tumors, Testicular Cancer, Gestational Trophoblastic Disease, Hairy Cell Leukemia, Head and Neck Cancer, Childhood Head and Neck Cancers Heart Tumors, Hepatocellular (Liver) Cancer, Histiocytosis, Langerhans Cell, Hodgkin Lymphoma, Hypopharyngeal Cancer (Head and Neck Cancer), Intraocular Melanoma, Childhood Intraocular Melanoma, Islet Cell Tumors, Pancreatic Neuroendocrine Tumors, Kaposi Sarcoma (Soft Tissue Sarcoma), Kidney (Renal Cell) Cancer, Langerhans Cell Histiocytosis, Laryngeal Cancer (Head and Neck Cancer), Childhood Laryngeal Cancer and Papillomatosis, Leukemia, Lip and Oral Cavity Cancer (Head and Neck Cancer), Liver Cancer, Lung Cancer (Non-Small Cell and Small Cell), Childhood Lung Cancer, Lymphoma, Male Breast Cancer, Malignant Fibrous Histiocytoma of Bone and Osteosarcoma Melanoma, Childhood Melanoma, Melanoma, Intraocular (Eye), Childhood Intraocular Melanoma, Merkel Cell Carcinoma (Skin Cancer), Mesothelioma, Malignant, Childhood Mesothelioma, Metastatic Cancer, Metastatic Squamous Neck Cancer with Occult Primary (Head and Neck Cancer), Midline Tract Carcinoma Involving NUT Gene, Mouth Cancer (Head and Neck Cancer), Multiple Endocrine Neoplasia Syndromes, Multiple Myeloma/Plasma Cell Neoplasms, Mycosis Fungoides (Lymphoma), Young Adults Cancer in, Myelodysplastic Syndromes, Myelodysplastic/Myeloproliferative Neoplasms, Myelogenous Leukemia, Chronic (CML), Myeloid Leukemia, Acute (AML), Myeloproliferative Neoplasms, Chronic, Nasal Cavity and Paranasal Sinus Cancer (Head and Neck Cancer), Nasopharyngeal Cancer (Head and Neck Cancer), Childhood Nasopharyngeal Cancer, Neuroblastoma, Non-Hodgkin Lymphoma, Non-Small Cell Lung Cancer, Oral Cancer, Lip and Oral Cavity Cancer and Oropharyngeal Cancer (Head and Neck Cancer), Childhood Oral Cavity Cancer, Osteosarcoma and Malignant Fibrous Histiocytoma of Bone, Ovarian Cancer, Childhood Ovarian Cancer, Pancreatic Cancer, Childhood Pancreatic Cancer, Pancreatic Neuroendocrine Tumors (Islet Cell Tumors), Papillomatosis, Paraganglioma, Childhood Paraganglioma, Paranasal Sinus and Nasal Cavity Cancer (Head and Neck Cancer), Parathyroid Cancer, Penile Cancer, Pharyngeal Cancer (Head and Neck Cancer), Pheochromocytoma, Childhood Pheochromocytoma, Pituitary Tumor, Plasma Cell Neoplasm/Multiple Myeloma, Pleuropulmonary Blastoma, Pregnancy and Breast Cancer, Primary Central Nervous System (CNS) Lymphoma, Primary Peritoneal Cancer, Prostate Cancer, Rectal Cancer, Recurrent Cancer, Renal Cell (Kidney) Cancer, Retinoblastoma, Rhabdomyosarcoma, Childhood (Soft Tissue Sarcoma), Salivary Gland Cancer (Head and Neck Cancer), Childhood Salivary Gland Tumors, Sarcoma, Childhood Rhabdomyosarcoma (Soft Tissue Sarcoma), Childhood Vascular Tumors (Soft Tissue Sarcoma), Ewing Sarcoma (Bone Cancer), Kaposi Sarcoma (Soft Tissue Sarcoma), Osteosarcoma (Bone Cancer), Uterine Sarcoma, Sézary Syndrome (Lymphoma), Skin Cancer, Childhood Skin Cancer, Small Cell Lung Cancer, Small Intestine Cancer, Soft Tissue Sarcoma, Squamous Cell Carcinoma of the Skin – see Skin Cancer, Squamous Neck Cancer with Occult Primary, Metastatic (Head and Neck Cancer), Stomach (Gastric) Cancer, Childhood Stomach (Gastric) Cancer, T-Cell Lymphoma, Cutaneous – see Lymphoma (Mycosis Fungoides and Sèzary Syndrome), Testicular Cancer, Childhood Testicular Cancer, Throat Cancer (Head and Neck Cancer), Nasopharyngeal Cancer, Oropharyngeal Cancer, Hypopharyngeal Cancer, Thymoma and Thymic Carcinoma, Thyroid Cancer, Childhood Thyroid Tumors, Transitional Cell Cancer of the Renal Pelvis and Ureter (Kidney (Renal Cell) Cancer), Unknown Primary, Carcinoma of Childhood Cancer of Unknown Primary, Unusual Cancers of Childhood, Ureter and Renal Pelvis, Transitional Cell Cancer (Kidney (Renal Cell) Cancer, Urethral Cancer, Uterine Cancer, Endometrial, Uterine Sarcoma, Vaginal Cancer, Childhood Vaginal Cancer, Vascular Tumors (Soft Tissue Sarcoma), Vulvar Cancer, Wilms Tumor and Other Childhood Kidney Tumors, ]
चार औषधियां हैं जिनका नाम सभी लोगों ने सुन रखा होगा इसलिए शायद उनके फायदों के बारे में कई लोगों को थोड़ी या बहुत शंका हो सकती है तो इस शंका को दूर करने का एक ही उपाय है कि सभी परहेजों को निभाते हुए और बिना कोई नकारात्मक विचार मन में लाये हुए, खुद कैंसर का मरीज इन औषधियों का लम्बे समय तक नियमित प्रयोग करे तो उसे निश्चित आश्चर्यजनक अनुभूति होगी –
पहली दवा का नाम है पुनर्नवा जो कि पहले गाँवों में बहुत आसानी से मिल जाती थी पर अब यह इतनी आसानी से नहीं मिल पाती है ! पुनर्नवा में भी सिर्फ एक प्रजाति विशेष फायदेमंद है !
इस औषधि का नाम पुनर्नवा इसलिए ऋषियों ने रखा क्योंकि यह प्रतिकूल मौसम की मार से बार बार सूखने के बावजूद फिर से हरी भरी (अर्थात नयी) हो जाती है और अपने इसी कायाकल्प करने के दुर्लभ गुण को यह, बीमारी से जीर्ण शीर्ण हो चुके मानव शरीर को प्रदान कर फिर से उसे धीरे धीरे नया (अर्थात पूर्ण स्वस्थ) बनाने लगती है !
पुनर्नवा चूंकि अब आसानी से नहीं मिलती है इसलिए इसे बाजार से टेबलेट फॉर्म में भी ख़रीदा जा सकता है ! इसे मरीज को वैद्यकीय परामर्शनुसार देना चाहिए !
कैंसर की भीषण शत्रु, दूसरी दवा है भारतीय देशी गाय माता का गोमूत्र जो कि लगभग आधा कप की मात्रा में कैंसर के मरीज को रोज सुबह खाली पेट देना होता है और फिर आधे घंटे तक कुछ भी नहीं खाना पीना होता है ! सादा गोमूत्र पीने में दिक्कत हो तो उसमे गुड़ मिलाकर भी पिया जा सकता है !
गोमूत्र के फायदे अनंत है इसी वजह से इसे दुनिया की सबसे रहस्यमय दवा भी कहा जा सकता है ! साक्षात् ब्रह्मा, विष्णु, महेश व माँ लक्ष्मी, सरस्वती व काली जी को अपने शरीर धारण करने वाली देशी गाय माता की सबसे कीमती चीज उनका मूत्र होता है जिसके फायदों के बारें में हम पहले भी कई लेख प्रकाशित कर चुकें (जिसमें से एक मुख्य लेख को इस लिंक पर क्लिक करके पढ़ा जा सकता है- सबसे रहस्यमय व सबसे कीमती दवा जो हर बीमारी में लाभ पहुँचाती है ) !
शुद्ध देशी गाय माता का शुद्ध गोमूत्र रोज रोज मिल पाना आसान काम नहीं है इसलिए इसे भी पतंजलि से दिव्य गोधन अर्क (patanjali product divya godhan ark, Gomutra Ark) नाम से ख़रीदा जा सकता है !
तीसरी दवा है तुलसी पंचांग ! अगर तुलसी पंचांग ताज़ी अवस्था में रोज रोज ना मिल सके तो कम से कम तुलसी की ये तीन चीजे- 7 तुलसी पत्ती, थोड़ी सी तुलसी मंजरी व थोड़ी सी तुलसी जड़, को आपस में पीसकर लुगदी जैसा बनाकर रोज सुबह 10 बजे मरीज को खिलाना है ! तुलसी जड़ किसी भी मामले में तुलसी पत्ति व तुलसी मंजरी से कम फायदेमंद नहीं होती है !
इस खबर से तो अब अधिकाँश लोग परिचित हो चुके होंगे कि तुलसी (basil) के पौधे की लकड़ियों व सूखी पत्तियों को अमेरिका जैसे देश बड़ी मात्रा में भारत से खरीदतें हैं और अपने देश में उस लकड़ी का सत्व निकाल कर फिर उसमें कुछ अन्य केमिकल्स आदि मिलाकर कैंसर जैसी बीमारियों की दवा बनातें है और फिर उन्ही दवाओं को काफी महंगे दामों पर वापस भारत में बेचतें हैं, जिसे भारत के बड़े बड़े हॉस्पिटल्स के डॉक्टर्स बड़े गर्व से अपने मरीजों को मोटी रकम वसूल कर देते हैं |
अगर इन्ही डॉक्टर्स से कहा जाए की मरीज को इतना घुमा फिरा कर जब तुलसी ही देना है तो सीधे ताजी अवस्था में ही दे दो लेकिन पूरी उम्मीद है कि वे ऐसा करेंगे नहीं क्योकिं अब यह तो कोई भी बुद्धिमान व्यक्ति समझ सकता है कि ऐसा करने में उन्हें दो बड़े नुकसान होंगे, पहला तो यह कि ऐसे डॉक्टर्स की खुद की अच्छी खासी कमाई सीधे सीधे मारी जायेगी और दूसरा यह कि ऊपर से पढ़े लिखे पर अंदर से ऐसे मूर्ख भारतीय जिन्हें जब तक इंग्लिश भाषा में लिखी रंगबिरंगी टेबलेट्स कैप्सूल्स खाने को ना मिले तब तक वो किसी इलाज को सही नही बल्कि फर्जी मानतें है, बिदक कर भाग के दूसरे डॉक्टर के पास अपना इलाज करवाने चले जायेंगे !
सदियों की गुलामी का आज भी बहुत गहरा मानसिक असर देखने को मिलता है उन भारतियों के रूप में जो, अंग्रेजों की पैथी अर्थात एलोपैथिक दवाओं को खा खाकर अपना शरीर छलनी छलनी तो कर लेंगे लेकिन क्या मजाल कि योग आयुर्वेद के सही विद्वान को खोजने की जहमत उठायेंगे !
अमेरिका आदि देशों ने भले ही भारत की तुलना में भ्रष्ट नेताओं का शासन कम झेला हो जिसकी वजह से आज वे भारत से ज्यादा अमीर हैं लेकिन आज भी जलवायु और भूमि की उपजाऊ क्षमता के मामलें में भारत विश्व में नम्बर वन है इसीलिए तुलसी समेत बहुत सी दुर्लभ जड़ीबूटियां अमेरिका आदि देशो में स्वतः नहीं उग सकती है इसलिए यह उन देशों की मजबूरी है इन जड़ीबूटियां को भारत से खरीदना !
अतः निष्कर्ष यही है कि तुलसी पत्ती से बनी इस दवा का अगर पूरा पूरा फायदा चाहिए तो इसे रोज रोज ताज़ी अवस्था में ही बनाकर मरीज को खिलाना चाहिए (पतंजली स्टोर पर मिलने वाली तुलसी घनवटी जो टेबलेट के फॉर्म होती है उसे प्रयोग करने से उतना ज्यादा फायदा नहीं मिलेगा जितना ताज़ी पत्ती, जड़ व मंजरी से तैयार दवा से ! इसलिए जब बिल्कुल सम्भावना ना हो ताज़ी अवस्था में रोज रोज प्राप्त करने की तभी पतंजलि की तुलसी घनवटी या स्वरस आदि का प्रयोग करना चाहिए) !
अगर कैंसर गंभीर अवस्था में हो तो इलाज का एक एक दिन मायने रखता है इसलिए सबसे बेहतर होता है कि अपने घर में ही तुलसी के कई पौधों को कई गमलों में लगा लेना चाहिए और वैसे भी जिस घर में एक भी तुलसी जी का पौधा रहता है उस घर से वास्तु दोष व भूत प्रेत जैसी नकारात्मक शक्तियां हमेशा दूर रहतीं है !
तुलसी जी साक्षात् भगवान् विष्णु की पत्नी हैं इसलिए इन्हें भगवान के ही समान आदरणीय माना जाता है !
चौथी दवा है नीम की पत्ती जिससे बड़ा, हर तरह का कीटाणु (बैक्टिरिया, वायरस आदि) नाशक पूरी दुनिया में शायद ही कोई और हो !
यह भी आसानी से लगभग हर जगह मिल जाती है और इसका भी पूरा फायदा चाहिए तो इसे बाजार में मिलने वाली टेबलेट (जैसे पतंजली की नीम घनवटी) की बजाय, रोज 5 -7 ताज़ी नीम की पत्ती पेड़ से तोड़कर पीस कर लुगदी बना कर पानी से घोट जाना चाहिए ! घोटने में कसैली लगे तो गुड़ भी मिला सकतें हैं !
नीम की पत्ती को शाम के सूर्यास्त होने से पहले ही ले लेना चाहिए (नीम सम्बन्धी अन्य औषधीय फायदे जानने के लिए कृपया नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें) !
इन दवाओं को लेने के अलावा मरीज अगर प्राणायाम करने में सक्षम हो तो उसे प्राणायाम भी जरूर करना चाहिए ! 2 मिनट से लेकर अपनी सुविधानुसार 1 घंटा तक, सुबह शाम प्राणायाम किया जा सकता है !
प्राणायाम को उचित समय तक प्रतिदिन करने पर तो यह गारंटी हो जाती है कि तेजी से फैलता कैंसर लगभग तुरंत ही रुक जाता है और फिर धीरे धीरे घटने भी लगता है !
अकेले प्राणायाम में ही इतनी प्रचंड शक्ति होती है कि बिना किसी भी दवा की मदद के यह जटिल से जटिल बिमारियों का जड़ से नाश कर सकता है, बशर्ते कोई इसे प्रतिदिन अपनी बीमारी की गंभीरता के हिसाब से कम या ज्यादा देर तक बिना कोई नागा किये हुए करे !
अगर मरीज को कपाल भाति प्राणायाम (kapalbhati pranayama in hindi) करने में कठिन लगे तो अनुलोम विलोम (anulom vilom pranayam steps) जैसा आसान प्राणायाम ही कर लें तब भी बहुत ही ज्यादा फायदा है !
प्राणायाम ना कर सकें तो कोई भी ऐसा योगासन करें जो मरीज आसानी से कर सकता हो, तब भी बहुत फायदा है ! हर योगासन के बहुत ही दूरगामी परिणाम होतें है जिनसे लगभग सभी बीमारियों में लाभ मिलता है इसलिए अगर संभव हो तो अपनी शारीरिक तकलीफ/दर्द की सावधानी रखते हुए कोई भी सरल सा योगासन जैसे – वज्रासन (vajrasana yoga), पद्मासन (padmasana benefits in hindi), महामुद्रा (mahamudra yoga), पश्चिमोत्तानासन (information on paschimottanasana), योगमुद्रा आसन (yoga mudrasana), बद्धकोणासन (baddha konasana steps), मंडूकासन (mandukasana advantages) आदि जरूर करना चाहिए (हर तरह के योगासन व प्राणायाम की विधि व फायदे नीचे दिए गए लिंक्स पर क्लिक कर जान सकतें हैं) !
मरीज के लिए कुछ ना कुछ फिजिकल एक्सरसाइज भी नितांत जरूरी है जिसके लिए अगर धीरे धीरे टहलना हो सके तो अति उत्तम है, नहीं तो बिस्तर पर ही बैठकर या लेटेकर धीरे धीरे हाथ पैर बार बार हिलाएं ! यह भी ना हो सके तो किसी से पूरे शरीर की धीरे धीरे सुबह शाम मालिश जरूर करवाएं जिससे पूरे शरीर का अच्छा व्यायाम भी हो जाता है और रक्त संचरण भी ठीक रहता है !
अब बात आती है परहेज कि तो अलग अलग कैंसर में थोडा बहुत अलग अलग परहेज हो सकता है लेकिन एक परहेज सभी कैंसर के मरीजो पर लागू होता है और वो है गरिष्ठ, तला भुना भोजन से यथा संभव बचाव, खासकर घर के बाहर का खाना तो बिल्कुल ही नहीं खाना है जिससे कमजोर शरीर के कमजोर लीवर पर कम से कम बोझ पड़ सके !
परहेज के बाद हम बात करतें हैं, निराश मानसिकता को तोड़कर, कैंसर को हरा देने की जबरदस्त तीव्र इच्छा उत्पन्न करने की !
इस निराशा या किसी भी अन्य तरह की निराशा दूर करने का हमने कुछ दिनों पहले एक ऐसा जबरदस्त उपाय का अपने लेख में वर्णन किया था जो मात्र 10 मिनट में ही चमत्कारी रूप से असर दिखाना शुरू कर देता था (जिसे विस्तार से जानने के लिए कृपया आप इस लिंक पर क्लिक करें- सिर्फ 10 मिनट में ही हर तरह की शारीरिक व मानसिक कमजोरी दूर करना शुरू कर देता है यह परम आश्चर्यजनक उपाय )!
निष्कर्ष यही है कि कैंसर हो जाने पर सबसे पहला काम यह करना चाहिए कि घबड़ाना बंद करना चाहिए और फिर स्थिर दिमाग से अपने इलाज के बारे में सोचना चाहिए ! प्रकृति ने कठिन से कठिन बीमारी का इलाज भी हमारे आस पास बेहद सस्ती चीजों में निश्चित दिया है बशर्ते कोई उसे थोड़े दिन करके देखे तो सही !
[ नोट – जब कोई व्यक्ति किसी बिमारी की गंभीर अवस्था को झेलता है उस दौरान उसकी शारीरिक दशा में अक्सर उतार चढ़ाव आ सकता है तो ऐसे में कई बार देखा गया है कि कई बड़े बड़े हॉस्पिटल्स के डॉक्टर्स भी अपनी गलत जानकारीवश या अपने किसी स्वार्थ के लालच वश गलत सलाह भी दे सकतें है जो हो सकता है भोले भाले व घबराए हुए मरीज के परिजन शायद समझ ही ना पायें, तो ऐसे में सावधान रहने की जरूरत है और अगर मौका हो तो किसी एक ही चिकित्सक की सलाह पर कोई कठोर निर्णय लेने से पहले दूसरे चिकित्सक की भी सलाह ले लें !
तथा कोई मरीज यदि ईश्वर के ही बनाये हुए अन्य जीवों (जैसे मुर्गा, बकरा आदि) को खाता है तो उसे अपनी कठिन बीमारी में आराम मिलने के लिए कभी भी ईश्वरीय सहायता की उम्मीद नहीं करनी चाहिए, क्योंकि ईश्वर कभी भी ऐसे हत्यारे आदमी को पसंद नहीं करते जो सिर्फ अपने स्वाद के लिए निरीह जीवों की लाश खातें हैं, इसलिए अपना भला चाहने वालों को मांसाहार का तुरंत त्याग कर देना चाहिए !
हालाँकि इसमें दिक्कत पैदा वे अल्पज्ञ डॉक्टर भी कर सकतें हैं जो यह कहतें है कि मरीज के अंदर हुई प्रोटीन आदि की कमी के लिए अंडा आदि खाना अनिवार्य है और वे यह भी कहकर शाकाहारी व्यक्ति का ब्रेनवाश कर सकतें हैं कि आखिर बहुत से प्राचीन आयुर्वेदिक ग्रन्थों में भी तो मांस मछली अंडे को दवाई के रूप में इस्तेमाल करने को कहा गया है, ऐसे नादान डॉक्टर्स को यह नही पता होता है कि अनंत वर्ष पुराने हिन्दू धर्म की रीढ़ की हड्डी ही, “परोपकार” है इसलिए, कैसे इसमें मांसाहार को सही या जायज ठहराया जा सकता है, ये सब बुरी बातें तो जबरदस्ती, क्रूर मुग़ल शासकों के शासन काल में और अंग्रेजों के शासन काल में कई भारतीय धर्म ग्रन्थों में हिन्दुओं का ब्रेन वाश करने की साजिश के तहत लिखी गयी थी इसलिए यह अनुभूत सत्य है कि किसी भी मरीज के अंदर आई प्रोटीन, विटामिन्स आदि की पूर्ती के लिए कत्तई मांसाहार की जरूरत नहीं है ]
जानिये हर योगासन को करने की विधि
जानिये हर प्राणायाम को करने की विधि
एक ऐसा योग जिसमे बिना कुछ किये सारे रोगों का निश्चित नाश होता है
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