एक माँ – पुत्र के विछोह की असीम पीड़ायुक्त संवाद

{नोट- पहली कविता “स्वयं बनें गोपाल” समूह से जुड़े हुए एक आदरणीय स्वयं सेवक द्वारा रचित है ! पहली कविता के अंत में प्रकाशित दूसरी कविता श्री देवयानी जी की है जिनकी हम पहले भी कुछ कविताओं को प्रकाशित कर चुके हैं (उन कविताओं के लिंक्स नीचे दिए गएँ हैं)}

(प्रथम कविता)- मम्मी, जब मै आया था, आपकी गोद में-

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सौ दुःख मुझे खुद में रख के सहने के बाद

मुझे देख आप मुस्कुराई थी

मम्मी, जब मै आया था, आपकी गोद में

सारे काम ख़त्म करती, मुझको रोते उठाने को

आपको छोटी आँखों से देख के, सारी खुशिया मिल जाती

था यही आने को रो रहा

मै लेटा, बैठा, खड़ा हुआ, फिर धीरे धीरे चलने लगा

फिर वापस जल्दी से आके उसी गोंद में हसने को

जैसी किलकारी तब थी शायद, आपकी गोंद में आके

नहीं मिलनी वो खुशियों की चरम सीमा

तब आप फिर मुस्कुराई थी, मम्मी जब मै आया था, आपकी गोंद में

बड़ा हुआ, जब पहली बार स्कूल बैग टंगवाई थी

आपने मेरे कंधे पे

और छोड़ आई थी खुद से दूर कुछ 7 – 8 घंटों के लिए

तब रोयी थी आप, पर जब शाम को, बेटा आपका आ पंहुचा

तब आप फिर मुस्कुराई थी, मम्मी जब मै आया था

जीवन को पार लगना था, बढ़ने थे उम्र के साल

बचपन के दिन फिरने थे, आने थे यौवन के काल

होना था काल को क्रूर, होना था जिम्मेदारियों का एहसास

काल चक्र के क्रूर पाश को, ले जाना था आपसे दूर

जब जाता था आपसे दूर, पहली बार, क़दमों के डगमगाने को

जब आकर परदेश पहली बार, सिर छुपा कर रोया था सबके बीच

आप भी बहुत रोयी थी, जब चला गया था, आपकी गोंद से दूर

तब नहीं पता था फिर कभी नहीं आ पाउँगा

बहुत कुछ सपने मन में सजा के

दुनिया से नहीं बता के, आपके लिए बनाये थे

सोचा था ये सब सजा के आपको अपने हाथो से चढाऊंगा

कुछ भी कर पाया या कर पाउँगा, नहीं पता

पर पता चला अब वही सपने नहीं जाने देते आपके पास

मन की हेठी, मन का नैराश्य, मन का हठ उनको पाने का

उन सबको आपके लिए कर पाने का

इन सब में ही खो बैठा आपके पैरों का वो स्नेहिल सानिध्य

तब नहीं पता था, अब कभी नहीं आ पाउँगा

मन में है फिर आस, जब फिर से आके आपके पास

और शायद आप फिर मुस्कुरायेंगी, जब मै आऊंगा, आपकी…

लेखक
“श्री अनाम”

(द्वितीय कविता)- ना जाने मैं कितनी बार गौरवान्वित हुई-

mamma mom momma mother mum mummy male female parents MA Mama ma mama boy son sonny pa papa pop dad daddy father family love affection care household kin name establishment coupleबेटा जब से ईश्वर ने अनमोल तोहफे के रूप में

तुम्हे मेरी गोद में डाला है

तब से खुशियों से सराबोर होती हुई

ना जाने मैं कितनी बार गौरवान्वित हुई

तुम्हारे अधरों की निश्छल मुस्कान ने

तुम्हारी नन्ही भोली आँखों से बरसते स्नेह रस ने

ना जाने कितनी बार मेरे दुःख अवसाद थकान

की पीड़ा को दूर कर मुझे हर्षित किया

धीरे धीरे तुम्हारे नन्हे कदम बड़े होते गये

और जिम्मेदारियों के एहसास तले

तुम मुझसे दूर होते गए

कभी पढ़ाई के लिए तो

कभी नौकरी के लिए

और मै खून के आंसू बहाते हुए

इस आस में जीती रही

कि अब मेरा बेटा मेरे पास आ जाएगा

हमेशा हमेशा के लिए

लेकिन तुम्हारी महत्वकांक्षाओं के सपने

आज भी तुम्हे मुझसे दूर ही किये हुए हैं

बेटा जब मै क्रूर काल के दिए हुए दंश

से बिंध कर टूट टूटकर बिखरती रही

उस समय मेरे “वो अपने”

जो मेरे बहुत करीब थे

मुझे छोड़ कर इसलिए दूर हो गए

कि कहीं इस गिरती हुई दीवार

का सहारा उन्हें ही ना बनना पड़े

तब तुमने ही अपने स्नेह

और सुरक्षा के घेरे में लेकर

मेरे अस्तित्व को शून्य में

विलीन होने से बचाया है

तुम्हारी पलकों पर सजे हुए

हर सपनों के सर्वोच्च आसन पर

मैं स्वयं को ही सदा देखकर

हर क्षण तृप्त होती रही

लेकिन जीवन के अंतिम पड़ाव पर

मैं अपने आँचल की छाँव में

तुम्हारे साथ चन्द लम्हें सुकून

के साथ गुजारना चाहती हूँ

क्योंकि ना जाने कब

निष्ठुर काल मेरे आँचल की छाँव को

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तुमसे दूर आकाश के उस छोर पर

फेंक देगा जहाँ से लाख ढूँढने पर भी

तुम मुझे नहीं पाओगे !

लेखिका –
श्री देवयानी (श्री देवयानी की अन्य रचनाओं को पढ़ने के लिए, कृपया नीचे दिए गए लिंक्स पर क्लिक करें)-

न हम कुछ कर सके, न तुम कुछ कर सके

सिर्फ अपनी ख़ुशी की तलाश बर्बाद कर रही है अपने अंश की ख़ुशी

एक कठोर अनुशासक ऐसा भी

वो अपने

अनजाना कर्ज

माँ

मुझे शून्य में विलीन करती रही

चंद शब्दों की आंधियों से …

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