राष्ट्रपति ट्रम्प की सूर्यप्रकाश को शरीर के अंदर डालने की थ्योरी काल्पनिक नहीं, सत्य है जिसका प्रबल समाधान है “स्वयं बनें गोपाल” समूह द्वारा डेढ़ माह पूर्व प्रकाशित लेख
23 अप्रैल 2020 को अमेरिका के राष्ट्रपति श्री डॉनल्ड ट्रम्प (Mr. Donald Trump) ने अपनी प्रेस ब्रीफिंग में बताया कि अमेरिका के उच्च स्तरीय वैज्ञानिकों के दल ने यह साबित करके दिखाया है कि नोवेल कोरोना वायरस (Novel Corona Virus; COVID-19), सूर्य की तेज रोशनी में मात्र 2 मिनट में ही मर जातें हैं, जिसके बाद राष्ट्रपति श्री ट्रम्प ने उत्साहित होकर यह भी कहा है कि वैज्ञानिको को कोई ऐसा तरीका भी खोज निकालना चाहिए जिससे सूर्य के प्रकाश जैसी पावरफुल लाइट को मानव शरीर के अंदर पहुचाया जा सके जिससे मानव शरीर के अंदर भी मौजूद कोरोना वायरस तेजी से मर सकें ताकि कोरोना के मरीज जल्दी से रोग मुक्त हो सकें (इस प्रेस ब्रीफिंग को विस्तार से हिंदी में पढ़ने के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें- https://hindi.asianetnews.com/world-news/trump-idea-on-cure-of-covid-19-like-injecting-disinfectant-kpp-q9ajzh और इंग्लिश में पढ़ने के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें- https://www.buzzfeednews.com/article/skbaer/coronavirus-trump-light-disinfectants ) !
श्री डॉनल्ड ट्रम्प द्वारा देशहित के लिए सोची गयी यह महत्वाकांक्षा काल्पनिक नहीं है अपितु एकदम सत्य है जिसके बारे में आज से लगभग डेढ़ माह पूर्व (अर्थात 8 मार्च 2020 को) ही “स्वयं बनें गोपाल” समूह ने अपनी इसी वेबसाइट पर एक आर्टिकल में प्रकाशित किया था (उस आर्टिकल को पढ़ने के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें- https://www.svyambanegopal.com/novel-corona-virus-covid-19-disease-infection-risk-facts-signs-symptoms-natural-treatment-cure-ayurveda-herbal-jadibuti-yoga-pranayama-asana-mudra-wuhan-hubei-china-2019-2020-diagnosed-global/ ).
“स्वयं बनें गोपाल” समूह के शोधकर्ताओं ने अपने इस लेख में यही बताया है कि कैसे सूर्य की तेज रौशनी को अपने शरीर के अंदर पैदा किया जा सकता है ! जिन लोगों का भारतीय योग व आध्यात्म की दुर्लभ विद्याओं से कभी भलीभांति परिचय ना हुआ हो उन्हें यह सुनने में प्रथम द्रष्टया हास्यास्पद व बचकाना लग सकता है, लेकिन यह एकदम सत्य है कि हर स्त्री/पुरुष अपनी इच्छा से अपने शरीर के अंदर सूर्य का प्रकाश पैदा कर सकता है !
हमने अपने इस पूर्व के लेख में बताया है कि किस प्रकार मानव अपने पेट की नाभि में सूर्य का ध्यान करके कोरोना के वायरस का तेजी से नाश कर सकता है ! वैसे तो हमने पूर्व के इस लेख में नाभि स्थित सूर्य के ध्यान की सबसे सरल विधि व सावधानियां प्रकाशित की हुई है पर कोई इस ध्यान से अधिकतम लाभ लेना चाहे तो वह इस ध्यान को कम से कम 5 मिनट और अधिक से अधिक 27 मिनट तक सुबह सूर्योदय के समय और शाम को सूर्यास्त के समय करे !
सूर्योदय व सूर्यास्त के समय अगर ध्यान ना हो सके तो दिन में दो बार कभी भी खाली पेट, कम से कम 4 घंटे के अंतराल पर आप ध्यान कर सकतें हैं (अगर आपने 27 मिनट तक ध्यान किया हो तो आपको अगला ध्यान कम से कम 4 घंटे बाद ही करना चाहिए) !
अगर इस ध्यान की सहायता से सिर्फ कोरोना में ही जल्दी से जल्दी लाभ पाने की इच्छा हो तो इस तरह ध्यान करना चाहिए कि नाभि और रीढ़ की हड्डी के मिलन बिंदु पर स्थित भगवान् सूर्य से निकलने वाला दिव्य प्रकाश, रीढ की हड्डी पर सीढ़ियों की तरह तेजी से ऊपर उठते हुए दोनों फेफड़ों में तेजी से समां रहा है !
यह दिव्य प्रकाश दोनों फेफड़ों में खूब घुमड़ – घुमड़ कर चारो तरफ घूम रहा है, जिससे दोनों फेफड़ें तेजी से हर तरह के रोगों से मुक्त हो रहें हैं ! फिर यही प्रकाश रीढ़ की हड्डी से और ऊपर उठते हुए मस्तिष्क में भी समां रहा है जिससे मन मष्तिष्क हर तरह के दुःख, रोग व पीड़ा से मुक्त हो रहें है ! तथा फेफड़ों, मन व मस्तिष्क के सारे विकार सांस द्वारा नाक से बाहर भी निकल रहें हैं ! इस तरह से ध्यान करने से कोरोना में निश्चित तेजी से लाभ मिल सकेगा !
आज के वैज्ञानिकों के अनुसार सूर्य का प्रकाश सिर्फ कुछ किरणों (जैसे अल्ट्रावायलेट आदि) का समूह मात्र है, जिसकी वजह से सूर्य प्रकाश में रोग नाश की क्षमता है, लेकिन ब्रह्मांड के सबसे बड़े वैज्ञानिकों अर्थात हमारे पूर्वज ऋषियों – मुनियों के अनुसार सूर्य प्रकाश में ऐसे दुर्लभ जीवनदायी तत्व भी हैं जो मृतसमान हो चुके जीव में भी पुनः जीवन संचार की क्षमता रखतें हैं इसलिए भारतीय आध्यात्म में सूर्य को प्रत्यक्ष ईश्वर कहा गया है !
नाभि स्थित सूर्य के ध्यान से चिर यौवन (अर्थात लम्बे समय तक सभी बीमारियों से रहित होकर एकदम हष्ट पुष्ट, मजबूत व जवान बने रहना) भी प्राप्त किया जा सकता है जिसकी विधि हम आगामी लेखों में प्रकाशित करेंगे !
वैसे हर स्त्री/पुरुष के नाभि में स्थित सूर्य, कोई अलग सूर्य नहीं है बल्कि ये वही सूर्य हैं जो हमें प्रतिदिन आसमान में दिखाई देतें हैं, तो फिर इसमें आश्चर्य की बात यह है कि जो सूर्य हमें अपने शरीर के बाहर अन्तरिक्ष में दिखाई देतें हैं वही सूर्य हमारे पेट की नाभि में कैसे स्थित हो सकतें है ?
इस बात को भारतीय आध्यात्म के दो गूढ़ सूत्रों द्वारा समझा जा सकता है;-
पहला सूत्र- “यत् ब्रह्माण्डे तत् पिण्डे” ; अर्थात- जो ब्रह्माण्ड में है वही पिण्ड मतलब हमारे मानव शरीर में है !
दूसरा सूत्र- “एकोहं बहुस्याम” ; अर्थात- एक ही ईश्वर है जो अपनी माया की इच्छा से हम सभी स्त्री/पुरुषों का रूप धरकर लीला कर रहा है ! जिसका तात्पर्य है कि हम सभी जीव भले ही माया के प्रभाव से अलग – अलग शरीर वाले दिखते हों पर वास्तव में हम सभी जीवों का एक ही शरीर है जिसका नाम है ईश्वर ! इसीलिए आध्यात्म में यह भी कहा गया है “अहम् ब्रह्मास्मि” अर्थात मै ही ईश्वर हूँ !
अतः सारांश यही है कि हम सभी जीवों का अपने शरीर की आंतरिक समानता से बिल्कुल अनजान रहते हुए, जीवन भर बाहरी असमानता में ही भटकते रहना ही ईश्वरीय माया का खेल है, जिससे मुक्ति अर्थात मोक्ष के चरम सुख का लाभ तभी संभव है जब हम सभी आपसी अनुचित भेदभाव को अपनी मानसिकता से मिटाकर सभी जीवों के कल्याण के लिए यथासंभव व यथोचित प्रयास आजीवन करते रहें !
अंत में “स्वयं बनें गोपाल” समूह सभी देशों की सरकार से प्रार्थना करना चाहेगा कि वे सभी कोरोना के इलाज के लिए सिर्फ विभिन्न केमिकल्स युक्त एलोपैथिक दवाओं पर ही निर्भर ना रहें बल्कि अन्य नेचुरल ट्रीटमेंट (प्राकृति उपाय जैसे- योग, आयुर्वेद) को भी उसी गंभीरता से अपनाए, क्योकि चाहे कोरोना हो या कोई भी अन्य बिमारी, एलोपैथिक दवाओं को लम्बे समय तक खाने पर शरीर के महत्वपूर्ण अंगो (जैसे- लीवर, हार्ट, किडनी, लंग्स , ब्रेन आदि) पर बहुत ही बुरा असर पड़ सकता है !
These treatments may be useful in Novel Corona Virus (COVID-19)
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