जानिये समानांतर ब्रह्माण्डों (Parallel Universes) के आश्चर्यजनक रहस्यों के बारे में डॉक्टर सौरभ उपाध्याय द्वारा
लम्बे समय से ब्रह्मांड से सम्बंधित सभी पहलुओं पर रिसर्च करने वाले, “स्वयं बनें गोपाल” समूह से जुड़े हुए विद्वान रिसर्चर श्री डॉक्टर सौरभ उपाध्याय (Doctor Saurabh Upadhyay) के निजी विचार ही निम्नलिखित आर्टिकल में दी गयी जानकारियों के रूप में प्रस्तुत हैं-
(डॉक्टर सौरभ उपाध्याय का यह आर्टिकल अन्य प्रसिद्ध वेबसाईट पर भी प्रकाशित है)…
डॉक्टर सौरभ के अनुसार, आज के आधुनिक ब्रह्माण्ड विज्ञान की नींव डाली है महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन (Albert Einstein) ने और उनका भरपूर साथ दिया मैक्स प्लांक (Max Planck), श्रोडिन्गर (Schrodinger), पॉल डिराक (Paul Dirac) आदि वैज्ञानिकों ने !
आइंस्टीन के सापेक्षिकता के सिद्धांत (Theory Of Relativity) ने आधुनिक विज्ञान को आध्यात्म से जोड़ने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है ! वास्तव में जिस समय आइंस्टीन ने दुनिया को सापेक्षिकता के सिद्धांत के बारे में बताया था, उस समय तत्कालीन वैज्ञानिकों को ये स्वीकार करने में कठिनाई महसूस हुई थी कि ये दुनिया, ब्रह्माण्ड सिर्फ न्यूटन के बताये सिद्धांतो पर नहीं चलती है !
आइंस्टीन ने अपने सापेक्षिकता के सिद्धांत में बताया है कि समय और स्थान (Time and Space) एक दूसरे से अलग नहीं है ! जैसे – जैसे समय बीतता गया, आइंस्टीन के सिद्धांतो की प्रयोगों द्वारा पुष्टि होती गयी ! वर्तमान समय में जेनेवा में, लार्ज हेड्रान कोलाईडर (Large Hadron Collider) मशीन पर होने वाले नित्य नए प्रयोगों के परिणाम आश्चर्यजनक आंकड़े प्रस्तुत कर रहे हैं !
लेकिन वैज्ञानिको के लिए सबसे ज्यादा हैरान करने वाली बात यह है की ये आंकड़े, वैज्ञानिकों को जिन निष्कर्षों पर पहुंचा रहे हैं उन्हें आज से लाखो – करोड़ों वर्ष पहले लिखे गये हिन्दू धर्म ग्रंथों में बहुत विस्तार से समझाया जा चुका है ! इस आर्टिकल में डॉक्टर सौरभ उपाध्याय आपको ऐसी ही एक घटना के बारे में बताने जा रहे हैं जिसमे ब्रह्माण्ड के समय और स्थान के परस्पर संबंधों की व्याख्या की गयी है !
योगवशिष्ठ नामक अति प्राचीन ग्रंथ में एक बहुत महत्वपूर्ण घटना का वर्णन आता है जो जीवन के उद्देश्य, रहस्यों और मृत्यु के बाद की जीवन श्रंखला पर भी प्रकाश डालती है, इसलिये इसे योगवशिष्ठ की सर्वाधिक उपयोगी आख्यायिकाओं में से एक माना जा सकता हैं ! वह घटना इस प्रकार है-
आज से हजारो वर्ष पहले, आर्यावर्त क्षेत्र में पद्म नाम के एक राजा राज करते थे ! लीला नाम की उनकी धर्मशील पत्नी उनसे बहुत प्यार करती थी ! जब कभी लीला जी अपने पति की मृत्यु की बात सोचती थी तो वियोग की कल्पना से ही घबरा उठती थी ! अंत में कोई उपाय ना देखकर, लीला जी ने माँ सरस्वती की खूब उपासना की और यह मनचाहा वरदान प्राप्त कर लिया कि यदि उनके पति की मृत्यु, उनसे पहले हो जाती है, तो भी पति की अंतःचेतना राजमहल से बाहर नहीं जायेगी ! साथ ही माँ सरस्वती ने यह भी आशीर्वाद दिया कि लीला जी जब चाहेंगी तब अपने पति से मुलाक़ात भी कर सकेंगी !
कुछ दिन बाद दुर्योग से राजा पद्म का देहान्त हो गया ! लीला जी ने पति का शव महल में ही सुरक्षित रखवा कर भगवती सरस्वती का ध्यान किया ! माँ सरस्वती ने उपस्थित होकर कहा- पुत्री दुःख न करो, तुम्हारे पति इस समय यहीं है पर वे दूसरी सृष्टि (दूसरे लोक) में है ! उनसे भेट करने के लिए तुम्हें उसी सृष्टि वाले शरीर (मानसिक ध्यान द्वारा) में प्रवेश करना चाहिए !
लीला जी ने माँ सरस्वती के आदेशानुसार अपने मन को एकाग्र करके अपने पति का ध्यान किया और उस लोक में प्रवेश कर गयी जिसमें राजा पद्म की अंतर्चेतना विद्यमान थी ! लीला जी ने वहां जा कर जो कुछ दृश्य देखा उससे वो एकदम अवाक हतप्रभ रह गयी !
उस समय पद्म जी उस दूसरे लोक (यानी दूसरी सृष्टि) में भी 16 वर्ष के राजा थे और एक बहुत बड़े देश का शासन संभाल रहे थे ! लीला जी को अपने ही कमरे के अंदर इतना बड़ा देश और एक ही दिन के भीतर पद्म जी की आयु के 16 वर्ष बीत जाना देखकर, बड़ा आश्चर्य हुआ ! उस समय माँ सरस्वती भी उनके साथ थी और उन्होंने लीला जी को समझाया–
सर्गे सर्गे पृथग्रुपं सर्गान्तराण्यपि !
तेष्पन्सन्तः स्थसर्गोधाः कदलीदल पीठवत् ! (योगवशिष्ठ 4।18।16।77)
आकाशे परमाण्वन्तर्द्र व्यादेरगुकेअपि च !
जीवाणुर्यत्र तत्रेदं जगद्वेत्ति निजं वपुः ! (योगवशिष्ठ 3।443435)
अर्थात्- “हे पुत्री, जिस प्रकार केले के तने के अन्दर एक के बाद एक परतें निकलती चली आती है, उसी प्रकार हर सृष्टि का क्रम भी विद्यमान है यानी एक दुनिया के अन्दर ही कई नई दुनियां चलती रहती है ! संसार में व्याप्त चेतना के हर परमाणु में जिस प्रकार स्वप्न लोक विद्यमान है उसी प्रकार जगत के अनंत द्रव्य के अनंत परमाणुओं के भीतर अनेक प्रकार के जीव और उनके अलग – अलग जगत मौजूद है” !
माँ सरस्वती ने अपनी बात को साबित करने के लिए, लीला जी को राजा पद्म का यह वर्तमान जगत (यानी जिसमें राजा की वर्तमान आयु 16 वर्ष थी) दिखाने के बाद, कहा– पुत्री तुम जानती हो कि तुम्हारे पति पिछले जन्म में जब राजा पद्म थे तब 70 वर्ष तक जीने के बाद मरे हैं, लेकिन इस मृत्यु से भी ठीक पहले वाले जन्म (यानी राजा पद्म वाले जन्म से भी ठीक पहले वाले जन्म) में तुम्हारे पति को मरे हुए अभी केवल 7 ही दिन बीते हैं और उनका मरा हुआ शरीर आज भी उस पूर्व जन्म में मौजूद है, जिसे दिखाने के लिए मै तुम्हे उस जन्म में भी ले चलती हूँ !
यह कहकर माँ सरस्वती, लीला जी को फिर एक नए सूक्ष्म जगत में ले गई और वहां भी लीला जी ने अपने पति का मृत शरीर देखा ! उस मरे हुए शरीर को देखकर लीला जी को उस पूर्व जीवन की सभी यादें ताजा हो गयी कि उनके पति एक ब्राह्मण थे और वो उनकी पत्नी थी तथा वे दोनों पति – पत्नी एक छोटी सी कुटिया में रहते थे ! लीला जी को सबसे बड़ा आश्चर्य हुआ यह देखकर कि जिसे वह राजा पद्म वाले जन्म में 70 वर्षों का समय समझ रही थी वह उस पिछले जन्म वाली दुनिया (जिसमे उनके पति ब्राह्मण थे) के मात्र 7 दिनों के बराबर ही थी !
लीला जी को यह भी याद आ गया था कि उस पिछले जन्म वाली सृष्टि में उनका नाम अरुन्धती था और एक दिन किसी राजा की सवारी को देखकर उनके मन में भी राजसी सुख सुविधा भोगने की काफ़ी प्रबल इच्छा हुई थी ! उसी सांसारिक इच्छा के फलस्वरूप ही उन्हें अगले जन्म में लीला का शरीर प्राप्त हुआ और राजा पद्म पति रूप में प्राप्त हुए थे !
डॉक्टर सौरभ के अनुसार इस सत्य घटना में मन की अनंत इच्छाओं के अनुसार जीवन की अनवरत यात्रा, मनुष्येत्तर योनियों में भ्रमण, टाइम एण्ड स्पेस (समय तथा स्थान) से निर्मित ब्रह्माण्ड में चेतना के अभ्युदय के गूढ रहस्यों का बहुत अच्छा खुलासा किया गया है ! और जब कोई इन रहस्यों को लीला जी की तरह ईश्वरीय कृपा से प्रत्यक्ष देख लेता है तो वो अपने प्रिय जनो का कभी ना बिछड़ने वाला शाश्वत सामीप्य मांगता है जो कि सिर्फ सम्भव है भगवान के नित्य निवास स्थान में (जिसे भक्त लोग अपनी – अपनी रूचि अनुसार बैकुंठ, शिवलोक, गोलोक, मणिद्वीप आदि बोलते हैं) क्योकि वहां पहुंचने का महासौभाग्य प्राप्त करने वाली जीवात्मा, स्वयं परमात्मा का स्वरुप प्राप्त कर लेती है !
पढ़ने – सुनने में यह घटना शायद कुछ लोगों को परियों की कथा या जादुई चिराग जैसी कहानी लग सकती है लेकिन ये वो शुद्ध विज्ञान है जिसकी सहायता से ब्रह्मांडीय व्यवस्था को समझा जा सकता है ! किन्तु विडंबना ये भी है कि प्राचीन भारतीय धर्मग्रंथों में छिपी हुई इन दुर्लभ जानकारियों से प्रभावित होने के बावजूद भी कई आधुनिक वैज्ञानिक ये प्रत्यक्ष रूप से स्वीकार करने में हिचकते हैं, कि हिन्दू धर्म के प्राचीन ऋषि – मुनि लोग, समय – स्थान, ब्रह्माण्ड – समानांतर ब्रह्माण्ड आदि की गुथियों को सुलझा चुके थे (क्योकि ये स्वीकार करने की वजह से आधुनिक मनगढ़ंत इतिहास की कई बड़ी मान्यताये छिन्न-भिन्न हो सकती है) !
डॉक्टर सौरभ उपाध्याय के अनुसार, निष्कर्ष यही है कि हमे हमारे ही महान पूर्वजों द्वारा प्रदत्त विज्ञान की महिमा को समझते हुए यह नहीं भूलना चाहिए कि मानवेतर सत्ता का विस्तार अनंत है जबकि हम लोग बहुत ही सीमित क्षेत्र (Dimension) की दुनिया में अपने दैनिक जीवन के क्रिया-कलाप को अंजाम दे रहे हैं इसलिए इसके परे जो दुनिया है उसे समझने के लिए हमें अपना, स्वयं का विस्तार करना पड़ेगा ताकि हम उस अनंत आयाम वाले ईश्वरीय निवास (जैसे- बैकुंठ, गोलोक) के वाकई में योग्य बन सकें !
कृपया हमारे फेसबुक पेज से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करें
कृपया हमारे यूट्यूब चैनल से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करें
कृपया हमारे एक्स (ट्विटर) पेज से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करें
कृपया हमारे ऐप (App) को इंस्टाल करने के लिए यहाँ क्लिक करें
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण से संबन्धित आवश्यक सूचना)- विभिन्न स्रोतों व अनुभवों से प्राप्त यथासम्भव सही व उपयोगी जानकारियों के आधार पर लिखे गए विभिन्न लेखकों/एक्सपर्ट्स के निजी विचार ही “स्वयं बनें गोपाल” संस्थान की इस वेबसाइट/फेसबुक पेज/ट्विटर पेज/यूट्यूब चैनल आदि पर विभिन्न लेखों/कहानियों/कविताओं/पोस्ट्स/विडियोज़ आदि के तौर पर प्रकाशित हैं, लेकिन “स्वयं बनें गोपाल” संस्थान और इससे जुड़े हुए कोई भी लेखक/एक्सपर्ट, इस वेबसाइट/फेसबुक पेज/ट्विटर पेज/यूट्यूब चैनल आदि के द्वारा, और किसी भी अन्य माध्यम के द्वारा, दी गयी किसी भी तरह की जानकारी की सत्यता, प्रमाणिकता व उपयोगिता का किसी भी प्रकार से दावा, पुष्टि व समर्थन नहीं करतें हैं, इसलिए कृपया इन जानकारियों को किसी भी तरह से प्रयोग में लाने से पहले, प्रत्यक्ष रूप से मिलकर, उन सम्बन्धित जानकारियों के दूसरे एक्सपर्ट्स से भी परामर्श अवश्य ले लें, क्योंकि हर मानव की शारीरिक सरंचना व परिस्थितियां अलग - अलग हो सकतीं हैं ! अतः किसी को भी, “स्वयं बनें गोपाल” संस्थान की इस वेबसाइट/फेसबुक पेज/ट्विटर पेज/यूट्यूब चैनल आदि के द्वारा, और इससे जुड़े हुए किसी भी लेखक/एक्सपर्ट के द्वारा, और किसी भी अन्य माध्यम के द्वारा, प्राप्त हुई किसी भी प्रकार की जानकारी को प्रयोग में लाने से हुई, किसी भी तरह की हानि व समस्या के लिए “स्वयं बनें गोपाल” संस्थान और इससे जुड़े हुए कोई भी लेखक/एक्सपर्ट जिम्मेदार नहीं होंगे ! धन्यवाद !