क्रन्तिकारी भाई राजीव दीक्षित के आयुर्वेदिक नुस्खे – 2
(भाई राजीव दीक्षित सही मायने में आधुनिक युग के निर्भीक कान्तिकारी थे जिन्होंने कानपुर आई आई टी से M. TECH और अन्य कई बड़े साइंस प्रोजेक्ट से जुड़ने के बावजूद अपना सुनहरा वर्तमान और भविष्य छोड़ कर पूरी तरह से स्वदेशी आंदोलन के प्रचार प्रसार में अपना जीवन समर्पित कर दिया। उनका मानना था की भारतवर्ष फिर से सोने की चिड़िया तभी कहलायेगा जब वह पूरी तरह से स्वावलम्बी होगा। उन्होंने स्वदेशी चिकित्सा, स्वदेशी भोजन, स्वदेशी अर्थव्यस्था के हर पहलुओ पर अथक मेहनत किया। प्रस्तुत है उनके कुछ विशिष्ट आख्यानों के अंश)-
अम्लपित्त (Acidity) –
प्रात: का भोजन :-
1) केला (2-3) चबा – चबाकर खाना।
2) रात में भिगोर्इ हुई किशमिश (10 ग्राम) चबाकर खाना।
3) गेहूँ की रोटी (जीरा डालकर बनी) घृत लगाकर, मूंग की दाल।
4) चावल खाने के बाद मिश्री मिली छाछ पीना।
शाम का भोजन :-
1) मूंग चावल की हल्की खिचड़ी खायें ।
2) दूध में 1 चम्मच घी डालकर और चूना मिलाकर पियें ।
पथ्य :- दूध और घृत का प्रयोग ज्यादा करें, आँवला, तरबूज, संतरा रस, केला, अनन्नास का प्रयोग ज्यादा करें, अनार, जौ, पान, करेला, हरी सब्जियाँ, चावल का माड़ ।
अपथ्य :- बासी भोजन ना करें (2 घंटे पुराना आहार), सरसों, दही, माँस मछली, ऊष्ण अम्लीय पदार्थ, तेल, मिर्च मसाला, शराब ना उपयोग करें, अत्यधिक क्रोध ना करें, रात्रि में जागरण ना करें, चाय ना पियें, मैदे वाले पदार्थ, बिस्कुट, बड़े आदि ना खायें, लहसुन, अदरक, तेल मसालों का प्रयोग ना करें या कम खायें, आलू, बैगन, बेसन, मैदा।
रोग मुक्ति के लिये आवश्यक नियम –
१) सुबह बिना मंजन/कुल्ला किये दो गिलास गुनगुना पानी पिएं ।
२) पानी हमेशा बैठकर घूँट-घूँट कर के पियें ।
३) भोजन करते समय एक घूँट से अधिक पानी कदापि ना पियें, भोजन समाप्त होने के डेढ़ घण्टे बाद पानी अवश्य पियें ।
४) पानी हमेशा गुनगुना या सादा ही पियें (ठंडा पानी का प्रयोग कभी भी ना करें।
भोजन के सामान्य नियम –
१) सूर्योदय के दो घंटे के अंदर सुबह का भोजन और सूर्यास्त के एक घंटे पहले का भोजन अवश्य कर लें ।
२) यदि दोपहर को भूख लगे तो १२ से २ बीच में अल्पाहार कर लें, उदाहरण – मूंग की खिचड़ी, सलाद, फल और छांछ ।
३) सुबह दही व फल दोपहर को छांछ और सूर्यास्त के पश्चात दूध हितकर है ।
४) भोजन अच्छी तरह चबाकर खाएं और दिन में ३ बार से अधिक ना खाएं ।
अन्य आवश्यक नियम –
१) मिट्टी के बर्तन/हांडी मे बनाया भोजन स्वस्थ्य के लिये सर्वश्रेष्ठ है ।
२) किसी भी प्रकार का रिफाइंड तेल और सोयाबीन, कपास, सूर्यमुखी, पाम, राईस ब्रॉन और वनस्पति घी का प्रयोग विषतुल्य है । उसके स्थान पर मूंगफली, तिल, सरसो व नारियल के घानी वाले तेल का ही प्रयोग करें ।
३) चीनी/शक्कर का प्रयोग ना करें, उसके स्थान पर गुड़ या धागे वाली मिश्री (खड़ी शक्कर) का प्रयोग करें ।
४) आयोडीन युक्त नमक से नपुंसकता होती है इसलिए उसके स्थान पर सेंधा नमक या ढेले वाले नमक प्रयोग करें ।
५) मैदे का प्रयोग शरीर के लिये हानिकारक है इसलिए इसका प्रयोग ना करें ।
मोटापे का इलाज (Obesity) –
(१) खाना खूब चबा-चबाकर खायें |
(२) चूना खाना है (एक गेहूं के दाने के बराबर दिन में एक बार ) दस मिनट धूप में टहलें |
(३) त्रिफला चूर्ण एक चम्मच एक गिलास गर्म पानी में उबालकर दो चम्मच गुड़ या शहद मिलाकर काढ़ा बनाकर पियें |
(४) त्रिफला और गिलोय चूर्ण तीन-तीन ग्राम में मिलाकर चाटना है |
(५) पानी हमेशा बैठकर घूँट-घूँट पियें |
(६) भोजन तीन बार से अधिक न करें, भोजन भूख से थोड़ा कम करें |
(७) दिन में कभी न सोयें |
कब्ज (Constipation) –
– बेल पाउडर एक-एक चम्मच सुबह शाम खाने के बाद खाएं |
– रात में चुकंदर (बीट) की सब्जी खाएं |
– रात में दूध में 8-10 मुनक्का डालकर उबालें और बीज निकाल कर खा लें |
चिकित्सा –
१) सुबह उठकर दो ग्लास तांबे के बर्तन में रखा पानी पियें ।
२) रात में अजवाईन (आधी चम्मच) गुड के साथ खायें और ऊपर से गुनगुना दूध पी लें ।
३) त्रिफला चूर्ण एक चम्मच रात में गुनगुने पानी के साथ सोने से पहले लें ।
४) एरण्ड तेल में २-४ काली छोटी हरड सेककर सुबह खाली पेट खायें ।
५) दही के ऊपर का तैरता हुआ पानी सुबह पियें ।
पथ्य :-
१) पपीता या पत्तागोभी की सब्जी का प्रयोग करें ।
२) अरहर और मूंग की दाल का सेवन करें ।
३) टिण्डा, तोरइ का प्रयोग, दोपहर के भोजन के बाद छाछ पियें ।
४) शाम को चावल और मूंग की सादी खिचड़ी देशी गाय का घी मिलाकर खायें ।
५) गाजर, मूली, टमाटर, ककड़ी, सलाद का प्रयोग अधिक करें ।
६) दूध मे गुलकन्द मिलाकर ले ।
७) भोजन के बाद वज्रासन में 10 मिनट अवश्य बैठे !
जौ, मोटा अनाज, पुराना चावल, मूली, खीरा, पपीता, टिण्डा, तोरर्इ, गर्म पानी पीना, पानी अधिक पीना ।
अपथ्य :- मल का वेग रोकना, फ्रिज का ठण्डा पानी, मसालेदार भोजन, सभी ठण्डी चीजें, केला, चावल, आलू, कंद, सभी बासी और मैदे के सामान, पिठ्ठी के पदार्थ (जैसे – कचौड़ी, बड़े आदि) !
थायरायड/पैराथायरायड ग्रंथियां –
थायरायड ग्रंथि गर्दन के सामने की ओर, श्वास नली के ऊपर एवं स्वर यन्त्र के दोनो तरफ दो भागो में बनी होती है | एक स्वस्थ्य मनुष्य में थायरायड ग्रंथि का भार 25 से 50 ग्राम तक होता है | यह ‘थाइराक्सिन’ नामक हार्मोन का उत्पादन करती है | पैराथायरायड ग्रंथियां, थायरायड ग्रंथि के ऊपर एवं मध्य भाग की ओर एक-एक जोड़े [ कुल चार ] में होती हैं | यह “पैराथारमोन” हार्मोन का उत्पादन करती हैं | इन ग्रंथियों के प्रमुख रूप से निम्न कार्य हैं-
थायरायड ग्रंथि के कार्य –
थायरायड ग्रंथि से निकलने वाले हार्मोन शरीर की लगभग सभी क्रियाओं पर अपना प्रभाव डालता है | थायरायड ग्रंथि के प्रमुख कार्यों में-
• बालक के विकास में इन ग्रंथियों का विशेष योगदान है |
• यह शरीर में कैल्शियम एवं फास्फोरस को पचाने में उत्प्रेरक का कार्य करती है |
• शरीर के ताप नियंत्रण में महत्वपूर्ण भूमिका है |
• शरीर का विजातीय द्रव्य [ विष ] को बाहर निकालने में सहायता करती है |
थायरायड के हार्मोन असंतुलित होने से निम्न रोग लक्षण उत्पन्न होने लगते हैं –
अल्प स्राव [HYPO THYRODISM]
थायरायड ग्रंथि से थाईराक्सिन कम बन ने की अवस्था को “हायपोथायराडिज्म” कहते हैं, इस से निम्न रोग लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं-
• शारीरिक व् मानसिक वृद्धि मंद हो जाती है |
• बच्चों में इसकी कमी से CRETINISM नामक रोग हो जाता है |
• १२ से १४ वर्ष के बच्चे की शारीरिक वृद्धि ४ से ६ वर्ष के बच्चे जितनी ही रह जाती है |
• ह्रदय स्पंदन एवं श्वास की गति मंद हो जाती है |
• हड्डियों की वृद्धि रुक जाती है और वे झुकने लगती हैं |
• मेटाबालिज्म की क्रिया मंद हो जाती हैं |
• शरीर का वजन बढ़ने लगता है एवं शरीर में सूजन भी आ जाती है |
• सोचने व् बोलने की क्रिया मंद पड़ जाती है |
• त्वचा रुखी हो जाती है तथा त्वचा के नीचे अधिक मात्रा में वसा एकत्र हो जाने के कारण आँख की पलकों में सुजन आ जाती है |
• शरीर का ताप कम हो जाता है, बाल झड़ने लगते हैं तथा ” गंजापन ” की स्थिति आ जाती है |
थायरायड ग्रंथि का अतिस्राव –
इसमें थायराक्सिन हार्मोन अधिक बनने लगता है | इससे निम्न रोग लक्षण उत्पन्न होते हैं –
• शरीर का ताप सामान्य से अधिक हो जाता है |
• ह्रदय की धड़कन व् श्वास की गति बढ़ जाती है |
• अनिद्रा, उत्तेजना तथा घबराहट जैसे लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं |
• शरीर का वजन कम होने लगता है |
• कई लोगों की हाँथ-पैर की उँगलियों में कम्पन उत्पन्न हो जाता है |
• गर्मी सहन करने की क्षमता कम हो जाती है |
• मधुमेह रोग होने की प्रबल सम्भावना बन जाती है |
• घेंघा रोग उत्पन्न हो जाता है |
• शरीर में आयोडीन की कमी हो जाती है |
पैराथायरायड ग्रंथियों के असंतुलन से उत्पन्न होने वाले रोग –
जैसा कि पीछे बताया है कि पैराथायरायड ग्रंथियां “पैराथार्मोन” हार्मोन स्रवित करती हैं | यह हार्मोन रक्त और हड्डियों में कैल्शियम व् फास्फोरस की मात्रा को संतुलित रखता है | इस हार्मोन की कमी से – हड्डियाँ कमजोर हो जाती हैं, जोड़ों के रोग भी उत्पन्न हो जाते हैं | पैराथार्मोन की अधिकता से – रक्त में, हड्डियों का कैल्शियम तेजी से मिलने लगता है,फलस्वरूप हड्डियाँ अपना आकार खोने लगती हैं तथा रक्त में अधिक कैल्शियम पहुँचने से गुर्दे की पथरी भी होनी प्रारंभ हो जाती है |
विशेष :-
थायरायड के कई टेस्ट जैसे – T-3, T-4, FTI, तथा TSH द्वारा थायरायड ग्रंथि की स्थिति का पता चल जाता है | कई बार थायरायड ग्रंथि में कोई विकार नहीं होता परन्तु पियुष ग्रंथि के ठीक प्रकार से कार्य न करने के कारण थायरायड ग्रंथि को उत्तेजित करने वाले हार्मोन – TSH [Thyroid Stimulating Hormone] ठीक प्रकार नहीं बनते और थायरायड से होने वाले रोग लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं |
थायरायड की प्राकृतिक चिकित्सा :-
Thyroid के लिए हरे पत्ते वाले धनिये की ताजा चटनी बना कर एक बडा चम्मच एक गिलास पानी में घोल कर पीए रोजाना | एक दम ठीक हो जाएगा (बस धनिया देसी हो उसकी सुगन्ध अच्छी हो) |
आहार चिकित्सा –
सादा सुपाच्य भोजन, मट्ठा, दही, नारियल का पानी, मौसमी फल, हरी साग – सब्जियां, अंकुरित गेंहूँ, चोकर सहित आंटे की रोटी को अपने भोजन में शामिल करें |
परहेज :-
मिर्च-मसाला, तेल, अधिक नमक, चीनी, खटाई, चावल, मैदा, चाय, काफी, नशीली वस्तुओं, तली-भुनी चीजों, रबड़ी, मलाई, मांस, अंडा जैसे खाद्यों से परहेज रखें | अगर आप सफ़ेद नमक (समुन्द्री नमक) खाते है तो उसे तुरन्त बंद कर दे और सैंधा नमक ही खाने में प्रयोग करे, सिर्फ़ सैंधा नमक ही खाए सब जगह !
1 – गले की गर्म-ठंडी सेंक –
साधन :– गर्म पानी की रबड़ की थैली, गर्म पानी, एक छोटा तौलिया, एक भगौने में ठण्डा पानी |
विधि :— सर्वप्रथम रबड़ की थैली में गर्म पानी भर लें | ठण्डे पानी के भगौने में छोटा तौलिया डाल लें | गर्म सेंक बोतल से एवं ठण्डी सेंक तौलिया को ठण्डे पानी में भिगोकर , निचोड़कर निम्न क्रम से गले के ऊपर गर्म-ठण्डी सेंक करें –
३ मिनट गर्म ——————– १ मिनट ठण्डी
३ मिनट गर्म ——————– १ मिनट ठण्डी
३ मिनट गर्म ——————– १ मिनट ठण्डी
३ मिनट गर्म ——————– ३ मिनट ठण्डी
इस प्रकार कुल 18 मिनट तक यह उपचार करें | इसे दिन में दो बार – प्रातः – सांय कर सकते हैं |
2- गले की पट्टी लपेट :-
साधन :- १- सूती मार्किन का कपडा, लगभग ४ इंच चौड़ा एवं इतना लम्बा कि गर्दन पर तीन लपेटे लग जाएँ |
२- इतनी ही लम्बी एवं ५-६ इंच चौड़ी गर्म कपडे की पट्टी |
विधि :- सर्वप्रथम सूती कपडे को ठण्डे पानी में भिगोकर निचोड़ लें, तत्पश्चात गले में लपेट दें इसके ऊपर से गर्म कपडे की पट्टी को इस तरह से लपेटें कि नीचे वाली सूती पट्टी पूरी तरह से ढक जाये | इस प्रयोग को रात्रि सोने से पहले ४५ मिनट के लिए करें |
३ – मेहन स्नान –
विधि :-एक बड़े टब में खूब ठण्डा पानी भर कर उसमें एक बैठने की चौकी रख लें | ध्यान रहे कि टब में पानी इतना न भरें कि चौकी डूब जाये | अब उस टब के अन्दर चौकी पर बैठ जाएँ | पैर टब के बाहर एवं सूखे रहें | एक सूती कपडे की डेढ़ – दो फिट लम्बी पट्टी लेकर अपनी जननेंद्रिय के अग्रभाग पर लपेट दें एवं बाकी बची पट्टी को टब में इस प्रकार डालें कि उसका कुछ हिस्सा पानी में डूबा रहे | अब इस पट्टी/ जननेंद्रिय पर टब से पानी ले-लेकर लगातार भिगोते रहें | इस प्रयोग को ५-१० मिनट करें, तत्पश्चात शरीर में गर्मी लाने के लिए १०-१५ मिनट तेजी से टहलें
योग चिकित्सा –
उज्जायी प्राणायाम :-
पद्मासन या सुखासन में बैठकर आँखें बंद कर लें | अपनी जिह्वा को तालू से सटा दें अब कंठ से श्वास को इस प्रकार खींचे कि गले से ध्वनि व् कम्पन उत्पन्न होने लगे | इस प्राणायाम को दस से बढाकर बीस बार तक प्रतिदिन करें |
प्राणायाम प्रातः नित्यकर्म से निवृत्त होकर खाली पेट करें |
थायरायड की एक्युप्रेशर चिकित्सा :-
एक्युप्रेशर चिकित्सा के अनुसार थायरायड व् पैराथायरायड के प्रतिबिम्ब केंद्र दोनों हांथो एवं पैरों के अंगूठे के बिलकुल नीचे व् अंगूठे की जड़ के नीचे ऊँचे उठे हुए भाग में स्थित हैं !
थायरायड के अल्पस्राव की अवस्था में इन केन्द्रों पर घडी की सुई की दिशा में अर्थात बाएं से दायें प्रेशर दें तथा अतिस्राव की स्थिति में प्रेशर दायें से बाएं (घडी की सुई की उलटी दिशा में) देना चाहिए | इसके साथ ही पियुष ग्रंथि के भी प्रतिबिम्ब केन्द्रों पर भी प्रेशर देना चाहिए |
विशेष :-
प्रत्येक केंद्र पर एक से तीन मिनट तक प्रतिदिन दो बार प्रेशर दें |
पियुष ग्रंथि के केंद्र पर पम्पिंग मैथेड [पम्प की तरह दो-तीन सेकेण्ड के लिए दबाएँ फिर एक दो सेकेण्ड के लिए ढीला छोड़ दें] से प्रेशर देना चाहिए |
पित्ताशय पथरी / गुर्दे की पथरी –
प्रातः का भोजन :-
1) जौ की रोटी खाना ।
2) मूंग और चौलार्इ की सब्जी, सहजन, अदरक का प्रयोग अधिक करें ।
3) कुलत्थी की सब्जी खायें ।
4) छाछ पियें ।
5) व्रजासन में बैठें ।
शाम का भोजन :-
1) गेहूँ की रोटी
2) सहजन की भाजी
3) गर्म दूध (हल्दी युक्त)
पथ्य :- पानी ज्यादा पियें, कुलत्थी, अदरक, पत्थर चटटा, सहजन का प्रयोग करें, नींबू के रस का प्रयोग ।
अपथ्य :- मिठार्इयाँ, गुस्सा करना, ज्यादा मसालेदार भोजन, भूख का वेग रोकना, मख्खन, घी, चर्बी बढ़ाने वाले पदार्थ ।
दस्त –
प्रात: का भोजन :-
1) चावल की माड़ + दही/मठ्ठा के साथ
शाम का भेाजन :-
1) मूंग + चावल की खिचड़ी (जीरा डालकर)
पथ्य :- अनार, जीरा + धनिया उड़द के बड़े, पुराना चावल, मसूर की दाल, मूंग की दाल, मोटा अनाज।
अपथ्य :- बथुआ, आम, सहजन, गर्म मसाले वाले सभी पदार्थ, बासी भोजन, भारी भोजन, खट्टे पदार्थ, दूध ।
दस्त नवजात शिशु :-
1) अनार का रस + 1 चम्मच सुबह
2) मूंग + चावल की खिचड़ी (जीरा डालकर)
अंडकोष वृध्दि (Hydrocele) –
प्रात: का भोजन :-
1) लौकी, पत्ता गोभी, करेला की सब्जी
2) मूंग की दाल
3) कुलत्थ का प्रयोग करना
4) भोजन के बाद सोंठ डालकर छाछ पीना
शाम का भेजन :-
1) मूंग + चावल की खिचड़ी खायें
पथ्य :- लंगोट का प्रयोग करें , नींबू शरबत, दूध, मूंग दाल, जौ, पेठा का प्रयोग , पुराना चावल, चना, परवल, बैगन, आलू, गाजर, करेला।
अपथ्य :- सिरका, इमली, अचार, मछली, विरुद्ध स्वभाव के भोजन, वेगों को रोकना, दही, उड़द की दाल, भैंस का दूध, पका केला, ठण्डा पानी, मिठार्इयां।
हिचकी –
प्राणायाम :-
1) कपालभाति
2) व्रजासन
3) मण्डूकासन, गर्म पानी से स्नान
प्रात: का भोजन:-
1) सादा भोजन
2) मूली के पत्तों का रस
3) नींबू + सेंधा नमक मिलाकर चाटना
शाम का भोजन :-
1) पुराना चावल + मूंग की खिचड़ी (लहसुन + अदरक) के साथ
2) गाय / बकरी के दूध में 5 इलायची दाना मिलाकर
पथ्य :- पुराना गेहूँ, चावल, मूंग, जौ, नींबू, मूली, घृत,परवल, गर्म पानी।
अपथ्य :- उड़द, तिल, कटहल, रार्इ, कंद, सेम, मछली, लस्सी, ठंडी वस्तुओं का प्रयोग।
नींद मे पेशाब –
सुबह :- खजूर 2-3 रात में भिगोया और सुबह में चबा चबाकर खाना ।
प्रात: का भोजन :- दाल में रार्इ की छौंक खाना
रात मे :- खजूर + मुनक्का + शहद के साथ
पथ्य :- तेल से मूत्र के स्थान और पेट पर मालिश, पुराना चावल, उड़द, परवल, कुम्हड़ा की सब्जी, हरड़, नारियल, सुपारी, खजूर रात मे सोने से पहले पेशाब जायें, पानी सोते समय कम पियें ।
अपथ्य :- मिर्च, मसालेदार, भोजन, पेशाब रोकना।
उच्च रक्तचाप –
प्राणायाम :-
1) उज्जायी,
2) लम्बी श्वास लेना,
3) ॐ का उच्चारण !
प्रात: का भोजन :-
1) मेथी की भाजी, लौकी, मूली का प्रयोग
2) चना + किशमिश चबाकर खाना
3) छाछ पीना (सोंठ डालकर)
शाम का भेाजन :-
1) चावल+ मूंग की खिचड़ी
2) गाय का दूध पीना
पथ्य :- परवल, लौकी, आम, अनार, नर्इ मूली, एरण्ड तैल, सोंठ, शहद, ध्यान और प्राणयाम, सिर्फ सेंधा नमक खायें ।
अपथ्य :- मैदे वाले और बासी पदार्थ, अत्यधिक चिंता करना, आयोडीन नमक अधिक खाना ।
कमर दर्द –
प्राणायाम और आसन :- मर्कटासन, भुजंगासन, कमर घुमाना
प्रात: का भोजन :-
1) बैगन, सहजन, कुलत्थी की भाजी
2) गेहूँ की रोटी (तेल युक्त)
3) कच्चा आम, अंगूर, बेर एक फल खाना
4) छाछ में चूना डालकर पीना
शाम का भेजन :–
1 भाजी में हींग और मेथी का छौंक लगाकर प्रयोग करें।
2 सरसों तेल को गर्म करके लहसुन के साथ मालिश करें (रात को सोने से पहले) ।
3 अश्वगंधा + सोंठ चूर्ण (1/2 चम्मच) गाय के दूध से
पथ्य :- घी, तेल, गेहूँ, चावल, कुलत्थी, लहसुन, परवल, बैगन, गोमूत्र, अनार, रोजाना तेल मालिश।
अपथ्य :- चना, मटर, अरहर, सुपारी, सेम, करेला, शहद, ठण्डा पानी ,ज्यादा देर तक जागना।
पीलीया –
सुबह का भोजन :-
1) गन्ने का रस + चूना मिलाकर
2) 50 ग्राम मूली रस + मिश्री मिलाकर पीना
दोहपर का भोजन :-
1) लौकी, बथुआ, पालक, मूली की सब्जियाँ
2) गेहूँ, जौ की रोटी का प्रयोग करें
3) मूंग दाल का प्रयोग
शाम का भोजन :-
1) दूध में मुनक्का डालकर पीना।
पथ्य :- पालक, लौकी, मूली, केला, आँवला आम, पपीता, चौलार्इ, घी, दूध, मूंग, अंजीर, मुनक्का, दिन में आराम करना, मीठे फलों का प्रयोग अधिक !
अपथ्य :- सरसों, उड़द, रार्इ, हींग, तिल, मटर, चना, मसाला और तेल के सभी पदार्थ, बाहरी पदार्थ, मैदेवाले पदार्थ |
निम्न रक्तचाप –
प्राणायाम :-
1) भ्रामरी,
2) शशकासन,
3) ॐ उच्चारण ,
4) लम्बी श्वास प्राणायाम (उज्जायी)
5) सूर्य नमस्कार !
प्रात: का भोजन :-
1) भीगा चना, टमाटर, ककड़ी सेंधा नमक के साथ
2) नर्इ मूली + सेंधा नमक मिलाकर खाना
3) परवल , मूंग, कुलत्थ की भाजी
4) पुराने चावल का प्रयोग
शाम का भोजन :- मूंग + चावल की खिचड़ी (सेंधा नमक) डालकर !
पथ्य :- पुराना चावल, गेहूँ, आम, अनार, सेंधा नमक, केला, प्रात: काल नंगे पैर घाँस पर घूमना ।
अपथ्य :- ज्यादा तनाव, वेग धारण, मैदे वाले सभी पदार्थ।
उन्माद (मानसिक रोग) –
प्राणायाम :-
1) भ्रामरी,
2) शशकासन,
3) ॐ उच्चारण
प्रात: का भोजन :-
1) घृत का प्रयोग ज्यादा करें।
2) लौकी, चौलार्इ, बथुआ, भिण्डी की सब्जियाँ
3) पुराना चावल+ मूंग की दाल
4) छाछ पीना
शाम का भोजन :-
1) चावल+ मूंग खिचड़ी (घृत डालकर)
पथ्य :- घी, दूध, लाल चावल, मुनक्का, अनार का ज्यादा प्रयोग, ज्यादा ध्यान और प्राणायाम, धैर्य बढ़ाना।
अपथ्य :- माँस, भैंस का दूध ऊष्ण पदार्थ, करेला, गर्म मसाला, अति क्रोध।
दमा (Asthma) –
सुबह :-
1) उज्जायी प्राणायाम
2) 20 ग्राम सरसों तैल + 5 ग्राम नमक मिलाकर छाती की मालिश या गर्म पानी से स्नान
प्रात: का भोजन :-
1) सरसों, कुलत्थ, अलसी, मूंग की सब्जियाँ
2) हींग, लहसुन, अदरक का प्रयोग ज्यादा
3) छौंक में लहसुन का प्रयोग करें।
4) भोजन के बाद 1 काला तिल चबाकर खायें।
5) छाछ पियें (शुष्ठी+ काली मिर्च + मेथीदाना) मिलाकर
शाम का भोजन :-
1) रोटी में मेथी दाना मिलाकर खायें।
2) गर्म भोजन खायें।
3) रात में गर्म दूध में अश्वगंधा चूर्ण मिलाकर पियें।
पथ्य :- चावल, कुलत्थ, जौ, बकरी का दूध, लहसुन, गोमूत्र, गर्म पानी, नींबू, शहद का प्रयोग, भोजन के बाद दिन में 48 मिनट आराम करें।
अपथ्य :- भैंस का दूध, घी, मछली, ठंडा पानी, उड़द, मैदा, भिण्डी, आलू, ठंडी चीजों से बचें।
बवासीर –
प्राणायाम :– अग्निसार, कपालभाति
प्रात: का भोजन :-
1) करेला, लौकी, तरोर्इ, सब्जियाँ
2) मूंग की दाल + चावल और ज्वार की रोटी
3) भोजन के बाद छाछ पीना (मेथी + सोंठ डालकर)
शाम का भोजन :-
1) गर्म दूध पीना
2) मूंग + चावल की खिचड़ी
पथ्य :- पुराना चावल, अरहर, पपीता, गाजर, मूली, खीरा, पत्तागोभी, गर्म पानी पीना, गुदा मार्ग पर तेल लगाना, पपीता, सेब, कच्ची मूली, चुकंदर।
अपथ्य :- मल का वेग धारण, चावल, आलू, केला, मसालेदार, मैदे वाले सामान, धूप में घूमना, लहसुन, प्याज, मिर्च ।
रक्ताल्पता (खुन की कमी) –
प्राणायाम और योग करें।
प्रात: का भोजन :-
1) 1 गिलास गाजर का रस + 1 आँवला या नींबू डालकर
2) रात में भिगोर्इ किशमिश (10ग्राम) + चना + 5 खजूर खाना ।
3) टमाटर का जूस पीना ।
4) चावल का माड़ पीना ।
5) मूली का रस + सेंधा नमक मिलाकर
6) गन्ने का रस
दोहपर का भोजन :-
1) चुकंदर + मूली + टमाटर (1-1) सलाद खाना
2) पालक , मेथी, बथुआ की सब्जी
शाम का भोजन :-
1) हर प्रकार का सलाद
2) सामान्य भोजन
3) दूध मे 1 चम्मच शतावरी चूर्ण मिलाकर पियें ।
पथ्य :- चावल, मूंग, मसूर, गोमूत्र, हरिद्रा, मधु, घी, छाछ, हरड़, शुष्ठी, पालक, चौलार्इ, मेथी, गाजर, लहसुन
अपथ्य :– मैदे वाले और पीठी वाले पदार्थ (कचौड़ी, बड़ा, बेकरी उत्पाद)
कफ प्रकृति वाले व्यकित के लक्षण –
1. शारीरिक गठन – सुडौल, चिकना, मोटा शरीर होता है, इन्हें सर्दी कष्ट देती है ।
2. वर्ण – गोरा
3. त्वचा – चिकनी, पानी से गीली हुर्इ सी नम होती है, अंग सुडौल और सुन्दर
4. केश – घने, घुंघराले, काले केश होना ।
5. नाखून – नाखून चिकने
6. आंखें – सफेद
7. जीभ – सफेद रेग के लेप वाली
8. आवाज – मधुर बोलने वाला
9. मुंह – मुंह या नाक से बलगम अधिक निकलता है ।
10. स्वाद – मुंह का स्वाद मीठा-मीठा सा रहना, कभी लार का बहना ।
11. भूख – भूख कम लगती है, अल्प भोजन से तृप्ति हो जाती है, मन्दागिन रहती है ।
12. प्यास – प्यास कम लगती है ।
13. मल – सामान्य ठोस मल, मल में चिकनापन या आंव का आना ।
14. मूत्र – सफेद सा, मूत्र की मात्रा अधिक होना, गाढ़ा व चिकना होना ।
15. पसीना – सामान्य पसीना, ठंडा पसीना ।
16. नींद – नींद अधिक आना, आलस्य और सुस्ती आना ।
17. स्वप्न – नदी, तालाब, जलाशय, समुद्र आदि देखना ।
18. चाल – धीमी, स्थिर (एक जैसी) चाल वाला होता है ।
19. पसन्द – सर्दी बुरी लगती है और बहुत कष्ट देती है, धूप और हवा अच्छी लगती है, नम मौसम में भय लगता है, गरमा गरम भोजन और गर्म पदार्थ प्रिय लगते हैं, गर्म चिकने चरपरे और कड़वे पदार्थों की इच्छा अधिक होती है ।
20. नाड़ी की गति – मन्द-मन्द (कबूतर या मोर की चाल वाली), कमजोर व कोमल नाड़ी।
वात प्रकृति वाले व्यकित के लक्षण –
1. शारीरिक गठन – वात प्रकृति का शरीर प्राय: रूखा, फटा-कटा सा दुबला-पतला होता है, इन्हें सर्दी सहन नहीं होती।
2. वर्ण – अधिकतर काला रंग वाला होता है ।
3. त्वचा – त्वचा रूखी एवं ठण्डी होती है फटती बहुत है पैरों की बिवाइयां फटती हैं हथेलियाँ और होठ फटते हैं, उनमें चीरे आते हैं अंग सख्त व शरीर पर उभरी हुर्इ बहुत सी नसें होती हैं ।
4. केश – बाल रूखे, कड़े, छोटे और कम होना तथा दाढ़ी-मूंछ का रूखा और खुरदरा होना ।
5. नाखून – अंगुलियों के नाखूनों का रूखा और खुरदरा होना ।
6. आंखें – नेत्रों का रंग मैला ।
7. जीभ – मैली
8. आवाज – कर्कश व भारी, गंभीरता रहित स्वर, अधिक बोलता है ।
9. मुंह – मुंह सूखता है ।
10. स्वाद – मुंह का स्वाद फीका या खराब मालूम होना ।
11. भूख – भूख कभी ज्यादा कभी कम, पाचन क्रिया कभी ठीक रहती है तो कभी कब्ज हो जाती है, विषम अग्नि, वायु बहुत बनती है ।
12. प्यास – कभी कम, कभी ज्यादा ।
13. मल – रूखा, झाग मिला, टूटा हुआ, कम व सख्त, कब्ज की प्रवृत्ति ।
14. मूत्र – मूत्र का पतला जल के समान होना या गंदला होना, मूत्र में रूकावट की शिकायत होना ।
15. पसीना – कम व बिना गन्ध वाला पसीना ।
16. नींद – नींद कम आना, ज्यादा जम्हाइयां आना, सोते समय दांत किटकिटाने वाला ।
17. स्वप्न – आकाश में उड़ने के सपने देखना ।
18. चाल – तेज चलने वाला होता है ।
19. पसन्द – नापसन्द – सर्दी बुरी लगती है, शीतल वस्तुयें अप्रिय लगती हैं, गर्म वस्तुओं की इच्छा अधिक होती है मीठे, खटटे, नमकीन पदार्थ विशेष प्रिय लगते हैं ।
20. नाड़ी की गति – टेढ़ी-मेढ़ी (सांप की चाल के समान) चाल वाली प्रतीत होती है, तेज और अनियमित नाड़ी ।
पित्त प्रकृति वाले व्यकित के लक्षण –
1. शारीरिक गठन – नाजुक शिथिल शरीर होता है इन्हें गर्मी सहन नहीं होती ।
2. वर्ण – पीला
3. त्वचा – त्वचा पीली एवं नर्म होती है फुंसियों और तिलों से भरी हुर्इ, अंग शिथिल; हथेलियाँ, होठ, जीभ, कान आदि लाल रहते हैं ।
4. केश – बालों का छोटी उम्र में सफेद होना व झड़ना, रोम बहुत कम होना ।
5. नाखून – नाखून लाल
6. आंखें – लाल
7. जीभ – लाल
8. आवाज – स्पष्ट, श्रेष्ठ वक्ता
9. मुंह – कण्ठ सूखता है ।
10. स्वाद – मुंह का स्वाद कड़वा रहना, कभी-कभी खट्टा होना, मुंह व जीभ में छाले होना ।
11. भूख – भूख अधिक लगती है, बहुत सा भोजन करने वाला होता है, पाचन शक्ति अच्छी होती है ।
12. प्यास – प्यास अधिक लगती है ।
13. मल – मल का अधिक पतला व पीला होना, जलनयुक्त होना, दस्त की प्रवृत्ति ।
14. मूत्र – मूत्र कभी गहरा पीला होना, कभी लाल होना, मूत्र में जलन होना ।
15. पसीना – पसीना बहुत कम आना, गर्म और दुर्गन्धयुक्त पसीना ।
16. नींद – निद्रानाश ।
17. स्वप्न – अग्नि, सोना, बिजली, तारा, सूर्य, चन्द्रमा आदि चमकीले पदार्थ देखना ।
18. चाल – साधारण किन्तु लक्ष्य की ओर अग्रसर चाल वाला होता है ।
19. पसन्द – गर्मी बुरी लगती है और अत्यधिक सताती है, गर्म प्रकृति वाली चीजें पसंद नहीं आती, धूप और आग पसंद नहीं, शीतल वस्तुयें यथा-ठंडा जल, बर्फ, ठण्डे जल से स्नान, फूलमाला आदि प्रिय लगते हैं, कसैले, चरपरे और मीठे पदार्थ प्रिय लगते हैं ।
20. नाड़ी की गति – कूदती हुर्इ (मेढ़क या कौआ की चाल वाली), उत्तेजित व भारी नाड़ी होना ।
परस्पर विरुध्द आहार –
1 दूध और कटहल का कभी भी एक साथ सेवन नहीं करना चाहिये ।
2. दूध और कुलत्थी भी कभी एक साथ नहीं लेना चाहिए।
3. नमक और दूध (सेंधा नमक छोड़कर) दूध और सभी प्रकार की खटाइयां, दूध और मूँगफली, दूध और मछली, एक साथ प्रयोग ना करें।
4. दही गर्म करके नहीं खाना चाहिये हानि पहुँचती है, कढ़ी बनाकर खा सकते हैं।
5. शहद और घी समान परिणाम में मिलाकर लेना विष के समान है।
6. जौ का आटा कोर्इ अन्न मिलाये बिना नहीं लेना चाहिए।
7. रात्रि के समय सत्तू का प्रयोग वर्जित है, बिना जल मिलाये सत्तू ना खायें।
8. तेज धूप में चलकर आने के बाद थोड़ा आराम करके ही पानी पियें, व्यायाम या शारीरिक परिश्रम के तुरन्त बाद पानी ना पियें या थोड़ी देर बाद पानी पियें और भोजन के प्रारम्भ में पानी पीना वर्जित है।
9. प्रात:काल भोजन के पश्चात तेज गति से चलना हानिकारक है।
10. शाम को खाने के बाद थोड़ी देर चलना आवश्यक है, खाना खाकर तुरन्त सो जाना हानिकारक है।
11. रात्रि में दही का सेवन निषेध है, भोजन के तुरन्त बाद जल का सेवन निषेध है। दिन में भोजन के बाद मठ्ठा और रात्रि में भोजन के बाद दूध लेना लाभदायक होता है। वात के रोगों में ब्लड एसिडिटी, कफ वृद्धि या संधिवात में दही ना खायें।
12. शौच क्रिया के बाद, भोजन से पहले, सर्दी-जुकाम होने पर, दांतों में पीव आने पर और पसीना आने की दशा में पान का सेवन नहीं करना चाहिए।
13. सिर पर अधिक गर्म पानी डालकर स्नान करने से नेत्रों की ज्योति कम होती है जरूरत पड़ने पर गुनगुने पानी से स्नान कर सकते हैं।
14. सोते समय सिर पर कपड़ा बांधकर सोना, पैरों में मोजे पहनकर सोना, अधिक चुस्त कपड़े पहनकर सोना हानिकारक है।
15. शहद कभी भी गर्म करके ना खायें, छोटी मधुमक्खी का शहद सर्वोत्तम होता है।
16. तेज ज्वर आने पर तेज हवा, दिन में अधिक देर तक सोना, अधिक परिश्रम, स्नान, क्रोध आदि से बचना चाहिये।
17. नींद लेने से पित्त घटता है, मालिश से वात कम होता है और उल्टी करने से कफ कम होता है एवं उपवास करने से ज्वर शांत होता है।
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