“स्वयं बनें गोपाल” समूह से जुड़े रिसर्चर, खुलासा कर रहें हैं भारत में हो सकने वाले एलिएंस के वर्तमान संभावित शहर की
लम्बे समय से ब्रह्मांड से सम्बंधित सभी पहलुओं पर रिसर्च करने वाले, “स्वयं बनें गोपाल” समूह से जुड़े हुए विद्वान रिसर्चर श्री डॉक्टर सौरभ उपाध्याय (Doctor Saurabh Upadhyay) के निजी विचार ही निम्नलिखित आर्टिकल में दी गयी जानकारियों के रूप में प्रस्तुत हैं-
अब तक “स्वयं बनें गोपाल” समूह के ब्रह्मांड व एलियंस आदि सम्बन्धित विषयों के मुख्य शोधकर्ताओं द्वारा जो – जो भी जानकारियां, पूरी दुनिया में पहली बार “स्वयं बनें गोपाल” समूह की वेबसाइट पर प्रकाशित हुईं हैं (उन सभी हिंदी आर्टिकल्स व उनमें से कुछ के इंग्लिश ट्रांसलेशन के लिंक इस लेख के नीचे दिए गएँ हैं) उनके बारे में तो हमें विश्व भर के इंटेलेक्चुअल्स से प्रशंसात्मक व आश्चर्यमिश्रित रुझान मिल ही रहे थे, लेकिन अब जिन एकदम नयी जानकारियों के बारे में “स्वयं बनें गोपाल” समूह प्रकाशित करने जा रहा है, वो विश्व के बड़े स्पेस रिसर्च आर्गेनाइजेशन्स के लिए भी काफी मददगार साबित हो सकती है !
हमारे शोधकर्ताओं के अनुसार, आज विश्व के कुछ बड़े अन्तरिक्ष शोध संस्थानों के सामने एक कई अबूझ प्रश्नों में से एक यह है कि ये एलियंस (Aliens) वास्तव में रहते कहाँ हैं ?
यह प्रश्न अबूझ इसलिए है क्योंकि वैज्ञानिकों द्वारा एलियंस से होने वाली बातचीत में एलियंस जिन जगहों के बारे में वैज्ञानिकों को बतातें हैं उनमे से तो कई जगहें पृथ्वी पर ही स्थित हैं, लेकिन उन जगहों पर जाने पर या उन जगहों का सैटेलाइट व अन्य हाइली सोफीस्टिकेटेड इक्विपमेंट्स द्वारा बार – बार परिक्षण करने पर भी, ऐसा कुछ भी पता नही चल पाता है जिससे यह साबित हो सके कि यहाँ एलियंस जैसे कोई प्राणी रहते हैं !
वास्तव में किसी एलियन को देख पाना जितना ज्यादा कठिन होता है, उतना ही ज्यादा कठिन होता है उसकी बातों को समझ पाना इसलिए गुपचुप रूप से प्रयोग करने वाले ये वैज्ञानिक कई बार अपने आप को बहुत ही ज्यादा हताश व असहाय महसूस करते हैं पर इसके बावजूद भी इन वैज्ञानिकों को इतनी छोटी सी बात समझ में नहीं आ रही है कि वे चोरी छिपे जिन परम आदरणीय हिन्दू धर्म के ग्रन्थों (जिसका क्रेडिट वे वैज्ञानिक कभी भी परम आदरणीय हिन्दू धर्म के ग्रन्थों को नहीं देते हैं) को आधार बनाकर एलियंस व ब्रह्मांड सम्बन्धित रहस्यों को सुलझाने की कोशिश कर रहें हैं, उनमें साफ़ – साफ़ वर्णन है कि ये एलियंस की प्रजातियाँ “दिव्य” हैं !
और “दिव्यता” को कभी भी आज के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित किये गए खिलौने जैसे सेन्सर्स द्वारा नहीं महसूस किया जा सकता है !
जैसा कि “स्वयं बनें गोपाल” समूह ने पूर्व के लेख में भी खुलासा किया है कि किसी प्राणी की शरीर में दिव्यता पैदा होती है, पञ्च तत्वों (पृथ्वी, जल, आकाश, वायु, अग्नि) के साथ – साथ “अक्षर” तत्व के विभिन्न समायोजन से !
वास्तव में “अक्षर” तत्व बड़ा ही रहस्यमय तत्व है क्योंकि जब तक यह शरीर में रहता है तब तक शरीर क्षरण रहित (नाश रहित) अर्थात “अक्षय” अर्थात अजर – अमर बना रहता है ! और इस अक्षर तत्व के शरीर से बाहर निकलते ही शरीर तुरंत काल के अधीन हो जाता है !
(वास्तव में तत्वों की संख्या, पीरियाडिक टेबल में आज के वैज्ञानिकों द्वारा बताये गए 118 तत्वों से बहुत ही ज्यादा हैं और इन अनएक्सप्लोर्ड तत्वों की कैरेक्टेरिस्टिक अत्यंत विचित्र व आश्चर्यजनक हैं, जिनके बारें में “स्वयं बनें गोपाल” समूह भविष्य में अलग से लेख प्रकाशित करेगा)
ये अक्षर तत्व शरीर से बाहर निकलता कब है ? ये बाहर सामन्यतया दो ही सूरत में निकलता है, पहला या तो कोई दिव्य प्राणी खुद ही अपने शरीर से इसे बाहर निकाल दे, या तो दूसरा कोई दिव्य प्राणी किसी दिव्य प्राणी के शरीर से जबरदस्ती अक्षर तत्व बाहर निकाल दे !
पहली स्थिति तब आती है जब कोई दिव्य गैर मानवीय प्राणी (जिन्हें आज की आम बोलचाल की भाषा में एलियन भी कहा जा सकता है) अपनी योनि में जीते-जीते ऊब (विरक्त या थक) जाता है और उसे समझ में आ जाता है कि उसे उसकी दिव्य योनि युक्त जीवन में सुख या अत्यधिक सुख तो मिल सकता है लेकिन चरम सुख अर्थात कुण्डलिनी जागरण के लिए उसे मानव योनि में ही जन्म लेना होगा इसलिए ऐसे एलियंस अपनी इच्छा से ही यौगिक क्रिया द्वारा अपने शरीर से अक्षर तत्व को बाहर निकाल देते हैं जिसके बाद उनका हजारो वर्ष पुराना शरीर तुरंत मृत्यु के अधीन हो जाता है !
दूसरी स्थिति में एलियंस के शरीर का अक्षर तत्व जबरदस्ती किसी दूसरे प्राणी द्वारा बाहर निकाला जाता है क्योकिं ऐसा करना किसी ना किसी कारण से जरूरी हो चुका होता है ! जिसका एक प्रसिद्ध उदाहरण था रावण जिसके अक्षर तत्व (अर्थात उसकी नाभि में स्थित अमृत) को श्री राम जी ने बाण मारकर जबरदस्ती बाहर निकाल दिया था !
और उसी रावण वाले युग अर्थात रामायण काल में ही छिपा है आज की एक प्रमुख एलियंस प्रजाति का रहस्य; और यही है “स्वयं बनें गोपाल” समूह से जुड़े शोधकर्ताओं के द्वारा खोजी गयी कई दुर्लभ जानकारियों में से एक ! आज “स्वयं बनें गोपाल” से जुड़े शोधकर्ता खुलासा कर रहें हैं, एक संभावित क्षेत्र के बारे में, जहाँ एलियन की इस विशेष प्रजाति के अभी भी हो सकने की पूरी उम्मीद है और आश्चर्य की बात यह है कि यह क्षेत्र पृथ्वी पर ही है !
“स्वयं बनें गोपाल” समूह से जुड़े शोधकर्ताओं के अनुसार, भगवान् राम के काल में, उत्तर भारत में “लवणासुर” नाम का एक महा शक्तिशाली व विनाशकारी असुर हुआ करता था जिसकी वजह से उत्तर भारत के कई क्षेत्र बहुत बुरी तरह बर्बाद हो गये थे, तो उस असुर से मुक्ति दिलाने के लिये भगवान् राम के छोटे भाई शत्रुघ्न जी स्वयं वहां गए थे और उन्होंने लवणासुर को मार गिराया था !
चूंकि लवणासुर की वजह से वह क्षेत्र बहुत ही ज्यादा छिन्न – भिन्न अवस्था में पहुच चुका था इसलिए शत्रुघ्न जी ने देवताओं व अन्य दैवीय बिरादरियों का आवाहन किया था, वहां बसने के लिए !
शत्रुघ्न जी के अनुरोध पर कई किस्म की दैवीय और अर्ध-दैवीय प्रजातियाँ, उत्तर भारत के उस क्षेत्र में आई थीं और उन्होंने वहाँ के मानवों से मिलकर संताने पैदा की थीं !
चूंकि उन संतानों में मानवों के साथ – साथ दैवीय अंश भी था इसलिए वे संतानें अर्ध दैवीय रूप में प्रकट हुई थीं !
वे संताने साइंस एंड टेक्नोलॉजी में देवताओं की ही तरह बहुत एडवांस्ड थी इसलिए उन्होने धीरे – धीरे अनुसंधान (रिसर्च) करके अपने निवास स्थान वाले क्षेत्र की विमाओं (डायमेंशन, Dimensions) में परिवर्तन करते हुए इसे बहुआयामीय कर दिया (या ऐसा किसी उच्च स्तर की दैवीय घटना की वजह से हुआ, यह भी संभव है) जिसकी वजह से ये एलियंस संभवतः आज भी उत्तर भारत के उसी क्षेत्र में रहते हैं लेकिन हम मानवों को दिखाई नही दे सकते और ना ही हम उनको महसूस कर सकते हैं क्योंकि संभवतः वे हमसे एडवांस्ड आयाम में रहतें हैं (आयाम का कांसेप्ट विस्तार से जानने के लिए कृपया नीचे दिए पूर्व के एलियंस सम्बंधित हमारे लेखों को पढ़ें) !
वास्तव में इस क्षेत्र का वर्णन मूल संस्कृत रामायण में भी दिया गया है ! चूंकि इतिहास में कई बार, कई क्षेत्रों का अलग – अलग नामकरण हुआ है इसलिए इस क्षेत्र की लोकेशन को अगर आसान भाषा में समझना हो तो संभवतः आज के मथुरा से लेकर नेपाल के बीच में ही स्थित है इन अर्ध दैवीय एलियंस का निवास स्थान ! ये एलियंस देवताओं की संतान होने की वजह से संभवतः अच्छे व सहयोगी स्वभाव के हैं और सदा इस ब्रह्मांड के कल्याण के लिए ही विभिन्न तरह के ऐसे वैज्ञानिक अनुसंधान करते रहतें हैं जिसे आम मानवीय बुद्धि नहीं समझ सकती !
अब यहाँ दूसरा सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि क्या कोई तरीका नहीं हैं इन अर्ध दैवीय एलियंस (जो हम मानवों के ही बीच में रहते हुए भी नहीं दिखाई देते) और इनके शहर (नगर) को देख पाने का ?
बिल्कुल है ! आईये देखते हैं “स्वयं बनें गोपाल” समूह से जुड़े शोधकर्ता क्या कहतें हैं इसके बारे में !
शोधकर्ताओं के अनुसार पृथ्वी स्थित इन एलियंस बिरादरी व उनके नगरों को तब तक नहीं देखा जा सकता जब तक कि कोई भी मानव स्वयं एक विशेष वेग से गति ना करने लगे !
अर्थात जैसे जब तक कोई यान (जैसे- राकेट) पलायन वेग (Escape velocity) को पार नहीं कर पाता, तब तक वह पृथ्वी से बाहर नहीं निकल पाता ठीक उसी तरह, जब तक कोई मानव उस विशेष वेग से गति ना करने लगे तब तक वह पृथ्वी स्थित अपने तीन आयामी संसार से बाहर निकल कर उच्च आयामों अर्थात एलियंस की दुनिया की झलक नहीं देख पाता है (हालांकि यह वेग का नियम सदा अनिवार्य हो यह जरूरी नहीं है, क्योंकि ईश्वर स्वरुप सर्वोच्च शक्तिशाली एलियंस, ईश्वर के ही समान जब चाहें, जैसा चाहे, वैसा करने में सक्षम होतें हैं अर्थात किसी मानव को बिना किसी नियम के तहत गुजारे हुए उसे एलियंस के दिव्य लोकों का दर्शन या भ्रमण तक करवा सकतें हैं) !
सामान्यतया दिव्य शक्ति प्राप्त एलियंस अपनी इच्छानुसार मानवों के समक्ष प्रकट हो सकतें हैं लेकिन मानवों को उन एलियंस के सामने प्रकट होने के लिए उस विशेष वेग से गति करना पड़ता है, जिसके लिए उन्हें आवश्यकता होती है विभिन्न तरह के विमानों की ! हमारे शोधकर्ताओं के अनुसार हिन्दू पौराणिक गंथों में वर्णित विभिन्न विमान ही वो जरिया होते थे जिसकी मदद से प्राचीन मानव विभिन्न विमाओं (अर्थात- लोकों) में जाया करते थे !
वास्तव में यह बहुत ही गूढ़ व सत्य कांसेप्ट है कि इस स्थूल जगत (अर्थात हम मानवों की दुनिया) के लगभग सभी प्राणी अपने सभी तरह के बुरे कामों (जैसे- चोरी, लूट, झूठ बोलना, धोखा देना, नशा करना, हत्या आदि) के लिए, सूक्ष्म जगत (अर्थात अदृश्य लोक, जैसे एलियंस के लोक) की किसी ना किसी बुरी शक्ति से अदृश्य रूप से प्रेरणा व उर्जा पातें रहतें है !
और ठीक इसी प्रकार से इस स्थूल जगत के प्राणी, यानि हम मानव, अपने सभी अच्छे कामों (जैसे- दान, पूजा, पाठ, गरीब भूखे बीमार लोगों व मातापिता बड़े भाई बहनों आदि की सेवा जैसे परोकारी कार्य आदि) के लिए भी सूक्ष्म जगत के किसी ना किसी अच्छी शक्ति (जैसे ऋषि, मुनि, पितर, विभिन्न स्तर के देवता आदि) से अदृश्य प्रेरणा व उर्जा पाते रहते हैं !
इसलिए अब यह बताने की जरूरत नहीं है कि एलियंस का हम सभी मानवों के जीवन पर कितना गहरा असर होता है जिसे हम लाख चाहकर भी नकार नही सकतें हैं !
सूक्ष्म जगत के ही अच्छे स्वभाव के लोगों (अर्थात अच्छे स्वभाव के एलियंस) की मेहनत की वजह से पृथ्वी के स्थूल जगत (अर्थात हम मानवों) में सात्विकता बढ़ जाती है जबकि सूक्ष्म जगत में बुरे एलियंस का प्रभाव बढ़ जाने से हम मानवों की दुनिया में अराजकता निश्चित रूप से बढ़ जाती है !
जैसे- अगर किसी देश के शक्तिशाली (धनी) लोगों के समूह में भ्रष्टाचारियो का वर्चस्व बढ़ जाए तो उस देश कि आम जनता में भी अपने आप भ्रष्टाचार बढ़ जाता है (क्योंकि भ्रष्ट शक्तिशाली लोग अपनी शक्ति का दुरूपयोग करके शासन को भी भ्रष्ट कर देतें हैं और शासन के भ्रष्ट हो जाने पर तो जनता में भ्रष्टाचार बढ़ना तय है, क्योंकि सत्य कहावत है- “यथा राजा तथा प्रजा”) ! इसी तरह हमारा पूरा ब्रह्माण्ड एक देश की ही तरह है जिसमें विभिन्न दिव्य शक्ति प्राप्त एलियंस इस देश के शक्तिशाली लोग हैं !
इसलिए अब वक्त आ गया है कि हम सभी मानव कुँए के मेढ़क की तरह अपनी सीमित जानकारियों से बाहर निकलें और जाने उन सभी भुला दिए गए तथ्यों के बारे में, कि कैसे हम मानवों द्वारा किये जाने वाले हर एक अच्छे कर्म के पीछे, ना जाने कितने दिव्य ऋषि सत्ताओं की अथक अदृश्य मेहनत छिपी हुई होती है जो हमे कलियुग के महाशक्तिशाली प्रभाव के खिलाफ जाकर भी अच्छा काम करने पर मजबूर करती रहती है !
इसलिए प्राचीन भारत में अनिवार्य प्रथा थी कि नित्य सुबह सोकर उठने के बाद और रात को सोने से पहले, ब्रह्मांड में स्थित सभी आदरणीयों का आभार प्रकट करने के लिए उन्हें प्रणाम करते हुए उनसे अपनी सदा रक्षा करने के लिए प्रार्थना भी की जाती थी !
और यदि हम चाहें तो आज भी इस प्रथा का पालन करके नित्य कई किस्म की जानी – अनजानी मुसीबतों व खतरों से बच सकतें हैं !
इसके लिए हमें सिर्फ इतना करना होगा कि रोज सुबह सोकर उठने के बाद और रात में सोने से पहले बिस्तर पर ही, बस इतना कहना होगा कि,- “हे ब्रह्मांड में स्थित सभी आदरणीयगण आप सभी को मेरा प्रणाम है, कृपया आप सभी लोग मुझसे अब तक हुई सभी गलतियों के लिए मुझे माफ़ करते हुए कृपया मेरी सदा रक्षा करिए” !
मात्र 30 सेकेंड्स समय लेने वाली यह प्रार्थना भले ही दिखने अति साधारण लगे लेकिन यह हमारे सच्चे मानव होने का प्रमाण है क्योकि सच्चा मानव वही है जिसके अंदर “मानवता” है और मानवता यही कहती है कि सदैव “अहसानमन्द” बनो ना कि “अहसानफरामोश” !
और हम अहसानमंद तभी कहलायेंगे जब हर उन प्राणी को उनके अहसान के बदले में कम से कम अपना एक श्रद्धायुक्त प्रणाम अर्पण करेंगे !
यहाँ फिर से इस बात को स्पष्ट किया जा रहा है कि कोई भी प्राणी (चाहे वह किसी भी योनि या लोक का निवासी हो) तब तक आदरणीय नहीं कहलाता जब तक कि वह अपने खुद के लाभ से ऊपर उठकर दूसरों के लाभ के लिए काम करना शुरू नहीं कर देता !
और जिस समय कोई प्राणी दूसरों के लाभ (अर्थात परोपकार के कार्य) को किसी भी योग के माध्यम (जैसे भक्तियोग के अति तेजस्वी अभ्यास “सर्वे भवन्तु सुखिनः” में रत ऋषि) से सच्चे मन से कर रहें होतें हैं, उस समय वह मात्र कुछ लोगों का ही भला नहीं कर रहें होतें हैं, बल्कि अदृश्य रूप से पूरे ब्रह्माण्ड से ही पाप की कालिमा को हर रहें होतें हैं, जिससे अपरोक्ष रूप से पूरे ब्रह्मांड का ही भला होता रहता है क्योकि पाप की कालिमा कम होने से, ब्रह्मांड में सात्विकता का प्रकाश बढ़ने में मदद मिलती है (इस बात की पुष्टि श्रीमद् भागवत महापुराण में भी हुई है) !
इसलिए यदि कोई प्राणी चाहे किसी भी लोक में रहते हुए परोपकार का कोई भी कार्य कर रहें हैं, तो वह निश्चित रूप से हम सभी मानवो के लिए आदरणीय व वन्दनीय भी हैं !
यहाँ पर इस बात को भी समझने की जरूरत है कि जब भी कोई प्राणी किसी भी योग में (कर्मयोग, भक्तियोग, राजयोग, हठयोग) तन्मय होकर दूसरों की भलाई के कार्य में लगा हुआ होता है तो उस समय उस प्राणी में ईश्वरत्व का अंश काफी बढ़ जाता है तो ऐसे में उस प्राणी को प्रणाम करने से साक्षात् प्रत्यक्ष ईश्वर को प्रणाम करने के बराबर फल मिलता है जो कि हमारे जीवन में महान सुखकारी परिवर्तन लाने में सक्षम होता है !
इसलिए हमें रोज सुबह व रात्रि में ईश्वर के साथ – साथ उन सभी आदरणीयों (जिन्हें हम जानतें हों या जिन्हें हम अभी तक अपनी अल्पदृष्टि की वजह से जान नहीं पायें हों) का अभिनंदन करने की चिरप्राचीन भारतीय परम्परा का अपने कल्याण के लिए पालन अवश्य करना चाहिए !
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