गायत्री मन्त्र की सत्य चमत्कारी घटनाये – 37 (छोटी नौकरी से धनी व्यापारी)
शा. मोड़कमल केजड़ीवाल, कलकत्ता लिखते हैं कि जोधपुर राज्य के एक गाँव में हमारी जन्मभूमि है। हिन्दी मिडिल पास करने के बाद पास के गाँव में प्राइमरी स्कूल का अध्यापक हो गया। 12 रु. मासिक तनख्वाह के मिलते थे। परिवार छोटा था, सस्ते का जमाना था। किसी प्रकार काम तो चल जाता था, पर तबियत न लगती थी जी में बार-बार यही बात उठा करती कि यदि अच्छी आमदनी का काम मिलता तो जीवन सुखपूर्वक व्यतीत होता।
पं. शिवदत्त शर्मा की लिखी हुई एक छोटी-सी पुस्तक गायत्री महिमा मुझे अपने एक मित्र से मिली, उसमें गायत्री मंत्र की बड़ी महिमा लिखी थी। मेरा मन उस ओर आकर्षित हुआ और श्रद्घा पूर्वक गायत्री का कजप करने का नित्य नियम बना लिया। एक दिन जप करते-करते अचानक मेरे मन में स्फुरणा हुई कि मुझे कलकत्ता जाना चाहिये, वहाँ जाने पर मेरी आर्थिक उन्नति होगी।
दूसरे दिन मैं घर वालों को बिना किसी प्रकार की सूचना दिये कलकत्ता चल दिया। हरीसन रोड पर हमारे एक परिचित सज्जन रहते थे, उनकी सहायता से 27 रु. मासिक की नौकरी मिल गई। मैं नौकरी करता था। उन्नति के लिए मार्ग तलाश करता था, साथ ही गायत्री का जप भी पूरी सावधानी से करता था। एक नये सज्जन से मैत्री बढ़ी जो एक बड़ी कोठी में हैड मुनीम थे।
उन्होंने मुझे अपने सहायक के रूप में मुनीमी विभाग में नौकर करा दिया। अब अब 50 रु. मिलने लगे। सस्ते के जमाने में भी बहुत थे। निजी खर्च चला कर, बच्चों के लिये खर्च भेज कर कुछ बचत हर महीने हो जाती थी। एक वर्ष में मुनीमी का अच्च ज्ञान हो गया। एक दूसरी कोठी में हैड मुनीमजी की जगह खाली हुई वहाँ 115 रु. मासिक की नौकरी मिल गई।
हैड मुनीम होने पर मैंने सवा लाख मन्त्रों का गायत्री पुरश्चरण किया। पुरश्चरण काल में जो अद्भुत अनुभव मुझे हुए उनका वर्णन करने से तो इस लेख का बहुत विस्तार हो जाएगा। पर एक घटना का उल्लेख करना आवश्यक है। पुरश्चरण के अन्तिम दिन में ध्यान मग्न बैठा थ कि अचानक मुझे एक सफेद पहाड़-सा उड़ता हुआ दिखाई दिया। वह पहाड़ मेरे निकट आता चला गया।
जब बिल्कुल निकट आ गया, तो देखा कि यह रुई की गाँठें हैं। वे गाँठें चाँदी की पत्तियों से बँधी हुई हैं और बड़ी मनोहर प्रभा के साथ चमचमा रहीं है, इसके बाद वह पहाड़ गायब हो गया। इस विचित्र दृश्य का मैं कुछ भी अर्थ न समझ सका, पर हैरत बहुत हुई। पूजा पाठ और आध्यात्मिक बातों में मेरे एक सच्चे साथी थ, जिनके यहाँ आकर मैं आरम्भ मं ठहरा था और जिन्होंने मुझे नौकरी पर लगाया था।
उनसे मैंने चाँदी की पत्तियों से जड़ी हुई रुई की गाँठों के पर्वत का वर्णन किया। उन्होंने कुछ सोचकर बताया कि इसका अर्थ यह है कि रुई के सट्टï में लाभ की आशा है। हम दोनों ने रुई की तेजी के ऊपर सट्टï लगा दिया। उसमें हमें पन्द्रह-पन्द्रह हजार का लाभ हुआ। उस रुपये से हम लोगों ने एक सम्मिलित व्यापार किया। व्यापार में काफी उन्नति हुई। पिऊर हम दोनों अलग-अलग करोबार करने लगे।
अब हमारा फर्म अच्छी स्थिति में चल रहा है। आर्थिक दशा काफी मजबूत है। कपड़े के व्यापार में लड़ाई का कजमाना भी कुछ बुरा नहीं रहा। हम लोगों का विश्वास है कि 12 रु. मासिक की नौकरी से इन स्थिति तक पहुँच जाने में गायत्री माता की कृपा ही प्रधान कारण है।
सौजन्य – शांतिकुंज गायत्री परिवार, हरिद्वार
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