भक्ति संक्रामक है
16 पूर्ण कलाओं के साथ उस निराकार ब्रम्ह ने आकार लिया जिनका नाम था कृष्ण |
ये श्री कृष्ण का अवतार तो स्थूल रूप से लगभग 5000 साल पहले हुआ था पर कृष्ण तो अनन्त काल से ही इस धरती पर थे और सदा ही रहेंगे क्योकी उनके बिना इस सृष्टी की कल्पना भी कैसे की जा सकती है |
इस दुनिया में जो कुछ भी अस्तित्व में है वो सब श्री राधा (प्रकृति) के अलग अलग स्वरुप है और उनमे जो कुछ भी चेतन तत्व है वो कुछ और नहीं श्री कृष्ण है | महामना श्री आदि शंकराचार्य भी ने यही कहा था की नारायण की अध्यक्षता में प्रकृति या माया अपना विस्तार करती है !
हमारे परम आदरणीय ऋषियों ने श्री कृष्ण का सामर्थ्य अपरमित बताया है और कहा है की यही बाल गोपाल जब आँख खोलते है तो अनन्त ब्रह्माण्ड जन्म ले लेते है और जब आंख बंद करते है तो अनन्त ब्रह्मांडों में प्रलय आ जाती है और फिर जब आंख खोलते है तो अनन्त ब्रह्माण्ड फिर से उसी तरह जीवित हो जाते है जैसे कुछ हुआ ही नहीं !
सर्वत्र ये अर्धनारीश्वर श्री कृष्ण – राधा का ही समागम है जो असंख्य भिन्न भिन्न आकार लेकर हम जैसे लोगो के रूप में दर्शित होता है और ये कृष्ण ही हम जैसे असंख्य लोगों के रूप में हर क्षण सुख दुःख भोगते हैं | ये चीज समझाने से समझ में आना कठिन है, इसे सिर्फ तभी समझा जा सकता है जब किसी व्यक्ति की चेतना का परिमार्जन स्वयं कृष्ण कृपा से हो जाय !
श्री कृष्ण, को कई भक्त, माँ आदि शक्ति जगदम्बा पार्वती, का अवतार मानते है और राधा जी को भगवान शिव का अवतार मानते है | वे ऐसा इसलिए मानते हैं क्योकी गीता में भगवान कृष्ण ने जो भी घोषणायें की है वो सब मै – मै कह कर की है और ये “मै” का सामर्थ सिर्फ शक्ति के पास है !
वास्तव में शक्ति बिना, शिव भी सिर्फ शव के ही समान है !
तो ऐसे अन्त हीन रहस्य, ज्ञान, विज्ञान वाले परम ब्रम्ह श्री कृष्ण को क्या बुद्धि से समझा जा सकता है ?
नहीं, यह घोर असम्भव है !
ऐसे कठिन, जटिल कृष्ण के पूर्ण रहस्य को सिर्फ और सिर्फ, भक्ति की सरलता से जाना जा सकता है !
भक्ति जितनी आडम्बर रहित, सरल और प्रेम पूर्वक होती है श्री कृष्ण उतने जल्दी रीझते हैं !
वैसे तो भारत जैसी पवित्र भूमि पर एक से बढ़कर एक त्यागी, तपस्वी और हठी किस्म के भक्त हमेशा से मौजूद रहे है पर आधुनिक भारत के नयी जेनेरेशन के लोग जो टेलीविज़न और कंप्यूटर से प्रभावित होते है उन्हें भक्ति का सरल मर्म समझाने में “श्री रामानन्द सागर” के “श्री कृष्णा” सीरियल की काफी महत्वपूर्ण भूमिका साबित हुई है |
इस सीरियल को एकदम जीवंत कृष्ण कथा बनाने में इसके मुख्य कलाकार श्री “सर्वदमन बनर्जी” का अदभुत योगदान था | उनका अभिनय और उनकी सुन्दरता देखकर कई बार मन में ये विचार उठते हैं कि असली कृष्ण भी ऐसे ही दिखते होंगे | श्री कृष्ण के रूप को अधिक से अधिक सजीवता देने में श्री सर्वदमन बनर्जी जी ने जो अथक मेहनत की है, उस मेहनत ने, न जाने कितने सामान्य लोगों में अति दुर्लभ कृष्ण भक्ति का बीज बोया और न जाने कितने लोगों को भक्ति की सामान्य अवस्था से ऊपर उठाकर चरम अवस्था तक पहुचाया | उनके इस नेक काम का उन्हें अक्षय पुण्य जरूर मिला होगा|
उनके द्वारा ऐसा महान चरित्र का अभिनय निश्चय ही स्वयं श्री कृष्ण की इच्छा से ही संभव हो सका, जिसकी वजह से वो करोड़ो कृष्ण भक्तो के अंत: पटल पर चिर काल के लिए अमर हो गए | सुनने में आता है आजकल वो उत्तराखंड में कहीं, गरीब बच्चों की सेवा के लिए आश्रम चलाते हैं !
भक्ति को संक्रामक कहा जाता है मतलब एक आदमी से दूसरे आदमी में फैलती है | एक सच्चे भक्त को भक्ति में डूबा देखकर कई और लोगों के मन में भी भक्ति जागने लगती है इसलिए सच्चे भक्त का दर्शन बहुत शुभ और दुर्लभ माना जाता है | अतः मानव जीवन मिलने पर भी पूरा जीवन ऐसे सतही सुखों (जिनके मिलने की ख़ुशी कुछ सेकंड्स में ही ख़त्म हो जाती है) के पीछे भागते हुए बिता देना और कृष्ण नाम के सुख का कभी स्वाद भी न चखना, सिर्फ और सिर्फ घोर मूर्खता है |
एक आदमी अगर श्री कृष्ण की बिना आडम्बर वाली सच्ची भक्ति नियमित करे, तो धीरे – धीरे उसके अन्दर कई अच्छे बदलाव आने लगेंगे और उसकी सारी बुरी आदतें भी अपने आप ख़त्म होने लगेंगी और कृष्ण कृपा से वो ईमानदारी से इतना धन भी कमाएगा की कोई उसको दरिद्र नहीं कह सकता !
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