जनरल असेंबली ने ट्यूबरकुलोसिस, डिजास्टर रिस्क रिडक्शन, प्रेस फ्रीडम व विकासीय मुद्दों पर आधारित मीटिंग्स में आमंत्रित किया हमारे स्वयं सेवक को
(For reading this article in English language, please click on this link- General Assembly invited our volunteer in the meetings organized for Tuberculosis, Disaster Risk Reduction, Press Freedom and Developmental issues)
आप सभी आदरणीय पाठकों को प्रणाम,
इस वर्ष 2023 में अब तक के शुरुआती 5 महीने में “जनरल असेंबली” ने 4 बार “स्वयं बनें गोपाल” समूह के प्रधान स्वयं सेवक (अध्यक्ष) श्री परिमल पराशर जी को आमंत्रित किया है ! सबसे पहले जिन आदरणीय पाठको को “जनरल असेंबली” के बारे में नहीं पता है, उन्हें हम बताना चाहेंगे कि जनरल असेंबली ही पूरे संयुक्त राष्ट्र संघ के अधिकाँश मुद्दों को कण्ट्रोल करने वाली मेन गवर्निंग बॉडी (मुख्य नियंत्रक संसद) होती है, इसलिए जनरल असेंबली की मीटिंग्स में विश्व के सभी 193 देशों के राष्ट्राध्यक्ष (राष्ट्रपति/प्रधानमन्त्री) एक मेंबर (सदस्य) के तौर पर नियमित रूप से भाग लेते रहते हैं, और जनरल असेंबली ही पूरे संयुक्त राष्ट्र संघ का बजट भी तय करती है (जनरल असेंबली के कार्यों व अधिकारों के बारे में अधिक जानने के लिए कृपया इन 2 लिंक्स पर क्लिक करें- Into the Vault: History of the UN General Assembly (75 Years of UN Audiovisual Archives) और Functions and Powers of the General Assembly) !
वास्तव में जनरल असेंबली हमेशा से उन उभरते हुए ग्लोबल टैलेंट्स को भी विशेष तवज्जो देती आयी है जो विश्व की दिशा व दशा बदलने में सहायक हो सकतें हैं और साथ ही साथ जनरल असेंबली द्वारा आमंत्रित होकर अपने देश का सम्मान बढ़ाने वाले व्यक्तित्वों को उनके देश की सरकार के अलावा दूसरे देशों की सरकार भी काफी महत्व देती है, जैसे देखिये- जनरल असेंबली द्वारा, विश्वप्रसिद्ध कोरियन सिंगर्स “बी. टी. एस.” (BTS Singers) को तीसरी बार मीटिंग में आमंत्रित किये जाने पर कोरिया के राष्ट्रपति ने “बी. टी. एस.” को अपना “स्पेशल प्रेसिडेंशियल एन्वॉय” (राष्ट्रपति के विशेष राजदूत) घोषित कर दिया- BTS partners with Korean president as special presidential envoys | Nightline और जनरल असेंबली की तीसरी मीटिंग के आमंत्रण के बाद “बी. टी. एस.” को व्हाइट हाउस में भी आमंत्रित किया गया अमेरिकन राष्ट्रपति श्री जो बिडेन और उपराष्ट्रपति श्रीमती हैरिस से “एंटी एशियन, हेट क्राइम्स” के मुद्दे को डिसकस करने के लिए- President Biden and Vice President Harris Welcome BTS to the White House !
हमारे स्वयं सेवक परिमल पराशर जी को भी जनरल असेंबली द्वारा अब तक के 4 सालों में 8 बार आमंत्रित किया जा चुका है (जिसके बारे में अधिक जानने के लिए कृपया इस आर्टिकल के सबसे नीचे दिए गए अन्य आर्टिकल्स के लिंक्स पर क्लिक करें) ! जनरल असेंबली द्वारा इस वर्ष मई महीने तक जिन 4 नई मीटिंग्स में परिमल पराशर जी को आमंत्रित किया गया उन मीटिंग्स का विवरण निम्नलिखित हैं {चूंकि इन मीटिंग्स का “इन पर्सन इन्विटेशन” (In-Person Invitation, व्यक्तिगत निमंत्रण पत्र) काफी कम समय अंतराल पर प्राप्त हुआ था इसलिए परिमल जी खुद न्यूयॉर्क नहीं जा सके थे और उन्होंने ऑनलाइन ही इन मींटिंग्स को अटेंड किया था}-
(1)- एक हाई लेवल मीटिंग (जो प्राकृतिक आपदाओं के खतरों को कम करने के मुद्दे पर आधारित थी) का आयोजन हुआ था 18 – 19 मई 2023 को न्यूयॉर्क मुख्यालय के ट्रस्ट्रीशिप कॉउंसिल चैम्बर में (इस मीटिंग का रिकार्डेड वीडियो देखने के लिए कृपया इन 7 लिंक्स पर क्लिक करें- (Part 1) High-Level Meeting on Disaster Risk Reduction – Plenary meeting, General Assembly, 77th session और Part 2 of meeting और Mami Mizutori (SRSG) और Part 3 of meeting) और Deputy Secretary-General) और Part 4 of meeting) और General Assembly President) !
(2)- न्यूयॉर्क मुख्यालय में जनरल असेंबली व यूनेस्को द्वारा 2 मई 2023 को एक विशेष वार्षिक इवेंट का आयोजन हुआ “प्रेस की स्वतंत्रता” को सेलिब्रेट करने के लिए (इस मीटिंग का रिकार्डेड वीडियो देखने के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें- UN / WORLD PRESS FREEDOM DAY) ! इसी संदर्भ में आपको याद दिलाना चाहेंगे कि “स्वयं बनें गोपाल” समूह वर्ष 2021 से “यूनेस्को” के “मीडिया एंड इनफार्मेशन लिट्रेसी अलायन्स” का मेम्बर भी है, जिसके बारे में अधिक जानने के लिए कृपया इस आर्टिकल के सबसे नीचे दिए गए संबंधित आर्टिकल के लिंक पर क्लिक करें !
(3)- जनरल असेंबली के प्रेसिडेंट महामहिम श्री साबा कोरोसी जी द्वारा 20 अप्रैल 2023 को न्यूयॉर्क मुख्यालय में सामाजिक विकासीय मुद्दों को गति देने के लिए आयोजित मीटिंग (इस मीटिंग का रिकार्डेड वीडियो देखने के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें- President of the General Assembly Town Hall meeting with Civil Society) !
(4)- ट्यूबरकुलोसिस बिमारी की वैश्विक स्तर पर कैसे सर्वविध रोकथाम सुनिश्चित हो सके, इसी उद्देश्य के लिए जनरल असेंबली के प्रेसिडेंट महामहिम श्री साबा कोरोसी ने न्यूयॉर्क स्थित मुख्यालय के ट्रस्ट्रीशिप कॉउंसिल चैम्बर में, दो दिवसीय मीटिंग का आयोजन किया था 8 व 9 मई 2023 को (इस मीटिंग का रिकार्डेड वीडियो देखने के लिए कृपया इन 4 लिंक्स पर क्लिक करें- (Part 1) Multistakeholder Hearings in preparation of the General Assembly High-level Meetings on the Fight against Tuberculosis, Pandemic Prevention, Preparedness and Response and Universal Health Coverage – General Assembly, 77th session और Part 2 of meeting और Part 3 of meeting) और DSG on Multistakeholder Hearings) !
वास्तव में ट्यूबरकुलोसिस (Tuberculosis or T.B. , टी. बी., यक्ष्मा, तपेदिक) एक गंभीर बीमारी है जिसके बारे में अनुमान है कि कई मिलियंस मरीज अभी वर्तमान वैश्विक परिस्थिति में हो सकते हैं इस बिमारी के, क्योकि माना जा रहा है कि कोविड के इन्फेक्शन की वजह से बहुत से लोगों की इम्म्युनिटी पॉवर कमजोर हुई है (खासकर फेफड़ों की कार्यक्षमता प्रभावित हुई है) ! अधिक जानकारी के लिए कृपया मीडिया में प्रकाशित यह खबर पढ़ें- कोरोना से रिकवर होने के बाद लोग हो रहे टीबी का शिकार, 25 फीसदी तक बढ़ गए मामले !
टी.बी. के बैक्टीरिया भी सांस द्वारा शरीर में प्रवेश करते हैं ! किसी रोगी के खांसने, बात करने, छींकने या थूकने के समय बलगम व थूक की बहुत ही छोटी-छोटी बूंदें हवा में फैल जाती हैं, जिनमें उपस्थित बैक्टीरिया कई घंटों तक हवा में तैरतें रह सकते हैं और स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में सांस लेते समय प्रवेश करके रोग पैदा कर सकते हैं (टी.बी. के प्राकृतिक निदान के लिए “स्वयं बनें गोपाल” समूह ने लगभग 6 वर्ष पूर्व यह आर्टिकल प्रकाशित किया था जिसे पाठकों ने बहुत पसंद किया था- जानिये कैसे सिर्फ प्राकृतिक उपायों से ट्यूबरक्लोसिस (टी बी) का दमन किया जा सकता है) !
इसी परिप्रेक्ष्य में हम बताना चाहेंगे कि “स्वयं बनें गोपाल” समूह से ना केवल योग, आयुर्वेद बल्कि विभिन्न अन्य तरह के नेचुरोपैथिक सोल्यूशन्स (प्राकृतिक चिकित्सा पद्धतियों) के भी मूर्धन्य जानकार जुड़े हुए हैं जिनके निःस्वार्थ सहयोग की वजह से ही हम हमेशा आप सभी आदरणीय पाठकों के लिए बेशकीमती जानकारियां प्रकाशित कर पाते हैं ! और इसी क्रम में हम आज संक्षिप्त परिचय दे रहें हैं, एक ऐसी चिकित्सा पद्धति का जो ना केवल फेफड़ो की बीमारियों में, बल्कि शरीर की लगभग सभी बीमारियों में काफी जल्दी लाभ पंहुचा सकती है, लेकिन इसके बावजूद भी इस चिकित्सा पद्धति द्वारा इलाज बहुत कम ही जगह देखने को मिलता है क्योकि इस चिकित्सा पद्धति के अच्छे जानकार बहुत कम देखने को मिलते हैं ! इस चिकित्सा पद्धति का का नाम है- “मर्म चिकित्सा” (Marma Treatment) !
वैसे तो मानव शरीर में स्थित, “मर्म स्थानों” के बारे में थोड़ी – बहुत जानकारी मेडिकल स्टूडेंट्स (खासकर BAMS स्टूडेंट्स) को पढ़ाया जाता है लेकिन कई बार देखा गया है की “मर्म चिकित्सा” के बारे में किसी BAMS डॉक्टर की तुलना में कई गुना ज्यादा प्रैक्टिकल जानकारी, केरल प्रदेश के रीजनल मार्शल आर्ट्स (परम्परागत युध्द कला) “कलरीपायट्टु” के मेंटर्स (गुरु) जानते हैं क्योकि माना जाता है कि “कलरीपायट्टु” युध्द शास्त्र (Kalaripayattu techniques) में भी “मर्म चिकित्सा” का विस्तृत वर्णन है !
इसलिए “स्वयं बनें गोपाल” समूह, भारत सरकार को यह विनम्र सुझाव देना चाहेगा कि सरकार को इन्नोवेटिव आईडिया (नए सकारात्मक प्रयोग) के तहत आधुनिक BAMS डॉक्टर्स को भी केरल भेजकर उनकी “मर्म चिकित्सा” में कुछ महीने की ट्रेनिंग करवानी चाहिए या केरल से ऐसे आदरणीय मेंटर्स को आमंत्रित करना चाहिए कि वे भारत के हर आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेजेस में जाकर मेडिकल स्टूडेंट्स/प्रोफेसर्स/डॉक्टर्स आदि को कुछ महीने “मर्म चिकित्सा” की ट्रेनिंग देने की कृपा करें (नोट- डॉक्टर्स को ट्रेनिंग केवल “मर्म चिकित्सा” की लेनी है, ना की पूरे “कलरीपायट्टु” युध्द शास्त्र की) ! डॉक्टर्स को “मर्म चिकित्सा” की यह ट्रेनिंग लेना इतना जरूरी इसलिए है क्योकि वास्तव में किसी मरीज के इलाज में, जितना जल्दी और जितना जबरदस्त फायदा “मर्म चिकित्सा” पहुंचा सकती है, उतना शायद कोई और चिकित्सा पद्धति नहीं पहुंचा सकती है (आयुर्वेदिक जड़ीबूटी व होम्योपैथिक चिकित्सा पद्धित की ही तरह “मर्म चिकित्सा पद्धित” का भी कोई साइड इफ़ेक्ट नहीं है) !
यहाँ फिर से स्पष्ट किया जा रहा है कि “मर्म चिकित्सा” अपने आप में एक पूर्ण चिकित्सा पद्धति है जिसमें बिना किसी भी तरह की दवा की मदद के, लगभग सभी बीमारियों (जैसे- डायबिटिज, ब्लड प्रेशर, आर्थराइटिस – जॉइंट पेन, सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस, अल्सर, स्याटिका, डिप्रेशन, बवासीर, पीलिया, गिल्टी, गैस, एसिडिटी, खांसी, एलर्जी, कमजोर हड्डी, त्वचा रोग, किडनी रोग आदि) में बहुत अच्छा लाभ मिल सकता है ! माना जाता है कि अकाट्य प्रारब्ध (जैसे- मृत्यु या हर मानव के जीवन में आने वाली ऐसी कठिन बीमारियां जो पूर्व जन्म के जघन्य पाप की वजह से पैदा हुई हो) को छोड़कर दुनिया की कोई ऐसी कठिन से कठिन बिमारी नहीं है जिसमें “मर्म चिकित्सा” से लाभ नहीं मिल सकता है ! इसलिए “मर्म चिकित्सा” को दुनिया की सबसे शक्तिशाली, सबसे जल्दी फायदा पहुंचाने वाली और सबसे पुरानी ट्रीटमेंट पैथी भी माना जाता है (आयुर्वेद के जनक भगवान धन्वन्तरि की ही तरह, “मर्म चिकित्सा” के दुर्लभ ज्ञान को भी भगवान परशुराम ने अपने गुरु भगवान शिव से ग्रहण करके पूरी सृष्टि में फैलाया था जिसका आगे इस आर्टिकल में वर्णन है) !
“मर्म चिकित्सा” द्वारा बीमारियों में बहुत जल्दी लाभ मिल पाने की वजह से इस भारतीय चिकित्सा पद्धति के विदेशों में भी कुछ सेण्टर खोल दिए गए हैं जो कुछ मिनट्स के ट्रीटमेंट सेशन के लिए 100 यूरो तक फीस चार्ज कर रहें हैं ! भारत में तो आज भी बहुत से लोगों ने “मर्म चिकित्सा” का नाम तक नहीं सुना है, और जो लोग इसके बारे में जानते भी हैं उनमें से कई लोगों के हिसाब से यह एक्यूप्रेशर से मिलती – जुलती कोई चिकित्सा पद्धति है जिससे शरीर के मामूली दर्द वगैरह में थोड़ा – बहुत आराम मिल सकता है ! वास्तव में ऐसे कम जानकार लोगो की गलती नहीं है क्योकि वाकई में आज सोसाइटी में कुछ ऐसे सो कॉल्ड (तथाकथित) “मर्म एक्सपर्ट” हैं जिन्होंने अपनी अपूर्ण जानकारी के आधार पर “मर्म चिकित्सा” की ऐसी मामूली इमेज बना दी है !
जबकि सच्चाई यह है कि दुनिया की सबसे पुरानी चिकित्सा पद्धति “मर्म चिकित्सा” के बारे में अथर्वेद के उपवेद आयुर्वेद में संस्कृत भाषा में इस तरह वर्णन किया गया है- “मृणआयते अस्मिन इति मर्म” जिसका सामान्य भाषा में मतलब है कि जब शरीर के “मर्म स्थानों” (जिन्हे कई आयुर्वेद के शोधकर्ता संभवतः मुख्य नाड़ी मंडल क्षेत्र भी मानते है) में ऊर्जा बाधित होती है तब शरीर में सभी बीमारियां पैदा होती है !
माना जाता है कि केरल की लुप्त होती परम्परागत युध्द कला “कलरीपायट्टु” (जिसमें भी “मर्म चिकित्सा” का बेहद सटीक प्रयोग होता है) दुनिया की सबसे प्राचीन मार्शल आर्ट्स कला है, और “कलरीपायट्टु” से ही बाद में अन्य मार्शल आर्ट्स (जैसे- जूडो, कराटे, ताईकांडो, कुंगफू आदि) का निर्माण हुआ है ! ना केवल “कलरीपायट्टु” युद्द कला को केरल में स्थापित करना बल्कि पूरे केरल के भौगोलिक निर्माण का श्रेय जाता है भगवान परशुराम को ! माना जाता है कि भगवान परशुराम ने अपना परशु समुद्र में फेंका था जिसकी वजह से उसी आकार की भूमि समुद्र से बाहर निकली जिसका वर्तमान नाम केरल है और इसी केरल भूमि से उन्होंने “कलरीपायट्टु” युद्द कला का प्रचार प्रसार किया !
जैसा की हमने ऊपर बताया है कि भगवान परशुराम ने “कलरीपायट्टु” युध्द कला (जिसमें भी “मर्म चिकित्सा” का बेहद सटीक प्रयोग होता है) अपने गुरु योगिराज भगवान् शिव से सीखी थी ! भगवान परशुराम ने अपने जीवन काल में अनगिनत घमंडी राजाओं के अत्याचार से जनता को मुक्ति दिलाई थी ! भगवान् परशुराम से ही यह टेक्नीक उनके शिष्य भीष्म पितामह व कर्ण ने भी सीखी थी जिन्हे आमने – सामने के युद्ध में हरा पाना असम्भव था ! “कलरीपायट्टु” युध्द कला की आश्चर्यजनक “मर्म टेक्नीक” के बारे में विश्वप्रसिद्ध चैनल “नेशनल जियोग्राफिक” ने भी फिल्माया है- Kalaripayattu: The Ultimate Martial Art? | It Happens Only in India | National Geographic
लेकिन जैसा की सभी को पता है भारत ने सैकड़ों साल गुलामी के दौरान बहुत से अपने दुर्लभ चिकित्सकीय ग्रंथ खो दिए हैं इसलिए आज के उपलब्ध ग्रंथों में “मर्म चिकित्सा” से संबंधित सम्पूर्ण जानकारी नहीं मिलती है ! अतः सिर्फ वर्तमान उपलब्ध किताबों में दी गयी संक्षिप्त जानकारी तक ही सीमित होने की जगह, इस चिकित्सा में निपुणता हासिल करने के लिए प्राचीन “मर्म कला” के असली जानकार योगियों का भी मार्गदर्शन अवश्य लेना चाहिए !
इसलिए “मर्म चिकित्सा” का पूर्ण जानकार बनना इतना आसान नहीं है, बल्कि यह कई वर्षों की कठिन प्रक्रिया है ! बॉलीवुड के “ही मैन” माने जाने वाले शुद्ध शाकाहारी अभिनेता विद्युत जामवाल खुद “कलरीपायट्टु” के “मर्म हीलिंग टेक्नीक” के प्रैक्टिशनर है जिसे देखने के लिए ये 2 वीडियो देखिये- Vidyut’s Chikitsa Tarangam Exclusively on @hotstarOfficial | Kalaripayattu | Martial Arts और Vidyut’s Chikitsa Tarangam Exclusively on @hotstarOfficial | Kalaripayattu | Martial Arts !
“मर्म चिकित्सा” में शरीर के 109 मर्म स्थानों को विशेष तरीके से ट्रिगर (उत्प्रेरित) करके, बिमारियों में बहुत जल्द आराम पहुंचाया जाता है ! शरीर में जिस स्थान पर मांस, स्नायु, सिरा, अस्थि, संधि आदि का प्राण से विशेष समागम होता है, वे “मर्म स्थान” (या नाड़ियों से सम्बंधित संभावित मुख्य क्षेत्र) कहलाते हैं और जिनकी संख्या कई आधुनिक एक्सपर्ट 107 मानते हैं (जबकि हमारे रिसर्च की खोज के हिसाब से मर्म स्थान 107 नहीं, बल्कि संभवतः 109 हैं) ! माना जाता है कि मानव शरीर के दोनों पैरों में 22 मर्म पॉइंट्स, दोनों हाथों में 22 पॉइंट्स, पीठ में 14 मर्म पॉइंट्स, छाती में 9 पॉइंट्स, पेट में 3 पॉइंट्स, गर्दन में 14 पॉइंट्स, सिर में 23 मर्म पॉइंट्स होते हैं !
हाथों में स्थित “मर्म स्थानों” के नाम हैं- तलहृदय, क्षिप्र, कूर्च, कूर्च शिर, मणिबन्ध, इन्द्रवस्ति, कूर्पर, आणि, ऊर्वी, लोहिताक्ष , कक्षाधर ! पैरों में स्थित “मर्म स्थानों” का नाम है- तलहृदय, क्षिप्र, कूर्च, कूर्च शिर, गुल्फ, इन्द्रवस्ति, जानु, आणि, ऊर्वी, लोहिताक्ष, विटप ! पीठ में स्थित “मर्म स्थानों” का नाम है- कुकुन्दर, कटिकतरुण, नितम्ब, पार्श्वसन्धि, वृहति, अंसफलक, अंस ! सीने में स्थित “मर्म स्थानों” का नाम है- हृदय, स्तनमूल, स्तनरोहित, अपलाप, अपस्तम्भ ! पेट में स्थित “मर्म स्थानों” के नाम है- नाभि, गुदा, वस्ति ! गर्दन में स्थित “मर्म स्थानों” के नाम है- नीला, मन्या, मातृकाएँ, कृकाटिका ! सिर में स्थित “मर्म स्थानों” के नाम हैं- विधुर, अपांग, आवर्त, उत्क्षेप, शंख, फणा, स्थपनी, श्रृंगाटक, सीमान्त, अधिपति (कई “मर्म पॉइंट्स” के नाम एक ही है, लेकिन शरीर में उनका स्थान अलग है) ! रचना (धातु भेद) के हिसाब से मर्म ये 5 प्रकार के होते हैं- मांस मर्म, सिरा मर्म, स्नायु मर्म, अस्थि मर्म, सन्धि मर्म !
माना जाता है कि भारतीय “मर्म चिकित्सा” विज्ञान जो की बहुत ही बड़ा है, उसी में से थोड़ा सा ज्ञान लेकर चीन देश के लोगों ने एक्यूप्रेशर चिकित्सा पद्धति का निर्माण किया है (मतलब इस चीज को इस तरह आसानी से समझा जा सकता है कि, वास्तव में एक्यूप्रेशर, “मर्म चिकित्सा” का बच्चा है) लेकिन यहाँ पर कुछ लोग यह प्रश्न भी उठाते हैं कि एक्यूप्रेशर में तो माना जाता है कि शरीर के 361 मुख्य पॉइंट्स से भी ज्यादा पॉइंट्स से बीमारियों का इलाज हो सकता है, जबकि “मर्म चिकित्सा” में तो केवल 109 पॉइंट्स ही हैं, तो इस तरह तो “मर्म चिकित्सा”, एक्यूप्रेशर का बच्चा हुआ ?
तो संभवतः ऐसे लोगों को ये नहीं पता की शरीर में “मर्म स्थान” भले ही 109 हों, लेकिन इलाज सिर्फ “मर्म स्थानों” से ही हो ये जरूरी नहीं है क्योकि कई बार उनके समीप स्थित ऊर्जा चक्रों की भी मदद लेनी पड़ सकती है ! शायद यही कारण है कि आयुर्वेद के शोधकर्ता सलाह देते हैं कि सिर्फ किताबी ज्ञान पढ़कर “मर्म एक्सपर्ट” बनना मुश्किल है, इसलिए “मर्म चिकित्सा” की असली जानकारी के लिए सच्चे योगियों की कृपा आवश्यक है !
मतलब आसान भाषा में कहें तो जैसे- कोई एक्सपर्ट इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियर ही किसी इलेक्ट्रॉनिक सर्किट को देखकर समझ पाता है विद्युत् ऊर्जा के प्रवाह में होने वाले परिवर्तनों को, ठीक उसी तरह मानव शरीर भी एक इलेक्ट्रॉनिक सर्किट की तरह ही होती है जिसे कोई “मर्म चिकित्सा एक्सपर्ट” ही देखकर समझ सकता है कि किस बिमारी को दूर करने के लिए, किसी पॉइंट्स को कैसे स्टिमुलेट करना होगा ताकि शरीर की वाइटल पावर (जीवनी ऊर्जा) का फ्री फ्लो (निर्बाध गमन) सुनिश्चित हो सके संबंधित बीमार अंग में ! इसलिए किसी भी बिमारी के इलाज में, जो लाभ किसी भी दवाओं को महीनो तक प्रयोग करने से मिलता है, वही लाभ “मर्म चिकित्सा” के मात्र कुछ दिनों तक के प्रयोग से भी मिल सकता है !
जैसा की “स्वयं बनें गोपाल” समूह ने अपने पूर्व के आर्टिकल्स में इस बात का वर्णन किया है किसी भी बिमारी को, कभी भी, कोई भी दवा ठीक नहीं करती है बल्कि हमेशा शरीर की इम्म्युनिटी ही ठीक करती है, मतलब किसी भी दवा (चाहे वो दवा एलोपैथिक हो, होम्योपैथिक हो या आयुर्वैदिक हो) का काम है केवल बीमार अंग से संबंधित इम्म्युनिटी को ठीक करना, ताकि वो ठीक हुई इम्म्युनिटी ज्यादा बेहतर तरीके से उस बिमारी को ठीक कर सके !
यहां अब प्रश्न बनता है कि वास्तव में इम्म्युनिटी है क्या ? योगशास्त्र के अनुसार हमारी प्राण ऊर्जा ही हमारी इम्म्युनिटी है (इसलिए प्राणायाम करने से इम्म्युनिटी सबसे तेज बढ़ती है) ! इसी प्राण ऊर्जा को लोग वाइटल पावर (जीवनी शक्ति) भी बोलते हैं ! सारांश में कहें तो 5 मुख्य प्राण (प्राण, अपान, व्यान, उदान व समान) और 5 उप प्राण (नाग, वृकल, कूर्म, देवदत्त व धनन्जय) मानव शरीर के अलग अलग हिस्सों में रहते हैं जिनके शरीर में अलग – अलग कार्य हैं !
जब शरीर के किसी अंग की नाड़ियों में उत्पन्न हुए अवरोधों की वजह से समुचित मात्रा में प्राण ऊर्जा किसी अंग में नहीं पहुँच पाती है तभी उस अंग में बीमारियां पैदा होती हैं ! शरीर की सभी 72 हजार नाड़ियों में आये हर तरह के अवरोधों को दूर करके पूरे शरीर को निरोगी बनाने की क्षमता रखता है अनुलोम विलोम प्राणायाम, लेकिन किसी कारण से अगर मरीज विधिवत पूरा समय देकर अनुलोम विलोम करने में खुद सक्षम ना हो और मरीज को तकलीफ ज्यादा हो तो वो जल्दी आराम पाने के लिए किसी “मर्म चिकित्सा एक्सपर्ट” की मदद ले सकता है क्योकि “मर्म चिकित्सा एक्सपर्ट” भी लगभग वही काम करता हैं जो अनुलोम विलोम प्राणायाम करता है, यानी नाड़ियों में आये हुए अवरोध को जल्दी से दूर करता है जिससे ज्यादा मात्रा में प्राण ऊर्जा मरीज के उस बीमार अंग तक पहुँचती है और बीमारी में जल्दी आराम मिलता है !
अतः जिन इन्टेलक्चुलस को “मर्म चिकित्सा” की इतनी आश्चर्यजनक खूबियां सुनने के बावजूद भी, अब भी यह लगता है कि “मर्म चिकित्सा” के बारे में आधुनिक डॉक्टर्स को ट्रेनिंग देने की क्या जरूरत है, तो उन्हें फिर से याद करना चाहिए की हर डॉक्टर के प्रोफेशन का मुख्य उद्देश्य यही तो है कि “सुरक्षित इलाज पद्धति से कम से कम समय में मरीजों को अधिक से अधिक आराम पहुँचाना”, इसलिए जिन डॉक्टर्स को वाकई में एक “मल्टी टैलेंटेड डॉक्टर” (बहुमुखी प्रतिभाशाली डॉक्टर) बनना हो, उन्हें अपनी मनपसंद इलाज की पद्धति के साथ – साथ “मर्म चिकित्सा” भी जरूर सीखनी चाहिए ताकि कोई मरीज प्रथम दृष्टया अगर बिना कोई दवा खिलाये हुए सिर्फ “मर्म चिकित्सा” से ही ठीक हो सकता है तो फिर क्या जरूरत है दवाओं पर इतना ज्यादा निर्भरता बढ़ाने की (मतलब विश्व में जितने ज्यादा “मर्म चिकित्सा” के जानकार डॉक्टर्स होंगे, संभवतः मरीजों का उतना ही कम पैसा दवाओं में खर्च होगा) !
हाँ ये जरूर है कि डॉक्टर्स को मर्म योगियों से ट्रेनिंग केवल “मर्म चिकित्सा” की लेनी है (ना की पूरे “कलरीपायट्टु” युध्द शास्त्र की) तब भी “मर्म चिकित्सा” का एक्सपर्ट बनना कई सालों की लम्बी कठिन प्रक्रिया है लेकिन एक बार इसमें एक्सपर्ट हो जाने पर, कठिन बीमारियों में भी काफी तेज लाभ जरूर दिया जा सकता है !
“मर्म चिकित्सा” के इतने जबरदस्त फायदे होने के बावजूद भी, आपको जानकार आश्चर्य होगा कि “मर्म चिकित्सा” के असली जानकार योगी अपेक्षाकृत काफी कम आमदनी की आजीविका से अपना काम चला रहे हैं क्योकि आज की नई पीढ़ी के अधिकाँश युवाओं में इन कठिन थका देने वाली प्रक्रिया को सीखने की जगह तुरंत अधिक पैसा देने वाली चीजों में ज्यादा इंटरेस्ट है ! जहाँ एक तरफ भारत में ऐसे भी डॉक्टर्स हैं जो करोड़ो रूपये कमा रहें हैं, वही जटिल बीमारियों को भी मुफ्त में ठीक करने में सक्षम ऐसे महान “मर्म योगी” अपनी आजीविका के लिए ज्यादातर निर्भर है उनके गुरुकुलों में नए एडमिशन लेने वाले स्टूडेंट्स पर (जिनकी संख्या भी दिन ब दिन कम होती जा रही है) !
लुप्त होती “मर्म चिकित्सा” से जुड़ी हुई सभी समस्याओं को ध्यान में रखते हुए और इसके फायदों को जन – जन तक पहुंचाने के लिए वर्तमान भारत सरकार भी निश्चित रूप से काफी मेहनत कर रही है, जैसे- मोदी जी (जिन्होंने देश के इतिहास में पहली बार आयुष मंत्रालय बनाया था) के निर्देशन में, और कर्मठ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी के पूर्ण सहयोग व समर्थन से, उत्तर प्रदेश के बुद्धिमान आयुष मंत्री डॉक्टर दयाशंकर मिश्र जी इस दुर्लभ “मर्म चिकित्सा” के भी प्रचार प्रसार के लिए पुरजोर प्रयास कर रहें हैं (मोदी जी और योगी जी की ही तरह दयाशंकर जी भी एक सच्चे गौभक्त है ! सच्चे गौभक्त होने का सबसे बड़ा फायदा यह मिलता है कि मानव मन भी हमेशा गौवंश की तरह परोपकारी बना रहता है इसलिए महाज्ञानी ऋषि वशिष्ठ जी ने भगवान राम को एक अच्छा परोपकारी राजा बनने का गुरु मन्त्र देते हुए कहा था कि “गा वै पश्याम्यहं नित्यं गावः पश्यन्तु मां सदा” अर्थात- ऐसा हो कि नित्य मै गौओं को देखूं और गौएँ मेरी ओर देखें) !
तो ये रही “मर्म चिकित्सा पद्धति”, जिसका भी प्रयोग फेफड़ों की समस्याओं के साथ – साथ शरीर की कई कठिन बिमारियों के लिए करके आराम पाया जा सकता है !
जय हो परम आदरणीय गौ माता की !
वन्दे मातरम् !
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