अपने पेट में अंडे के रूप में ब्रह्माण्ड को धारण करने वाली श्री कूष्मांडा
मातृ शक्ति श्री कूष्मांडा देवी का ध्यान एक गर्भवती स्त्री के रूप में किया गया है ! अपने उदर (पेट) से अंड अर्थात् ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इन्हें कूष्मांडा देवी के नाम से पुकारा जाता है।
भवानी दुर्गा का चतुर्थ रूप श्री कूष्मांडा जी हैं।
ये देवी भगवान भास्कर के लोक में निवास करती हैं । इनकी अंगकान्ति स्वयं भगवान आदित्य के समान अति तीव्र है !
इन्ही के उदर में त्रिविध तापयुक्त संसार स्थित है | यह इस चराचर जगत की अधिष्ठात्री हैं !
जब सृष्टि का प्राकट्य नहीं हुआ था और उस समय अंधकार का साम्राज्य था, तब देवी कूष्माण्डा जिनका मुखमंडल सैकड़ों सूर्य की प्रभा जैसे प्रदिप्त है उस समय प्रकट हुई और उनके मुख पर बिखरी मंद मुस्कुराहट से सृष्टि की पलकें झपकनी शुरू हो गयी !
और जिस प्रकार फूल में अण्ड का जन्म होता है उसी प्रकार कुसुम अर्थात फूल के समान मां की हंसी से ब्रह्मांड का जन्म हुआ था !
आज भी हर क्षण इन्ही के तेज और प्रकाश से दसों दिशाएँ प्रकाशित हो रही हैं। ब्रह्मांड की सभी वस्तुओं और प्राणियों में अवस्थित तेज इन्हीं की छाया है। माँ की आठ भुजाएँ हैं। अतः ये अष्टभुजा देवी के नाम से भी विख्यात हैं। इनके सात हाथों में क्रमशः कमंडल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा है। आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जपमाला है। इनका वाहन सिंह है। मां कूष्मांडा लाल गुलाब चढ़ाने पर प्रसन्न होती हैं।
इनकी आराधना से मनुष्य त्रिविध ताप से मुक्त होता है। माँ कूष्माण्डा सदैव अपने भक्तों पर कृपा दृष्टि रखती है। इनकी पूजा आराधना से अपूर्व शांति एवं लक्ष्मी की प्राप्ति होती हैं।
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