न हम कुछ कर सके, न तुम कुछ कर सके

मैंने तो जीवन में तुम्हें

कुछ और ही सोच रखा था

शायद बिल्कुल अलग

विशेष समझ रखा था

क्योकि तुम मेरे हर सुख दुःख में

मेरी परछाई बन कर

साथ चलते रहे

इसलिए मेरे मन का हर कोना

सदैव इस आस से पूरित रहता था

कि तुम ताउम्र मेरा साथ निभाओगे

लेकिन वक्त कहाँ हमेशा

एक सा रहता है

हमारे जिस रिश्ते को

जन्मों की दूरियां भी

जुदा ना कर सकी

वो चंद गलत फ़हमियों

चंद शब्दों के ठोकरों से

तार – तार होता रहा

न हम कुछ कर सके

न तुम कुछ कर सके

बस हम अश्रु भरे नैनों से

अपने मिटते हुए

रिश्ते को यूँ ही निहारते रहे

लेखिका –
श्री देवयानी (श्री देवयानी की अन्य रचनाओं को पढ़ने के लिए, कृपया नीचे दिए गए लिंक्स पर क्लिक करें)-

सिर्फ अपनी ख़ुशी की तलाश बर्बाद कर रही है अपने अंश की ख़ुशी

एक कठोर अनुशासक ऐसा भी

एक माँ – पुत्र के विछोह की असीम पीड़ायुक्त संवाद

वो अपने

अनजाना कर्ज

माँ

मुझे शून्य में विलीन करती रही

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