संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा, पूरे विश्व के पारिस्थितिकी तंत्र के पुनर्निर्माण पर निगरानी रखने वाले उपक्रम का हिस्सा बना “स्वयं बनें गोपाल” समूह
आप सभी आदरणीय पाठकों को प्रणाम,
जैसा की सभी को पता है कि संयुक्त राष्ट्र संघ लगातार प्रयास कर रहा है पूरे विश्व के पारिस्थितिकी तंत्र का फिर से कायाकल्प करने के लिए और इसी कायाकल्प प्रक्रिया को मॉनिटर (निगरानी) करने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ ने एक उपक्रम बनाया है जिसका नाम है- “फ्रेमवर्क फॉर इकोसिस्टम रेस्टोरेशन मॉनिटरिंग पोर्टल” (Framework for Ecosystem Restoration Monitoring portal) और जिसे शार्ट कट में “फर्म” (FERM) भी बोलतें हैं !
यह “फर्म” उपक्रम, संयुक्त राष्ट्र संघ की उन सभी परियोजनाओं का सहयोगी है, जो वर्ष 2030 तक, विश्व के 30 प्रतिशत बर्बाद हो चुके पारिस्थितिकी तंत्र के पुनर्निर्माण के लिए सतत सक्रिय हैं (“फर्म” उपक्रम के बारे में अधिक जानने के लिए, कृपया इसकी वेबसाइट देखें- https://ferm.fao.org/) ! इसी “फर्म” उपक्रम से अब “स्वयं बनें गोपाल” समूह भी जुड़ चुका है !
इस “फर्म” उपक्रम की वेबसाइट पर “स्वयं बनें गोपाल” समूह का विवरण देखने के लिए, कृपया “फर्म” की वेबसाइट के इस लिंक पर क्लिक करें- https://ferm.fao.org/registry/newOrganization और फिर खुलने वाले पेज पर बने हुए ड्रॉपडाउन मेन्यू पर क्लिक करके “स्वयं बनें गोपाल” समूह के पर्यावरणीय अभियान “Save Our Planet” पर क्लिक करें (आदरणीय पाठकों की सुविधा के लिए “स्वयं बनें गोपाल” समूह के विवरण वाले पेज का स्क्रीन शॉट, इसी पैराग्राफ के ठीक नीचे दी गयी फोटो के रूप में भी प्रकाशित है) !
आपको बताना चाहेंगे कि वर्तमान में, पूरे विश्व से इस “फर्म” उपक्रम से “स्वयं बनें गोपाल” समूह के साथ – साथ लगभग 275 संस्थाएं भी जुड़ी हुई हैं, जिनमें कई देशों के मंत्रालय, सरकारी उद्यम व संयुक्त राष्ट्र की कई संस्थाएं भी शामिल हैं और जिनके बारे में जानने के लिए कृपया ऊपर ही दिए हुए लिंक (यानी https://ferm.fao.org/registry/newOrganization) पर क्लिक करके उसी तरह ड्रॉपडाउन मेन्यू देखें या उनमें से कुछ संस्थाओं के नाम निम्नलिखित लिस्ट में भी देखा जा सकता है-
• अमेरिकन (कृषि) वन मंत्रालय (United States Department of Agriculture Forest Service ; https://www.fs.usda.gov/)
• अमेरिकन स्पेसेस (अमेरिकन एम्बेसी & कॉन्सुलटेस) (American Spaces ; https://in.usembassy.gov/education-culture/american-spaces/)
• यू. एन. कन्वेंशंस टू कॉम्बैट डेसर्टीफिकेशन (United Nations Convention to Combat Desertification ; https://www.unccd.int/)
• यू. एन. एनवायरनमेंट प्रोग्राम वर्ल्ड कंज़र्वेशन मॉनिटरिंग सेण्टर (UNEP-WCMC ; https://www.unep-wcmc.org/en)
• यू. एन. इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट आर्गेनाइजेशन (United Nations Industrial Development Organization ; https://www.unido.org/)
• यू. एन. डेवलपमेंट प्रोग्राम (United Nations Development Programme ; https://www.undp.org/)
• यू. एन. फ़ूड एंड एग्रीकल्चर आर्गेनाइजेशन (United Nations FAO ; https://www.fao.org/home/en)
• आसियान सेण्टर फॉर बायोडायवर्सिटी (ASEAN Centre for Biodiversity ; https://www.aseanbiodiversity.org/the-acb/)
• एशियन डिजास्टर प्रिपेयर्डनेस सेण्टर (Asian Disaster Preparedness Center ; https://www.adpc.net/ver25/)
• अबू धाबी मरीन रेस्टोरेशन (Abu Dhabi Marine Restoration ; https://www.decadeonrestoration.org/abu-dhabi-marine-restoration)
• कोरिया फारेस्ट सर्विस (कोरियन कृषि वन मंत्रालय उपक्रम) (Korea Forest Service ; https://english.forest.go.kr)
• यूरोपियन टॉपिक सेण्टर ऑन स्पेटियल एनालिसिस एंड सिंथेसिस (ETC-UMA ; https://www.etc.uma.es/)
• यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैंब्रिज (University of Cambridge ; https://www.cam.ac.uk/)
• वर्ल्ड कमिशन ऑन प्रोटेक्टेड एरियाज (World Commission on Protected Areas ; https://iucn.org/our-union/commissions/iucn-world-commission-protected-areas)
• वर्ल्ड रेस्टोरेशन फ्लैगशिप्स (World Restoration Flagships ; https://www.decadeonrestoration.org/world-restoration-flagships)
• ट्राई नेशनल अटलांटिक फारेस्ट पैक्ट (Trinational Atlantic Forest Pact ; https://www.decadeonrestoration.org/trinational-atlantic-forest-pact)
• नमामि गंगे (भारतीय जल शक्ति मंत्रालय) (Namami Gange ; https://nmcg.nic.in/hi/NamamiGanga.aspx)
वैसे आम तौर पर लोग पर्यावरण (Environment) और पारिस्थितिकी तंत्र (Ecosystem) को एक ही चीज समझते हैं लेकिन इनके बीच अंतर यह है कि पर्यावरण वह स्थान है जिसमें जीवित जीव रहते हैं, जबकि पारिस्थितिकी तंत्र को पर्यावरण और जीवित जीवों की परस्पर क्रिया माना जा सकता है ! खैर तकनीकी रूप से भले ही ये दोनों थोड़े अलग हों, लेकिन इन्हे बचाने के लिए जो सबसे महत्वपूर्ण प्रयास है वो एक ही है यानी “अधिक से अधिक पेड़ों को लगाना” क्योकि जितना ज्यादा पेड़ – पौधे होंगे उतना ही ज्यादा बायोडायवर्सिटी (जैव विविधता) भी होगी (अधिक जानकारी के लिए कृपया हमारे इस आर्टिकल को पढ़ें- विश्व पर्यावरण दिवस पर, जानिये स्वयं व समाज को भी जबरदस्त लाभान्वित कर सकने वाली आसान थ्योरी “चार बिना हार” को) !
हरियाली का सरंक्षण व संवर्धन कितना जरूरी है मानव जीवन के अस्तित्व को बचाने के लिए, इसे इस तथ्य से भी जाना जा सकता है कि अगर धरती से सारी हरियाली (पेड़ – पौधे – फल – फूल – फसल आदि) समाप्त हो जाए, तब पृथ्वी का भयानक मंजर निम्नलिखित होगा-
दिन के तापमान में लगातार बढ़ोत्तरी होती जायेगी (जो की वातावरण में कार्बन डाइ ऑक्साइड गैस बढ़ने की वजह से होगी, जिसे ग्रीन हाउस इफेक्ट भी कहते हैं) ! लगभग हर दिन आंधी – तूफान – तेज बारिश – बाढ़ आदि जैसी कोई समस्या आ सकती है ! रेगिस्तानों में भी फैलाव आएगा ! हो सकता है कि आर्कटिक और अंटार्कटिक के बर्फ पूरी तरह से पिघल जाएं जिसकी वजह से लगभग 70 मीटर तक समुद्री जल का स्तर बढ़ जाएगा और बहुत सी तटीय शहर/गांव/कस्बे आदि पानी में डूब जाएंगे ! मिट्टी के कटाव के कारण नए डेल्टा क्षेत्र बनेंगे ! कई शहर तो नदी के बहाव से आने वाले मलबे के नीचे ही दब जाएंगे ! पानी में ज्यादा कार्बन डाइऑक्साइड के मिश्रण से और समुद्री पानी के तापमान में वृद्धि से सारे प्रवाल भित्ति (coral reef) नष्ट हो जाएंगे ! समुद्र में अधिक तापमान सहन कर पाने वाले जीव ही बच सकेंगे ! तब उस समय हो सकता है की मनुष्य जमीन के नीचे कृत्रिम ऑक्सीजन व कृत्रिम कृषि के सहारे जीवित बचने की कोशिश करे ! उस वक्त की मांग के हिसाब से रेगिस्तान में उगने वाले पेड़ों (यानी अधिक गर्मी व कम पानी में उग जाने वाले पेड़ों) को उगाने पर ही ज़ोर दिया जाएगा !
वहीँ अगर पृथ्वी पर पेड़ों की संख्या को दोगुना कर दिया जाए, तब पृथ्वी का सुखद वातावरण निम्नलिखित होगा-
वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा कम होगी, जिससे जलवायु परिवर्तन को कम करने में मदद मिलेगी (क्योकि पेड़ कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करते हैं, जो एक प्रमुख ग्रीनहाउस गैस है) ! पेड़ विभिन्न प्रकार के पौधों और जानवरों के लिए आवास प्रदान करते हैं, जिससे जैव विविधता बढ़ेगी ! पेड़ों की जड़ें मिट्टी को बांधे रखती हैं, जिससे मिट्टी का कटाव कम होगा ! इसके अतिरिक्त पेड़, मिट्टी में कार्बन और पोषक तत्वों को जोड़ते हैं, जिससे मिट्टी की उर्वरता बढ़ेगी ! पेड़ वाष्पोत्सर्जन के माध्यम से पानी को वायुमंडल में छोड़ते हैं, जिससे उचित वर्षा होती है यानी पेड़ों की संख्या में वृद्धि होने से अकाल पड़ने की नौबत काफी कम हो जाएगी !
इसलिए पेड़ों की अहमियत के बारे में निम्नलिखित हिंदी व इंग्लिश कहावतों में एकदम सही कहा गया है कि-
“इंसान ने अपनी खुशियों का मार दिया, जब उसने कुल्हाड़ी से पेड़ काट दिया”
“The Future Will Either Be Green Or Not At All” (यानी- भविष्य या तो हरा होगा या तो कुछ भी नहीं होगा)
सारांश यही है कि, जब पेड़ लगाने से पूरी पृथ्वी के पारिस्थितिकी तंत्र को जबरदस्त लाभ मिलता है, तो हम क्यों ना लगाएं पेड़ !
अंततः इसी अवसर पर “स्वयं बनें गोपाल” समूह सभी आदरणीय पाठकों से पुनः विनम्रतापूर्वक आवाहन करता है कि ……… हमें अपने रोजमर्रा के कामकाज करने के दौरान, इस कड़वी सच्चाई को नहीं भूलना चाहिए कि हमारी एक जिम्मेदारी, हमारे इस पूरे घर यानी अर्थ प्लेनेट (अर्थात वसुधैव कुटुंबकम्) को भी बर्बाद होने से बचाना है जिसके लिए हमें बस कुछ छोटे – छोटे काम रोज करने हैं ……… जैसे- अधिक से अधिक पेड़ लगाना, अधिक से अधिक पानी बचाना, अधिक से अधिक केमिकल्स का बहिष्कार करना, अधिक से अधिक देशी गाय माँ के गोबर – गोमूत्र से बनी सर्वोत्तम खाद से उपजा हुआ ही अनाज खरीदना आदि !
(नहाने, कपड़े धोने, बीमारियों के इलाज आदि जैसी रोजमर्रा की आवश्यकताओं में भी केमिकल्स के उपयोग को कैसे आसानी से समाप्त किया जा सकता है, जानने के लिए कृपया हमारे इन 2 आर्टिकल्स को पढ़ें- क्या योग की सफलता, पर्यावरण की सफलता पर निर्भर करती है ; जानिये दुनिया की सबसे ताकतवर, इलाज की पद्धतियों के कुछ अनछुए पहलुओं बारे में)
जय हो परम आदरणीय गौ माता की !
वन्दे मातरम् !
“स्वयं बनें गोपाल” समूह, “संयुक्त राष्ट्र संघ” के विभिन्न विश्वस्तरीय उपक्रमों से पार्टनर, मेंबर व स्टेकहोल्डर आदि के तौर पर भी जुड़ चुका है जिनके बारे में जानने के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें- वसुधैव कुटुंबकम्
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