Category: महान लेखकों की सामाजिक प्रेरणास्पद कहानियां, कवितायें और साहित्य का अध्ययन, प्रचार व प्रसार कर वापस दिलाइये मातृ भूमि भारतवर्ष की आदरणीय राष्ट्र भाषा हिन्दी के खोये हुए सम्मान को
मैंने तो जीवन में तुम्हें कुछ और ही सोच रखा था शायद बिल्कुल अलग विशेष समझ रखा था क्योकि तुम मेरे हर सुख दुःख में मेरी परछाई बन कर साथ चलते रहे इसलिए मेरे...
{निम्नलिखित कवितायें मूर्धन्य लेखिका श्रीमती उषा त्रिपाठी जी द्वारा रचित हैं जिनकी कई पुस्तकें (जैसे- नागफनी, अँधा मोह, सिंदूरी बादल, सांध्य दीप, पिंजरे का पंक्षी, कल्पना आदि) प्रकाशित हो चुकीं हैं ! श्रीमती उषा...
हर अस्तित्व के गर्भ में एक कारण बीज स्वरुप होता है जो कार्य के संयोग से समय पर प्रस्फुटित होता है आज की तेज रफ्तार जिंदगी में अपनी महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने की भाग...
{नोट- पहली कविता “स्वयं बनें गोपाल” समूह से जुड़े हुए एक आदरणीय स्वयं सेवक द्वारा रचित है पर उन्होंने हमसे अपने नाम को प्रकाशित ना करने का अनुरोध किया है इसलिए हम उनकी कविता...
मुझे शून्य में विलीन करती रही वर्षा की गिरती हुई बूंदों सी पतझड़ की झरती हुई कलियों सी माँ मै जाने कितनी बार तुम्हारी कोख से फिसलती रही ! माँ मै भी तुम्हारे आँगन...
माँ आज तुम मेरे पास नहीं हो फिर भी मै अकेला नहीं हू क्योकी जब भी कभी मै किसी अनदेखी अनछुई तपिश में घिरता हूँ तुम्हारी ममता की छाँव मुझे सहला जाती है और...
माँ की दूसरी शादी के दंश को झेलते हुए एक पुत्र की आत्म व्यथा – माँ मै तुम्हारे दाम्पत्य के टूटे हुए रिश्ते का वो कुम्हलाया हुआ पुष्प हूँ जिसकी हर पंखुड़ी अपने ही...
कमल का सब रुपया उड़ चुका था-सब सम्पत्ति बिक चुकी थी। मित्रों ने खूब दलाली की, न्यास जहाँ रक्खा वहीं धोखा हुआ! जो उसके साथ मौज-मंगल में दिन बिताते थे, रातों का आनन्द लेते...
भीत-सी आँखोंवाली उस दुर्बल, छोटी और अपने-आप ही सिमटी-सी बालिका पर दृष्टि डाल कर मैंने सामने बैठे सज्जन को, उनका भरा हुआ प्रवेशपत्र लौटाते हुए कहा – ‘आपने आयु ठीक नहीं भरी है। ठीक...
पालक एक आने गठ्ठी, टमाटर छह आने रत्तल और हरी मिर्चें एक आने की ढेरी “पता नहीं तरकारी बेचनेवाली स्त्री का मुख कैसा था कि मुझे लगा पालक के पत्तों की सारी कोमलता, टमाटरों...
वन्य कुसुमों की झालरें सुख शीतल पवन से विकम्पित होकर चारों ओर झूल रही थीं। छोटे-छोटे झरनों की कुल्याएँ कतराती हुई बह रही थीं। लता-वितानों से ढँकी हुई प्राकृतिक गुफाएँ शिल्प-रचना-पूर्ण सुन्दर प्रकोष्ठ बनातीं,...
पहले कहा जा चुका है कि जायसी का झुकाव सूफी मत की ओर था जिसमें जीवात्मा और परमात्मा में पारमार्थिक भेद न माना जाने पर भी साधकों के व्यवहार में ईश्वर की भावना प्रियतम...
उद्यान की शैल-माला के नीचे एक हरा-भरा छोटा-सा गाँव है। वसन्त का सुन्दर समीर उसे आलिंगन करके फूलों के सौरभ से उसके झोपड़ों को भर देता है। तलहटी के हिम-शीतल झरने उसको अपने बाहुपाश...