मै वापस आउंगी और तुम्हे भी वापस आना होगा (3000 साल पुरानी सत्य प्रेम कथा, जो 50 साल पहले जाकर पूर्ण हुई)
लगभग 6 माह पूर्व “स्वयं बनें गोपाल” समूह ने अपने प्रकाशित इस आर्टिकल (क्या “भविष्यमालिका” ग्रंथ में वर्णित आश्चर्यजनक भविष्यवाणियां सच हो सकती हैं ?) में एक निष्कर्ष पर बहुत जोर दिया था कि हमारे पूरे ब्रह्माण्ड में सबसे बड़ी शक्ति अगर कोई है तो वो है “शुद्ध प्रेम” जो “अकाट्य सत्य” यानी “ईश्वरीय इच्छा” को भी बदलकर असम्भव को संभव करवा सकता है, और इसी तथ्य की पुष्टि के लिए हमने अमेरिकन डॉक्टर ब्रायन वीज़ द्वारा जन्म – जन्मांतर के दो प्रेमियों के पुनर्मिलन (सत्य घटनाओं पर आधारित) पर लिखी किताब “ओनली लव इज रियल” का उदाहरण भी दिया था !
लेकिन संभवतः कुछ आदरणीय सज्जन इस थ्योरी से पूरी तरह से सहमत नहीं हुए कि कैसे सिर्फ “शुद्ध प्रेम” की भावना इतनी ताकतवर हो सकती है कि मृत्यु भी उसे पूर्ण होने से रोक नहीं सकती है ! तो ऐसे ही आदरणीय सज्जनो की जिज्ञासा की शान्ति के लिए, हम लोग यहाँ पर एक ऐसी बेहद आश्चर्यजनक सत्य प्रेम कथा का वर्णन कर रहें हैं जो शुरू तो हुई थी आज से लगभग 3000 साल पहले लेकिन समाप्त हुई अब से लगभग 50 साल पहले !
प्राप्त जानकारी अनुसार इस कहानी के ऊपर विश्व प्रसिद्ध चैनल्स जैसे- बी. बी. सी. और नेशनल जियोग्राफिक आदि ने भी डॉक्युमेंट्रीज़ बनाई हुई है ! यह स्टोरी सच होने के बावजूद भी इतनी ज्यादा फ़िल्मी लगती है कि इसे सुनकर कई लोगों को हॉलीवुड मूवी “द ममी रिटर्न्स” (The Mummy Returns) की याद आ जाती है ! अतः आइए जानते है इस अत्यंत रोचक कहानी के माध्यम से शुद्ध प्रेम की प्रचंड ताकत को-
ये तो हम सभी लोग जानते हैं कि मिस्र देश (Egypt) की प्राचीन सभ्यता के रहस्यों को समझने व सहेजने का काम सरकार द्वारा तेज गति से चल रहा है, और ये आज से नहीं बल्कि जब से पश्चिमी जगत की निगाह वहां के पिरामिडों और मंदिरों पर गयीं हैं, तब से हो रहा है ! लेकिन अभी भी वहां के सैकड़ों ऐसे अनसुलझे रहस्य हैं जिनका मॉडर्न रिसर्चर्स के पास कोई ठोस जवाब नहीं है ! और ऐसे में अत्यंत आश्चर्यजनक झटका तब लगता है, जब कोई इन्सान अचानक से दुनिया के सामने आकर कहता है कि देखो मै ही उस प्राचीन जमाने में अमुक नाम से पैदा हुआ था …… !
यह सत्य कहानी शुरू होती है 16 मार्च 1904 से जब लंदन के एक धनी परिवार में एक लड़की का जन्म होता है और उसका नाम रखा गया “डोरोथी लुइस एडी” (Dorothy Louise Eady) ! डोरोथी बचपन से ही थोड़ी नटखट और शरारती थी ! एक बार, जब वह मात्र तीन वर्ष की थी, घर की सीढ़ियों से उसका पैर फिसल गया और वो काफ़ी ऊंचाई से लुढ़कते हुए नीचे गिर गयी !
दुर्योग कुछ ऐसा रहा कि जिन डॉक्टर को बुलाया गया था उनको भी पहुँचने में देर हो गयी ! डॉक्टर ने आने के बाद डोरोथी का निस्तेज शरीर देखा, नब्ज़ की जाँच की और उसे मृत घोषित कर दिया ! परिवार को रोता हुआ छोड़कर डॉक्टर थोड़ी देर के लिए कमरे से बाहर गए और दूसरे कमरे में नर्स को कुछ आवश्यक निर्देश देने के बाद वापस उस कमरे में लौटे, तो उनके पैरों के नीचे से ज़मीन खिसक गयी ! डोरोथी ने आँखे खोल दी थी और अपने परिवार के बीच में खुद को पा कर मुस्कुरा रही थी !
वो पूरी तरह चैतन्य और स्वस्थ थी ! डॉक्टर ने दो बार जांच की और आश्चर्यचकित हो कर वापस लौट गए ! लेकिन इस हादसे के बाद से डोरोथी के स्वभाव में अजीब तरह के परिवर्तन दिखाई देने लगे ! वह अपने घर में अक्सर कुर्सी, मेज के नीचे या किसी फर्नीचर के पीछे छिप जाती थी ! अपने माता – पिता से बार – बार अपने घर जाने की जिद्द करती थी ! बेचारे माता – पिता ये समझ ही नहीं पाते थे कि आखिर डोरोथी कौन से अपने घर जाने की जिद कर रही है (मतलब डोरोथी तो अपने उसी लंदन वाले घर में ही शुरू रह रही थी, जहां उसका जन्म हुआ था, लेकिन अब वो कौन से नए अपने घर में जाने की जिद्द कर रही थी यह उसके माता पिता नहीं समझ पा रहे थे) !
डोरोथी की अजीब आदतों से परेशान होकर जब उसके माता – पिता ने उसे डॉक्टर्स को दिखाया तो डॉक्टर्स ने बताया की डोरोथी के अन्दर “फॉरेन एक्सेंट सिंड्रोम” के लक्षण उभरने लगे थे जो एक दुर्लभ मानसिक अवस्था होती है जिसमे रोगी के अन्दर ऐसी नई भाषा को बोलने और पढ़ने की क्षमता अपने आप प्रकट हो जाती हैं जो उसकी मातृ भाषा नहीं होती है बल्कि कोई विदेशी भाषा होती है ! इन्ही सब अजीब लक्षणों की वजह से डोरोथी को अपने प्रारंभिक जीवन में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा !

BE40T3 Royal shabtis- magical tomb burial figurines from Egypt- the British Museum
एक दिन डोरोथी, अपने माता – पिता के साथ ब्रिटिश म्यूजियम (British Museum) देखने गयी ! थोड़ी देर तक घूमने के बाद वो अपने परिवार के साथ, म्यूजियम के उस हिस्से में पहुंची जहाँ मिस्र के इतिहास से सम्बंधित वस्तुएं रखी थी ! अचानक से न जाने क्या हुआ कि, सब कुछ देख कर डोरोथी ख़ुशी से पागल हो गयी और घूम – घूम कर कभी इस मूर्ती के पैर चूमती कभी उस मूर्ती को प्रणाम करती और एक ममी को देख कर तो लिपट कर रोने ही लगी !
फिर एक मंदिर के बड़े से चित्र को देखकर ख़ुशी से उछल पड़ी, उसने पीछे मुड़कर अपने माता – पिता से लगभग चिल्लाते हुए कहा “देखो वो रहा मेरा घर … लेकिन ये क्या वो बगीचे कहाँ गए ….. और ….. वो विशालकाय पेड़ कहाँ गया” ! डोरोथी नहीं जानती थी कि जिस समय की वो बात कर रही थी, उस समय का सब कुछ अब रेत में दफ़न हो चुका था, सिवाय उस मंदिर के !
डोरोथी की बातें सुनकर, उसके पिता ने उस मंदिर के चित्र को ध्यान से देखा, तो पाया की वो मंदिर “सेती” प्रथम (Seti-I) का था जो की महान फ़राओ राजा “रामेसस-द्वितीय” (Rameses-II) के पिता थे ! उस दिन उसके माता – पिता बड़ी मुश्किल से उसको संभाल कर, किसी तरह उसे म्यूजियम से घर ला पाए ! अगले दिन, थोड़ा सामान्य होने पर, डोरोथी ने अपने माता – पिता को बताया कि वो “सेती – प्रथम” को जानती थी, वो एक बहुत ही नेक और दयालु इन्सान था !
[ यहाँ पर “स्वयं बनें गोपाल” समूह बताना चाहेगा कि हमारे स्पेस साइंस के विद्वान रिसर्चर डॉक्टर सौरभ उपाध्याय (जिन्होंने मिस्र, रोमन, ग्रीक, असीरियन, सुमेरियन, अटलांटिस, अक्केडियन, हित्ती, मिटन्नी आदि जैसी कई प्राचीन सभ्यताओं पर भी काफी रिसर्च किया है) का कहना है कि सेती के माता – पिता का जो नाम “रामेसस (Rameses-I) और सित्र (Sitre) था वो हिन्दू धर्म के भगवान राम और उनकी अर्धांगिनी सीता जी के नामों पर ही आधारित था ! इसलिए डॉक्टर सौरभ के अनुसार इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि प्राचीन मिस्र का धर्म हमारे सनातन वैदिक धर्म से ही प्रेरित रहा हो ! सेती के बेटे का नाम “रामेसस-द्वितीय” (Rameses-II) था जो कि उन्नीसवें राजवंश का तीसरा फ़राओ शासक था और मिस्र के महानतम सम्राटों में से एक था जिसकी वजह से कहीं – कहीं उसे “रामेसस द ग्रेट” (Rameses the Great) भी कहा जाता है ! हालांकि डॉक्टर सौरभ के अनुसार प्राचीन मिस्र सभ्यता का सबसे क्रांतिकारी सोच वाला राजा “अखेनाटेन” (Akhenaten) था जिसने भारतीय सनातन धर्म की तरह भगवान सूर्य को ही एकमात्र प्रत्यक्ष भगवान मानकर केवल सूर्य की ही उपासना करने के एकदम नए कांसेप्ट के बारे में आम जनता को बताया व जागरूक किया था जिससे उस जमाने के कई बड़े धर्माधिकारी व पुरोहित बहुत नाराज हो गए थे और उन्होंने अखेनाटेन के खिलाफ कई तरह की मनगढ़ंत बुराईयां व अफवाह भी फैलाई थी (डॉक्टर सौरभ द्वारा प्रदत्त यह जानकारियां अन्य प्रसिद्ध वेबसाइट के आर्टिकल में भी प्रकाशित है) ]
इस घटना के बाद से डोरोथी, ब्रिटिश म्यूजियम जाने का कोई भी मौका हाँथ से जाने नहीं देती थी ! एक बार वहां उसकी मुलाकात “इ. ए. वालिस” (E. A. Wallis) से हुई ! वालिस ने युवा डोरोथी के उत्साह को देखते हुए उसे प्राचीन मिस्र की लिपि सीखने के लिए प्रेरित किया ! जिस तेजी और आसानी से डोरोथी ने उस कठिन भाषा पर अधिकार पा लिया था, उसे देख कर तो वालिस भी दंग रह गये ! डोरोथी ने अपनी इस उपलब्धि को यह कहकर टाल दिया कि यह उसके लिए कोई नई भाषा नहीं थी बल्कि वो तो केवल अपनी पुरानी यादों को ताज़ा कर रही थी !
1931 में डोरोथी मिस्र चली गयी ! वहां उसने वहीँ के एक स्थानीय निवासी “इमाम अब्देल मेगुइड” (Emam Abdel Meguid) से शादी कर ली ! इमाम से वो लन्दन में ही मिल चुकी थी जब वो “इजिप्टियन पब्लिक रिलेशन्स” (Egyptian Public Relations) मैगज़ीन के लिए आर्टिकल लिखती थी !
शादी के बाद डोरोथी को सिर्फ एक बेटा हुआ जिसका नाम उसने “सेती” रखा था और अपना भी नाम उसने डोरोथी से बदल कर “ओम सेती” (Om Seti) रख लिया था (प्राचीन मिस्र की भाषा में इस नाम का मतलब होता है “सेती की माँ”) !
मिस्र में रहने के दौरान, डोरोथी ने बताया कि एक बार उसके साथ बहुत चमत्कारी घटना हुई थी जिसमें अचानक उसकी तंद्रावस्था में मिस्र के पूज्यनीय देवता “होर्रा” (Hor – Ra) ने आकर उसके पूर्व जन्म का सारा वृत्तान्त उसे सुना दिया था ! और उसकी पूरी कथा लगभग 70 पेज की प्राचीन मिस्री भाषा में लिपिबद्ध भी है ! देवता होर्रा ने डोरोथी के लगभग 3000 साल पुराने जन्म की जो कहानी बतायी थी वो इस प्रकार है-
उस पूर्व जन्म में डोरोथी का नाम था “बेन्त्रेषित” (Bentreshyt) जिसका प्राचीन मिस्री भाषा में अर्थ होता है “खुशियों की वीणा” ! उस पूर्व जन्म में उसकी माँ एक सब्जियों की विक्रेता थी और उसके पिता एक सैनिक थे ! जब बेन्त्रेषित मात्र तीन वर्ष की थी तो उसकी माँ का देहांत हो गया ! पिता ने अकेले पुत्री का पालन – पोषण करने में अपने को असमर्थ पाया तो उसका दाखिला मंदिर में करा दिया ! बेन्त्रेषित अब मंदिर प्रशासन की देख – रेख में बड़ी होने लगी !
थोड़ा बड़ी होने पर बेन्त्रेषित को मंदिर में पुजारिन का पद मिला ! जब वो मात्र बारह वर्ष की थी तो मंदिर के वरिष्ठ पुरोहित ने उससे कहा कि अब वो चाहे तो बाहरी दुनिया में जाकर परिवार बसा सकती है या चाहे तो आजीवन कुंवारी रहकर मंदिर में ईश्वर की आराधना में ही अपना जीवन व्यतीत कर सकती है ! बेन्त्रेषित की आयु अभी बहुत कम थी इन सारी चीजों को गंभीरता को समझने के लिए लेकिन फिर भी उसने आजीवन कुंवारी रहकर पुजारी बने रहने की शपथ ले ली !
अगले दो वर्ष में बेन्त्रेषित ने वहां होने वाले वार्षिक समारोह में “ओसिरिस के पुनुरुज्जीवन” की नाट्य रचना में देवी “आइसिस” (Isis) की भूमिका निभाना शुरू कर दिया था, जो कि एक बेहद सम्मानित भूमिका थी और जिसे करने का विशेषाधिकार केवल आजीवन कुंवारी रहने वाली पुजारिन (मतलब जिसने अपना पूरा जीवन देवी आइसिस को ही समर्पित कर दिया हो) को ही मिल सकता था, इसलिए बेन्त्रेषित को अब समाज में बड़े आदर भाव से देखा जाने लगा था !
एक दिन “सेती – प्रथम” इस समारोह को देखने आया था और उसने बेन्त्रेषित के अभिनय को देखा तो उस पर बेहद मुग्ध हो गया ! फिर धीरे – धीरे की मुलाकातों में दोनों एक दूसरे से बहुत प्रेम करने लगे ! लेकिन इस बात की खबर न तो दुनिया को थी और न ही मंदिर प्रशासन को ! कुछ समय बाद जब बेन्त्रेषित गर्भवती हो गयी तो वरिष्ठ धर्माधिकारी बहुत क्रोधित हो गए ! उनके डांटकर पूछने पर बेन्त्रेषित ने बताया की इस बच्चे का पिता सेती प्रथम हैं ! धर्माधिकारी ने बेन्त्रेषित से कहा की बेन्त्रेषित का अपराध इतना बड़ा है कि उसकी एकमात्र सज़ा मौत ही है !
इतना सम्मान पा जाने के बाद, समाज में कलंकित होने के भय से बेन्त्रेषित ने आत्महत्या कर ली ! और इससे पहले की सेती कुछ कर पाता, बेन्त्रेषित ने दुनिया को अलविदा कह दिया था ! वास्तव में बेन्त्रेषित, सेती दोनों एक दूसरे को बहुत ही ज्यादा प्यार करते थे, लेकिन समाज की तत्कालीन कुरीतियों की वजह से बेन्त्रेषित को सेती से शादी करने के अधिकार नहीं था इसलिए उनकी सच्ची प्रेमकथा का बहुत दुखद व अधूरा अंत हुआ था, जिसे पूरा करने के लिए ही बेन्त्रेषित, इस जन्म में डोरोथी बनकर पैदा हुई थी !
लेकिन डोरोथी के वर्तमान जीवन में भी पारिवारिक समस्याएँ बढ़ती ही जा रही थी और अंततः 1935 में उसने अपने पति इमाम से अलग रहने का फ़ैसला कर लिया ! आजीविका के लिए डोरोथी ने इराक़ में एक अध्यापिका की नौकरी ज्वाइन कर ली थी ! उसका पुत्र सेती उसके साथ ही रहता था !
दो वर्ष बाद उसका विवाह इमाम से पूरी तरह से टूट गया था और वो अब अपने पुत्र के साथ गीज़ा के पिरामिड के निकट “नज़लत – अल – सम्मन” चली गयी थी ! वहां डोरोथी की मुलाकात मिस्र के पुरातत्व विभाग के अर्कियोलोजिस्ट सलीम हसन से हुई ! सलीम ने डोरोथी की प्रतिभा को देखते हुए उसे अपना सचिव नियुक्त कर लिया !
कहते हैं की अपने प्राचीन मिस्री भाषा एवं साहित्य के अद्भुत ज्ञान से उसने कई तत्कालीन पुरातत्ववेत्ताओं की बहुत सहायता की थी ! हसन ने अपनी कार्य पुस्तक “गीज़ा की खुदाई” के दसवें भाग में विशेष रूप से डोरोथी का आभार व्यक्त किया है ! इस दौरान डोरोथी अक्सर गीज़ा के पिरामिड में ही समय व्यतीत करती थी और मिस्र के देवताओं से अपने सभी बंधनों को मुक्त करने की प्रार्थना करती थी ! पिरामिड में “होरस व स्फिंक्स” (Horus & Sphinx ) जैसे मिस्र के महान देवताओं से अपनी मुक्ति की प्रार्थना करने की वजह से डोरोथी का एक पुजारी की तरह, वहां के स्थानीय निवासी भी काफ़ी सम्मान करने लगे थे !
1956 के शुरुआत में ही सरकार का वो पिरामिड रिसर्च प्रोजेक्ट समाप्त हो गया जिसमे डोरोथी नौकरी कर रही थी इसलिए अब उसके सामने फिर से आजीविका की समस्या पैदा हो गयी थी ! ऐसे समय में उसके पास दो नौकरियों के प्रस्ताव आये, पहला नौकरी थी मिस्र की राजधानी काहिरा (Cairo) में अच्छे वेतन की , जबकि दूसरी नौकरी थी एबिडोस (Abydos) शहर में सहायक के पद की कम वेतन वाली !
लेकिन डोरोथी ने एबिडोस में सहायक के पद की नौकरी को ही चुना क्योकि एबिडोस शहर उसके लिए विशेष मायने रखता था ! उसने बताया था कि एबिडोस ही वह जगह थी जहाँ कभी वो बेन्त्रेषित के रूप में रहती थी ! 3 मार्च 1956 को “ओम सेती’ यानि डोरोथी ने एबिडोस के लिए प्रस्थान किया ! वहाँ उसने “अराबेत एबिडोस “(Arabet Abydos) में अपना घर बनवाया (वास्तव में आज भी एबिडोस और रेगिस्तान के बीच का स्थान, जो की पश्चिम में चूना पत्थर के पर्वत तक फैला हुआ है, प्राचीन मिस्र के चकित कर देने वाले पुरावशेषों से भरा पड़ा है) !
आस – पास के गाँवों से घिरा हुआ वो पर्वत अद्भुत अर्ध – चन्द्र का आकार लिए हुए है ! डोरोथी ने इसी पर्वत के पास अपना घर बनाया था ! प्राचीन मिस्र के लोग मानते थे कि ये पर्वत, पूर्वजों की आत्माओं का वो निवास स्थान था जहाँ देवता “ओसिरिस” (Osiris) उनके अच्छे/बुरे कर्मों के अनुसार उनका भाग्य तय करते थे यानी अच्छे कर्म वाली आत्माओं को, सुख-सुविधा युक्त उच्च लोकों में भेजा जाता था और दुष्ट कर्म वाली आत्माओं को नर्कों में भेजा जाता था !
अब यहाँ के स्थानीय लोग भी डोरोथी का इतना सम्मान करने लगे थे कि उसे “ओम सेती’ कहकर ही बुलाते थे (क्योकि प्राचीन मिस्र में रिवाज़ था कि किसी स्त्री को अक्सर उसके “सबसे बड़े बेटे की माँ’” कहकर पुकारा जाता था और ये रिवाज़ भारत वर्ष में आज भी कही – कहीं देखने को मिल जाता है) !
सन 1964 में जब डोरोथी साठ वर्ष की हो चुकी थी, मिस्र सरकार के पुरातत्व विभाग ने उन्हें स्वयं से सेवानिवृत्ति लेने को कहा और काहिरा में एक अंशकालिक नौकरी का प्रस्ताव भी दिया ! वो काहिरा गयी भी लेकिन केवल एक दिन रहकर ही वापस एबिडोस लौट आई !
मिस्र की सरकार भी डोरोथी का इतना सम्मान करती थी कि उसने सिर्फ डोरोथी के लिए अपने नियमो में बदलाव किये और उनके लिए सेवानिवृत्ति की उम्र पांच साल और ज्यादा बढ़ा दी थी ! अन्ततः 1969 में जब डोरोथी सेवानिवृत्ति हो गयी तब सरकार ने उनकी पेंशन 30 डॉलर प्रति माह निर्धारित की थी !
सन 1969 से 1975 तक डोरोथी ने कई सारे आर्टिकल्स लिखे जिसमे उन्होंने प्राचीन समय के कई रीति – रिवाजों का उल्लेख किया है जो आज भी अलग – अलग सभ्यताओं में किसी न किसी रूप में देखने को मिल जाते हैं (लेकिन उन सब का यहाँ विवरण देना संभव नहीं) !
1972 में “ओम सेती” को एक हल्का हार्ट – अटैक आया, उसके बाद उन्होंने अपने पुराने घर को बेच दिया और सेती के मंदिर के बिलकुल पास ही एक साधारण से घर में रहने लगी थी !
डोरोथी अपनी डायरी में लिखती है कि जिस दिन उन्होंने पहली बार अपने नए घर में प्रवेश किया था, उसी रात को वो महान आश्चर्यजनक घटना घटी जिसका वो ना जाने कितने वर्षो से बेसब्री से इंतजार कर रही थी ! उसी रात को उनके कमरे में “सेती-प्रथम” (यानी उनके “बेन्त्रेषित” वाले पूर्व जन्म के प्रेमी) साक्षात दिव्य रूप में प्रकट हुए थे ! प्रकट होने के बाद सेती ने सबसे पहले डोरोथी के साथ खड़े होकर, देवता ओसिरिस और देवी आइसिस की मूर्तियों (जिसे डोरोथी ने अपने घर में रखा था) को विधिवत प्रणाम करके धन्यवाद दिया, और उस घर में उन देवी – देवता को ससम्मान प्रतिष्ठित किया ! फिर इसके बाद सेती और डोरोथी ने ख़ुशी – ख़ुशी ढ़ेर सारी बातें की ! आगे आने वाले दिनों में भी इसी तरह सेती अक्सर प्रकट होकर डोरोथी को अपना दर्शन देकर बातचीत करते थे !
डोरोथी के अनुभव इतने बेशकीमती होते थे कि उस समय के लगभग सभी विश्वप्रसिद्ध इतिहासकार एवं पुरातत्ववेत्ता जैसे- “लेनी बेल” (Lanny Bell), “जॉन रोमर” (John Romer) और शिकागो हाउस के “विलियम मुर्नेन” (William Murnane) डोरोथी के पास जाना और उनसे प्राचीन मिस्र की बातें सुनना बहुत पसंद करते थे ! ये सभी विद्वान् डोरोथी के लिए कई तरह के उपहार भी ले जाते थे !
सन 1979 में कनाडा, राष्ट्रीय फिल्म बोर्ड के “निकोलस किनडल” (Nicholas Kendall) मिस्र आये थे एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म “द लॉस्ट फैराओ; द सर्च फॉर अखेनाटेन” (The Lost Pharaoh: The Search for Akhenaten) बनाने के लिए ! उन्होंने डोरोथी से अनुरोध किया कि वे भी उस फिल्म का हिस्सा बने लेकिन डोरोथी ने इसमें अधिक दिलचस्पी नहीं दिखाई !
डोरोथी ने एक बार कहा था कि “मुझे मौत से डर नहीं लगता है …… ना ही तब लगा था और ना ही अभी भी लगता है ..…मै बस अपनी तरफ से सर्वश्रेष्ठ कर्म करना चाहती हूँ क्योकि मैंने पिछली बार आत्महत्या करके बहुत बड़ा पाप किया था” !
अक्टूबर 1980 में BBC से “जूलिया केव” (Julia Cave) और उनकी टीम एक डॉक्यूमेंट्री “ओम सेती एंड हर इजिप्ट” (Omm Sety and Her Egypt) बनाने एबिडोस पहुंची ! जिस समय इसकी शूटिंग चल रही थी उसी समय एक अमेरिकन फिल्म निर्माता जो “नेशनल जियोग्राफिक चैनल” (National Geographic Channel) के लिए डॉक्यूमेंट्री “इजिप्ट: क्वेस्ट फॉर एटर्निटी” (Egypt: Quest for Eternity) बना रहे थे, उन्होंने डोरोथी से अपनी डॉक्यूमेंट्री का हिस्सा बनने का अनुरोध किया ! ये डॉक्यूमेंट्री सेती प्रथम के पुत्र रामेसस द्वितीय पर आधारित थी ! इस डॉक्यूमेंट्री की शूटिंग मार्च 1981 में हुई, संयोगवश उसी महीने डोरोथी ने अपने जीवन के 77 वर्ष पूरे किये थे और उनके जन्मदिन की पार्टी शिकागो हाउस में चल रही थी जिसका फिल्मांकन इस वृत्तचित्र में भी हुआ है !
उस समय डोरोथी काफ़ी दर्द में थी लेकिन उन्होंने चेहरे पर हमेशा मुस्कान बनाये रखी ! फिल्म यूनिट के सदस्यों ने उनके साथ सेती के मंदिर की शूटिंग पूरी की और कहते हैं कि इस बार डोरोथी के कदम उस मंदिर में आखिरी बार पड़े थे जिसमे उन्होंने तीन हज़ार साल पहले बेन्त्रेषित के रूप में अपने जीवन की अनमोल यादों को समेटा था ! 21 अप्रैल 1981 को 77 साल की उम्र में डोरोथी यानी “ओम सेती” इस दुनिया से हमेशा के लिए विदा हो गयी …….. उस दुनिया के लिए जहाँ वो अपने जन्म जन्मांतर के प्रेमी “सेती” से हमेशा के लिए मिलने वाली थी !
वास्तव में देखा जाए तो भगवान की बनाई हुई इस अजीब दुनिया में बिछड़ना ही प्रेम की परीक्षा होती है और जिनका प्रेम वर्षों का इंतजार करने के बाद भी कम ना हो वही सच्चा प्रेम होता है ! लेकिन दुर्भाग्य यह है कि आजकल के नौजवान अक्सर “लस्ट को लव” (यानी शारीरिक आकर्षण को ही सच्चा प्रेम) समझ लेते है और हद तो तब हो जाती है जब कुछ अदूरदर्शी लोग इसके चक्कर में आत्महत्या जैसा महा पाप भी कर देते हैं !
शायद आत्महत्या महापाप करने के दंड स्वरूप ही डोरोथी को अपने प्रेमी से दुबारा मिलने के लिए हजारो साल तक इंतजार करना पड़ा था, जबकि आम तौर पर ऐसी कई घटनाएं (पास्ट लाइफ रिग्रेशन यानी पूर्व जन्म चिकित्सा के दौरान) सुनने को मिलती है कि जहाँ प्रेमी लोगों को वापस मिलने के लिए अधिकतम एक या दो जन्म (यानी 100 से 200 साल) तक ही इंतजार करना पड़ा है (आत्महत्या करने से क्या भयानक दुर्गति होती है जानने के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें- अगर आप भी आत्महत्या को सभी मुश्किलों का अंत समझते हों तो, कृपया यह लेख जरूर पढ़ें) !
यह सत्य प्रेम कथा यही साबित करती है कि अगर प्रेम शुद्ध है तो, ना तो मृत्यु और ना ही हजारो बर्षों का इंतजार, प्रेम को पूर्ण होने से रोक सकता है और शायद जब तक प्रेम पूर्ण ना हो जाता है तब तक, ना तो किसी दवा और ना ही किसी दुआ (यानी भगवान की भक्ति) से भी शान्ति मिल पाती है, जैसे- वर्षों इंतजार करने के बाद, जब तक माता सीता जी भगवान राम से, राधा जी भगवान् कृष्ण से गोलोक में, और माँ सती जी भगवान शंकर से फिर पार्वती जी का जन्म लेकर, मिल नहीं गयी तब तक ये सभी महान देवियां उसी तरह बेचैन थी जैसे पानी के बिना रेगिस्तान में तड़पता जीव !
शुद्ध प्रेम चाहे जिसके प्रति हो, हमेशा दिव्य होता है (जैसे- माँ – बेटे का प्रेम, पति – पत्नी का प्रेम, पिता – पुत्र का प्रेम, भाई – बहन का प्रेम आदि) लेकिन एक बात तो तय है कि किसी के प्रति भी शुद्ध प्रेम करने वाला व्यक्ति, समान्यतया दूसरों के प्रति दुष्टता नहीं कर पाता है क्योकि शुद्ध प्रेम की भावना किसी भी इंसान के अंदर धीरे – धीरे सभी अच्छे मानवीय गुण उभारने लगती है (इसलिए आपने अक्सर फिल्मो में देखा होगा कि प्यार के चक्कर में पड़कर निर्दयी अपराधी भी क्राइम की दुनिया को छोड़ने के लिए तैयार हो जाता है) ! सारांश यही है कि शुद्ध प्रेम कभी भी अपनी इच्छा से नहीं होता है, बल्कि ये एक ईश्वरीय वरदान है इसलिए जिसे भी मिले उसे इसकी अवेहलना नहीं, बल्कि कद्र करना चाहिए !
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