स्वयं बने गोपाल

लेख – पिछड़ी जातियों में – घुमक्कड़-शास्त्र – (लेखक – राहुल सांकृत्यायन)

बाहरवालों के लिए चाहे वह कष्‍ट, भय और रूखेपन का जीवन मालूम होता हो, लेकिन घुमक्कड़ी जीवन घुमक्कड़ के लिए मिसरी का लड्डू है, जिसे जहाँ से खाया जाय वहीं से मीठा लगता है...

लेख – तिब्बत में प्रवेश – (लेखक – राहुल सांकृत्यायन)

अब तो मैं तीसरी बार तिब्बत में प्रवेश कर रहा था, इस रास्ते यह दूसरी बार जा रहा था। पहले प्रवेश में मुझे उतना ही कष्टों का सामना करना पड़ा था, जितना कि हनुमानजी...

लेख – ऐनम् – (लेखक – राहुल सांकृत्यायन)

अभी हम जंगल और वनस्पति की भूमि में ही थे, लेकिन कुछ ही मीलों बाद उसका साथ चिरकाल के लिए छूटने वाला था। तातपानी से यहाँ तक, भोटकाशी के दोनों किनारों के पहाड़ हरे-भरे...

लेख – तिड्‍़री की ओर – (लेखक – राहुल सांकृत्यायन)

एक अपैल के नौ बजे हम आगे के लिए रवाना हुए। हमारे और अभयसिंह के अतिरिक्त चार नेपाली सवार साथी हुए, जिनमें शि-गर्-चे के नेपाली फोटोग्राफर तेजरत्न तथा उनकी तिब्बती स्त्री भी थी। जोड़्...

लेख – स-स्क्या की ओर – (लेखक – राहुल सांकृत्यायन)

2 मई को चाय-सत्तू (प्रातराश) करके आठ बजे हम तिड्‍रि से रवाना हुए। चार घंटे में नेमू गाँव में पहुँचे। आजकल यहाँ खेतों में जुताई का काम हो रहा था। आसपास के पहाड़ों पर...

कविता – कविता संग्रह – (लेखक – वृंदावनलाल वर्मा)

आगे चले चलो अपवाद भय या कीर्ति प्रेम से निरत न हो, यदि खूब सोच-समझ कर मार्ग चुन लिया। प्रेरित हुए हो सत्य के विश्वास, प्रेम से, तो धार्य नियम, शौर्य से आगे चले...

व्यंग्य – अपनी अपनी बीमारी (लेखक – हरिशंकर परसाई)

हम उनके पास चंदा माँगने गए थे। चंदे के पुराने अभ्यासी का चेहरा बोलता है। वे हमें भाँप गए। हम भी उन्हें भाँप गए। चंदा माँगनेवाले और देनेवाले एक-दूसरे के शरीर की गंध बखूबी...

कविता – क्या किया आज तक क्या पाया ? (लेखक – हरिशंकर परसाई)

मैं सोच रहा, सिर पर अपार दिन, मास, वर्ष का धरे भार पल, प्रतिपल का अंबार लगा आखिर पाया तो क्या पाया? जब तान छिड़ी, मैं बोल उठा जब थाप पड़ी, पग डोल उठा...

व्यंग्य – अपील का जादू (लेखक – हरिशंकर परसाई)

एक देश है! गणतंत्र है! समस्याओं को इस देश में झाड़-फूँक, टोना-टोटका से हल किया जाता है! गणतंत्र जब कुछ चरमराने लगता है, तो गुनिया बताते हैं कि राष्ट्रपति की बग्घी के कील-काँटे में...

कविता – जगत के कुचले हुए पथ पर भला कैसे चलूं मैं ? (लेखक – हरिशंकर परसाई)

किसी के निर्देश पर चलना नहीं स्वीकार मुझको नहीं है पद चिह्न का आधार भी दरकार मुझको ले निराला मार्ग उस पर सींच जल कांटे उगाता और उनको रौंदता हर कदम मैं आगे बढ़ाता...

व्यंग – आध्यात्मिक पागलों का मिशन (लेखक – हरिशंकर परसाई)

भारत के सामने अब एक बड़ा सवाल है – अमेरिका को अब क्या भेजे? कामशास्त्र वे पढ़ चुके, योगी भी देख चुके। संत देख चुके। साधु देख चुके। गाँजा और चरस वहाँ के लड़के...

व्यंग – अश्लील (लेखक – हरिशंकर परसाई)

शहर में ऐसा शोर था कि अश्‍लील साहित्‍य का बहुत प्रचार हो रहा है। अखबारों में समाचार और नागरिकों के पत्र छपते कि सड़कों के किनारे खुलेआम अश्‍लील पुस्‍तकें बिक रही हैं। दस-बारह उत्‍साही...

व्यंग – आवारा भीड़ के खतरे (लेखक – हरिशंकर परसाई)

एक अंतरंग गोष्ठी सी हो रही थी युवा असंतोष पर। इलाहाबाद के लक्ष्मीकांत वर्मा ने बताया – पिछली दीपावली पर एक साड़ी की दुकान पर काँच के केस में सुंदर साड़ी से सजी एक...

व्यंग – उखड़े खंभे (लेखक – हरिशंकर परसाई)

कुछ साथियों के हवाले से पता चला कि कुछ साइटें बैन हो गयी हैं। पता नहीं यह कितना सच है लेकिन लोगों ने सरकार को कोसना शुरू कर दिया। अरे भाई,सरकार तो जो देश...

व्यंग – एक अशुद्ध बेवकूफ (लेखक – हरिशंकर परसाई)

बिना जाने बेवकूफ बनाना एक अलग और आसान चीज है। कोई भी इसे निभा देता है। मगर यह जानते हुए कि मैं बेवकूफ बनाया जा रहा हूं और जो मुझे कहा जा रहा है,...

व्यंग – एक मध्यमवर्गीय कुत्ता (लेखक – हरिशंकर परसाई)

मेरे मित्र की कार बँगले में घुसी तो उतरते हुए मैंने पूछा, ‘इनके यहाँ कुत्ता तो नहीं है?’ मित्र ने कहा, ‘तुम कुत्ते से बहुत डरते हो!’ मैंने कहा, ‘आदमी की शक्ल में कुत्ते...