स्वयं बने गोपाल
कविता – वैदेही-वनवास – जीवन-यात्रा तिलोकी (लेखक – अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध)
तपस्विनी-आश्रम के लिए विदेहजा। पुण्यमयी-पावन-प्रवृत्ति की पूर्ति थीं॥ तपस्विनी-गण की आदरमय-दृष्टि में। मानवता-ममता की महती-मूर्ति थीं॥1॥ ब्रह्मचर्य-रत वाल्मीकाश्रम-छात्रा-गण। तपोभूमि-तापस, विद्यालय-विबुध-जन॥ मूर्तिमती-देवी थे उनको मानते। भक्तिभाव-सुमनाजंलि द्वारा कर यजन॥2॥ अधिक-शिथिलता गर्भभार-जनिता रही। फिर भी परहित-रता...