पर्व और उत्सव मनुष्य का कार्य क्षेत्रा बड़ा विस्तृत है और उसमें उसकी तन्मयता अद््््भुत है। कारण यह है कि सांसारिकता का बन्धान ऐसा है कि वह मनुष्य को अधिाकतर कार्यरत रखता है, क्योंकि...
विभुता-विभूति प्रेम-प्रलाप भरे हैं उसमें जितने भाव, मलिन हैं, या वे हैं अभिराम, फूल-सम हैं या कुलिश-समान, बताऊँ क्या मैं तुझको श्याम! हृदय मेरा है तेरा धााम। गए तुम मुझको कैसे भूल, किसलिए लूँ...
भेद भरी बातें पी कहाँ चौपदे श्याम घन में है किसकी झलक। कौन रहता है रस से भरा। लुभा लेती है धारती किसे। दुपट्टा ओढ़ ओढ़ कर हरा।1। बड़ी ऍंधिायाली रातों में। बन बहुत...
पावन प्रसंग अभेद का भेद दोहा खोजे खोजी को मिला क्या हिन्दू क्या जैन। पत्ता पत्ता क्यों हमें पता बताता है न।1। रँगे रंग में जब रहे सकें रंग क्यों भूल। देख उसी की...
प्रभु-प्रताप [षट्पद] चाँद औ सूरज गगन में घूमते हैं रात दिन। तेज औ तम से, दिशा होती है उजली औ मलिन। वायु बहती है, घटा उठती है, जलती है अगिन। फूल होता है अचानक...
आज ऐसा है न कोई दिन भला। भाग से मिलते हैं ऐसे दिन कहीं। हाय! किसने किसलिए हमको छला। जो सदा मिलते हैं ऐसे दिन नहीं। हैं परब त्योहार के कितने दिवस। जिनमें करते...
ग्रंथावली के प्रस्तुत (चौथे) खंड में ‘हरिऔधा’ के खड़ीबोली के स्फुट काव्य को शामिल किया गया है। इसके पहले तीन खंड भी कविता से सम्बध्द हैं, जिसमें ‘हरिऔधा’ के ब्रजभाषा-काव्य, खड़ीबोली के महाकाव्य और...
गागर में सागर देवदेव चौपदे अब बहुत ही दलक रहा है दिल। हो गईं आज दसगुनी दलवें+। उ+बता हूँ उबारने वाले। आइये, हैं बिछी हुई पलवें+। डाल दे सिर पर न सारी उलझनें। जी...
जो किसी के भी नहीं बाँधो बँधो। प्रेमबंधान से गये वे ही कसे। तीन लोकों में नहीं जो बस सके। प्यारवाली आँख में वे ही बसे। पत्तिायों तक को भला वै+से न तब। कर...
हमारे साहित्यिकों की भारी विशेषता यह है कि जिसे देखो वहीं गम्भीर बना है, गम्भीर तत्ववाद पर बहस कर रहा है और जो कुछ भी वह लिखता है, उसके विषय में निश्चित धारणा बनाये...
वसंतपंचमी में अभी देर है, पर आम अभी से बौरा गए। हर साल ही मेरी आँखें इन्हें खोजती हैं। बचपन में सुना था कि वसंतपंचमी के पहले अगर आम्रमंजरी दिख जाय तो उसे हथेली...
पता नहीं किसने इस पेड़ का नाम देवदारु रख दिया था, नाम निश्चय ही पुराना है, कालिदास से भी पुराना, महाभारत से भी पुराना। सीधे ऊपर की ओर उठता है, इतना ऊपर कि पासवाली...
मेरे एक मित्र हैं, बड़े विद्वान, स्पष्टवादी और नीतिमान। वह इस राज्य के बहुत प्रतिष्ठित नागरिक हैं। उनसे मिलने से सदा नई स्फूर्ति मिलती है। यद्यपि वह अवस्था में मुझसे छोटे हैं, तथापि मुझे...
जहाँ बैठके यह लेख लिख रहा हूँ उसके आगे पीछे, दाएँ-बाएँ, शिरीष के अनेक पेड़ हैं। जेठ की जलती धूप में, जबकि धरित्री निधूर्म अग्निकुंड बनी हुई थी, शिरीष नीचे से ऊपर तक फूलों...
बच्चे कभी-कभी चक्कर में डाल देने वाले प्रश्न कर बैठते हैं। अल्पज्ञ पिता बड़ा दयनीय जीव होता है। मेरी लड़की ने उस दिन पूछ लिया कि नाखून क्यों बढते हैं, तो मैं कुछ सोच...
भारत धर्म-प्रधान देश है और मनुष्य पाप का चोर है, इसलिए धर्म और पाप की बिना सहायता लिए मैं मानने वाला आदमी नहीं हूँ। मैं अपनी अंतरात्मा में भली भाँति जानता हूँ कि पाप...