कोविड के बाद से अक्सर महसूस होने वाली बदबू, समाप्त हुई प्राणायाम करने से
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प्रतीकात्मक चित्र (Symbolic Image)
यहाँ हम अनुभव साझा कर रहें हैं कुछ ऐसे सज्जनों का, जिन्हे कोविड की समाप्ति के बाद, ये विचित्र समस्या झेलनी पड़ती थी कि उन्हें अक्सर एक अजीब बदबू महसूस होने लगती थी और ये बदबू कहाँ से आती थी उन्हें खुद भी समझ में नहीं आता था, जबकि उनके अगल – बगल कोई बदबूदार चीज भी नहीं होती थी तब भी उन्हें अचानक से बदबू आने लगती थी, जिसकी वजह से उन्हें खाने – पीने में भी काफी दिक्कत होती थी क्योकि भोजन चाहे कितना भी स्वादिष्ट हो और घर कितना भी साफ़ – सुथरा आलिशान हो लेकिन अगर नाक में दुर्गंध आती रहे तो किसी का भी खाने का मन नहीं कर सकता है !
शुरू में उन लोगों ने अपने डाइनिंग रूम (खाने वाला कमरा) चेंज किये ये सोचकर की शायद अब बदबू ना आये लेकिन तब भी बदबू आना बंद नहीं हुई तो उन्होंने समझ लिया कि हो सकता है कि ये कोविड का ही कोई ऑफ्टर इफ़ेक्ट (दूरगामी असर) हो जो शायद कोविड ठीक हो जाने के बाद, कुछ दिनों में अपने आप ठीक हो जाएगा !
लेकिन जब कई महीने बीत गए और ये समस्या ठीक नहीं हुई तो उन सज्जनों ने गूगल (Google) पर इसका प्राकृतिक इलाज खोजना शुरू किया जिसके परिणाम स्वरुप वे “स्वयं बनें गोपाल” समूह की वेबसाइट के सम्पर्क में आये और यहाँ प्राणायाम से संबंधित कई आर्टिकल्स को पढ़कर काफी प्रभावित हुए !
फिर उन सज्जनों ने रोज थोड़ी देर (लगभग 5 से 10 मिनट) तक प्राणायाम करना शुरू किया जिसकी वजह से उन्होंने लगभग एक से दो महीने में अपनी इस बदबू महसूस होने वाली समस्या से मुक्ति पा ली ! तत्पश्चात उन सज्जनों ने हमसे सम्पर्क करके, हमारे द्वारा मुफ्त में उपलब्ध कराई जाने वाली विभिन्न बेशकीमती जानकारियों के लिए धन्यवाद दिया !
अतः इसी क्रम में, हम ऐसे सभी सज्जनों के साथ – साथ अन्य सभी आदरणीय पाठकों को पुनः बताना चाहेंगे कि रोज मात्र 10 मिनट प्राणायाम करने से, केवल बदबू महसूस होना जैसी मामूली बीमारियों में लाभ नहीं मिलता है, बल्कि जीवन में कोई आकस्मिक समस्या (जैसे- हार्ट अटैक, ब्रेन हेमरेज, लकवा आदि) आने की संभावना भी लगभग समाप्त हो सकती है, इसलिए हर आदमी को जीवन में कम से कम 10 मिनट कोई भी अपना मनपसंद प्रायाणाम (जैसे- कपालभाति, अनुलोम – विलोम, भस्त्रिका आदि) जरूर करना चाहिए !
वैसे तो किस प्राणायाम को करने से क्या – क्या लाभ मिलता है इसके बारे में “स्वयं बनें गोपाल” पहले भी कई आर्टिकल्स प्रकाशित कर चुका है (जिनके बारे में अधिक जानने के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें- शरीर की हर बीमारी का नाश कर सकने में सक्षम प्राणायाम व ध्यान से करिये पूरे शरीर को फिर से नया और युवा) इसलिए यहाँ सारांश रूप में केवल इतना याद रखने की जरूरत है कि लगभग हर प्राणायाम से, हर तरह के फायदे देर – सवेर जरूर मिल जाते हैं !
इसलिए जिसको जो भी प्राणायाम करना आसान लगता हो, उसको वही प्राणायाम रोज अधिक से अधिक देर तक (अपनी उचित क्षमतानुसार) जरूर करना चाहिए (जैसे कई लोगों को भस्त्रिका या कपालभाति करना कठिन लग सकता है, तो उन्हें बेहद आसान अनुलोम – विलोम ही कर लेना चाहिए) ! और अगर किसी को सभी तरह के प्राणायाम करना आसान लगता हो तो उसे सभी प्राणायाम थोड़ी – थोड़ी देर कर लेना चाहिए !
अगर प्राणायाम से सिर्फ साधारण फायदे (जैसे जीवन में हार्ट अटैक, लकवा आदि ना हो सके) पाना हो तो रोज सिर्फ 10 मिनट करना ही पर्याप्त है लेकिन चिर यौवन यानी अपनी खोयी हुई युवास्था को फिर से प्राप्त करने की इच्छा हो तो तो रोज कम से कम 1 घंटा प्राणायाम करना चाहिए ! लेकिन कई लोग यह शिकायत करते हैं कि अगर रोज 1 घंटा समय, सिर्फ प्राणायाम करने में ही बर्बाद कर देंगे तो बाकी जरूरी कामों के लिए समय कैसे निकालेंगे ?
तो ऐसे अदूरदर्शी लोगों को समझना चाहिए कि हम सभी मानव जो कुछ भी काम, पूरे जीवनभर करते हैं, उन सभी कामों का एकमात्र उद्देश्य यही होता है कि हमें किसी ना किसी माध्यम से सुख मिलता रहे, लेकिन विडंबना यही है कि हमारे पास किसी भी सुख को महसूस कर पाने का एकमात्र जरिया होता है “हमारा शरीर”, इसलिए अगर हमारा शरीर ही किसी तकलीफ से परेशान हो या कमज़ोर हो, तो ना तो हम किसी शारीरिक सुख (जैसे- स्वादिष्ट खाना पीना आदि) और ना ही किसी आध्यात्मिक सुख (जैसे- ईश्वर भक्ति सुख) का आनंद उठा सकेंगे !
इसलिए शरीर को स्वस्थ बनाने के लिए खर्च किया हुआ एक मिनट भी, समय की बर्बादी नहीं, बल्कि समय का सबसे बढियाँ उपयोग है ! प्राणायाम कैसे लम्बे समय तक युवावस्था प्रदान करने में आश्चर्यजनक रूप से लाभकारी हो सकता है जानने के लिए कृपया हमारे इस पूर्व प्रकाशित आर्टिकल को पढ़ें- मिस्टीरियस “फाउंटेन ऑफ़ यूथ” के आश्चर्यजनक फायदे इन आसान तरीकों से भी मिल सकते हैं
इसी संदर्भ में, आज “स्वयं बनें गोपाल” समूह, प्राणायाम से संबंधित एक ऐसे गुप्त पहलू के बारे में भी बताने जा रहा है जिसके बारे में कई योग गुरुओं तक को पता नहीं है और वो पहलू यह भी बताता है कि आखिर क्यों सही तरीके से प्राणायाम करने से, उम्मीद से भी बढ़कर फायदा मिलता है !
वो गुप्त पहलू यह है कि प्राणायाम सीधे ट्रिगर (उत्प्रेरित) करता है, शरीर के सबसे मुख्य और सबसे शक्तिशाली मर्म बिंदु यानी “मन” को ! जैसा कि “स्वयं बनें गोपाल” समूह ने पूर्व के इस आर्टिकल (जानिये कैसे, आँख के इलाज से ही मुफ्त में ठीक हो गया घुटना और कमर भी) में भी बताया है कि हम मानवों के सभी शारीरिक व मानसिक बीमारियों की कंट्रोलर कीज़ (नियंत्रक चाभियाँ) हमारे मन में ही छिपी हुईं रहती हैं इसलिए मन के स्वस्थ होने पर, शरीर की सभी बीमारियां अपने आप ठीक होने लगती हैं !
अतः फिर से समझिये इस रहस्य को, कि हमारा मन, हमारे शरीर का सबसे महत्वपूर्ण मर्म बिंदु (या मर्म स्थल) होता है जिसे बिना योग की मदद के, सिर्फ किसी दवा की मदद से ट्रिगर कर पाना संभव नहीं है क्योकि मन, स्थूल शरीर (यानी हाड़ – मांस से बने हुए शरीर) में नहीं रहता है, बल्कि अदृश्य माने जाने वाले सूक्ष्म शरीर में रहता है इसलिए मन को सिर्फ इन 4 योगों- हठ योग, राज योग, भक्ति योग व कर्म योग से स्वस्थ किया जा सकता है (ये 4 योग क्या होतें हैं और इनमें क्या अंतर होता है, जानने के लिए कृपया इस आर्टिकल पर क्लिक करें- सभी बिमारियों, सभी मनोकामनाओं व सभी समस्याओं का निश्चित उपाय है ये) !
हठ योग की ही अत्यंत महत्वपूर्ण प्रैक्टिस हैं प्राणायाम, जिसमें ली जाने वाली हर श्वास – प्रश्वास (यानी नाक से अंदर – बाहर आने जाने वाली साँस) की सीधी टक्कर मन पर भी पड़ती है जिससे शरीर में स्थित हर कोशिका धीरे – धीरे स्वस्थ बनने लगती हैं और लगभग हर तरह की बिमारी में परमानेंट आराम मिलने लग सकता है !
शरीर के 109 मर्म स्थानों को विशेष तरीके से ट्रिगर (उत्प्रेरित) करके, यानी दुर्लभ मर्म चिकित्सा द्वारा, बिमारियों में कितनी जल्दी आराम पहुंचाया जा सकता है, जानने के लिए कृपया हमारे द्वारा इस पूर्व प्रकाशित आर्टिकल को पढ़ें- जनरल असेंबली ने ट्यूबरकुलोसिस, डिजास्टर रिस्क रिडक्शन, प्रेस फ्रीडम व विकासीय मुद्दों पर आधारित मीटिंग्स में आमंत्रित किया हमारे स्वयं सेवक को
मर्म स्थान कितना अद्भुत प्रभाव दिखातें हैं इसके कई उदाहरण उपलब्ध हैं मर्म पुस्तकों में, जैसे महाभारत काल में मर्म युद्ध का बड़ा प्रयोग हुआ था ! उदाहरण के तौर पर, अर्जुन किसी भी हाल में भीष्म पितामह को जान से मारना नहीं चाहते थे इसलिए अर्जुन ने जानबूझकर भीष्म पितामह के पूरे शरीर में सिर्फ उन्ही जगहों पर तीर मारा था, जहाँ कोई भी खतरनाक मर्म स्थल नहीं था जिससे भीष्म पितामह घायल तो हुए लेकिन मरे नहीं (हालांकि अर्जुन जानते थे कि भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था इसलिए अगर अर्जुन उनके मुख्य मर्म स्थानों पर भी तीर मारते तब भी भीष्म जिन्दा रह सकते थे, लेकिन अर्जुन की हिम्मत ही नहीं पड़ी कि वो, अपने सगे परदादा भीष्म के खतरनाक मर्म स्थानों पर तीर मार सकें) !
महाभारत काल का ही दूसरा उदाहरण है श्री कृष्ण जी की मृत्यु का ! मतलब श्री कृष्ण के शरीर की मृत्यु इस वजह से हुई थी क्योकि अकेले सुनसान जगह में, एक शिकारी द्वारा अनजाने में मारा गया तीर, श्री कृष्ण के पैर के पंजे में स्थित “तल हृदय” नाम के मर्म स्थान को भेद कर बाहर निकल गया और समय पर इलाज ना मिल पाने की वजह से श्री कृष्ण के शरीर की मृत्यु हो गयी !
हालांकि आध्यात्मिक दृष्टि से देखा जाए तो भगवान् का ना तो कभी जन्म होता है और ना ही कभी मृत्यु, लेकिन सांसारिक दृष्टि से देखा जाए तो भगवान् की कृष्ण रूप वाली शरीर की मृत्यु इस वजह से हो पायी थी क्योकि “तल हृदय” नाम का मर्म बहुत ही संवेदनशील होता है जिसे मर्म चिकित्सा में “कालान्तर प्राणहर मर्म” कहा जाता है जिसका मतलब होता है कि अगर वो मर्म स्थल पूरी तरह से नष्ट हो जाए और समय पर इलाज भी ना मिल सके, तो कालान्तर यानी कुछ समय बीतने के बाद मृत्यु होने की भी संभावना है !
जबकि देखा जाए तो पूरे विश्व में आज भी ऐसे हजारों लोग (जैसे- युद्ध से लौटे सैनिक) एकदम स्वस्थ जिंदगी जी रहें है जिनके शरीर के अंदर बन्दूक की गोली, छर्रे आदि सालों से फंसे पड़े हुए और डॉक्टर उन्हें इसलिए सर्जरी से बाहर नहीं निकाल सकते है, क्योकि वे गोलियां शरीर में ऐसी जगह फंसी हुईं हैं जिनके आस – पास ही कोई बहुत संवेदनशील जगह है जिस पर अनजाने में भी आघात लगने पर जानलेवा खतरा हो सकता है, इसलिए उन गोलियों को शरीर के अंदर ही छोड़ देने में भलाई होती है क्योकि उन गोलियों के अंदर फंसे रहने से कोई विशेष नुकसान नहीं होता है !
अतः अब यह तो स्पष्ट हो गया होगा कि आखिर क्यों श्री कृष्ण को सिर्फ एक तीर, वो भी पैर में लगने से मौत हो गयी जबकि वहीँ हजारों लोग अपने शरीर के अंदर गोली फंसे होने के बावजूद भी जी रहें हैं ! वास्तव में मर्म शास्त्र इसी बात को तो विधिवत समझाता है की शरीर में कौन सा स्थान, कितना महत्वपूर्ण है और उस स्थान का युद्ध या इलाज में क्या – क्या लाभ उठाया जा सकता है, जैसे- जिस “तल हृदय” मर्म स्थान को भेदकर तीर बाहर निकलने से श्री कृष्ण बेहोश हो गए और इलाज ना मिल पाने की वजह से मर गए, उसी “तल हृदय” मर्म स्थान को हाथों की उँगलियों से दबाने से (एक्यूप्रेशर की तरह), ब्लड प्रेशर व कई मानसिक बीमारियों में आश्चर्यजनक लाभ मिल सकता है !
मतलब संलग्न चित्र में दिखाए गए “तल हृदय” मर्म स्थानों, जो दोनों हाथों की हथेलियों और पैर के पंजों में भी होते हैं, उन्हें दिन भर में 2 – 3 समय, 10 से 20 बार तक दबाने से हाई और लो, दोनों तरह का ब्लड प्रेशर, कण्ट्रोल हो सकता है और साथ ही हिस्टीरिया, मिर्गी आदि जैसी कठिन मानसिक बीमारियों में भी काफी लाभ मिल सकता है !
आज शहरों में रहने वाला शायद ही कोई ऐसा धनी परिवार होगा जिसमे ब्लड प्रेशर का कम से कम एक मरीज ना हो जिसके पीछे कई कारणों में से एक कारण यह भी है कि आजकल के ज्यादातर शहरी नागरिक ऐसा कोई काम, लगभग ना के बराबर करते हैं जिससे हथेलियों और पैर के पंजों के बीच स्थित इन “तल हृदय” मर्म स्थानों पर दबाव पड़ सके !
जबकि गाँव में रहने वाले लोग और शहरों में मजदूरी करने वाले लोग, दिन भर अपनी हथेलियों से भारी सामान उठाते रहतें हैं जिससे उनके “तल हृदय” मर्म बिंदु पर बार – बार दबाव पड़ता है और उनका यह मर्म स्थान रोज अपने आप एक्टिवेटिड हो जाता है अतः उन्हें कभी ब्लड प्रेशर की बिमारी छू भी नहीं पाती है (जब तक कि वे कोई खतरनाक नशा या किसी एलोपैथिक दवा के साइड इफेक्ट्स आदि से ग्रसित ना हो जाएँ) !
पहले महिलाओं का सुबह – शाम आटा गूथने व बेलन से रोटी बनाने आदि जैसे घरेलु कामों के दौरान भी “तल हृदय” मर्म स्थान एक्टिवेटिड हो जाता था लेकिन अब तो रोटी मेकर जैसी मशीनों की वजह से यह प्रचलन भी बंद होता जा रहा है ! अब तो महानगरों में, छोटे बच्चों में भी स्ट्रेस का लेवल इतना बढ़ते हुए सुना गया है कि उन्हें भी बी पी की दवा लेनी पड़ सकती है जबकि पहले बच्चे, अपने हाथों से, अपने दादा – दादी, माता – पिता, चाचा – चाची आदि का बिना पैर दबाये हुए सोने नहीं जाते थे जिसकी वजह से बच्चों का भी “तल हृदय” पॉइंट्स एक्टिवेटिड रहता था !
अन्ततः निष्कर्ष यही है कि रोज सिर्फ ये 2 काम करने से लगभग सभी जरूरी शारीरिक लाभ निश्चित मिल सकते है- (1) कम से कम 10 मिनट से लेकर 1 घंटा तक प्राणायाम करना, जिससे ना केवल अमृत स्वरुप प्राण ऊर्जा में खूब इजाफा होता है बल्कि सबसे महत्वपूर्ण मर्म स्थान यानी मन एक्टिवेटिड होता है (2) खुद अपने हाथों से या किसी दूसरे की मदद से, कम से कम 5 मिनट से लेकर आधा घंटा तक, अपने पूरे शरीर की किसी भी तेल (जैसे- सरसों, नारियल या शुद्ध देशी घी आदि) से मालिश करना, जिससे ना केवल शरीर के अन्य सभी मर्म स्थान एक्टिवेटिड होते हैं बल्कि त्वचा में युवाओं की तरह चमक दमक आभा आती है !
नियमित प्राणायाम करने से मन के नेगेटिव थॉट्स (नकारात्मक विचारों), स्ट्रेस (तनाव), फियर ऑफ अननोन (अनजाना भय), एंग्जायटी (उत्तेजना), डिप्रेशन (अवसाद, निराशा) आदि से भी हमेशा के लिए मुक्ति मिल सकती है ! अतः रोज खुद भी करिये प्राणायाम और अपने पूरे परिवार को भी कराइए प्राणायाम क्योकि “रोज प्राणायाम करने की आदत” से अच्छा परिवार के लिए गिफ्ट, लाइफ इंश्योरेंस, फिक्स्ड डिपाजिट, एसेट्स कोई और नहीं हो सकता है, इसलिए देखिये आजकल के बच्चे भी प्राणायाम के प्रति कितना जागरूक हो रहें हैं- 5 Pranayama for Kids ; 3 Years Baby Girl doing Pranayama ; Anulom Vilom Pranayama for Kids ; Yoga for Children: Swami Ramdev
(नोट- प्राणायाम का अभ्यास बहुत धीरे – धीरे अपनी क्षमतानुसार बढ़ाना चाहिए, ना कि पहले ही दिन 1 घंटा प्राणायाम कर लेना चाहिए ! ठोस पदार्थों को खाने के कम से कम 3 से 5 घंटे बाद प्राणायाम करना चाहिए और तरल पदार्थ पीने के कम से कम 1 से 3 घंटे बाद प्राणायाम करना चाहिए अन्यथा नुकसान हो सकता है)
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