स्वयं बने गोपाल

उपन्यास – गोदान – 8 – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

यह अभिनय जब समाप्त हुआ, तो उधर रंगशाला में धनुष-यज्ञ समाप्त हो चुका था और सामाजिक प्रहसन की तैयारी हो रही थी, मगर इन सज्जनों को उससे विशेष दिलचस्पी न थी। केवल मिस्टर मेहता...

उपन्यास – गोदान – 9 – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

होरीराम ने दोनों बैलों को सानी-पानी दे कर अपनी स्त्री धनिया से कहा – गोबर को ऊख गोड़ने भेज देना। मैं न जाने कब लौटूँ। जरा मेरी लाठी दे दे। धनिया के दोनों हाथ...

उपन्यास – गोदान – 10 – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

हीरा का कहीं पता न चला और दिन गुजरते जाते थे। होरी से जहाँ तक दौड़-धूप हो सकी, की; फिर हार कर बैठ रहा। खेती-बारी की भी फिक्र करना थी। अकेला आदमी क्या-क्या करता?...

उपन्यास – गोदान – 11 – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

ऐसे असाधारण कांड पर गाँव में जो कुछ हलचल मचनी चाहिए, वह मची और महीनों तक मचती रही। झुनिया के दोनों भाई लाठियाँ लिए गोबर को खोजते फिरते थे। भोला ने कसम खाई कि...

उपन्यास – गोदान – 12 – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

रात को गोबर झुनिया के साथ चला, तो ऐसा काँप रहा था, जैसे उसकी नाक कटी हुई हो। झुनिया को देखते ही सारे गाँव में कुहराम मच जायगा लोग चारों ओर से कैसी हाय-हाय...

उपन्यास – गोदान – 13 – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

गोबर अँधेरे ही मुँह उठा और कोदई से बिदा माँगी। सबको मालूम हो गया था कि उसका ब्याह हो चुका है, इसलिए उससे कोई विवाह-संबंधी चर्चा नहीं की। उसके शील-स्वभाव ने सारे घर को...

उपन्यास – गोदान – 14 – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

होरी की फसल सारी की सारी डाँड़ की भेंट हो चुकी थी। वैशाख तो किसी तरह कटा, मगर जेठ लगते-लगते घर में अनाज का एक दाना न रहा। पाँच-पाँच पेट खाने वाले और घर...

उपन्यास – गोदान – 15 – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

मालती बाहर से तितली है, भीतर से मधुमक्खी। उसके जीवन में हँसी ही हँसी नहीं है, केवल गुड़ खा कर कौन जी सकता है! और जिए भी तो वह कोई सुखी जीवन न होगा।...

उपन्यास – गोदान – 16 – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

रायसाहब को खबर मिली कि इलाके में एक वारदात हो गई है और होरी से गाँव के पंचों ने जुरमाना वसूल कर लिया है, तो फोरन नोखेराम को बुला कर जवाब-तलब किया – क्यों...

उपन्यास – गोदान – 17 – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

गाँव में खबर फैल गई कि रायसाहब ने पंचों को बुला कर खूब डाँटा और इन लोगों ने जितने रुपए वसूल किए थे, वह सब इनके पेट से निकाल लिए। वह तो इन लोगों...

उपन्यास – गोदान – 18 – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

खन्ना और गोविंदी में नहीं पटती। क्यों नहीं पटती, यह बताना कठिन है। ज्योतिष के हिसाब से उनके ग्रहों में कोई विरोध है, हालाँकि विवाह के समय ग्रह और नक्षत्र खूब मिला लिए गए...

उपन्यास – गोदान – 19 – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

मिर्जा खुर्शेद का हाता क्लब भी है, कचहरी भी, अखाड़ा भी। दिन-भर जमघट लगा रहता है। मुहल्ले में अखाड़े के लिए कहीं जगह नहीं मिलती थी। मिर्जा ने एक छप्पर डलवा कर अखाड़ा बनवा...

उपन्यास – गोदान – 20 – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

फागुन अपने झोली में नवजीवन की विभूति ले कर आ पहुँचा था। आम के पेड़ दोनों हाथों से बौर के सुगंध बाँट रहे थे, और कोयल आम की डालियों में छिपी हुई संगीत का...

उपन्यास – गोदान – 21 – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

देहातों में साल के छ: महीने किसी न किसी उत्सव में ढोल-मजीरा बजता रहता है। होली के एक महीना पहले से एक महीना बाद तक फाग उड़ती है, असाढ़ लगते ही आल्हा शुरू हो...

उपन्यास – गोदान – 22 – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

इधर कुछ दिनों से रायसाहब की कन्या के विवाह की बातचीत हो रही थी। उसके साथ ही एलेक्शन भी सिर पर आ पहुँचा था, मगर इन सबों से आवश्यक उन्हें दीवानी में एक मुकदमा...

उपन्यास – गोदान – 23 – (लेखक – मुंशी प्रेमचंद)

गोबर और झुनिया के जाने के बाद घर सुनसान रहने लगा । धनिया को बार-बार चुन्नू की याद आती रहती है । बच्चे की माँ तो झुनिया थी, पर उसका पालन धनिया ही करती...